संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि


🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
🚩 तिथि - द्वादशी 05 दिसम्बर प्रातः 05:57 तक तत्पश्चात त्रयोदशी

दिनांक - 04 दिसम्बर 2022

दिन - रविवार
शक संवत् - 1944
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - हेमंत
मास - मार्गशीर्ष
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - अश्विनी पूर्ण रात्रि तक
योग - व्यतिपात प्रातः 04:35 तक तत्पश्चात वरियान
राहु काल - शाम 04:33 से 05:54 तक
सूर्योदय - 07:06
सूर्यास्त - 05:54
दिशा शूल - पश्चिम दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:20 से 06:13 तक
सूर्यसिद्धान्त भारतीय खगोलशास्त्र का प्रसिद्ध ग्रन्थ है। कई सिद्धान्त-ग्रन्थों के समूह का नाम है। वर्तमान समय में उपलब्ध ग्रन्थ मध्ययुग में रचित ग्रन्थ लगता है किन्तु अवश्य ही यह ग्रन्थ पुराने संस्क्रणों पर आधारित है जो ६ठी शताब्दी के आरम्भिक चरण में रचित हुए माने जाते हैं।

भारतीय गणितज्ञों और खगोलशास्त्रियों ने इसका सन्दर्भ भी लिया है, जैसे आर्यभट्ट और वाराहमिहिर, आदि. वाराहमिहिर ने अपने पंचसिद्धांतिका में चार अन्य टीकाओं सहित इसका उल्लेख किया है, जो हैं:

पैतामाह सिद्धान्त, (जो कि परम्परागत वेदांग ज्योतिष से अधिक समान है),
पौलिष सिद्धान्त
रोमक सिद्धान्त (जो यूनानी खगोलशास्त्र के समान है), और
वशिष्ठ सिद्धान्त
सूर्य सिद्धान्त नामक वर्णित कार्य, कई बार ढाला गया है। इसके प्राचीनतम उल्लेख बौद्ध काल (तीसरी शताब्दी, ई.पू) के मिलते हैं। वह कार्य, संरक्षित करके और सम्पादित किया हुआ (बर्गस द्वारा १८५८ में) मध्य काल को संकेत करता है। वाराहमिहिर का दसवीं शताब्दी के एक टीकाकार, ने सूर्य सिद्धांत से छः श्लोकों का उद्धरण किया है, जिनमें से एक भी अब इस सिद्धांत में नहीं मिलता है। वर्तमान सूर्य सिद्धांत को तब वाराहमिहिर को उपलब्ध उपलब्ध पाठ्य का सीधा वंशज माना जा सकता है।[1] इस लेख में बर्गस द्वारा सम्पादित किया गया संस्करण ही मिल पायेगा. गुप्त काल के जो साक्ष्य हैं, उन्हें पठन करने हेतु देखें पंचसिद्धांतिका।
इसमें वे नियम दिये गये हैं, जिनके द्वारा ब्रह्माण्डीय पिण्डों की गति को उनकी वास्तविक स्थिति सहित जाना जा सकता है। यह विभिन्न तारों की स्थितियां, चांद्रीय नक्षत्रों के सिवाय; की स्थिति का भी ज्ञान कराता है। इसके द्वारा सूर्य ग्रहण का आकलन भी किया जा सकता है।
त्रिकोणमिति (Trigonometry)

सूर्यसिद्धान्त आधुनिक त्रिकोणमिति का मूल है। सूर्यसिद्धान्त में वर्णित ज्या और कोटिज्या फलनों से ही आधुनिक साइन (sine) और कोसाइन (cosine) नाम व्युत्पन्न हुए हैं ( जो भारत से अरब-जगत होते हुए यूरोप पहुँचे)। इतना ही नहीं, सूर्यसिद्धान्त के तृतीय अध्याय (त्रिप्रश्नाधिकारः) में ही सबसे पहले स्पर्शज्या (tangent) और व्युकोज्या (secant) का प्रयोग हुआ है। निम्नलिखित श्लोकों में शंकुक द्वारा निर्मित छाया का वर्णन करते हुए इनका उपयोग हुआ है-

शेषम् नताम्शाः सूर्यस्य तद्बाहुज्या च कोटिज्या।
शंकुमानांगुलाभ्यस्ते भुजत्रिज्ये यथाक्रमम् ॥ ३.२१ ॥
कोटिज्यया विभज्याप्ते छायाकर्णाव् अहर्दले।
क्रान्तिज्या विषुवत्कर्णगुणाप्ता शंकुजीवया ॥ ३.२२ ॥
Of [the sun's meridian zenith distance] find the jya ("base sine") and kojya (cosine or "perpendicular sine"). If then the jya and radius be multiplied respectively by the measure of the gnomon in digits, and divided by the kojya, the results are the shadow and hypotenuse at mid-day.

कैलेण्डरीय प्रयोग
१८७१-७२ ई का हिन्दू पञ्चाङ्ग
मुख्य लेख: हिन्दू पंचांग
भारत के विभिन्न भागों में भारतीय सौर पंचांग तथा चन्द्र-सौर पंचांग प्रयुक्त होते हैं। इनके आधार पर ही विभिन्न त्यौहार, मेले, क्रियाकर्म होते हैं। भारत में प्रचलित आधुनिक सौर तथा चान्द्रसौर पंचांग, सूर्य के विभिन्न राशियों में प्रवेश के समय पर ही आधारित हैं।

परम्परागत पंचांगकार, आज भी सूर्यसिद्धान्त में निहित सूत्रों और समीकरणों का ही प्रयोग करके अपने पंचांग का निर्माण करते हैं। भारतीयों के धार्मिक एवं सामाजिक जीवन पर पंचांग का बहुत अधिक प्रभाव है तथा अधिकांश घरों में पंचांग रखने की प्रथा है।
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Course Description
Learn Samskrit – the Language of Jyotisha (Level 4)
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#SanskritEducation
🍃अतिव्ययोऽनपेक्षा च तथाऽर्जनमधर्मतः ।
मोक्षणं दूरसंस्थानं कोष-व्यसनमुच्यते ॥


🔅अतिव्यय; अनपेक्षा तथा अधर्मतः अर्जनम् , मोक्षणं दूरसंस्थानं च कोष-व्यसनम् उच्यते।

अत्यधिक खर्च, धन की देखभाल न करना तथा अधर्म या अन्याय द्वारा कमाना, मनमाना त्याग, अपने से दूर (छिपाकर) रखना-ये धन के विनाश के कारण हैं। तात्पर्य यह है कि धन का अत्यधिक व्यय करना, उसकी उचित देखभाल न करना, उसका अधर्म-अन्यायपूर्वक अर्जन करना, पर्याप्त दान करना और उसे अपने से दूर अर्थात् छिपाकर रखना—इन सभी से धन नष्ट हो जाता है।

#Subhashitam
करोति - कृतवान् पठति पठितवान्
हसति - हसितवान्
तिष्ठति - ________
Anonymous Quiz
9%
तिष्ठितवान्
87%
स्थितवान्
3%
तिस्थितवान्
1%
रूपं न भवति
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
एक 15 साल का भाई अपने पापा से कहा "पापा पापा दीदी के होने वाले ससुर और सास कल आ रहे है। अभी जीजाजी ने फोन पर बताया। •• एक: पञ्चदशवर्षीय: भ्राता आत्मन: पितरं सूचितवान् , "तात!श्व: अग्रजाया: भाविश्वसुरदम्पती आगन्तारौ।इदानीं भगिनीपति: दूरवाण्या सूचितवान् ।"…
लड़के के पिताजी ने धीरे से अपनी कुर्सी दीनदयाल जी की ओर खिसकाई और धीरे से उनके कान में बोले-
•• युवकस्य पिता मन्दगत्या स्वासन्दिकां दीनदयालं प्रति अपसार्य मन्दस्वरेण तस्य कर्णस्य समीपम् अवदत्।

- " दीनदयाल जी! मुझे दहेज के बारे में बात करनी है।"
••- "दीनदयाल महोदय! मया यौतुकस्य विषये चर्चा करणीयास्ति।"

दीनदयाल जी हाथ जोड़ते हुये आँखों में पानी लिए हुए बोले-
•• दीनदयाल महोदय: हस्तौ योजयित्वा अश्रूपूरिताभ्यां नेत्राभ्यां सह अवदत् -

बताईए।समधी जी। जो आप को उचित लगे।मैं पूरी कोशिश करूंगा।
•• बोधयतु।सम्बन्धिन् महोदय! भवता यदपि उचितम् अनुभूयताम्।अहं पूर्णत: प्रयासं करिष्यामि।

समधी जी ने धीरे से दीनदयाल जी का हाथ अपने हाथों से दबाते हुए बस इतना ही कहा।
•• सम्बन्धी महोदय: मन्दतया दीनदयाल महोदयस्य हस्तं स्वहस्तभ्यां सम्पीडयन् केवलं इदमेव अकथयत्।

आप कन्यादान में कुछ भी देगें या ना भी देंगे।
•• भवान् कन्यादाने किमपि दास्यति उत किमपि न दास्यति।

थोड़ा देंगे या ज़्यादा देंगे।
•• अल्पं दास्यति उत अधिकं दास्यति।

मुझे सब स्वीकार है।
•• मम सर्व: स्वीकार: अस्ति।

परन्तु, कर्ज लेकर आप एक रुपया भी दहेज मत देना।
•• परन्तु , ऋणं गृहीत्वा भवान् रुप्यकमेकमपि यौतुकं मा ददातु।

वो मुझे स्वीकार नहीं।
•• तदहं न स्वीकरोमि।

क्योकि जो बेटी अपने बाप को कर्ज में डुबो दे वैसी "कर्ज वाली लक्ष्मी" मुझे स्वीकार नही।
••यतोहि या पुत्री स्वीयं पितरं ऋणे पातयति तादृशी (ऋणिका) लक्ष्मीः मया न स्वीक्रियते।

मुझे बिना कर्ज वाली बहू ही चाहिए जो मेरे यहाँ आकर मेरी सम्पति को दो गुना कर देगी।
•• मह्यम् ऋणमुक्तवधूः अपेक्षिता या मम गृहमागत्य मम सम्पत्तिं द्विगुणीकरोति।

दीनदयाल जी हैरान हो गए।
•• दीनदयाल महोदय: स्तब्ध: अभवत्।

उनसे गले मिलकर बोले - समधी जी। बिल्कुल ऐसा ही होगा।
•• तस्य आलिङ्गनं कृत्वा स न्यगदत् - सम्बन्धिन् महोदय! सर्वथा एवमेव भविष्यति।

शिक्षा- कर्ज वाली लक्ष्मी ना कोई विदा करें न ही कोई स्वीकार करे।
•• कोऽपि ऋणिकायै लक्ष्म्यै गमनानुमतिं न दद्यात् एवञ्च नैव कश्चनापि स्वीकुर्यात्।

यह कहानी मेरी नही है, मैं यह भी नहीं जानता की यह किसने और कब लिखी है।
•• एषा कथा मम नास्ति , अहम् एतदपि न जानामि यत् क: कदा च अरचयत् ?

मुझे अच्छी लगी ।इसीलिए मैने इसे समाज के साथ साझा करना अपना दायित्व समझा।
•• मह्यम् अतीव अरोचत।अत एव अहम् एनां समाजेन सह भागीकरणं स्वदायित्वमिति अवगतवान्।

आपको पसंद आये तो सारी दुआए उनके लिए ही होंगी जिन्होंने यह दिल से कागज पर उतारी है।
•• यदि भवते रोचते तर्हि सर्वा प्रार्थना तेभ्य: एव भविष्यति य: हृदयेन कर्गदे एनाम् अलिखत्।

#vakyabhyas
Live stream scheduled for
वृद्धौ बयस्यौ परस्परम् संलपन्तौ आस्ताम् ।

’देवदत्त, अहो कालस्य महिमा, अस्मद्वयस्येषु बहवो दिवं गताः । परंत्वहं अस्मद्वयस्यस्य ब्रह्मदत्तस्य मरणं भूयो भूयो शोचामि ।’

’कुत इत्थं, वयस्य ?’

’ब्रह्मदत्ते उपरते अहं तस्य विधवां पर्यणयं खलु ।’

~ जी एस् एस् मूर्तिः

#hasya
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा। 
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।। 

45 निमेषाः
🕛 IST 12:00 PM   
🔰 नौसेना
🗓 05 दिसम्बर 2022, सोमवासरः

🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.

📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(भारतीयनौसेनायाः पराक्रमकार्याणि अथवा युद्धविवरणं कर्तुं शक्नुमः)। चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

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सङ्ग्रहः
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🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
🚩नक्षत्र - अश्विनी सुबह 07:15 तक तत्पश्चात भरणी

दिनांक - 05 दिसम्बर 2022
दिन - सोमवार
शक संवत् - 1944
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - हेमंत
मास - मार्गशीर्ष
पक्ष - शुक्ल
तिथि - त्रयोदशी 06 दिसम्बर सुबह 06:47 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
योग - परिघ 06 दिसम्बर प्रातः 03:08 तक तत्पश्चात शिव
राहु काल - सुबह 08:27 से 09:48 तक
सूर्योदय - 07:06
सूर्यास्त - 05:54
दिशा शूल - पूर्व दिशा में
ब्राह्ममुहूर्त - प्रातः 05:21 से 06:14 तक