🍃
♦️sri bhagavanuvaca
paran bhuyah pravaksyami jnananan jnanamuttamam.
yajjnatva munayah sarve paran siddhimito gatah৷৷14.1৷৷
⚜The Blessed Lord said --
I will again declare (to thee) that supreme knowledge, the best of all knowledge, having known which all the sages have gone to the supreme perfection after this life.(14.01)
⚜श्री भगवान् ने कहा --
समस्त ज्ञानों में उत्तम परम ज्ञान को मैं पुन कहूंगा जिसको जानकर सभी मुनिजन इस (लोक) से जाकर (इस जीवनोपरान्त) परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं।।14.01।।
#geeta
श्री भगवानुवाच
परं भूयः प्रवक्ष्यामि ज्ञानानां ज्ञानमुत्तमम्।
यज्ज्ञात्वा मुनयः सर्वे परां सिद्धिमितो गताः
।।14.1।।♦️sri bhagavanuvaca
paran bhuyah pravaksyami jnananan jnanamuttamam.
yajjnatva munayah sarve paran siddhimito gatah৷৷14.1৷৷
⚜The Blessed Lord said --
I will again declare (to thee) that supreme knowledge, the best of all knowledge, having known which all the sages have gone to the supreme perfection after this life.(14.01)
⚜श्री भगवान् ने कहा --
समस्त ज्ञानों में उत्तम परम ज्ञान को मैं पुन कहूंगा जिसको जानकर सभी मुनिजन इस (लोक) से जाकर (इस जीवनोपरान्त) परम सिद्धि को प्राप्त हुए हैं।।14.01।।
#geeta
🍃
♦️idan jnanamupasritya mama sadharmyamagatah.
sarge.pi nopajayante pralaye na vyathanti ca৷৷14.2৷৷
⚜They who, having taken refuge in this knowledge, have attained to unity with Me, are neither born at the time of creation nor are they disturbed at the time of dissolution.(14.2)
⚜इस ज्ञान का आश्रय लेकर मेरे स्वरूप (सार्धम्यम्) को प्राप्त पुरुष सृष्टि के आदि में जन्म नहीं लेते और प्रलयकाल में व्याकुल भी नहीं होते हैं।।14.2।।
#geeta
इदं ज्ञानमुपाश्रित्य मम साधर्म्यमागताः।
सर्गेऽपि नोपजायन्ते प्रलये न व्यथन्ति च
।।14.2।।♦️idan jnanamupasritya mama sadharmyamagatah.
sarge.pi nopajayante pralaye na vyathanti ca৷৷14.2৷৷
⚜They who, having taken refuge in this knowledge, have attained to unity with Me, are neither born at the time of creation nor are they disturbed at the time of dissolution.(14.2)
⚜इस ज्ञान का आश्रय लेकर मेरे स्वरूप (सार्धम्यम्) को प्राप्त पुरुष सृष्टि के आदि में जन्म नहीं लेते और प्रलयकाल में व्याकुल भी नहीं होते हैं।।14.2।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩तिथि - दशमी सुबह 10:32 तक तत्पश्चात एकादशी
⛅️ दिनांक - 25 मई 2022
⛅️ दिन - बुधवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद रात्रि 11:20 तक तत्पश्चात रेवती
⛅️ योग - प्रिती रात्रि 10:45 तक तत्पश्चात आयुष्मान
⛅️ राहुकाल - दोपहर 12:37 से 02:17 तक
⛅️ सर्योदय - 05:55
⛅️ सर्यास्त - 07:18
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:13 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩तिथि - दशमी सुबह 10:32 तक तत्पश्चात एकादशी
⛅️ दिनांक - 25 मई 2022
⛅️ दिन - बुधवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद रात्रि 11:20 तक तत्पश्चात रेवती
⛅️ योग - प्रिती रात्रि 10:45 तक तत्पश्चात आयुष्मान
⛅️ राहुकाल - दोपहर 12:37 से 02:17 तक
⛅️ सर्योदय - 05:55
⛅️ सर्यास्त - 07:18
⛅️ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:30 से 05:13 तक
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
वार्ता: संस्कृत में समाचार | यासीन मलिक की सजा पर फै़सला आज - YouTube
https://m.youtube.com/watch?v=uRLuuDxfgLM
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
https://m.youtube.com/watch?v=uRLuuDxfgLM
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
YouTube
वार्ता: संस्कृत में समाचार | पीएम मोदी का टोक्यो में भारतीय समुदाय ने किया ज़ोरदार स्वागत
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।
Read in English
हिन्दी में पढें
#chitram
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।
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🍃कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥
⚜इस संसार में सभी जीवित प्राणियों को काल अपना ग्रास बना लेता है (उनकी मृत्यु हो जाती है ) और काल ही किसी देश की प्रजा को भी नष्ट कर देता है और काल के ही प्रभाव से
(परिस्थिति वश) एक निष्क्रिय व्यक्ति भी सक्रिय हो जाता है | निश्चय ही काल को कोई भी अपने वश में नहीं कर सकता है |
⚜It is the passage of time which ultimately brings to an end all the living beings on the Earth and also untimely kills the citizens of a country. An inactive person awakens and becomes very active if the time is favourable to him.
Definitely the time is insurmountable.
🔅अस्मिन् संसारे कालः(समयः) सर्वान् प्राणिनः ग्रसति, कालः एव निष्क्रियं जनं परिस्थित्यनुगुणं सक्रिय करोति एतादृशं कालं न कोऽपि वशे कर्तुं अर्हति।
#Subhashitam
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥
⚜इस संसार में सभी जीवित प्राणियों को काल अपना ग्रास बना लेता है (उनकी मृत्यु हो जाती है ) और काल ही किसी देश की प्रजा को भी नष्ट कर देता है और काल के ही प्रभाव से
(परिस्थिति वश) एक निष्क्रिय व्यक्ति भी सक्रिय हो जाता है | निश्चय ही काल को कोई भी अपने वश में नहीं कर सकता है |
⚜It is the passage of time which ultimately brings to an end all the living beings on the Earth and also untimely kills the citizens of a country. An inactive person awakens and becomes very active if the time is favourable to him.
Definitely the time is insurmountable.
🔅अस्मिन् संसारे कालः(समयः) सर्वान् प्राणिनः ग्रसति, कालः एव निष्क्रियं जनं परिस्थित्यनुगुणं सक्रिय करोति एतादृशं कालं न कोऽपि वशे कर्तुं अर्हति।
#Subhashitam
कृषकः ______ क्षेत्रं ______ ।
Anonymous Quiz
8%
वृषभात् , कर्षन्ति
71%
वृषभाभ्यां, कर्षति
6%
वृषभेभ्यः, कर्षन्ति
15%
वृषभाभ्यां, कर्षतः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
हन्ता चेन्मन्यते हन्तुं हतश्चेन्मन्यते हतम्। उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।। = मारनेवाला यदि मारना चाहता है और मरा हुआ अपने आप को मरा जानता है, वे दोनों (मारनेवाला-मरनेवाला) ही नहीं जानते कि आत्मा न तो मारता है न मरता है। स्वधर्ममपि चावेक्ष्य…
क्षालयन्ति हि तीर्थानि सर्वथा देहजं मलम्। मानसं क्षालितुं तानि न समर्थानि वै नृपः।।
= गङ्गादि जलमय तीर्थ में स्नान करने से शरीर का मल ही धुलता है, हे राजन् ये जलमय तीर्थ मानसिक दोषों को धोने में सर्वथा असमर्थ हैं।
दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।
= दुर्जन दूसरे की कीर्त्तिरूपी अग्नि से जलते हुए जब उस पद को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं तब वे उस गुणी की निन्दा करने में प्रवृत्त हो जाते हैं।
पतितः पशुरपि कूपे निःसर्त्तुं चरणचालनं कुरुते।
धिक् त्वां चित्त भवाब्देरिच्छामपि नो बिभर्षि निःसर्त्तुम्।।
= कुंए में गिरा हुआ पशु भी उसमें से निकलने के लिए पैर चलाता है, प्रयत्न करता है, पर हे मन ! तुझे धिक्कार है, तू भवसागर से निकलने की इच्छा भी नहीं करता।
यस्य चाप्रियमिच्छेत तस्य ब्रूयात् सदा प्रियम्। व्याधो मृगवधं कर्त्तंु गीतं गायति सुस्वरम्।।
= जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उससे सदा मधुर भाषण करना चाहिए जैसे शिकारी हिरन का शिकार करने के लिए पहले मधुर स्वर से गीत गाता है।
यदीच्छसि वशीकर्त्तंु जगदेकेन कर्मणा। परापवादसस्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।
= हे मनुष्य यदि तू एक ही कर्म के द्वारा संसार को अपने वश में करना चाहता है तो दूसरों की निन्दा करने में लगी हुई अपनी वाणी को वश में कर, अर्थात् किसी की निन्दा मत कर।
या साधूँश्च खलान्करोति विदुषो मूर्खान्हितान्द्वेषिणः, प्रत्यक्षं कुरुते परोक्षममृतं हलाहलं तत्क्षणात्।
तामाराधय सत्क्रियां भगवतीं भोक्तुं फलं वा´्छितं, हे साधो व्यसनैर्गुणेषु विपुलेष्वास्थां वृथा मा कृथाः।।
= हे सज्जन ! यदि तुझे मनोवांछित फल भोगने की इच्छा है तो सब के द्वारा सम्मानित उस सत्कर्म का अनुष्ठान करो जो दुष्टों को सज्जन, मूर्खों को विद्वान्, शत्रुओं को मित्र, गुप्त वस्तुओं को प्रकट और विष को तत्काल अमृत बना देता है। बहुत से गुणों के उपार्जन का व्यर्थ उद्योग न करके तुम केवल सुकर्म ही करो।
घातयितुमेव नीचः परकार्यं वेत्ति न प्रसादयितुम्।
पातयितुमस्ति शक्तिर्वायोर्वृक्षं न चोन्नमितुम्।।
= अधम पुरुष पराए कार्यों को नष्ट करना ही जानता है, किन्तु बनाना नहीं जानता। जिस प्रकार वायु की शक्ति वृक्षों को उखाड़ने की ही है, किन्तु गिरे हुए वृक्ष को जमाने में नहीं।
#vakyabhyas
= गङ्गादि जलमय तीर्थ में स्नान करने से शरीर का मल ही धुलता है, हे राजन् ये जलमय तीर्थ मानसिक दोषों को धोने में सर्वथा असमर्थ हैं।
दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।
= दुर्जन दूसरे की कीर्त्तिरूपी अग्नि से जलते हुए जब उस पद को प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं तब वे उस गुणी की निन्दा करने में प्रवृत्त हो जाते हैं।
पतितः पशुरपि कूपे निःसर्त्तुं चरणचालनं कुरुते।
धिक् त्वां चित्त भवाब्देरिच्छामपि नो बिभर्षि निःसर्त्तुम्।।
= कुंए में गिरा हुआ पशु भी उसमें से निकलने के लिए पैर चलाता है, प्रयत्न करता है, पर हे मन ! तुझे धिक्कार है, तू भवसागर से निकलने की इच्छा भी नहीं करता।
यस्य चाप्रियमिच्छेत तस्य ब्रूयात् सदा प्रियम्। व्याधो मृगवधं कर्त्तंु गीतं गायति सुस्वरम्।।
= जिसका अप्रिय करने की इच्छा हो उससे सदा मधुर भाषण करना चाहिए जैसे शिकारी हिरन का शिकार करने के लिए पहले मधुर स्वर से गीत गाता है।
यदीच्छसि वशीकर्त्तंु जगदेकेन कर्मणा। परापवादसस्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।
= हे मनुष्य यदि तू एक ही कर्म के द्वारा संसार को अपने वश में करना चाहता है तो दूसरों की निन्दा करने में लगी हुई अपनी वाणी को वश में कर, अर्थात् किसी की निन्दा मत कर।
या साधूँश्च खलान्करोति विदुषो मूर्खान्हितान्द्वेषिणः, प्रत्यक्षं कुरुते परोक्षममृतं हलाहलं तत्क्षणात्।
तामाराधय सत्क्रियां भगवतीं भोक्तुं फलं वा´्छितं, हे साधो व्यसनैर्गुणेषु विपुलेष्वास्थां वृथा मा कृथाः।।
= हे सज्जन ! यदि तुझे मनोवांछित फल भोगने की इच्छा है तो सब के द्वारा सम्मानित उस सत्कर्म का अनुष्ठान करो जो दुष्टों को सज्जन, मूर्खों को विद्वान्, शत्रुओं को मित्र, गुप्त वस्तुओं को प्रकट और विष को तत्काल अमृत बना देता है। बहुत से गुणों के उपार्जन का व्यर्थ उद्योग न करके तुम केवल सुकर्म ही करो।
घातयितुमेव नीचः परकार्यं वेत्ति न प्रसादयितुम्।
पातयितुमस्ति शक्तिर्वायोर्वृक्षं न चोन्नमितुम्।।
= अधम पुरुष पराए कार्यों को नष्ट करना ही जानता है, किन्तु बनाना नहीं जानता। जिस प्रकार वायु की शक्ति वृक्षों को उखाड़ने की ही है, किन्तु गिरे हुए वृक्ष को जमाने में नहीं।
#vakyabhyas
Teacher - Why different blood groups in human body ?
Student - For mosquitoes to enjoy a variety of tastes.
#hasya
Student - For mosquitoes to enjoy a variety of tastes.
#hasya
🍃
♦️mama yonirmahadbrahma tasmin garbhan dadhamyaham.
sanbhavah sarvabhutanan tato bhavati bharata৷৷14.3৷৷
⚜My womb is the great Brahma; in that I place the germ; thence, O Arjuna, is the birth of all beings.(14.3)
⚜हे भारत मेरी महद् ब्रह्मरूप प्रकृति (भूतों की) योनि है जिसमें मैं गर्भाधान करता हूँ इससे समस्त भूतों की उत्पत्ति होती है।।14.3।।
#geeta
मम योनिर्महद्ब्रह्म तस्मिन् गर्भं दधाम्यहम्।
संभवः सर्वभूतानां ततो भवति भारत
।।14.3।।♦️mama yonirmahadbrahma tasmin garbhan dadhamyaham.
sanbhavah sarvabhutanan tato bhavati bharata৷৷14.3৷৷
⚜My womb is the great Brahma; in that I place the germ; thence, O Arjuna, is the birth of all beings.(14.3)
⚜हे भारत मेरी महद् ब्रह्मरूप प्रकृति (भूतों की) योनि है जिसमें मैं गर्भाधान करता हूँ इससे समस्त भूतों की उत्पत्ति होती है।।14.3।।
#geeta
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♦️sarvayonisu kaunteya murtayah sambhavanti yah.
tasan brahma mahadyonirahan bijapradah pita৷৷14.4৷৷
⚜Whatever forms are produced, O Arjuna, in any womb whatsoever, the great Brahma is their womb and I am the seed-giving father.(14.4)
⚜हे कौन्तेय समस्त योनियों में जितनी मूर्तियाँ (शरीर) उत्पन्न होती हैं उन सबकी योनि अर्थात् गर्भ है महद्ब्रह्म और मैं बीज की स्थापना करने वाला पिता हूँ।।
#geeta
सर्वयोनिषु कौन्तेय मूर्तयः सम्भवन्ति याः।
तासां ब्रह्म महद्योनिरहं बीजप्रदः पिता
।।14.4।।♦️sarvayonisu kaunteya murtayah sambhavanti yah.
tasan brahma mahadyonirahan bijapradah pita৷৷14.4৷৷
⚜Whatever forms are produced, O Arjuna, in any womb whatsoever, the great Brahma is their womb and I am the seed-giving father.(14.4)
⚜हे कौन्तेय समस्त योनियों में जितनी मूर्तियाँ (शरीर) उत्पन्न होती हैं उन सबकी योनि अर्थात् गर्भ है महद्ब्रह्म और मैं बीज की स्थापना करने वाला पिता हूँ।।
#geeta