संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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Kumarasambhavam (Mahakavi Kalidasa)

विकारहेतौ सति विक्रियन्ते येषां न चेतांसि त एव धीराः ।

Vikaarahetau sati vikriyante Yeshaam na chetaamsi ta eva dheeraah.

Only he can be considered a dheera ( a person of courage) whose mind is not disturbed or overcome by emotions even in the presence of objects of temptation.

प्रायेण सामग्र्यविधौ गुणानां

पराङ्‌मुखी विश्वसृजः प्रवृत्तिः॥

Praayena saamagryavidhau gunaanaam

Paraangmukhee vishwasrijah pravrittih


In most of the cases, the Creator Brahma is reluctant to assemble all the good qualities in one place (person). (The idea is even the best of men will have a few failings).

क ईप्सितार्थस्थिरनिश्चयं मनः

पयश्च निम्नाभिमुखं प्रतीपयेत्॥

Ka eepsitaartha sthiranishchayam manah

Payashcha nimnaabhimukham prateepayet


Who can reverse the course of two things, namely, the mind which is steadfastly clinging to the desired object and water which always flows from higher level to lower level?

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्

Shareeramaadyam khalu dharmasaadhanam

The human body is the first instrument for treading the path of dharma

न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्

Na ratnamanwishyati mrigyate hi tat

A valuable diamond does not seek, it is only sought after.

अलोकसामान्यमचिन्त्यहेतुकं

द्विषन्ति मन्दाश्चरितं महात्मनाम्

Alokasaamaanyam achintyahetukam

Dwishanti mandaashcharitam mahaatmanaam


Fools deride the character of great souls whose conduct and behaviour are different from those of ordinary mortals who cannot think of possible reasons for such difference.

प्रायः प्रत्ययमादत्ते स्वगुणेषूत्तमादरः

Praayah pratyayamaadatte swaguneshoottamaadaarh

Respect or recognition by men of noble character instills into one a belief in one’s own good qualities.

याच्ञा मोघा वरमधिगुणे नाधमे लब्धकामा

Yaachjnaa moghaa varamadhigune naadhame labdhakaamaa

Begging of a noble person and not getting what one wants is much better than begging of a mean person and getting what one wants.

रिक्तः सर्वे भवति हि लघुः पूर्णता गौरवाय

Riktah sarve bhavati hi laghuh poornata gauravaaya

Empty ( of wealth, knowledge, good qualities etc) one loses dignity and respect in society. Fullness ( of wealth, knowledge, good qualities etc.) , on the other hand, gives one dignity and respect in society.

आपन्नार्तिप्रशमनफलाः सम्पदो ह्युत्तमानाम्

Aapannaartiprashamanaphalaah sampado hyuttamaanaam

Noble souls use their wealth for the purpose of wiping out the misery and suffering of those overcome by misfortune.

कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दु:खमेकान्ततो वा

नीचैर्गच्छत्युपरि च दशा चक्रनेमिक्रमेण

Kasyaatyantam sukhamupanatam dukhamekaantato vaa

Neechairgachchhatyupari cha dashaa chakranemikramena


There is none who is always happy and comfortable and none who is always unhappy and miserable. Happiness and sorrow alternate like the rim of a wheel which goes up and down.
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - दशमी दोपहर 02:10 तक तत्पश्चात एकादशी

दिनांक - 06 मई 2021
दिन - गुरुवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - वैशाख
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - शतभिषा सुबह 10:32 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
योग - इन्द्र शाम 07:22 तक तत्पश्चात वैधृति
राहुकाल - दोपहर 02:13 से शाम 03:51 तक
सूर्योदय - 06:06
सूर्यास्त - 19:04
दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
https://youtu.be/ciIkyJE4Wqk
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६.५ आकाशवाणी संस्कृत
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समय: - 11.30 AM to 12 noon

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📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें

📙 ऋग्वेद

सूक्त - २५ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०२ , देवता - वरुण

🍃 मा नो वधाय हत्नवे जिहीळानस्य रीरधः मा हृणानस्य मन्यवे। (२)

⚜️ भावार्थ - हे वरुण ! जो तुम्हारा अनादर करता है, तुम उसके लिए घातक बन जाते हो तुम हमारा वध मत करना। तुम हमारे ऊपर क्रोध मत करना। (२)

#Rgveda
📒📒📒 वेदपाठन 📒📒📒

📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। पञ्चदशः सर्गः ।।

🍃 क्रीडन्तो नन्दनवने क्रूरेण किल हिंसिताः।
बधार्थ वयमायातास्तस्य वै मुनिभिः सह ॥२३॥

⚜️ भावार्थ - देखिये, उस दुष्ट ने ( इन्द्र के ) नन्दनवन नामक उद्यान में क्रीड़ा करते हुए अनेक गन्धर्वो तथा अप्सराओं को मार डाला। उसी को मरवाने के लिये, हम यहाँ मुनियों सहित आये हैं ॥ २३ ॥

🍃 सिद्धगन्धर्वयक्षाश्च ततस्त्वां शरणं गताः।
त्वं गतिः परमा देव सर्वेषां नः परन्तप ॥२४॥

⚜️ भावार्थ - हम सिद्ध, गन्धर्व और यक्षों सहित आपके शरण में आये हैं। हे देव ! हमारी दौड़ तो आप ही तक है। ॥२४॥

#Ramayan
चाणक्य नीति ⚔️
✒️त्रयोदश अध्याय

♦️श्लोक:-११

बन्धन्य विषयासंगः मुक्त्यै निर्विषयं मनः।
मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः।।११।।

♦️भावार्थ --मन ही बन्धन और मोक्ष का कारण है। काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह में फंसा मन जीव के बन्धन का कारण है और इन विषयों से रहित मन ही मोक्ष प्राप्ति का साधन है।

#Chanakya
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

दातव्यमिति यद्दानं
दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च
तद्दानं सात्त्विकं विदुः।। 61/014।।

अर्थः:

सटीक काल, सटीक देश और योग्यतावाले व्यक्ति को दान देना, यह समझकर कि दान करने वाले को उपकार की अपेक्षा नहीं है, वही दान सात्विक या शुद्ध दान कहलाता है।

MEANING:

The donation given at an appropriate time, place, and to a deserving person, with the understanding that no favor is expected in return, is considered pure or sattvic.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

मातृवत् परदारेषु
परद्रव्येषु लोष्टवत्
आत्मवत् सर्वभूतेषु
यः पश्यति स पण्डितः।। 59/012।।

अर्थः:

जो व्यक्ति पराई स्त्रियों को माता के समान समझता है, पराये धन को मिट्टी की तरह समझता है और दुनिया के सभी प्राणियों को खुद के समान मानकर उनका सम्मान करता है, वही सच्चा पंडित है।

MEANING:

A wise person is one who treats others' wives as his own mother, views others' wealth as insignificant as dust, and regards all living beings as himself, showing them respect and compassion.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
ओ३म्

१०३. संस्कृत वाक्याभ्यासः

श्रृणोति = सुनता है / सुनती है।

सः श्रृणोति = वह सुनता है।

सा श्रृणोति = वह सुनती है।

एषः श्रृणोति = यह सुनता है।

एषा श्रृणोति = यह सुनती है

कः श्रृणोति ? = कौन सुनता है ?

अर्पितः श्रृणोति = अर्पित सुनता है।

अर्पितः किं श्रृणोति ?
= अर्पित क्या सुनता है ?

अर्पितः व्याख्यानं श्रृणोति।
= अर्पित व्याख्यान सुनता है।

का श्रृणोति? = कौन सुनती है ?

ममता श्रृणोति = ममता सुनती है।

ममता किं श्रृणोति ?
= ममता क्या सुनती है ?

ममता शास्त्रीयसङ्गीतं श्रृणोति।
= ममता शास्त्रीय संगीत सुनती है ।

अहं श्रृणोमि मैं सुनता हूँ / सुनती हूँ।

ओ३म्

१०४. संस्कृत वाक्याभ्यासः

स्मरति = याद करता है / याद करती है।

सः स्मरति = वह याद करता है।

सा स्मरति = वह याद करती है।

एषः स्मरति = यह याद करता है।

एषा स्मरति = यह याद करती है।

कः स्मरति ? = कौन याद करता है ?

भगिनी स्मरति = बहन याद करती है।

भगिनी कं स्मरति ?
= बहन किसको याद करती है ?

भगिनी भ्रातरं स्मरति।
= बहन भाई को याद करती है।

का स्मरति ? = कौन याद करती है ?

माता स्मरति = माँ याद करती है।

माता कां स्मरति ?
= माँ किसे याद करती है ?

माता पुत्रीं स्मरति।
= माँ बेटी को याद करती है।

अहं स्मरामि = मैं याद करता हूँ / करती हूँ।

ओ३म्

१०५. संस्कृत वाक्याभ्यासः

गच्छति = जाता है / जाती है

सः गच्छति = वह जाता है।

सा गच्छति = वह जाती है।

एषः गच्छति = यह जाता है।

एषा गच्छति = यह जाती है।

कः गच्छति ? = कौन जाता है ?

संदीपः गच्छति = संदीप जाता है।

संदीपः कुत्र गच्छति ?
= संदीप कहाँ जाता है ?

संदीप गोशालां गच्छति।
= संदीप गौशाला जाता है।

का गच्छति ? = कौन जाती है ?

स्मिता गच्छति = स्मिता जाती है।

स्मिता कुत्र गच्छति ?
= स्मिता कहाँ जाती है ?

स्मिता गुरुकुलं गच्छति।
= स्मिता गुरुकुल जाती है।

अहं गच्छामि = मैं जाता हूँ / जाती हूँ।

ओ३म्

१०६. संस्कृत वाक्याभ्यासः

पृच्छति = पूछता है / पूछती है

सः पृच्छति = वह पूछता है।

सा पृच्छति = वह पूछती है।

एषः पृच्छति = यह पूछता है।

एषा पृच्छति = यह पूछती है।

कः पृच्छति ? = कौन पूछता है ?

अरुणः पृच्छति।

अरुणः किं पृच्छति ?
= अरुण क्या पूछता है ?

अरुणः समयं पृच्छति।
= अरुण समय पूछता है।

का पृच्छति ? = कौन पूछती है ?

स्मिता पृच्छति = स्मिता पूछती है

वैशाली किं पृच्छति ?
= वैशाली क्या पूछती है ?

वैशाली विद्यालयस्य मार्गं पृच्छति।
= वैशाली विद्यालय का मार्ग पूछती है।

अहं पृच्छामि = मैं पूछता हूँ / पूछती हूँ।

ओ३म्

१०७. संस्कृत वाक्याभ्यासः

पतति = गिरताता है / गिरती है।

सः पतति = वह गिरता है।

सा पतति = वह गिरती है।

एषः पतति = यह गिरता है।

एषा पतति = यह पतती है।

कः पतति ? = कौन पतता है ?

बालकः पतति = बालक गिरता है।

बालकः कुतः पतति ?
= बालक कहाँ से गिरता है ?

(कुतः = कहाँ से )

बालकः पर्यंकात् पतति।
= बालक पलंग से गिरता है।

का पतति ? = कौन गिरती है ?

बालिका पतति = बालिका गिरती है।

बालिका कुतः पतति ?
= बालिका कहाँ से गिरती है ?

बालिका दोलातः पतति।
= बच्ची झूले से गिरती है।

अहं पतामि = मैं गिरता हूँ / गिरती हूँ।

ओ३म्

१०८. संस्कृत वाक्याभ्यासः

वदति = बोलता है / बोलती है।

सः वदति = वह बोलता है।

सा वदति = वह बोलती है।

एषः वदति = यह बोलता है।

एषा वदति = यह बोलती है।

कः वदति ? = कौन बोलता है ?

दक्षः वदति = दक्ष बोलता है।

दक्षः किं वदति ?
= दक्ष क्या बोलता है ?

‘‘संस्कृत-सम्भाषणं कुरु’’ इति दक्षः वदति।
= संस्कृत में बातचीत करो ऐसा दक्ष बोलता है।

का वदति ? = कौन बोलती है ?

दक्षा वदति = दक्षा बोलती है।

दक्षा किं वदति ?
= दक्षा क्या बोलती है ?

‘‘असत्यं मा वद’’ इति दक्षा वदति।
= असत्य मत बोलो यह दक्षा बोलती है।

अहं वदामि = मैं बोलता हूँ / बोलती हूँ।

ओ३म्

१०९. संस्कृत वाक्याभ्यासः

जिघ्रति = सूंघता है / सूंघती है।

सः जिघ्रति = वह सूंघता है।

सा जिघ्रति = वह सूंघती है।

एषः जिघ्रति = यह सूंघता है।

एषा जिघ्रति = यह सूंघती है

कः जिघ्रति ? = कौन सूंघता है ?

उपमन्युः जिघ्रति = उपमन्यु सूंघता है।

उपमन्युः किं जिघ्रति ?
= उपमन्यु क्या सूंघता है ?

उपमन्युः पुष्पं जिघ्रति।
= उपमन्यु फूल सूंघता है।

का जिघ्रति ? = कौन सूंघती है ?

निधिः जिघ्रति = निधि सूंघती है।

निधिः किं जिघ्रति ?
= निधि क्या सूंघती है ?

निधिः गोघृतं जिघ्रति।
= निधि गाय का घी सूंघती है।

अहं जिघ्रामि = मैं सूंघता हूँ / सूंघती हूँ।

ओ३म्

११०. संस्कृत वाक्याभ्यासः तरति = तैरता है / तैरती है।

सः तरति = वह तैरता है।

सा तरति = वह तैरती है।

एषः तरति = यह तैरता है।

एषा तरति = यह तैरती है।

कः तरति ? = कौन तैरता है ?

पल्लवः तरति = पल्लव तैरता है।

पल्लवः कुत्र तरति ?
= पल्लव कहाँ तैरता है ?

#Vakyabhyas
नारदस्य चातुर्यम्

सूर्यपुत्रः शनिदेवः अमङ्गलकारी इति कुख्यातः त्रिषु लोकेषु। देवासुरमानवाः तस्य पीडायाः बिभ्यति। छायासुतस्य तस्य छायापि नेष्यते कुत्रापि। सः महाकोपिष्ठोऽपि। रमा क्षीरसमुद्रतनया। विष्णुपत्नी सा लक्ष्मीः तु परममङ्गलदेवता। श्रीरिति सर्वत्र पूजिता।

एकदा श्रीशनिदेवयोर्मध्ये विवादः संजातः। तयोर्मध्ये कः चारुतरः। कस्य गुणाः आधिक्येन प्रशंसनार्हा इति। मिथः विजल्पन्तौ तौ निर्णयार्थं नारदमुनेः सकाशं ययौ। देवर्षिः नारदः ब्रह्मतनयः। त्रिलोकसंचारी सः देवदानवमर्त्यलोकेषु समभावेन आदिदरिष्यते। भागवताग्रेसरः सः महान्चतुरोऽपि।

अभ्यागतौ तौ रमारविजौ अर्घ्यपाद्यादिना सत्कृत्य सुरमुनिः आगमनकारणं पप्रच्छ। शनैश्चर उवाच - तप्तलोहकान्तिसंपन्नोऽहं महाबली निखिललोकपीडनसमर्थः। रमा उवाच - सुवर्णप्रभाशोभिताहं सकललोकसंपत्कारिणी। आवयोः कः चारुतरः इति प्रश्नस्य समाधानं वक्तुमर्हसि इति अवदताम्। नारदस्य संकटमापतितम्। श्रीरित्युदिते शनिकोपभागयोगः शनिरित्युक्ते श्रीकटाक्षविभवहानिः।

निर्णयवचनाकर्णाभिलषन्तौ स्वसन्निकटमास्थितौ तौ नारदोऽवदत् - अहो! भाग्यं मम यदीदृशं महान्निर्णयावसरः प्रदीयते। अवश्यं परीक्ष्य वाम् इदमित्थं करोमि। इत्युक्त्वा उभावपि पञ्चषान् पादान् दूरं चलितुम् अकथयत्। श्रीः शनिश्च किञ्चिद्दूरं चलन्तौ नारदात् अपगच्छतः। नारदः तदा तौ पुनः स्वसमीपं पुनरागन्तुं कथयामास। तावुभौ नारदाभिमुखं समुपासरताम्। ततः स्मयन्निव नारदो बद्धाञ्जलिरवोचत् - संपरीक्षणं समाप्तं यन्मया निर्णीयते। अपसरणे शनैश्चरः शुभावहः। उपसरणे श्रीः सुखदायिनी इति। नारदवचनं श्रुत्वा संतुष्टौ रमाशनैश्चरौ निजधामौ प्रति निर्जग्मतुः।
युवकः— त्वं किमर्थं मे दूरवाणी नोत्थितवती???

युवती—अरे इदानीमेव स्वपित्वा उत्थितवती भोः

मात्रा काॅफीपेयं दत्तं तदेव पिबन्त्यस्मि।

वदतु ……..

युवकः— किन्तु भवत्याः माता अवदत् यत् भवती तु गोमयं क्षेप्तुं गतवती इति।

दर्शना

😂😆😁😆😂😁

#hasya
Thursday, May 6, 2021

 भारते कोरोणवैराणोः तृतीया लहरी अपि भविष्यति। 'एयिंस्' अध्यक्षः।

    नवदिली> भारतेकोरोण वैराणोः तृतीया लहरी अपि भविष्यति इति 'एयिंस्' अध्यक्षेण रणदीप गुलेरिय इत्याख्येन पूर्व सूचना प्रदत्ता। राष्ट्रे कोरोणायाः अतिव्यापनम् एवम् अनु वर्तते चेत् भारतं तृतीयं कोरोणा लहरीं सम्मुखीकर्तुं निर्बद्धं भवेत्। किन्तु वाक्सिनीकरणं स्यात् तर्हि त्रितीयलहरी नियन्त्रणविधेया भविष्यति इति तेनोक्तम्।


~ संप्रति वार्ता