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♦️samaM sarveShu bhuuteShu tiShThantaM parameshvaram|
vinashyatsvavinashyantaM yaH pashyati sa pashyati
⚜He sees, who sees the Supreme Lord, existing eally in all beings, the unperishing within the perishing. (13.28)
⚜जो पुरुष समस्त नश्वर भूतों में अनश्वर परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है? वही (वास्तव में) देखता है।।13.28।।
#geeta
समं सर्वेषु भूतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्।
विनश्यत्स्वविनश्यन्तं यः पश्यति स पश्यति
।।13.28।।♦️samaM sarveShu bhuuteShu tiShThantaM parameshvaram|
vinashyatsvavinashyantaM yaH pashyati sa pashyati
⚜He sees, who sees the Supreme Lord, existing eally in all beings, the unperishing within the perishing. (13.28)
⚜जो पुरुष समस्त नश्वर भूतों में अनश्वर परमेश्वर को समभाव से स्थित देखता है? वही (वास्तव में) देखता है।।13.28।।
#geeta
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♦️samaM pashyanhi sarvatra samavasthitamiishvaram|
na hinastyaatmanaa''tmaanaM tato yaati paraaM gatim
⚜Because he who sees the same Lord eally dwelling everywhere does not destroy the Self by the self; he goes to the highest goal. (13.29)
⚜निश्चय ही वह पुरुष सर्वत्र सम भाव से स्थित परमेश्वर को समान हुआ आत्मा (स्वयं) के द्वारा आत्मा (स्वयं) का नाश नहीं करता है इससे वह परम गति को प्राप्त होता है।।13.29।।
#geeta
समं पश्यन्हि सर्वत्र समवस्थितमीश्वरम्।
न हिनस्त्यात्मनाऽऽत्मानं ततो याति परां गतिम्
।।13.29।।♦️samaM pashyanhi sarvatra samavasthitamiishvaram|
na hinastyaatmanaa''tmaanaM tato yaati paraaM gatim
⚜Because he who sees the same Lord eally dwelling everywhere does not destroy the Self by the self; he goes to the highest goal. (13.29)
⚜निश्चय ही वह पुरुष सर्वत्र सम भाव से स्थित परमेश्वर को समान हुआ आत्मा (स्वयं) के द्वारा आत्मा (स्वयं) का नाश नहीं करता है इससे वह परम गति को प्राप्त होता है।।13.29।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩तिथि - षष्टी दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅️ दिनांक - 21 मई 2022
⛅️ दिन - शनिवार
⛅️ विक्रम संवत - 2079
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - श्रवण रात्रि 11:46 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
⛅️ योग - शुक्ल सुबह 08:12 तक तत्पश्चात ब्रह्म 05:22 ( 21मई सुबह )
⛅️ राहुकाल - सुबह 09:16 से 10:56 तक
⛅️ सर्योदय - 05:56
⛅️ सर्यास्त - 07:16
⛅️ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:31 से 05:14 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द - ५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅️ 🚩तिथि - षष्टी दोपहर 02:59 तक तत्पश्चात सप्तमी
⛅️ दिनांक - 21 मई 2022
⛅️ दिन - शनिवार
⛅️ विक्रम संवत - 2079
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - ग्रीष्म
⛅️ मास - ज्येष्ठ
⛅️ पक्ष - कृष्ण
⛅️ नक्षत्र - श्रवण रात्रि 11:46 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
⛅️ योग - शुक्ल सुबह 08:12 तक तत्पश्चात ब्रह्म 05:22 ( 21मई सुबह )
⛅️ राहुकाल - सुबह 09:16 से 10:56 तक
⛅️ सर्योदय - 05:56
⛅️ सर्यास्त - 07:16
⛅️ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅️ बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:31 से 05:14 तक
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
https://youtu.be/Lfne6JNDCLI
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
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वार्ता
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।
Read in English
हिन्दी में पढें
#chitram
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
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#chitram
🍃
⚜Even without doing anything ignorant people stay restless, while intelligent people stay focused even when working on multiple tasks.
🔅मूर्खः जनः किमपि अकृत्वा अपि सर्वदा श्रान्तः खिन्नः च भवति तथा बहूनि कर्माणि कृत्वा अपि बुद्धिमान् जनः एकाग्रचित्तः निश्श्रान्तः च तिष्ठति।
#Subhashitam
अकुर्वन्नपि संक्षोभाद् व्यग्रः सर्वत्र मूढधीः।
कुर्वन्नपि तु कृत्यानि कुशलो हि निरीकुलः
॥ ⚜Even without doing anything ignorant people stay restless, while intelligent people stay focused even when working on multiple tasks.
🔅मूर्खः जनः किमपि अकृत्वा अपि सर्वदा श्रान्तः खिन्नः च भवति तथा बहूनि कर्माणि कृत्वा अपि बुद्धिमान् जनः एकाग्रचित्तः निश्श्रान्तः च तिष्ठति।
#Subhashitam
बुद्ध्या विशुद्धया युक्तो धृत्याऽऽत्मानं नियम्य च।
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।
= विशुद्ध बुद्धि से युक्त होकर, अपने आप को धैर्यपूर्वक संयम में रखकर, शब्द आदि इन्द्रियों के विषयों का त्यागकर, राग और द्वेष को नष्ट करके (व्यक्ति ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेता है)।
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्मर्मः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।
= अहंकार, बल, अभिमान, काम, क्रोध और धन-सम्पत्ति को छोड़कर ममता से (मै-मेरे की भावना से) रहित होकर जो मन को नियन्त्रित कर लेता है, वह ब्रह्म प्राप्त करने के योग्य हो जाता है।
चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चितः सततं भव।।
= अपने चित्त से सब कर्मों को मुझे समर्पित करके मुझे ही अपना लक्ष्य समझता हुआ, समाधि का आश्रय लेकर अपने चित्त को निरन्तर मुझमें लगाए रख।
सत्त्वं सुखे संजयति रजः कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे स´्जयत्युत।।
= हे भारत ! (अर्जुन) सत्त्वगुण मनुष्य को सुख में, रजोगुण कर्म में और तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद में लगा देता है।
श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते।।
= आत्मा कान, आंख, त्वचा, जीभ, नाक और मन का आश्रय लेकर विषयों का सेवन करता है।
उत्क्षिप्य टिट्टिभः पादावास्ते भङ्गभयाद्दिवः।
स्वचित्तकल्पितो गर्वः कस्य नात्रापि विद्यते।।
= आकाश कहीं हमारे ऊपर टूटकर न गिर पड़े इस भय से टिड्डा अपने पैरों को आकाश की ओर ऊपर उठाकर सोता है। भला इस संसार में किसे अपने चित्त से कल्पना किया हुआ अभिमान नहीं होता ?
महान्तमप्यर्थमधर्मयुक्तं यः संत्यजत्यनपाकृष्ट एव।
सुखं सुदुःखान्यवमुच्य शेते जीर्णां त्वचं सर्प इवावमुच्य।।
= जो पुरुष अधर्मयुक्त महान धनराशि को उसकी ओर आकृष्ट न होता हुआ छोड़ देता है, वह जैसे सर्प जीर्ण त्वचा (कैंचुली) को त्यागकर सुखी होता है, उसी प्रकार भारी दुःखों से छूटकर सुख को प्राप्त होता है।
उत्सृज्य विनिवर्तन्ते ज्ञातयः सुहृदः सुताः।
अपुष्पानफलान् वृक्षान् यथा तात पतत्रिणः।।
= हे तात ! सम्बन्धी, माता, पिता, मित्र, पुत्रादि सभी (मृत पुरुष को जंगल/स्मशान में) छोड़कर उसी प्रकार वापस आ जाते हैं, जैसे पुष्प और फल से रहित वृक्ष को पक्षी छोड़ जाते हैं।
अधीत्य वेदान् परिसंस्तीर्य चाग्नीनिष्ट्वा यज्ञैः पालयित्वा प्रजाश्च।
गोब्राह्मणार्थं शस्त्रपूतान्तरात्मा हतः संग्रामे क्षत्रियः स्वर्गमेति।।
= जो क्षत्रिय वेदों को पढ़कर, अग्नि (=वेदी) को कुशा से आच्छादित कर (पवित्र कर), यज्ञ करके, प्रजा का पालन करके, शस्त्र (के आघात = प्रहारों) से पवित्र आत्मावाला संग्राम में मारा गया, स्वर्ग = कल्याण को प्राप्त करता है।
वैश्योऽधीत्य ब्राह्मणान् क्षत्रियांश्च धनैः काले संविभज्याश्रितांश्च।
त्रेतापूतं धूममाघ्राय पुण्यं प्रेत्य स्वर्गे दिव्यसुखानि भुङ्क्ते।।
= जो वैश्य वेदों को यथाविधि पढ़कर समयानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, और अपने आश्रित्य भृत्यवर्ग को धन बांटकर, तीन अग्नियों से (माता-पिता-आचार्य) उठे हुए पवित्र धूम को सूंघकर (से प्राप्त शिक्षा से शिक्षित होकर) मरता है, वह मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में उत्तम सुखों को भोगता है।
#vakyabhyas
शब्दादीन्विषयांस्त्यक्त्वा रागद्वेषौ व्युदस्य च।।
= विशुद्ध बुद्धि से युक्त होकर, अपने आप को धैर्यपूर्वक संयम में रखकर, शब्द आदि इन्द्रियों के विषयों का त्यागकर, राग और द्वेष को नष्ट करके (व्यक्ति ज्ञान की पराकाष्ठा को प्राप्त कर लेता है)।
अहङ्कारं बलं दर्पं कामं क्रोधं परिग्रहम्।
विमुच्य निर्मर्मः शान्तो ब्रह्मभूयाय कल्पते।
= अहंकार, बल, अभिमान, काम, क्रोध और धन-सम्पत्ति को छोड़कर ममता से (मै-मेरे की भावना से) रहित होकर जो मन को नियन्त्रित कर लेता है, वह ब्रह्म प्राप्त करने के योग्य हो जाता है।
चेतसा सर्वकर्माणि मयि संन्यस्य मत्परः।
बुद्धियोगमुपाश्रित्य मच्चितः सततं भव।।
= अपने चित्त से सब कर्मों को मुझे समर्पित करके मुझे ही अपना लक्ष्य समझता हुआ, समाधि का आश्रय लेकर अपने चित्त को निरन्तर मुझमें लगाए रख।
सत्त्वं सुखे संजयति रजः कर्मणि भारत।
ज्ञानमावृत्य तु तमः प्रमादे स´्जयत्युत।।
= हे भारत ! (अर्जुन) सत्त्वगुण मनुष्य को सुख में, रजोगुण कर्म में और तमोगुण ज्ञान को ढककर प्रमाद में लगा देता है।
श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते।।
= आत्मा कान, आंख, त्वचा, जीभ, नाक और मन का आश्रय लेकर विषयों का सेवन करता है।
उत्क्षिप्य टिट्टिभः पादावास्ते भङ्गभयाद्दिवः।
स्वचित्तकल्पितो गर्वः कस्य नात्रापि विद्यते।।
= आकाश कहीं हमारे ऊपर टूटकर न गिर पड़े इस भय से टिड्डा अपने पैरों को आकाश की ओर ऊपर उठाकर सोता है। भला इस संसार में किसे अपने चित्त से कल्पना किया हुआ अभिमान नहीं होता ?
महान्तमप्यर्थमधर्मयुक्तं यः संत्यजत्यनपाकृष्ट एव।
सुखं सुदुःखान्यवमुच्य शेते जीर्णां त्वचं सर्प इवावमुच्य।।
= जो पुरुष अधर्मयुक्त महान धनराशि को उसकी ओर आकृष्ट न होता हुआ छोड़ देता है, वह जैसे सर्प जीर्ण त्वचा (कैंचुली) को त्यागकर सुखी होता है, उसी प्रकार भारी दुःखों से छूटकर सुख को प्राप्त होता है।
उत्सृज्य विनिवर्तन्ते ज्ञातयः सुहृदः सुताः।
अपुष्पानफलान् वृक्षान् यथा तात पतत्रिणः।।
= हे तात ! सम्बन्धी, माता, पिता, मित्र, पुत्रादि सभी (मृत पुरुष को जंगल/स्मशान में) छोड़कर उसी प्रकार वापस आ जाते हैं, जैसे पुष्प और फल से रहित वृक्ष को पक्षी छोड़ जाते हैं।
अधीत्य वेदान् परिसंस्तीर्य चाग्नीनिष्ट्वा यज्ञैः पालयित्वा प्रजाश्च।
गोब्राह्मणार्थं शस्त्रपूतान्तरात्मा हतः संग्रामे क्षत्रियः स्वर्गमेति।।
= जो क्षत्रिय वेदों को पढ़कर, अग्नि (=वेदी) को कुशा से आच्छादित कर (पवित्र कर), यज्ञ करके, प्रजा का पालन करके, शस्त्र (के आघात = प्रहारों) से पवित्र आत्मावाला संग्राम में मारा गया, स्वर्ग = कल्याण को प्राप्त करता है।
वैश्योऽधीत्य ब्राह्मणान् क्षत्रियांश्च धनैः काले संविभज्याश्रितांश्च।
त्रेतापूतं धूममाघ्राय पुण्यं प्रेत्य स्वर्गे दिव्यसुखानि भुङ्क्ते।।
= जो वैश्य वेदों को यथाविधि पढ़कर समयानुसार ब्राह्मण, क्षत्रिय, और अपने आश्रित्य भृत्यवर्ग को धन बांटकर, तीन अग्नियों से (माता-पिता-आचार्य) उठे हुए पवित्र धूम को सूंघकर (से प्राप्त शिक्षा से शिक्षित होकर) मरता है, वह मृत्यु के बाद स्वर्ग लोक में उत्तम सुखों को भोगता है।
#vakyabhyas
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♦️prakRRityaiva cha karmaaNi kriyamaaNaani sarvashaH|
yaH pashyati tathaa''tmaanamakartaaraM sa pashyati
⚜He sees, who sees that all actions are performed by Nature alone and that the Self is actionless. (13.30)
⚜जो पुरुष समस्त कर्मों को सर्वश प्रकृति द्वारा ही किये गये देखता है तथा आत्मा को अकर्ता देखता है वही (वास्तव में) देखता है।।13.30।।
#geeta
प्रकृत्यैव च कर्माणि क्रियमाणानि सर्वशः।
यः पश्यति तथाऽऽत्मानमकर्तारं स पश्यति
।।13.30।।♦️prakRRityaiva cha karmaaNi kriyamaaNaani sarvashaH|
yaH pashyati tathaa''tmaanamakartaaraM sa pashyati
⚜He sees, who sees that all actions are performed by Nature alone and that the Self is actionless. (13.30)
⚜जो पुरुष समस्त कर्मों को सर्वश प्रकृति द्वारा ही किये गये देखता है तथा आत्मा को अकर्ता देखता है वही (वास्तव में) देखता है।।13.30।।
#geeta
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♦️yadaa bhuutapRRithagbhaavamekasthamanupashyati|
tata eva cha vistaaraM brahma sampadyate tadaa
⚜When a man sees the whole variety of beings as resting in the One, and spreading forth from That alone, he then becomes Brahman. (13.31)
⚜यह पुरुष जब भूतों के पृथक् भावों को एक (परमात्मा) में स्थित देखता है तथा उस (परमात्मा) से ही यह विस्तार हुआ जानता है तब वह ब्रह्म को प्राप्त होता है।।13.31।।
#geeta
यदा भूतपृथग्भावमेकस्थमनुपश्यति।
तत एव च विस्तारं ब्रह्म सम्पद्यते तदा
।।13.31।।♦️yadaa bhuutapRRithagbhaavamekasthamanupashyati|
tata eva cha vistaaraM brahma sampadyate tadaa
⚜When a man sees the whole variety of beings as resting in the One, and spreading forth from That alone, he then becomes Brahman. (13.31)
⚜यह पुरुष जब भूतों के पृथक् भावों को एक (परमात्मा) में स्थित देखता है तथा उस (परमात्मा) से ही यह विस्तार हुआ जानता है तब वह ब्रह्म को प्राप्त होता है।।13.31।।
#geeta