तड़पती कलम
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कभी वो भी तो पड़ो जो हम लिख नहीं पाते।
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इतने ख़ुलूस से तुझे सोचता हूँ मैं ,,,
जैसे तेरा इश्क़ बख्शीश का वसीला हो ...!!!
میں تیری زلفوں کے خم نکالوں یا کوئی تازہ غزل نکالوں
سویرے دفتر اگر نہ جاؤں تو گھر میں راشن کہاں سے لاؤں
मैं तेरी ज़ुल्फ़ों के ख़म निकालूं या कोई ताज़ा ग़ज़ल निकालूं
सवेरे दफ़्तर अगर न जाऊं तो घर में राशन कहां से लाऊं
جسم دکھتا ہے نہ آنکھوں میں جلن ہوتی ہے
عشق والوں کو کہاں کوئی تھکن ہوتی ہے

जिस्म दुखता है न आँखों में जलन होती है
इश्क़ वालों को कहां कोई थकन होती है
जवान फ़िक्र के ताक़ों को रोशनी बख़्शो
उठो चराग़ जलाओ बहुत उदासी है

جوان فکر کے طاقوں کو روشنی بخشو
اٹھو چراغ جلاؤ بہت اداسی ہے
बात तो पहले ही नहीं होती थी,
अब तो हाथ मिलाने से भी गए,,
चाय हो या तेरी बातें
मिठास दोनो में एक जैसी होती है .....😍😊
सब कहां मेरे तरह चाहने वाले होंगें
जल के जो धूप में तेरे लिये काले होंगें.

किसलिए हर गली मस्जिद या शिवाले होंगें
जब न दिल ही में मोहब्बत के उजाले होंगें.

जो तेरी झील सी आंखों का हुआ दीवाना
हुस्न के उसने समंदर भी खंगाले होंगें.

आसमाँ यूँ नहीं दिखता है सुराखो से भरा
जाम पी पी के दीवानों ने उछाले होंगें.

बाप ने तो सो गया दो जाम लगाकर लेकिन
माँ ने घर लौट के बच्चे भी सम्भाले होंगें.

जिन लोगों ने फैलाया तअस्सुब का यहाँ,
मरने के बाद ख़बीसों के हवाले होंगें.

जानवर भी तो मरे आदमी के झगड़ो में,
उनके दिल में तो ना क़ाबा न शिवाले होंगें.

अज़ीज़ पहले भी बरपा है यहाँ हंगामा,
सबने मिलकर ही तो हालात संभाले होंगें.



@shayronkiduniya0786
नहीं आयेगा वो अब मेरा हाथ थामने के लिए,

ये कहकर मेरी उंगलियों ने खुदकुशी कर ली।
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आंसू बहे तो खुद ही पोछ लीजिएगा,
लोग पोछने आएंगे तो सौदा करेंगे।।।।
Dekh kar dil-kashi zamane ki
Aarzu hai fareb khane ki

Ae gham-e-zindagi na ho naraaz
Mujh ko aadat hai muskurane ki

Zulmaton se na Dar ki raste mein
Roshni hai sharab-KHane ki

Aa tere gesuon ko pyar karun
Raat hai mishalen jalane ki

Kis ne saghar ‘adam’ buland kiya
Tham gain gardishen zamane ki

دیکھ کر دلکشی زمانے کی
آرزو ہے فریب کھانے کی

اے غم زندگی نہ ہو ناراض
مجھ کو عادت ہے مسکرانے کی

ظلمتوں سے نہ ڈر کہ رستے میں
روشنی ہے شراب خانے کی

آ ترے گیسوؤں کو پیار کروں
رات ہے مشعلیں جلانے کی

کس نے ساغر عدمؔ بلند کیا
تھم گئیں گردشیں زمانے کی

देख कर दिल-कशी ज़माने की
आरज़ू है फ़रेब खाने की

ऐ ग़म-ए-ज़िंदगी न हो नाराज़
मुझ को आदत है मुस्कुराने की

ज़ुल्मतों से न डर कि रस्ते में
रौशनी है शराब-ख़ाने की

आ तिरे गेसुओं को प्यार करूँ
रात है मिशअलें जलाने की

किस ने साग़र ‘अदम’ बुलंद किया
थम गईं गर्दिशें ज़माने की
नमक भी जब मीठा लगा मुझे
तो ख़याल आया...

शायद उसने छू लिया होगा।
मेरी शायरी तो होती है बस एक के लिए,
मगर सितम है कि सब को पढ़नी पड़ती है !
😂😜
ना दिल की चली ना आँखों की 👀
हम तो दीवाने बस तेरी मुस्कान के हो गए।
😊🥰😘
ہر آدمی کےلب پہ بس اتنا سوال ہے.
کتنا کما رہا ہے تو اور کتنا مال ہے.

کیسا یہ روگ لگ گیا میری قوم کو.
یہ پوچھتا کوئی نہیں کیا روزی حلال ہے.

हर आदमी के लब पे बस इतना सवाल है।
कितना कमा रहा है और कितना माल है।
कैसा यह रोग लग गया मेरी कौम को।
पूछता कोई नहीं रोजी हलाल है।
बढ़ती उम्र का इश्क और ढलती उम्र की ख्वाहिश..
खूबसूरत जिस्म नहीं, खूबसूरत साथ ढूंढती है...
अपनी नज़रों को हमने खूब डांटा है,
पड़ गयी थी आज तेरी सहेली पर|
इश्क़__कर__लीजिए__बेइंतेहा__किताबों__से

एक यही ऐसी चीज़ है जो अपनी बातों से पलटा नहीं करती