संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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Namaskaram to all

Om Namo Narayana!

VISVAS Institute of Sri Vishnu Sahasranamam from Chennai (India) is teaching Sri Vishnu Sahasranamam classes online for free to the student-devotees all over the world. Classes will be held for 75 minutes everyday for approximately 21 days. There will, however, be no classes on Saturdays and Sundays. Kids(6+) and adults are welcome. There are new batches starting - in the month of June. The batches are in Tamizh, Telugu, Kannada and English, Malayalam , Hindi with the respective language coordinators in India.

The following is the Enquiry form for the above new batches as well as further upcoming batches. This may be filled in by any interested devotee / student residing in India or abroad. Once filled, please be assured, that you will be admitted in any of the batches upcoming shortly.

Make sure the name of the student is the name of the person who will be attending the classes. If it’s a child, give the child’s name and not the parent’s name. This name will be used to send out the ID cards and Certificates. Also, your email Address be of gmail and not of any other email app.
Pls use edit your option if in case any correction in the previous entry. Do not fill a separate form for corrections to avoid duplication
Thanks for understanding.
Happy chanting.
🍃 सारसासमधात अक्षिभूम्ना धामसु सीतया।
साधु असौ इह रेमे क्षेमे अरम् आसुरसारहा ॥ ८॥


🔸समस्त आसुरी सेना के विनाशक, सौम्यता के विपरीत प्रभावशाली नेत्रधारी रक्षक राम अपने अयोध्या निवास में सीता संग सानंद रह रहे है थे।


विलोम श्लोक :—

🍃 हारसारसुमा रम्यक्षेमेर इह विसाध्वसा।
य अतसीसुमधाम्ना भूक्षिता धाम ससार सा ॥ ८॥


🔸अपने गले में मोतियों के हार जैसे पारिजात पुष्पों को धारण किए हुए, प्रसन्नता व परोपकार की अधिष्ठात्री, निर्भीक रुक्मिणी, आतशी पुष्पधारी कृष्ण संग निज गृह को प्रस्थान कर गयी।


#Viloma_Kavya
चाणक्य नीति ⚔️
✒️ चतुर्दशः अध्याय

♦️श्लोक :- २०

त्यज दुर्जनसंसर्गं भज साधुसमागमम्।
कुरु पुण्यमहोरात्रं स्मर नित्यमनित्यतः।।२०।।

♦️भावार्थ - दुष्ट मनुष्यों के साथ को त्यागकर साधु(भद्र) पुरुषों की संगती करनी चाहिए। दिन-रात पुण्य कर्म प्रारम्भ करते रहना चाहिए तथा सदैव संसार की अनित्यता को ध्यान में रखते हुए परमात्मा का स्मरण करते रहना चाहिए।

#Chanakya
Forwarded from kathaaH कथाः
मे २०१८ सम्भषणसन्देश:
श्लोकः:

ऋग्वर्गोद्गानेऽग्रगण्यः
सर्गे सर्गे विधेर्गुरुः।
हृद्गोऽरिघ्नो हयग्रीवो
ऽनुग्रो दृग्गोचरोऽस्तु मे। 01/23।

अन्वयः:

ऋग्वर्गोद्गाने अग्रगण्यः सर्गे सर्गे विधेः गुरुः हृद्गः अरिघ्नः अनुग्रः, हयग्रीवः मे दृग्गोचरः अस्तु।

अन्वयार्थः:

- ऋग्वर्गोद्गाने - ऋग्वेद के वर्गों के गायन में
- अग्रगण्यः - प्रमुख या श्रेष्ठ
- सर्गे सर्गे - प्रत्येक सृष्टि के निर्माण में
- विधेः - ब्रह्मा जी के
- गुरुः - पिता होने वाले
- हृद्गः - हृदय में निवास करने वाले
- अरिघ्नः - शत्रुओं का संहारक
- अनुग्रः - कृपा करने वाले
- हयग्रीवः - भगवान हयग्रीव
- मे - मेरे
- दृग्गोचरः - दृष्टि के सामने

विवरण:

जब समस्त ब्रह्मांड की उत्पत्ती हुई थी, उन के साथ वेदों का भी आविर्भाव भगवान श्रीपुरुषनाम के महाविष्णु के ज्ञानानन्दमय शरीर से हुआ था । उन्ही वेदों में से सर्वश्रेष्ठ ऋग्वेद के ऋचाओं से भरे वर्गों को सुंदरता से गाने में या उच्चारण करने में भगवान श्रीहयग्रीव जी अग्रगण्य हैं, क्यों कि सभी वेदों का आविर्भाव इन के ही शरीर से हुए हैं तो इन को उन वेद ऋचाओं के गायन के बारे में समर्थता बहुत ही सुलभ से मिलता है । ऐसे प्रसिद्ध श्रीहयग्रीव जी जो हर बार ब्रह्मांड की सृष्टि करते हैं तथा हर बार एक ब्रह्मा जी में स्थित हो कर उस ब्रह्मांड की रचना करते हैं । समस्त सन्यासियों के हृदय में निवास करनेवाले भक्तों के गरीबी, दुःख आदियों के कारण बने हुए काम क्रोधादियों के नाश करनेवाले सब से सुंदर श्रीहयग्रीव जी मेरे दृष्टि के गोचर बनें ।यह श्रीमद्वादिराजतीर्थयतिवर्य जी के करकमलों से रचाया गया प्रसिद्ध काव्य सरसभारतीविलास ग्रंथ के प्रथमोल्लास का 23 वां श्लोक है । अनुष्टुप् छंद में रचे गये इस श्लोक के प्रति पाद के द्वितीय अक्षर 'ग' व्यंजन के रूप में यतिवर्य जी ने उपयोग किया है, अतः यहाँ वर्णश्लेषालंकार है ।

MEANING:

May Lord Hayagriva, who is eminent in singing the Rugvedic verses, who is the father of Brahma during each creation, who resides in the hearts of devotees, who destroys enemies, and who is ever graceful, always be in my sight.

EXPLANATION:

Lord Hayagriva, who is the embodiment of Vedic knowledge and bliss, is inherently capable of singing the Rugvedic hymns. As the creator and protector of the universe, he is the father of Brahma in every creation and destroys the six internal enemies of beings. Thus, the poet prays for Lord Hayagriva to always be present before him.

This verse is from the work "Sarasabharativilasah" by Shri Vadirajatirtha, a 15th-century scholar. It is the 23rd verse of the first chapter and is composed in the Anushtup metre, utilizing the Varnaprasa Alankara where the second letter of each quarter is 'ga.'

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
ओ३म्

१६९ संस्कृत वाक्याभ्यासः

भार्या – अद्य किमर्थं न लिखति ?
= आज क्यों नहीं लिख रहे हो ?

अहम् – ” किं लिखानि ” इति चिन्तयामि।
= ” क्या लिखूँ ” ये सोच रहा हूँ।

भार्या – चिन्तयतु , यद् रोचते तद् लिखतु।
= सोचिये , जो अच्छा लगे वो लिख दीजिये।

अहम् – किं करवाणि ? अद्य विचाराः न जायन्ते।
= क्या करूँ ? आज विचार ही उत्पन्न नहीं हो रहे हैं ।

भार्या – तर्हि गृहकार्ये मम साहाय्यं करोतु।
= तो फिर घर के काम में मुझे सहयोग करिये।

अहम् – ओ … चिन्तनम् आगतम् …. आगतम् ।
= ओ …. विचार आ गया … आ गया

– लिखामि अहम् ।
= मैं लिखता हूँ ।

– शीघ्रमेव लिखामि।
= जल्दी से लिखता हूँ।

एषा मम भार्या अस्ति
= ये मेरी पत्नी है ।

एषा मत् (मत्तः) बहुविधानि कार्याणि कारयति।
= ये मुझसे बहुत प्रकार के काम करवाती है।

– एतद् वाक्यं पठित्वा सा रुष्टा जाता ।
= ये वाक्य पढ़ कर वो रूठ गई है।

– अधुना अपि रुष्टा अस्ति।
= अभी भी रूठी हुई है।

ओ३म्

१७० संस्कृत वाक्याभ्यासः

सः गृहे नास्ति।
= वह घर में नहीं है।

तस्य गृहे कोsपि नास्ति।
= उसके घर कोई नहीं है।

प्रातःकाले एव सर्वेजनाः कारयानेन गतवन्तः।
= सुबह ही सभी जन कार से चले गए।

विभायाः गृहे यज्ञः अस्ति।
= विभा के घर में हवन है।

सः अपि यज्ञं करिष्यति।
= वह भी यज्ञ करेगा।

भार्यया सह यज्ञं करिष्यति।
= पत्नी के साथ यज्ञ करेगा

यज्ञस्य अनन्तरं तस्य पुत्री भजनं गास्यति।
= यज्ञ के बाद उसकी बेटी भजन गाएगी।

तस्य पुत्री बहु मधुरं गायति।
= उसकी बेटी बहुत मधुर गाती है।

तदनन्तरं शास्त्रीमहोदयः वेदव्याख्यानं करिष्यति।
= उसके बाद शास्त्री जी वेद व्याख्यान करेंगे।

सर्वे व्याख्यानं श्रोष्यन्ति।
= सभी व्याख्यान सुनेंगे।

दशवादने सर्वे गृहं प्रत्यागमिष्यन्ति।
= दस बजे सभी घर वापस आएँगे।

ओ३म्

१७१. संस्कृत वाक्याभ्यासः

सः बहु हासयति।
= वह बहुत हँसाता है

यदा मिलति तदा परिहासं करोति।
= जब मिलता है तब मजाक करता है।

अकारणमपि हासयति।
= कारण बिना भी हँसाता है

तस्य सम्वादशैली हास्यसम्पन्ना अस्ति।
= उसकी बात करने की शैली हँसी से भरी है।

यथा – जैसे

अहं शीघ्रमेव गृहं गच्छामि
= मैं जल्दी जाता हूँ

तदा सः वदति …
= तब वह बोलता है …

किमर्थं भार्यायाः बिभेति ?
= क्यों पत्नी से डरते हो ?

किमपि न खादामि तदा सः वदति …
= कुछ भी नहीं खाता हूँ तब बोलता है …

किं भार्या निषेधितवती वा ?
= क्या पत्नी ने मना किया है ?

अधिकं खादामि तदा वदति …
= अधिक खाता हूँ तब बोलता है …

अहं भार्यां दूरवाणीं करोमि
= मैं तुम्हारी पत्नी को फोन करता हूँ

सः सर्वै: सह तथैव वदति।
= वह सबके साथ ऐसे ही बोलता है

सर्वे तस्य स्वभावं जानन्ति।
= सब उसका स्वभाव जानते हैं

सर्वे बहु हसन्ति।
= सब बहुत हँसते हैं

ओ३म्

१७२. संस्कृत वाक्याभ्यासः

त्वमेव जानासि मम व्याधिम्
= तुम ही मेरी व्याधि जानते हो।

कियत् संघर्षं करोमि अहम्
= मैं कितना संघर्ष करता हूँ

मम त्वयि विश्वासः अस्ति।
= मेरा तुम पर विश्वास है

मम व्याधिः समाप्ता भविष्यति एव।
= मेरी व्याधि समाप्त होगी ही ।

कष्टं तु अस्ति एव
= कष्ट तो है ही ।

असह्यं कष्टम् अस्ति
= असह्य कष्ट है

तथापि निर्वहामि अहम्
= फिर भी झेल रहा हूँ।

त्वमेव मम त्राता असि।
= तुम ही मेरे तारनहार हो।

तव कारणाद् एव न रोदिमि।
= तुम्हारे कारण ही नहीं रोता हूँ।

त्वं सर्वदा मया सह असि।
= तुम हमेशा मेरे साथ हो ।

तव ध्यानं कृत्वा आनन्दं प्राप्नोमि।
= तुम्हारा ध्यान करके आनंद पाता हूँ।

उपरि लिखितानि वाक्यानि एकः उपासकः प्रार्थनायां वदति।
= ऊपर लिखे वाक्य एक उपासक प्रार्थना में बोलता है।

ओ३म्

१७३. संस्कृत वाक्याभ्यासः

सः / सा प्रेरयति ।
= वह प्रेरित करता / करती है।

सः / सा किं कर्तुं प्रेरयति ?
= वह क्या करने के लिये प्रेरित कर रहा / रही है ?

सः / सा वृक्षारोपणं कर्तुं प्रेरयति।
= वह वृक्षारोपण करने के लिये प्रेरित कर रहा / रही है।

आगामिनि वर्षाऋतौ वृक्षारोपणं कुर्वन्तु ।
= आगामि वर्षा ऋतु में वृक्षारोपण करिये।

भारत-विकास-परिषदा निःशुल्कमेव वृक्षवितरणं करिष्यते।
= भारत विकास परिषद द्वारा निःशुल्क वृक्ष वितरण किया जाएगा।

यः कोsपि वृक्षम् इच्छति ( वृक्षान् इच्छति)
= जो कोई भी पेड़ चाहता है ( बहुत से पेड़ चाहता है )

सः पूर्वमेव सूचयेत्।
= वह पहले ही सूचित करे ।

गृहस्य पार्श्वे वृक्षम् अवश्यमेव रोपयन्तु।
= घर के पास वृक्ष अवश्य लगाएँ।

प्राची – अहम् एकं वृक्षम् इच्छामि।
= मैं एक वृक्ष चाहती हूँ ।

धीरजः – अहं द्वौ वृक्षौ इच्छामि।
= मैं दो वृक्ष चाहता हूँ।

शान्तला – अहं चतुरः वृक्षान् इच्छामि।
= मैं चार वृक्ष चाहती हूँ।

#Vakyabhyas
द्विचक्रिका एकस्मिन सवारी यानम् अस्ति। अस्य यानम् नर-नारी पादबलेन चालयते।
अद्य विश्व द्विचक्रिका दिवसं
🚲🚲🚲
जय जय जय प्रिय भारत

जय जय जय प्रिय भारत जनयित्री दिव्य धात्रि
जय जय जय शत सहस्र नरनारी हृदय नेत्रि

जय जय जय सुश्यामल सस्य चलच्चेलांचल
जय वसंत कुसुम लता चलित ललित चूर्णकुंतल
जय मदीय हृदयाशय लाक्षारुण पद युगला! ॥ जय ॥

जय दिशांत गत शकुंत दिव्यगान परितोषण
जय गायक वैतालिक गल विशाल पद विहरण
जय मदीय मधुरगेय चुंबित सुंदर चरणा! ॥ जय॥
गोविन्दः – भोः महाशय ! अत्र किम् अन्वेषणं कुर्वन् अस्ति एवम् ?

वृद्धः – मम अङ्गुलीयकम् ।

गोविन्दः – तत् अत्रैव पतीतम् आसीत् किम् ?

वृद्धः- नैव । तस्य वृक्षस्य अधः पतीतम् आसीत्, तत्र अन्धकारः । परन्तु अत्र प्रकाशः अधिकः, अतः अत्रैव अन्वेषयन् अस्मि ।
😁😆😂🤣😆😁🤣😂

#hasya
June 3, 2021

 राष्ट्रे  कोविड्रोगस्य द्वितीयतरङ्गस्य  अतितीव्रकालः समाप्त : इति केन्द्रः ।

नवदिल्ली> भारतस्य अर्धाधिकप्रदेशेषु कोविडस्य रोगस्थिरीकरणमानं प्रतिशतं पञ्चतः अधः एव। १४५ जिल्लासु प्रतिशतं पञ्च आरभ्य प्रतिशतं दश आभ्यन्तरे एव भवति। अतिरिक्तेषु २३९ जिल्लासु प्रतिशतं दश उपरि एव रोगस्थिरीकरणमानम् इति  ऐ सि एम् आर्  ( Director general) निदेशकमुख्येन डो.बलरामभार्गवेण  उक्तम् ।  लोकस्वास्थ्यसंघटनस्य निर्देशमनुसृत्य एकस्मिन् प्रदेशे अनस्यूततया द्विसप्ताहपर्यन्तं रोगस्थिरीकरणमानं प्रतिशतं पञ्चतः अधः चेत् कोविड्व्यापनं सुस्थिरं भवति इति वक्तुं शक्यते।

 
 श्रीलङ्कातीरे दग्धा महानौका निमज्जमाना वर्तते। 

  कोलम्बो> श्रीलङ्कायाः समुद्रतीरे अग्निप्रकाण्देन दग्धा पण्यमहानौका शीघ्रं निमज्जमाना वर्तते इति सूच्यते। सिंहपुरस्य स्वामित्वे विद्यमानायाः 'एम् वि एक्स्प्रस् पेल्' नामिकायाः महानौकायाः पश्चादंशः एव निमज्जति। अनेन महानौकां ततः अपनेतुं क्रियमाणानि प्रवर्तनानि स्थगितप्रायाणि जातानि। 

   मेय् मासस्य २० दिनाङ्के आसीत् महानौकायाम् अग्निप्रकाण्डः सञ्जातः। १३ दिनानां रक्षाप्रवर्तनानन्तरं मङ्गलवासरे अग्निशमनमभवत्। महानौकायामवशिष्टानि २८० टण् परिमितानि इन्धनानि ५० टण् परिमितानि वातकेन्धनानि च समुद्रं मथ्नन्ति चेत् महद्दुर्घटनाय भविष्यतीति अधिकारिणः आकुलयन्ति।

~ संप्रति वार्ता
Namaste

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TOPIC : Samskrita Sambhashana Varga: (Spoken Samskritam Course) (Level 1)

Duration: 13-June-2021 to 24-June-2021

We have arranged Four batches of Samskrita Sambhashana Varga.

Please click on the link to  register yourself.




*After Submitting This Form Kindly Keep Checking Your Email To Get Whatsapp Group Link*

For any queries, please email to
sbsamskritavarga@gmail.com

Dhanyavada:

Jayatu Samskritam Jayatu Bharatam

- संस्कृतभारती दुबई आयोजित
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - दशमी 05 जून प्रातः 04:07 तक तत्पश्चात एकादशी

दिनांक - 04 जून 2021
दिन - शुक्रवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - ज्येष्ठ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद रात्रि 08:47 तत्पश्चात रेवती
योग - आयुष्मान् 05 जून रात्रि 02:50 तक तत्पश्चात सौभाग्य
राहुकाल - सुबह 10:57 से दोपहर 12:37 तक
सूर्योदय - 05:57
सूर्यास्त - 19:16
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
https://youtu.be/UJ8yPDkXOQI

Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes sanskrit news.
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

मूल श्लोकः:

आराध्यमानो नृपतिः प्रयत्नात्
न तोषमायाति किमत्र चित्रम्।।
अयं त्वपूर्वं प्रतिमाविशेषो
यः सेव्यमानो रिपुतामुपैति।। 391/144।।

अर्थः:

बहुत प्रयत्न करने के बाद भी राजा संतुष्ट नहीं होता, इसमें आश्चर्य की बात क्या है? यह राजा एक अनौखी प्रतिमा के समान है, जिसकी पूजा करने पर भी वह शत्रुता ही उत्पन्न करता है।

Translation:

Even after being served with great efforts, the king remains dissatisfied. What is surprising in this? The king is like a unique idol, which, despite being served, turns into an enemy.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

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