संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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अस्माभिः व्यायामः नित्यं कर्तव्यः ।
= हमें व्यायाम रोज करना चाहिये ।

व्यायामात् स्वास्थ्यं लभते ।
= व्यायाम से स्वास्थ्य प्राप्त होता है ।

वयं दीर्घायुष्यं शक्तिं सुखं च लभामहे ।
= हम बड़ी आयु बल और सुख पाते हैं ।

यदि अस्माकं गात्रम् आरोग्यं भवेत् तर्हि-
= यदि हमारा शरीर निरोगी हो तो-

एतत् परमसौभाग्य भविष्यति ।
= यह परम सौभाग्य होगा ।

यतः स्वस्थदेहेन सर्वं कर्तुं शक्यते ।
= क्योंकि स्वस्थ शरीर से सब किया जा सकता है ।

सः पुस्तकानि नयति।
= वह पुस्तकें ले जाता है।

त्वं किं नयसि?
= तुम क्या ले जाते हो?

अहं पुस्तकानां स्यूतं नयामि।
= मैं पुस्तकों का थैला ले जाता हूं।

#Vakyabhyas
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा। 
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।। 

४५ निमेषाः
🕛 IST ११:०० AM   
🔰श्रीमद्भगवद्गीता - प्रथमोऽध्यायः
🗓१२ अगस्त २०२३, शनिवासरः

🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.

📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(श्रीमद्भगवद्गीतायाः प्रथमोऽध्यायस्य सारस्य अथवा कस्यचित् श्लोकस्य अर्थविवरणं कुर्वन्तु)। चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

👇👇👇👇👇
https://t.me/samskrt_samvadah?livestream=c76d9941aeab5bd149

सङ्ग्रहः
https://archive.org/details/samlapshala_
Rig Moolam E1.mp3
Rig Moolam E1
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२५
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०८०
🚩तिथि - एकादशी सुबह 06:31 तक तत्पश्चात द्वादशी

दिनांक - 12 अगस्त 2023
दिन - शनिवार
शक संवत् - 1945
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - वर्षा
मास - अधिक श्रावण
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - आर्द्रा पूर्ण रात्रि तक
योग - हर्षण दोपहर 03:23 तक तत्पश्चात वज्र
राहु काल - सुबह 09:30 से 11:07 तक
सूर्योदय - 06:15
सूर्यास्त - 07:15
दिशा शूल - पूर्व दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 04:47 से 05:31 तक
निशिता मुहूर्त - रात्रि 12:23 से 01:07 तक
व्रत पर्व विवरण - परमा एकादशी
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संलापशाला
संस्कृत संवादः (Sanskrit Samvadah)
श्रीमद्भगवद्गीता - प्रथमोऽध्यायः
#samlapshala
🍃न भेतव्यं न बोद्धव्यं न श्राव्यं वादिनो वचः।
झटिति प्रतिवक्तव्यं सभासु विजिगीषुभिः


🔆 न बिभ्यतु न ध्यायन्तु न शृण्वन्तु वादिनः वाक्यानि झटिति एव उत्तरं प्रदातव्यं यः सभायां जिगीषति (जेतुम् इच्छति)।

Kaliviḍambanam (Nīlakaṇṭha Dīkṣita)

Don't fear, don't heed upon, and don't listen to the words of an arguer (vādin). Those who desire to win shall quickly reply (the prativādin) in assembly.

#Subhashitam
आरक्षकः धावन्तं चोरं झटिति गृह्णाति।
अत्र क्रियाविशेषणं किम्।
Anonymous Quiz
32%
धावन्तम्
61%
झटिति
4%
चोरम्
3%
नास्ति
रामायण महाकाव्य की रचना महर्षि वाल्मीकि ने सारस पक्षी की विरह वेदना को देख कर की थी।
••महर्षि: वाल्मीकि: क्रौञ्चाया: विरहवेदनां दृष्ट्वा रामायणस्य महाकाव्यस्य रचनां चकार।

क्रौंच पक्षी के जोड़े की प्रणय लीला बहुत ही सुंदर होती है और वे दोनों आजीवन एक ही जीवन साथी के लिए वफादार रहते है।
••खञ्जरीटपक्षियुगलस्य प्रेमालापः अतीव रमणीय: भवति तौ (क्रौञ्च क्रौञ्चा च) च आजीवनं परस्परं निष्ठावन्तौ भवत:।

उनमें से यदी एक पक्षी का मृत्यु हो जाता है तो वह पक्षी भी अपने प्राण त्याग देता है।
••तयोर्यदि एकः पक्षी म्रियते तर्हि अपरोऽपि वियोगे स्वप्राणान् त्यजति।

महर्षि वाल्मीकि ने सारस पक्षी को अपनी प्रियतमा के विरह में रोते-चिल्लाते हुए देखा और उनके मनमें करुणा का भाव आया और अनायास ही उनके मन में कुछ छंदो का आविर्भाव हुआ और वही श्लोक रामायण के प्रथम श्लोक है और उन्हीं श्लोकों की सहायता से उनको राम की सीता से विरह की व्यथा ज्ञात हुई।
••महर्षिः वाल्मीकिः क्रौञ्चीं स्वप्रियस्य विरहे विलापं कुर्वतीं ददर्श तस्य मनसि च करुणायाः भावः प्रादुर्बभूव अकस्मादेव च तस्य मनसि केचन श्लोकाः प्रादुर्बभूवतु: स एव च श्लोक: रामायणस्य प्रथम: श्लोक: अस्ति तेषां च श्लोकानां साहाय्येन स रामस्य सीताविरहस्य पीडां जज्ञौ।

उसके पश्चात उनको उनके जीवन का हर एक वृतांत उसी समय पता चलने लगा और वह घटना वे ज्यों की त्यों लिखने लगे।
••तदनन्तरं तस्य जीवनस्य सर्वं वर्तमानं वृत्तान्तं तत्काले एव अभिज्ञातुमारेभे सः च तां घटनां यथावत् लेखितुमारेभे।

इस प्रकार पूरे रामायण महाकाव्य की रचना हुई।
••एवं प्रकारेण सम्पूर्णरामायणस्य महाकाव्यस्य रचना बभूव।

इस प्रकार क्रौंच पक्षी भी बहुत ही चमत्कारी पक्षी है।
••एवं प्रकारेण खञ्जरीट: पक्षी अपि महान् चमत्कारी पक्षी अस्ति।

दूसरा गुजरात राज्य के अंबाजी में स्थित मां अंबा का धाम विश्व प्रसिद्ध है जिसकी गिनती 52 शक्तिपीठो में की जाती है।
••द्वितीयं, गुर्जरराज्यस्य अम्बाजीनगरे स्थितं मातु: अम्बाया: धाम विश्वप्रसिद्धम् अस्ति, यद् द्विपञ्चाशत् शक्तिपीठेषु गण्यते।

कुछ लोगों की मान्यता के अनुसार राजहंस माँ अंबा का ही स्वरुप है और सारस पक्षी ही वह राजहंस है।
••केषाञ्चन जनानां मान्यतानुसारं राजहंस: मातु: अम्बाया: एव स्वरुपः अस्ति खञ्जरीट: चैव स राजहंस: अस्ति।

इस प्रकार देखा जाए तो माँ अंबा ने ही महर्षि को रामायण महाकाव्य लिखने के लिए परोक्ष रूप से प्रेरित किया था।
••एवं प्रकारेण दृश्यते चेत् माता अम्बा एव महर्षिं रामायणमहाकाव्यं लेखितुं प्रैलयाम्बभूव।

~उमेशगुप्तः
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