संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
आश्लिष्य रामं भरतो भृशं संतताप = राम का आलिंगन करके भरत खूब दुःखी हुआ। रामस्य वार्तां निशम्य क्रुद्धो लक्ष्मणोऽशमत् = राम की बात सुनकर क्रोधित लक्ष्मण शान्त हो गया। हेमहरिणं संदृश्य सीता अमोहीत् = सोने का हिरण देखकर सीता मोहित हो गई। उल्लन्घ्य…
अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात्प्रति निवर्त्तते।
स दत्त्वा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।।
= जिस गृहस्थ के घर से आया हुआ अतिथि बिना भोजनादि की आशा पूरी किए खाली लौट जाता है, वह अतिथि उस गृहस्थ को अपने दुष्कर्म देकर और उस गृहस्थ के सत्कर्म लेकर चला जाता है।

न सङ्करेण द्रविणं प्रचिन्वीयाद् विचक्षणः।
धर्मार्थं न्यायमुत्सृज्य न तत् कल्याणमुच्यते।।
= बुद्धिमान् मनुष्य धर्मयुक्त न्याय को त्यागकर जिस किसी प्रकार से धन का संग्रह न करे। ऐसा धन कल्याणकारक नहीं होता।

सन्त्यज्य ग्राम्यमाहारं सर्वं चैव परिच्छदम्।
पुत्रेषु भार्यां निक्षिप्य वनं गच्छेत् सहैव वा।।
= ग्राम में सुलभ भोजन को और सब प्रकार की सुख सामग्री को त्यागकर तथा पत्नी को अपने पुत्रों को सौप कर वानप्रस्थी वन में जावे अथवा (पत्नी भी तपस्या के इच्छुक हो तो) पत्नी के साथ ही वन को प्रस्थान करे।

अग्निहोत्रं समादाय गृह्यं चाग्निपरिच्छदम्।
ग्रामादरण्यं निःसृत्य निवसेन्नियतेन्द्रियः।।
= अग्निहोत्र करने के व्रत को तथा गृहस्थित अग्निहोत्र करने के उपकरणों को साथ लेकर, गांव से निकलकर वन में जितेन्द्रिय होकर वानप्रस्थी निवास करे।

अधीत्य विधिवद् वेदान् पुत्रांश्चोत्पाद्य धर्मतः।
इष्ट्वा च शक्तितो यज्ञैर्मनो मोक्षे निवेशयेत्।।
= विधिवत् वेदों को पढ़कर, धर्मानुसार सन्तानों को जन्म देकर तथा उनका पालनपोषण करके, सामर्थ्यानुसार अनेक प्रकार के यज्ञ = परोपकार करके तत्पश्चात् अपने मन को मोक्ष में लगावे।

योऽनधीत्य द्विजो वेदमन्यत्र कुरुते श्रमम्।
स जीवन्नेव शूद्रत्वमाशु गच्छति सान्वयः।।
= जो द्विज वेद का अध्ययन न करके अन्य ग्रन्थों के पढ़ने में अथवा अन्य कर्मों को करने में परिश्रम करता है, वह जीते जी ही अपने वंश सहित शीघ्र शूद्रत्व को प्राप्त हो जाता है।

मत्या परीक्ष्य मेधावी बुद्ध्या सम्पाद्य चासकृत्।
श्रुत्वा दृष्ट्वाऽथ विज्ञाय प्राज्ञैर्मैत्रीं समाचरेत्।।
= बुद्धिमान् मनुष्य मनन, चिन्तन द्वारा परीक्षा करके, बुद्धि से अनेक बार निश्चय करके, सुनकर, देखकर और समझकरके मेधावी लोगों के साथ मित्रता करे।

यथा काष्ठं च काष्ठं च समेयातां महार्णवे।
समेत्य च व्यपेयातां कालमासाद्य क´्चन।।
एवं भार्या च पुत्राश्च ज्ञातयश्च वसूनि च।
समेत्य व्यवधावन्ति ध्रुवो येषां विनाभवः।।
= जैसे महासागर में दो काष्ठ इकट्ठे हो जाएं, ऐसे ही पत्नी, पुत्र, बन्धु-बान्धव और धन-सम्पत्ति ये सब हमारे साथ इकट्ठे होकर फिर हमसे दूर हो जाते हैं, क्योंकि इन सबका दूर होना अवश्य ही निश्चित होता है।

सन्तोषं परमास्थाय सुखार्थी संयतो भवेत्।
सन्तोषमूलं हि सुखं दुःखमूलं विपर्ययः।।
= सुख इच्छुक मनुष्य सन्तोष को उत्तमता से धारण करके संयम वर्त्ते, क्योंकि सन्तोष ही सुख का मूल है और असन्तोष (तृष्णा) दुःख का कारण है।

सन्त्यज्य हृद्गुहेशानं देवमन्यं प्रयान्ति ये।
ते रत्नमभिवाञ्छन्ति त्यक्त्वा हस्तस्थ कौस्तुभम्।।
= जो लोग हृदयरूपी गुहा में विद्यमान परमेश्वर को छोड़कर दूसरे देवता को ढूंढते फिरते हैं, वे मानो मुट्ठी में पकड़ी हुई मणि को छोड़कर कांच के टुकड़े को इधर-उधर ढूंढते फिरते हैं।

#vakyabhyas
*Everybody thinks " He will be helped."
(If you don't take action, nobody will.)
२०२० तमे वर्षे

Friend :- What's special on Feb 14 ?
Friend 2 :- You have a wife or a lover ?
Friend :- I have a wife.
Friend:- if so its durgashtami for you.

#hasya
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.26]
🍃अन्ये त्वेवमजानन्तः श्रुत्वाऽन्येभ्य उपासते।
तेऽपि चातितरन्त्येव मृत्युं श्रुतिपरायणाः
।।13.26।।

♦️anye tvevamajaanantaH shrutvaa'nyebhya upaasate|
te'pi chaatitarantyeva mRRityuM shrutiparaayaNaaH

Others also, not knowing thus, worship, having heard of It from others; they, too, cross beyond death, regarding what they have heard as the Supreme refuge. (13.26)

परन्तु अन्य लोग जो स्वयं इस प्रकार न जानते हुए दूसरों से (आचार्यों से) सुनकर ही उपासना करते हैं वे श्रुतिपरायण (अर्थात् श्रवण ही जिनके लिए परम साधन है) लोग भी मृत्यु को निसन्देह तर जाते हैं।।13.26।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.27]
🍃यावत्सञ्जायते किञ्चित्सत्त्वं स्थावरजङ्गमम्।
क्षेत्रक्षेत्रज्ञसंयोगात्तद्विद्धि भरतर्षभ
।।13.27।।

♦️yaavatsa~njaayate ki~nchitsattvaM sthaavaraja~Ngamam|
kShetrakShetraj~nasaMyogaattadviddhi bharatarShabha

Wherever a being is born, whether unmoving or moving, know thou, O best of the Bharatas (Arjuna), that it is from the union between the field and its knower. (13.27)

हे भरत श्रेष्ठ यावन्मात्र जो कुछ भी स्थावर जंगम (चराचर) वस्तु उत्पन्न होती है? उस सबको तुम क्षेत्र और क्षेत्रज्ञ के संयोग से उत्पन्न हुई जानो।।13.27।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७९
🚩तिथि - पंचमी शाम 05:28 तक तत्पश्चात षष्टी

दिनांक - 20 मई 2022
दिन - शुक्रवार
विक्रम संवत - 2079
शक संवत - 1944
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - ज्येष्ठ
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - उत्तराषाढ़ा रात्रि 01:18 तक तत्पश्चात श्रवण
योग - शुभ सुबह 11:25 तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल - सुबह 10:56 से दोपहर 12:36 तक
सूर्योदय - 05:57
सूर्यास्त - 07:16
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:31 से 05:14 तक
https://youtu.be/D_f19EOW3G8
प्रतिदिनं प्रातः ७:१५ वादने १५ निमेषात्मिकायै वार्तायै डी डी न्यूज् इति पश्यत।
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।

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#chitram
🍃नरत्वं दुर्लभं लोके विद्या तत्र सुदुर्लभा।
शीलं च दुर्लभं तत्र विनयस्तत्र सुदुर्लभः

अग्निपुराणम्

इस लोक में मनुष्य जन्म मिलना दुर्लभ हैं,
मनुष्य जन्म होके भी विद्या प्राप्त करनेवाले और भी दुर्लभ हैं।
उनमें भी चरित्रवान मनुष्य मिलना दुर्लभ है और
उनमें भी विनम्र मनुष्य मिलना और भी कठिन हैं।

🔅अस्मिन् लोके मनुष्यजन्म दुर्लभं भवति तत्रापि मनुष्यजन्मनि विद्याप्राप्तिः दुर्लभतरा भवति। तत्र च उत्तमचरित्रयुक्तः दुर्लभः तेषु अपि विनम्रता तु कस्मिंश्चित् एव भवति।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात्प्रति निवर्त्तते। स दत्त्वा दुष्कृतं तस्मै पुण्यमादाय गच्छति।। = जिस गृहस्थ के घर से आया हुआ अतिथि बिना भोजनादि की आशा पूरी किए खाली लौट जाता है, वह अतिथि उस गृहस्थ को अपने दुष्कर्म देकर और उस गृहस्थ के सत्कर्म लेकर चला जाता है।…
मृतं शरीर मृत्सज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति।।
= बन्धु-बान्धव निर्जीव शरीर को लकड़ी और मिट्टी के ढेले के समान भूमि पर छोड़कर परांगमुख होकर चले जाते हैं, एक धर्म ही उसके साथ जाता है।

इन्द्रियाणि च संयम्य बकवत् पण्डितो नरः।
देशकालबलं ज्ञात्वा सर्वकार्याणि साधयेत्।।
= बुद्धिमान मनुष्य को चाहिए कि अपने इन्द्रियों को वश में और चित्त को एकाग्र करके तथा देश, काल और अपने बल को जानकर बगुले के समान धैर्यपूर्वक अपने सारे कार्यों को सिद्ध करे।

प्रत्युत्थानं च युद्धं च संविभागं च बन्धुषु।
स्वयमाक्रम्य भुक्तं च शिक्षेच्चत्वारि कुक्कुटात्।।
= यथासमय (सूर्यादय से पूर्व) जागना, युद्ध के लिए उद्यत रहना, बन्धुओं को उनका हिस्सा देना और आक्रमण करके भोजन करना इन चार बातों को मुर्गे से सीखना चाहिए।

न वेत्ति यो यस्य गुणप्रकर्षं स तं सदा निन्दति नाऽत्र चित्रम्।
यथा किराती करिकुम्भजाता मुक्ताः परित्यज्य बिभर्त्ति गुञ्जाः।।
= जो जिसके गुणों की श्रेष्ठता को नहीं जानता, वह सदा उसकी निन्दा करता है यह तनिक भी आश्चर्य की बात नहीं है। देखो न ! भीलनी हाथी के मस्तक से उत्पन्न होनेवाले मोतियों को छोड़कर घंुघची की माला को धारण करती है।

हस्तं हस्तेन संपीड्य दन्तैर्दन्तान् विचूर्ण्य च।
अङ्गान्यङ्गैः समाक्रम्य जयेदादौ स्वकं मनः।।
= हाथ को हाथ से भींचकर, दातों को दातों से पीसकर, अंगों को अंगों से आक्रान्त करके अर्थात् प्रबल पुरुषार्थ से सर्वप्रथम मन को जीतना चाहिए।

स्नेहेन तिलवत्सर्वं सर्गचक्रे निपीड्यते।
तिलपीडैरिवाक्रम्य क्लेशैरज्ञानसम्भवैः।।
= तेली लोग तेल के लिए जैसे तिल को कोल्हू में पेलते हैं उसी प्रकार स्नेह के कारण सब लोग अज्ञानजनित क्लेशों द्वारा सृष्टि-चक्र में पिस रहे हैं।

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमाँश्चरति निःस्पृहः।
निर्ममो निरहंकारः स शान्तिमधिगच्छति।।
= जो पुरुष सब कामनाओं को त्याग देता है तथा लालसा व ममता से रहित होकर मैं-मेरे की भावना को छोड़कर विचरता है, वह शान्ति को प्राप्त करता है।

अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत्।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्।।
= हे भरतकुल में श्रेष्ठ अर्जुन ! जो यज्ञ = परोपकार किसी फल को लक्ष्य में रखकर अथवा अपने वैभव-ऐश्वर्य प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है, उसे राजसिक यज्ञ जान।

यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्।।
= जो दान किसी उपकार के बदले में प्रत्युपकार रूप किया जाता है अथवा भविष्य में किसी लाभ की आशा से दिया जाता है, अथवा जिस दान को करते हुए दानदाता क्लेश-दुःख का अनुभव करता है, उसे राजसिक दान माना जाता है।

अनुबन्धं क्षयं हिंस्यमनवेक्ष्य च पौरुषम्।
मोहादारभ्यते कर्म यत्तत्तामसमुच्यते।।
= जो कर्म क्या परिणाम होगा, क्या हानि हो जाएगी, किस-किस की हिंसा होगी, अपना सामर्थ्य उस काम को करने का है या नहीं, इन सब बातों पर विचार किए बिना मूर्खता से किया जाता है, वह तामस कर्म कहाता है।

यतः प्रवृत्तिर्भूतानां येन सर्वमिदं ततम्।
स्वकर्मणा तमभ्यर्च्य सिद्धिं विन्दन्ति मानवः।।
= जिससे सब प्राणि जन्म लेते हैं, जिससे यह समस्त संसार फैला हुआ है, उस परमात्मा की अपने कर्मों से पूजा करके मनुष्य सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।


#vakyabhyas
People will throw stones at you. Don't throw them back. Collect them and build an empire.
Girl in greeting cards shop on Valentine's day.
Girl - Do you have cards written 'you are my only love' ?
Shopkeeper - Yes, Sister.
Girl - Give me 10 such cards.

#hasya