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निराशा की गहराइयों में हमारी आत्मा कभी कभी हराहर जाती है लेकिन वह फिर से उठती है जैसे कि सूरज की पहली किरण की तरह और हमारे दर्द को अपने द्वार पर स्वागत करती है