Tarksheel
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तर्कशील समाज के निर्माण के लिए।
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भेड़ चाल 👇👇

कोई मुसाफिर अपनी ससुराल जा रहा था। रास्ते मे उसका जुता टूट गया।

उसने वो जूता एक पेड़ पर टांग दिया। और
नीचे लिख दिया यहाँ जूता टांगने से हर मन्नत पूरी होती है ताकि कोई उसकी टांगा हुआ जूता न चुरा ले।

फिर भेड़ चाल का तो आपको पता ही है।

मूर्खों ने पूरा पेड़ ही जुता टांग कर सुखा डाला।

हंसिए मत...ऐसे नज़ारे आपको देश मे सब जगहों पर दिखाई दे सकते हैं..!

— उमेश सोनकुले
पेरियार की नजर में जाति का विनाश कैसे हो सकता है?

पेरियार ने लिखा है कि “ हमारे देश में जाति के विनाश का मतलब है भगवान, धर्म, शास्त्र और ब्राह्मणों का विनाश। जाति तभी खत्म हो सकती है, जब ये चारों भी खत्म हो जाएं। यदि इसमें से एक भी बना रहता है, तो जाति का विनाश नहीं हो सकता। ….क्योंकि जाति की संरचना इन चारों द्वारा ही खड़ी की गई है। इंसानों को दास और मूर्ख बनाकर ही उन पर जाति थोपी जा सकती है। लोगों को विवेकसम्मत और आजाद खयाल का बनाए बिना जाति का खात्मा कोई भी नहीं कर सकता है। भगवान, धर्म, शास्त्र और ब्राह्मण दासता और मूर्खता को बढ़ावा देते हैं और जाति के अस्तित्व को मजबूत बनाते हैं।”
( पेरियार टूवार्ड्स ए नान ब्राह्ममिन मिलेनियम, फ्राम आयोथी थास टू पेरियार, वी. गीता और एस. वी. राजादुरी, पृ.335)

जाति का विनाश किताब में इसी तरह के विचार डॉ. आंबेडकर ने भी व्यक्ति किया है। उन्होंने कहा है कि जाति का समर्थन करने वाले हिंदू धर्मशास्त्रों को बारूद से उड़ा देना चाहिए।

पेरियार और डॉ. आंबेडकर दोनों का मानना था कि जाति की शुद्धता कायम रखने के लिए स्त्रियों को पुरूष की दासी बनाया गया, क्योंकि स्त्रियों नियंत्रण रखे बिना जाति नहीं कायम रखी जा सकती थी।

भारत में स्त्री मुक्ति का प्रश्न प्रत्यक्ष तौर पर जाति के खात्मे के साथ जुड़ा हुआ है।भारत में वर्ग, जाति और स्त्री मुक्ति का प्रश्न एक दूसरे के साथ जुड़ा हुआ।

नोट: ब्राह्मणों के खात्में का अर्थ किसी व्यक्ति विशेष के खात्में से नहीं है, बल्कि जाति के रूप में ब्राह्मणों के खात्मे से है। यह पेरियार और आंबेडकर दोनों लोगों ने साफ शब्दों में लिखा है।

— सिद्धार्थ रामू
“मैं धर्म को नहीं ईश्वर को मानता हूँ”,

यह आधुनिक अध्यात्मवाद है,

यह कुछ कुछ उसी तरह है जैसे लोग कहते हैं “मैं अन्धविश्वासी नहीं धार्मिक हूँ”.....

सत्य यह है कि बात धर्म की हो या ईश्वर की आपके पास अन्धविश्वास के अलावा और कोई चारा ही नहीं है.....

अच्छा ये बताओ ईश्वर का परिचय आपको किसने दिया?

कुछ पाने के लालच एवं कुछ खोने के भय से धर्म के द्वारा सदियों से विकलांग किये गए दिमाग को कुछ तो चाहिए लटकने के लिए.....

उसी से आजकल के आधुनिक अध्यात्मवाद की रचना हुई कि धर्म को न और ईश्वर को हाँ......

परन्तु धर्म ने ही ईश्वर की असत्य कल्पना से भयादोहन और शोषण की नींव रखी.....

परन्तु मैं खुश हूँ और सकारात्मक रूप से आशान्वित हूँ......

कम से कम इन्होने अन्धविश्वास और धर्म को गलत मानना शुरू तो किया.....

ये पहला कदम है सत्य की तरफ .....

कुछ समय में जब काल्पनिक ईश्वर से भी आस टूटेगी,

तब टूटेगा इनका नशा भी.....

असल में यही क्रम है,

एक प्रोसेस है,

पहले अन्धविश्वास जाते हैं,

फिर धर्म जाता है,

और फिर ईश्वर भी ......

मुझे नयी पीढ़ी से बहुत आशाएं हैं 😊

— बालेन्दु गोस्वामी
रोज नए खबर के लिए मैं कड़ी मेहनत करता हूँ ,
कई बार गिरता,कई बार संभलता हूँ,
कई बार तो मैं भीड़ के गुस्से का शिकार भी बनता हूँ ।
इन सब को कर दरकिनार हर रोज ढांढस बांधे मैं निकलता हूँ ।

हाँ !मैं एक पत्रकार हूँ ,
मैं एक चलता फिरता समाचार हूँ।
हाँ !मैं एक पत्रकार हूँ।

— स्वाति
जिन्हें धर्म से लाभ है, उन्हें धर्म की लड़ाई लड़ने दीजिए बाक़ी केवल शिक्षा की लड़ाई लड़ें क्योंकि धर्म से उन्हें कभी कोई सम्मानीय स्थान नहीं मिलेगा। सटीक पुष्टि हेतु पूरा इतिहास खुद से खंगाल डालना। शिक्षा से ही हर स्थान हासिल होगा इसलिए लड़ो पढ़ाई करने को,पढ़ो समाज बदलने को !

— आर. पी. विशाल