हितोपदेशः - HITOPADESHAH
प्रणमत्युन्नतिहेतो-
र्जीवितहेतोर्विमुञ्चति प्राणान् ।।
दुःखीयति सुखहेतोः
को मूढः सेवकादन्यः।। 273/026
अर्थः:
उन्नति प्राप्त करने के लिए झुकता है, जीवित रहने के लिए प्राणों का त्याग करता है। सुख पाने के लिए दुःख झेलता है, सेवक के अलावा ऐसा मूर्ख और कौन हो सकता है..??
MEANING:
Salutes to achieve elevation, gives up his life to live, suffers to attain comfort. Who else, but a servant, could be such a fool?
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
प्रणमत्युन्नतिहेतो-
र्जीवितहेतोर्विमुञ्चति प्राणान् ।।
दुःखीयति सुखहेतोः
को मूढः सेवकादन्यः।। 273/026
अर्थः:
उन्नति प्राप्त करने के लिए झुकता है, जीवित रहने के लिए प्राणों का त्याग करता है। सुख पाने के लिए दुःख झेलता है, सेवक के अलावा ऐसा मूर्ख और कौन हो सकता है..??
MEANING:
Salutes to achieve elevation, gives up his life to live, suffers to attain comfort. Who else, but a servant, could be such a fool?
ॐ नमो भगवते हयास्याय।
©Sanju GN #Subhashitam
Forwarded from 🌺 सूक्तिसिन्धु 🌺
🚩🚩श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 6 श्लोक 26
Bhagvad Gita Chapter 6 Verse 26
🚩🚩
पूर्व दो श्लोकों से साधकों के मन में उत्साह आता है परन्तु जब वे अभ्यास में प्रवृत्त होते हैं तब जो कठिनाई आती है उससे उन्हें कुछ निराशा होने लगती है। प्रत्येक साधक यह अनुभव करता है कि उसका मन समस्त विरोधों को तोड़ता हुआ ध्येय विषय से हटकर पुन विषयों का चिन्तन करने लगता है। कारण यह है कि मन का स्वभाव ही है चंचलता और अस्थिरता। न वह किसी एक विषय का सतत अनुसन्धान कर पाता है और न विभिन्न विषयों का। चंचल और अस्थिर इन दो विशेषणों के द्वारा भगवान् ने मन का सुस्पष्ट और वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है जो सभी साधकों का अपना स्वयं का अनुभव है। ये दो शब्द इतने प्रभावशाली हैं कि आगे हम देखेंगे कि अर्जुन अपनी एक शंका को पूछते हुये इन्हीं शब्दों का प्रयोग करता है।यद्यपि ध्यान के समय साधक अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तथापि मन पूर्व अनुभवों की स्मृति से विचलित होकर पुन विषयों का चिन्तन प्रारंभ करने लगता है ये क्षण एक सच्चे साधक के लिए घोर निराशा के क्षण होते हैं। मन का यह भटकाव अनेक कारणों से हो सकता है जैसे भूतकाल की स्मृतियां किसी आकर्षक वस्तु का सामीप्य किसी से राग या द्वेष और यहाँ तक कि आध्यात्मिक विकास के लिए अधीरता भी। भगवान् का उपदेश हैं कि मन के विचरण का कोई भी कारण हो साधक को निराश और अधीर होने की आवश्यकता नहीं है। उसको यह समझना चाहिए कि अस्थिरता तो मन का स्वभाव ही है और ध्यान का प्रयोजन ही मन के इस विचरण को शांत करना है।साधक को उपदेश दिया गया है कि जबजब यह मन ध्येय को छोड़कर विषयों की ओर जाय तबतब उसे वहाँ से परावृत्त करके ध्येय में स्थिर करे। दृढ़ इच्छा शक्ति के द्वारा कुछ सीमा तक मन को विषयों से निवृत्त किया जा सकता है परन्तु वह पुन उनकी ही ओर जायेगा। साधकगण भूल जाते हैं कि वृत्तिप्रवाह ही मन है और इसलिए वृत्तिशून्य होने पर मन रहेगा ही नहीं अत विषयों से मन को निवृत्त करने के पश्चात् साधक को यह आवश्यक है कि उस समाहित मन को आत्मानुसंधान में प्रवृत्त करे। भगवान् इसी बात को इस प्रकार कहते हैं कि मन को पुन आत्मा के ही वश में लावे।अगले कुछ श्लोकों में योगी पर इस योग का क्या प्रभाव होता है उसे बताया गया है.
https://www.instagram.com/p/CJ-qjNzABVJ/?igshid=mym98kg5jxav
Bhagvad Gita Chapter 6 Verse 26
🚩🚩
पूर्व दो श्लोकों से साधकों के मन में उत्साह आता है परन्तु जब वे अभ्यास में प्रवृत्त होते हैं तब जो कठिनाई आती है उससे उन्हें कुछ निराशा होने लगती है। प्रत्येक साधक यह अनुभव करता है कि उसका मन समस्त विरोधों को तोड़ता हुआ ध्येय विषय से हटकर पुन विषयों का चिन्तन करने लगता है। कारण यह है कि मन का स्वभाव ही है चंचलता और अस्थिरता। न वह किसी एक विषय का सतत अनुसन्धान कर पाता है और न विभिन्न विषयों का। चंचल और अस्थिर इन दो विशेषणों के द्वारा भगवान् ने मन का सुस्पष्ट और वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है जो सभी साधकों का अपना स्वयं का अनुभव है। ये दो शब्द इतने प्रभावशाली हैं कि आगे हम देखेंगे कि अर्जुन अपनी एक शंका को पूछते हुये इन्हीं शब्दों का प्रयोग करता है।यद्यपि ध्यान के समय साधक अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेता है तथापि मन पूर्व अनुभवों की स्मृति से विचलित होकर पुन विषयों का चिन्तन प्रारंभ करने लगता है ये क्षण एक सच्चे साधक के लिए घोर निराशा के क्षण होते हैं। मन का यह भटकाव अनेक कारणों से हो सकता है जैसे भूतकाल की स्मृतियां किसी आकर्षक वस्तु का सामीप्य किसी से राग या द्वेष और यहाँ तक कि आध्यात्मिक विकास के लिए अधीरता भी। भगवान् का उपदेश हैं कि मन के विचरण का कोई भी कारण हो साधक को निराश और अधीर होने की आवश्यकता नहीं है। उसको यह समझना चाहिए कि अस्थिरता तो मन का स्वभाव ही है और ध्यान का प्रयोजन ही मन के इस विचरण को शांत करना है।साधक को उपदेश दिया गया है कि जबजब यह मन ध्येय को छोड़कर विषयों की ओर जाय तबतब उसे वहाँ से परावृत्त करके ध्येय में स्थिर करे। दृढ़ इच्छा शक्ति के द्वारा कुछ सीमा तक मन को विषयों से निवृत्त किया जा सकता है परन्तु वह पुन उनकी ही ओर जायेगा। साधकगण भूल जाते हैं कि वृत्तिप्रवाह ही मन है और इसलिए वृत्तिशून्य होने पर मन रहेगा ही नहीं अत विषयों से मन को निवृत्त करने के पश्चात् साधक को यह आवश्यक है कि उस समाहित मन को आत्मानुसंधान में प्रवृत्त करे। भगवान् इसी बात को इस प्रकार कहते हैं कि मन को पुन आत्मा के ही वश में लावे।अगले कुछ श्लोकों में योगी पर इस योग का क्या प्रभाव होता है उसे बताया गया है.
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प्रशासक समिति ✊🚩
📒📒📒 वेदपाठन 📒📒📒
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚
🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। अष्टम सर्गः ।।
🍃 ततः सुमन्त्रस्त्वरितं गत्वा त्वरितविक्रमः।
समानयत्स तान्सर्वान्गुरूंस्तान्वेदपारगान्।।५॥
⚜️ शीघ्रगामी सुमंत्र अति शीघ्र उन सब वेद्पारग गुरुओं को बुला लाये॥५॥
🍃सयज्ञं वामदेवं च जावालिमथ काश्यपम्।
पुरोहितं वसिष्ठं च ये चान्ये द्विजसत्तमाः॥६॥
⚜️ सयज्ञ, वामदेव, जाबालि, काश्यप, और पुरोहित वशिष्ठ के अतिरिक्त अन्य उत्तम ब्राह्मणों को भी सुमंत्र बुला ले गये ॥६॥
क्रमशः ...
⚜️ अहिंसा परमोधर्मः धर्म हिंसातथैव च: ⚜️
👉 अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है..!!
🤺 जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना ⚔️
⛳ जय श्री राम 🏹
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समानयत्स तान्सर्वान्गुरूंस्तान्वेदपारगान्।।५॥
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🍃सयज्ञं वामदेवं च जावालिमथ काश्यपम्।
पुरोहितं वसिष्ठं च ये चान्ये द्विजसत्तमाः॥६॥
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📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें
📙 ऋग्वेद
सूक्त - १६ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १ , देवता - इन्द्र
🍃 आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये. इन्द्र त्वा सूरचक्षस:. ( १ )
⚜️ हे कामवर्षक इंद्र! सूर्य के समान तेजस्वी तुम्हारे हरि नामक घोड़े सोमपान के लिए तुम्हें यहां लावें (१)
क्रमशः ...
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📙 ऋग्वेद
सूक्त - १६ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - १ , देवता - इन्द्र
🍃 आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये. इन्द्र त्वा सूरचक्षस:. ( १ )
⚜️ हे कामवर्षक इंद्र! सूर्य के समान तेजस्वी तुम्हारे हरि नामक घोड़े सोमपान के लिए तुम्हें यहां लावें (१)
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✊ चाणक्य नीति ⚔️
✒️ सप्तम अध्याय
♦️श्लोक :- १३
यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसाः, स्तयैव शुष्कं परिवर्जयन्ति।
न हंसतुल्येन नरेणभाव्यम, पुनस्त्यजन्ते पुनराश्रयन्ते।।१३।।
♦️भावार्थ - जहाँ ज्यादा पानी हो, हंस वहीं निवास करते हैं। पानी सुखने पर उस सरोवर को त्याग देते है, लेकिन फिर जल से भरने पर वहाँ लौट आते है। किन्तु पुरुष को हंस की तरह आचरण नही करना चाहिए।
क्रमशः ...
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✒️ सप्तम अध्याय
♦️श्लोक :- १३
यत्रोदकं तत्र वसन्ति हंसाः, स्तयैव शुष्कं परिवर्जयन्ति।
न हंसतुल्येन नरेणभाव्यम, पुनस्त्यजन्ते पुनराश्रयन्ते।।१३।।
♦️भावार्थ - जहाँ ज्यादा पानी हो, हंस वहीं निवास करते हैं। पानी सुखने पर उस सरोवर को त्याग देते है, लेकिन फिर जल से भरने पर वहाँ लौट आते है। किन्तु पुरुष को हंस की तरह आचरण नही करना चाहिए।
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🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
⛅ तिथि - प्रतिपदा सुबह 09:01 तक तत्पश्चात द्वितीया
https://www.instagram.com/p/CJ_SkghACUV/?igshid=2x2m7e87a09f
⛅ दिनांक - 14 जनवरी 2021
⛅ दिन - गुरुवार
⛅ विक्रम संवत - 2077
⛅ शक संवत - 1942
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - श्रवण 15 जनवरी प्रातः 05:05 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
⛅ योग - वज्र रात्रि 10:06 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहुकाल - दोपहर 02:10 से शाम 03:33 तक
⛅ सूर्योदय - 07:19
⛅ सूर्यास्त - 18:15
⛅ दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - मकर संक्रांति (पुण्यकाल सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक) चन्द्र दर्शन, हरिद्वार कुंभ स्नान
💥 विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌷 उत्तरायण / सूर्य मंत्र 🌷
🙏🏻 इसका जप करें । वो ब्रह्मवेत्ता महाव्याधि और भय, दरिद्रता और पाप से मुक्त हो जाता है ।
🌞 सूर्य देव का मूल मंत्र है --
🌷 ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः ।
🙏🏻 ये पद्म पुराण में आता है ....
🌞 सूर्य नमस्कार करने से ओज, तेज और बुद्धि की बढोत्तरी होती है |
🌷 ॐ सूर्याय नमः ।
🌷 ॐ रवये नमः ।
🌷 ॐ भानवे नमः ।
🌷 ॐ खगाय नमः ।
🌷 ॐ अर्काय नमः ।
🙏🏻 सूर्य नमस्कार करने से आदमी ओजस्वी, तेजस्वी और बलवान बनता है इसमें प्राणायाम भी हो जाते हैं ।
💥 विशेष - 14 जनवरी 2021 गुरुवार को मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक ) है ।
🌷 मकर संक्रांति 🌷
🌷 नारद पुराण के अनुसार
“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।
पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”
🌞 सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत् को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।
🌷 पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।
🌷 गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गजक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।
🌷 विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार
कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते । उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।
🌞 सूर्य के कर्क राशि में उपस्थित होने पर दक्षिणायन कहा जाता है और उसके मकर राशि पर आने से उत्तरायण कहलाता है ॥
🌷 धर्मसिन्धु के अनुसार
तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:। सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।। तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै: . तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे
👉🏻 उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों से उबटन, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .
🌞 अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः . वस्त्रदानं महाफलं
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .
🌞 अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः
👉🏻 इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है .
🌷 नारद पुराण के अनुसार “क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् । स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।
🌞 जो सूर्य की संक्रान्ति के दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।
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🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
⛅ तिथि - प्रतिपदा सुबह 09:01 तक तत्पश्चात द्वितीया
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⛅ विक्रम संवत - 2077
⛅ शक संवत - 1942
⛅ अयन - दक्षिणायन
⛅ ऋतु - शिशिर
⛅ मास - पौष
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - श्रवण 15 जनवरी प्रातः 05:05 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
⛅ योग - वज्र रात्रि 10:06 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहुकाल - दोपहर 02:10 से शाम 03:33 तक
⛅ सूर्योदय - 07:19
⛅ सूर्यास्त - 18:15
⛅ दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
⛅ व्रत पर्व विवरण - मकर संक्रांति (पुण्यकाल सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक) चन्द्र दर्शन, हरिद्वार कुंभ स्नान
💥 विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
🌷 उत्तरायण / सूर्य मंत्र 🌷
🙏🏻 इसका जप करें । वो ब्रह्मवेत्ता महाव्याधि और भय, दरिद्रता और पाप से मुक्त हो जाता है ।
🌞 सूर्य देव का मूल मंत्र है --
🌷 ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः ।
🙏🏻 ये पद्म पुराण में आता है ....
🌞 सूर्य नमस्कार करने से ओज, तेज और बुद्धि की बढोत्तरी होती है |
🌷 ॐ सूर्याय नमः ।
🌷 ॐ रवये नमः ।
🌷 ॐ भानवे नमः ।
🌷 ॐ खगाय नमः ।
🌷 ॐ अर्काय नमः ।
🙏🏻 सूर्य नमस्कार करने से आदमी ओजस्वी, तेजस्वी और बलवान बनता है इसमें प्राणायाम भी हो जाते हैं ।
💥 विशेष - 14 जनवरी 2021 गुरुवार को मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक ) है ।
🌷 मकर संक्रांति 🌷
🌷 नारद पुराण के अनुसार
“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।
पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”
🌞 सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत् को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।
🌷 पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।
🌷 गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गजक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।
🌷 विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार
कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते । उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।
🌞 सूर्य के कर्क राशि में उपस्थित होने पर दक्षिणायन कहा जाता है और उसके मकर राशि पर आने से उत्तरायण कहलाता है ॥
🌷 धर्मसिन्धु के अनुसार
तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:। सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।। तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै: . तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे
👉🏻 उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों से उबटन, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .
🌞 अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः . वस्त्रदानं महाफलं
👉🏻 मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .
🌞 अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः
👉🏻 इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है .
🌷 नारद पुराण के अनुसार “क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् । स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।
🌞 जो सूर्य की संक्रान्ति के दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।
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Forwarded from दीनदयाल मित्तल
ॐ
*गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुध्दि- स्तथापि भाषान्तरलालुपोऽहम् ।
यथा सुधायाममरिषु सत्यां स्वर्गड्गनानामधरासवे रुचिः ।।
भावार्थ:- *यद्यपि देववाणी में विशेष योग्यता है फिर भी भाषान्तर का लोभी हूँ मैं। जैसे स्वर्ग में विद्यमान अमृत जैसी उत्तम वस्तु है फिर भी देवताओं को देवांगनाओं के अधरामृत पान करने की रुचि रहती ही है।
(चाणक्यनीति - 10/18)
प्रेषक; *गुरु दीनदयाल
🙏🌹प्रातःवंदन🌹🙏
🚩🇮🇳 जय मां भारती 🇮🇳🚩
*गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुध्दि- स्तथापि भाषान्तरलालुपोऽहम् ।
यथा सुधायाममरिषु सत्यां स्वर्गड्गनानामधरासवे रुचिः ।।
भावार्थ:- *यद्यपि देववाणी में विशेष योग्यता है फिर भी भाषान्तर का लोभी हूँ मैं। जैसे स्वर्ग में विद्यमान अमृत जैसी उत्तम वस्तु है फिर भी देवताओं को देवांगनाओं के अधरामृत पान करने की रुचि रहती ही है।
(चाणक्यनीति - 10/18)
प्रेषक; *गुरु दीनदयाल
🙏🌹प्रातःवंदन🌹🙏
🚩🇮🇳 जय मां भारती 🇮🇳🚩
Forwarded from अ उ
*सहस्रकिरणोज्ज्वल। लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ।।*
*भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः। विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे।।*
अर्थात्- हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं। हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है। विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है।
*🌞🌻सुप्रभातम्🌻🌞*
मकरसंक्रांन्तिपर्वणः सर्वेभ्यः शुभाशयाः।
*भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः। विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे।।*
अर्थात्- हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं। हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है। विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है।
*🌞🌻सुप्रभातम्🌻🌞*
मकरसंक्रांन्तिपर्वणः सर्वेभ्यः शुभाशयाः।
Forwarded from Deleted Account
*सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने|*
*लब्ध्वा शुभम् मकर संक्रांते अस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ||*
_*मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !*_
*लब्ध्वा शुभम् मकर संक्रांते अस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ||*
जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी तरह यह मकर संक्रांति आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।
_*मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !*_
ईडे भवत्पादपाथोजमाध्याय ।
भूयोऽपि भूयो भयात्पाहि भो ।।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य ।
श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो
॥अर्थः-
हे श्रीराघवेंद्रतीर्थयति जी, मैं आपके कमल जैसे चरणों का हर बार ध्यान करके आपकी पूजा करता हूँ। कृपया हर बार मुझे सभी भय से रक्षा प्रदान करें। हे प्रभु श्रीराघवेंद्रतीर्थयति जी, मेरी रक्षा करें।
Meaning
O great pontiff Shri Raghavendratirthaswami, I worship you by remembering your lotus feet again and again. Please rescue me from all fears. O Lord Shri Raghavendratirthaswami, please protect me.
ॐ श्रीराघवेन्द्राय नमः।
© Sanjeeva GN #Subhashitam