अर्थशास्त्रस्य भाषा संस्कृतं पठ्यताम्
https://www.learnsamskrit.online/course_details?name/=MjgwNTE1Mzg4NTc5Mg==
Learn Samskrit – the Language of Arthashastra
• This book is based on Kautilya’s Arthashastra.
• In this book you will study some selected aspects of administration, economics and taxation of ancient India.
• Total number of videos = 49 & Total viewing time= 20 hours.
Target Audience :
Students of economics, commerce, taxation, and IAS officers.
Course Fee - INR 500
Course Instructions :
1. You can learn yourself and enjoy the text.
2. Please use CHAT or WhatsApp or email to put your doubts & questions to a teacher. Please try to communicate with instructors or teachers in Samskrit.
3. This course supports your interest to learn subject text and gives all linguistic help required. Please pursue & master Samskrit. There will be no test or certificate for this level.
To enrol Click here
#SanskritEducation
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Learn Samskrit – the Language of Arthashastra
• This book is based on Kautilya’s Arthashastra.
• In this book you will study some selected aspects of administration, economics and taxation of ancient India.
• Total number of videos = 49 & Total viewing time= 20 hours.
Target Audience :
Students of economics, commerce, taxation, and IAS officers.
Course Fee - INR 500
Course Instructions :
1. You can learn yourself and enjoy the text.
2. Please use CHAT or WhatsApp or email to put your doubts & questions to a teacher. Please try to communicate with instructors or teachers in Samskrit.
3. This course supports your interest to learn subject text and gives all linguistic help required. Please pursue & master Samskrit. There will be no test or certificate for this level.
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#SanskritEducation
🍃
⚜काम को करने से पहले विचार करें कि उसे करने से क्या लाभ होगा तथा न करने से क्या हानि होगी ? कार्य के फल के बारे में विचार करके कार्य करें या न करें। लेकिन बिना विचारे कोई कार्य न करे।
🔅कार्यकरणात् पूर्वम् एव चिन्तनीयं यत् मम एतत् कार्यं करणात् के परिणामाः भविष्यन्ति तथा यदि न करिष्यामि चेत् के परिणामाः भविष्यन्ति। कार्यफलं चिन्तित्वा एव कर्म कुर्वन्तु अथवा न कुर्वन्तु।
अविचार्य कार्यं न कार्यम्।
#Subhashitam
किन्नु मे स्यादिदं कृत्वा
किन्नु मे स्यादकुर्वतः।
इति कर्माणि सञ्चिन्त्य
कुर्याद्वा पुरुषो न वा
।। ⚜काम को करने से पहले विचार करें कि उसे करने से क्या लाभ होगा तथा न करने से क्या हानि होगी ? कार्य के फल के बारे में विचार करके कार्य करें या न करें। लेकिन बिना विचारे कोई कार्य न करे।
🔅कार्यकरणात् पूर्वम् एव चिन्तनीयं यत् मम एतत् कार्यं करणात् के परिणामाः भविष्यन्ति तथा यदि न करिष्यामि चेत् के परिणामाः भविष्यन्ति। कार्यफलं चिन्तित्वा एव कर्म कुर्वन्तु अथवा न कुर्वन्तु।
अविचार्य कार्यं न कार्यम्।
#Subhashitam
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (मोहित डोकानिया)
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
दुग्धं खादित्वा रोटिकाञ्च पीत्वा भुञ्जीत = दूध को खाकर और रोटी को पीकर खाएं। लवणं अशित्वा दुग्धं मा पिबेत् = नमकीन भोजन खाकर दूध न पीएं। स्थित्वा कदापि जलं न पिबेत् = खडे़ होकर कभी भी पानी न पीएं। स्थित्वा अटित्वा च भोजनं पश्वाचारः = खड़े होकर घूमकर…
श्रुत्वा स्पृष्ट्वा च दृष्ट्वा च भुक्त्वा घ्रात्वा च यो नरः।
न हृष्यति ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः।।
= जो मनुष्य (सुखद या दुःखद) बातों को सुनकर, छूकर, सूंघकर, न तो प्रसन्न होता है न हि अप्रसन्न होता है, उसे ही जितेन्द्रिय जानना चाहिए।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता पदं गच्छन्त्यनामयं।।
= बुद्धि से युक्त ज्ञानी लोग कर्म से उत्पन्न होनेवाले फल (की आकांक्षा) को त्यागकर होनेवाले जन्म के बन्धन से मुक्त हुए दुःखविहीन स्थिति को प्राप्त करते हैं।
विद्यां चाऽविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते।।
= जो मनुष्य विद्या (यथार्थ ज्ञान) और अविद्या (कर्म और उपासना) इन दोनों को साथ-साथ जानता है (आचरण में लाता है), वह अविद्या से मृत्यु को जीतकर विद्या से मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
अज्ञानप्रभवो लोभो भूतानां दृश्यते सदा।
अस्थिरत्वं च भोगानां दृष्ट्वा ज्ञात्वा निवर्त्तते।।
= यह देखा जाता है कि प्राणियों में जो लोभ है वह सदा अज्ञान के कारण ही उत्पन्न होता है। सांसारिक भोगों की अस्थिरता को देखने और अच्छी प्रकार जान लेने पर लोभ की निवृत्ति हो जाती है।
पृथिवी रत्नसम्पूर्णा हिरण्यं पशवः óियः।
नाऽलमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शमं व्रजेत्।।
= रत्नों से भरी हुई पृथ्वी, सोना, पशु और óियां ये सभी एक मनुष्य के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं, ऐसा विचार कर मनुष्य शान्ति को धारण करे।
गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्।
प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धारण्यं मृगास्तथा।।
= ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को, शिष्य विद्याप्राप्ति के बाद गुरु को और पशु जले हुए वन को त्याग देते हैं।
निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफलं वृक्षं भुक्त्वा चाऽभ्यागता गृहम्।।
= वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अतिथि भोजन करके यजमान के घर को छोड़ देते हैं।
न स्वसुखे वै कुरुते प्रहर्षं चान्यस्य दुःखे भवति विषादी।
दत्त्वा न पश्चात् कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः।।
= जो पुरुष अपने सुख में प्रसन्न नहीं होता, दूसरे के दुःख में दुःखी हो जाता है, और दान देकर पश्चाताप नहीं करता, वही सज्जनों में आर्यपुरुष गिना जाता है।
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
= मनुष्य वेदादि शाóों के श्रवण से धर्म के मर्म को जानता है, और खोटी बुद्धि को छोड़ देता है, यथार्थज्ञान को प्राप्त कर लेता है और अन्त में मोक्ष को भी पा लेता है।
द्वावम्भसी निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम्।
धन्वन्तरमदातारं दरिद्रं चातपस्विनम्।।
= दो मनुष्यों को गले में बड़ी भारी शिला बांधकर डुबा देना चाहिए। एक तो धनवान होकर भी दान न देनेवाले कंजूस को और दूसरे पुरुषार्थ न करनेवाले दरिद्र को।
नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः।।
= मनुष्य को अत्यन्त सीधे और सरल स्वभाव का नहीं बनना चाहिए। वन में जाकर देखो, वहां सीधे वृक्ष काट डाले जाते हैं, और टेढे़-मेढ़े वृक्ष खड़े रहते हैं अर्थात् उन्हें कोई नहीं काटता।
#vakyabhyas
न हृष्यति ग्लायति वा स विज्ञेयो जितेन्द्रियः।।
= जो मनुष्य (सुखद या दुःखद) बातों को सुनकर, छूकर, सूंघकर, न तो प्रसन्न होता है न हि अप्रसन्न होता है, उसे ही जितेन्द्रिय जानना चाहिए।
कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ता पदं गच्छन्त्यनामयं।।
= बुद्धि से युक्त ज्ञानी लोग कर्म से उत्पन्न होनेवाले फल (की आकांक्षा) को त्यागकर होनेवाले जन्म के बन्धन से मुक्त हुए दुःखविहीन स्थिति को प्राप्त करते हैं।
विद्यां चाऽविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह।
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते।।
= जो मनुष्य विद्या (यथार्थ ज्ञान) और अविद्या (कर्म और उपासना) इन दोनों को साथ-साथ जानता है (आचरण में लाता है), वह अविद्या से मृत्यु को जीतकर विद्या से मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।
अज्ञानप्रभवो लोभो भूतानां दृश्यते सदा।
अस्थिरत्वं च भोगानां दृष्ट्वा ज्ञात्वा निवर्त्तते।।
= यह देखा जाता है कि प्राणियों में जो लोभ है वह सदा अज्ञान के कारण ही उत्पन्न होता है। सांसारिक भोगों की अस्थिरता को देखने और अच्छी प्रकार जान लेने पर लोभ की निवृत्ति हो जाती है।
पृथिवी रत्नसम्पूर्णा हिरण्यं पशवः óियः।
नाऽलमेकस्य तत्सर्वमिति मत्वा शमं व्रजेत्।।
= रत्नों से भरी हुई पृथ्वी, सोना, पशु और óियां ये सभी एक मनुष्य के लिए भी पर्याप्त नहीं हैं, ऐसा विचार कर मनुष्य शान्ति को धारण करे।
गृहीत्वा दक्षिणां विप्रास्त्यजन्ति यजमानकम्।
प्राप्तविद्या गुरुं शिष्या दग्धारण्यं मृगास्तथा।।
= ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को, शिष्य विद्याप्राप्ति के बाद गुरु को और पशु जले हुए वन को त्याग देते हैं।
निर्धनं पुरुषं वेश्या प्रजा भग्नं नृपं त्यजेत्।
खगा वीतफलं वृक्षं भुक्त्वा चाऽभ्यागता गृहम्।।
= वेश्या निर्धन मनुष्य को, प्रजा पराजित राजा को, पक्षी फलरहित वृक्ष को और अतिथि भोजन करके यजमान के घर को छोड़ देते हैं।
न स्वसुखे वै कुरुते प्रहर्षं चान्यस्य दुःखे भवति विषादी।
दत्त्वा न पश्चात् कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः।।
= जो पुरुष अपने सुख में प्रसन्न नहीं होता, दूसरे के दुःख में दुःखी हो जाता है, और दान देकर पश्चाताप नहीं करता, वही सज्जनों में आर्यपुरुष गिना जाता है।
श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।
= मनुष्य वेदादि शाóों के श्रवण से धर्म के मर्म को जानता है, और खोटी बुद्धि को छोड़ देता है, यथार्थज्ञान को प्राप्त कर लेता है और अन्त में मोक्ष को भी पा लेता है।
द्वावम्भसी निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम्।
धन्वन्तरमदातारं दरिद्रं चातपस्विनम्।।
= दो मनुष्यों को गले में बड़ी भारी शिला बांधकर डुबा देना चाहिए। एक तो धनवान होकर भी दान न देनेवाले कंजूस को और दूसरे पुरुषार्थ न करनेवाले दरिद्र को।
नाऽत्यन्तं सरलैर्भाव्यं गत्वा पश्य वनस्थलीम्।
छिद्यन्ते सरलास्तत्र कुब्जास्तिष्ठन्ति पादपाः।।
= मनुष्य को अत्यन्त सीधे और सरल स्वभाव का नहीं बनना चाहिए। वन में जाकर देखो, वहां सीधे वृक्ष काट डाले जाते हैं, और टेढे़-मेढ़े वृक्ष खड़े रहते हैं अर्थात् उन्हें कोई नहीं काटता।
#vakyabhyas
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM
🔰वैशाखपूर्णिमा , बुद्धपूर्णिमा
🗓16th May2022, सोमवासरः
🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.
📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (वैशाखपूर्णिमायाः महत्वः कः,बुद्धस्य जीवनघटनां कथां वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु ⏰
👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳45 निमेषाः
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🔰वैशाखपूर्णिमा , बुद्धपूर्णिमा
🗓16th May2022, सोमवासरः
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📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (वैशाखपूर्णिमायाः महत्वः कः,बुद्धस्य जीवनघटनां कथां वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
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♦️jyotiShaamapi tajjyotistamasaH paramuchyate|
j~naanaM j~neyaM j~naanagamyaM hRRidi sarvasya viShThitam
⚜That, the Light of all lights, is said to be beyond darkness: knowledge, the knowable and the goal of knowledge, seated in the hearts of all.(13.18)
⚜(वह ब्रह्म) ज्योतियों की भी ज्योति और (अज्ञान) अन्धकार से परे कहा जाता है। वह ज्ञान (चैतन्यस्वरूप) ज्ञेय और ज्ञान के द्वारा जानने योग्य (ज्ञानगम्य) है। वह सभी के हृदय में स्थित है।।13.18।।
#geeta
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते।
ज्ञानं ज्ञेयं ज्ञानगम्यं हृदि सर्वस्य विष्ठितम्
।।13.18।।♦️jyotiShaamapi tajjyotistamasaH paramuchyate|
j~naanaM j~neyaM j~naanagamyaM hRRidi sarvasya viShThitam
⚜That, the Light of all lights, is said to be beyond darkness: knowledge, the knowable and the goal of knowledge, seated in the hearts of all.(13.18)
⚜(वह ब्रह्म) ज्योतियों की भी ज्योति और (अज्ञान) अन्धकार से परे कहा जाता है। वह ज्ञान (चैतन्यस्वरूप) ज्ञेय और ज्ञान के द्वारा जानने योग्य (ज्ञानगम्य) है। वह सभी के हृदय में स्थित है।।13.18।।
#geeta
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♦️iti kShetraM tathaa j~naanaM j~neyaM choktaM samaasataH|
madbhakta etadvij~naaya madbhaavaayopapadyate
⚜Thus the field, as well as knowledge and the knowable have been briefly stated. My devotee, knowing this, enters into My Being.(13.19)
⚜इस प्रकार (मेरे द्वारा) क्षेत्र ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेपत कहा गया। इसे तत्त्व से जानकर (विज्ञाय) मेरा भक्त मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।।13.19।।
#geeta
इति क्षेत्रं तथा ज्ञानं ज्ञेयं चोक्तं समासतः।
मद्भक्त एतद्विज्ञाय मद्भावायोपपद्यते
।।13.19।।♦️iti kShetraM tathaa j~naanaM j~neyaM choktaM samaasataH|
madbhakta etadvij~naaya madbhaavaayopapadyate
⚜Thus the field, as well as knowledge and the knowable have been briefly stated. My devotee, knowing this, enters into My Being.(13.19)
⚜इस प्रकार (मेरे द्वारा) क्षेत्र ज्ञान और ज्ञेय को संक्षेपत कहा गया। इसे तत्त्व से जानकर (विज्ञाय) मेरा भक्त मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है।।13.19।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅ 🚩तिथि - पूर्णिमा सुबह 09:43 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक - 16 मई 2022
⛅ दिन - सोमवार
⛅ विक्रम संवत - 2079
⛅ शक संवत - 1944
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - ग्रीष्म
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - विशाखा दोपहर 01:18 तक तत्पश्चात अनुराधा
⛅ योग - वरियान सुबह 06:18 तक तत्पश्चात परिघ
⛅ राहुकाल - सुबह 07:38 से 09:17 तक
⛅ सूर्योदय - 05:58
⛅ सूर्यास्त - 07:14
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:32 से 05:15 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७९
⛅ 🚩तिथि - पूर्णिमा सुबह 09:43 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक - 16 मई 2022
⛅ दिन - सोमवार
⛅ विक्रम संवत - 2079
⛅ शक संवत - 1944
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⛅ ऋतु - ग्रीष्म
⛅ मास - वैशाख
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - विशाखा दोपहर 01:18 तक तत्पश्चात अनुराधा
⛅ योग - वरियान सुबह 06:18 तक तत्पश्चात परिघ
⛅ राहुकाल - सुबह 07:38 से 09:17 तक
⛅ सूर्योदय - 05:58
⛅ सूर्यास्त - 07:14
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:32 से 05:15 तक