संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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- उस वृक्ष के नीचे पहुंचकर आनंद प्रदान करने वालों में श्रेष्ठ श्रीराम ने सायंकाल की‌ संध्योपासना करके लक्ष्मण से इस प्रकार कहा।

उपास्य पश्चिमाम् संध्याम् सह भ्रात्रा यथा विधि । प्रविवेश आश्रम पदम् तम् ऋषिम् च अभ्यवादयत् ‌‌॥ ४-११-६९

- अपने भाई लक्ष्मण के साथ विधिपूर्वक सायंकालीन संध्योपासना करके श्रीराम ने अगस्त्य मुनि के आश्रम में प्रवेश किया।

*अशोक वाटिका में सीता जी के द्वारा संध्योपासना करने के लिए नदी पर आने का श्री हनुमान् द्वारा वर्णन* -

संध्या काल मनाः श्यामा ध्रुवम् एष्यति जानकी । नदीम् च इमाम् शिव जलाम् संध्या अर्थे वर वर्णिनी ॥ ५-१४-४९

- संध्याकाल में मन लगाने वाली सीता संध्या करने के लिए इस नदी पर अवश्य आएगी।

*🌻 संध्या का अर्थ है 🌻* -

'सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या' अर्थात् जिसमें भली-भाँति परमेश्वर का ध्यान करते हैं अथवा जिसमें परमेश्वर का ध्यान किया जाय, वह सन्ध्या कहाती है। - (पञ्चमहायज्ञ विधि)

उद्यन्तमस्तं यन्तमादित्यमभिध्यायन् कुर्वन् ब्राह्मणो विद्वान् सकलं भद्रमश्नुते। - (तैत्तिरीय आ ०२ । प्रपा ०२ । अनु०२)

अर्थ - जब सूर्य के उदय और अस्त का समय आवे, उसमें नित्य प्रकाशस्वरूप आदित्य परमेश्वर की उपासना करता हुआ ब्रह्मोपासक ही मनुष्य सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है। इससे सब मनुष्यों को उचित है कि दो समय में परमेश्वर की नित्य उपासना किया करें।

तस्माद् ब्राह्मणोऽहोरात्रस्य संयोगे सन्ध्यामुपास्ते। स ज्योतिष्या ज्योतिषो दर्शनात् सोऽस्याः काल:, सा सन्ध्या। तत् सन्ध्यायाः सन्ध्यात्वम्॥ (षड्विश ब्रा० प्रपा० ४ । खं० ५)

अर्थ - ब्रह्म का उपासक मनुष्य रात्रि और दिवस के सन्धि समय में नित्य उपासना करे। जो प्रकाश और अप्रकाश का संयोग है, वही संध्या का काल जानना और उस समय में जो सन्ध्योपासन की ध्यान-क्रिया करनी होती है, वह सन्ध्या है। और जो एक ईश्वर को छोड़ के दूसरे की उपासना न करनी तथा सन्ध्योपासन कभी न छोड़ देना, इसी को सन्ध्योपासन कहते हैं ।।

पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् सावित्रीमर्कदर्शनात् । पश्चिमां तु समासीनः सम्यग् ऋक्षविभावनात् ।। - (मनुस्मृति २ । १०१)

अर्थ - दो घड़ी रात्रि से सूर्योदय पर्यन्त प्रातः सन्ध्या और सूर्यास्त से लेकर अच्छे प्रकार तारों के दर्शन पर्यन्त सायंकाल में भलीभांँति स्थित होकर, सविता अर्थात् सब जगत् की उत्पत्ति करने वाले परमेश्वर की उपासना, सावित्री/गायत्र्यादि मन्त्रों का जप करते हुए इनके अर्थ विचारपूर्वक, नित्य करने के लिए बैठे। (पञ्चमहायज्ञ विधि)

इन प्रमाणों से स्पष्ट ही संध्योपासना में नेत्र बंद करके अपने भीतर ईश्वर-ध्यान और गायत्री आदि श्रेष्ठ वेदमंत्रों का जप करते हुए ईश्वर की उपासना करना है। ईश्वर की प्राप्ति भी वहीं हो सकती है, जहां आत्मा और परमात्मा दोनों का निवास हो अर्थात् हमारा अंतःकरण।

*☀️ जय श्रीराम! ☀️*

*🙏॥ओ३म् शम्॥🙏*
त्यक्त्वा सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीं
धर्मिष्ठमार्यवचसा यदगादरण्यम् ।
मायामृगं दयितयेप्सितमन्वधावद्
वन्दामहे पुरुष ते चरणारविन्दम् ॥


पदच्छेद: पदपरिचयशास्त्रं च ।

- त्यक्त्वा - त्यज त्यागे धातो: त्वान्तमव्ययमिदम्।
- सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीम् - ईकारान्तस्त्रीलिङ्गस्य सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मी शब्दस्य द्वितियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- धर्मिष्ठम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य धर्मिष्ठ शब्दस्य प्रथमाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- आर्यवचसा - सकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य आर्यवचस् शब्दस्य तृतियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- यत् - दकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य यद् शब्दस्य प्रथमाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- अगात् - गमलृ गतौ इति धातो: सकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिन: भूतकालस्य लुङ् लकारस्य प्रथमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- अरण्यम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य अरण्य शब्दस्य द्वितियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- मायामृगम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य मायामृगशब्दस्य द्वितियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- दयितया - आकारान्तस्त्रीलिङ्गस्य दयिता शब्दस्य तृतियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- ईप्सितम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य ईप्सित शब्दस्य द्वितियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- अन्वधावत् - अनु उपसर्गपूर्वकस्य धाव् शीघ्रगमने इति धातो: सकर्मकस्य (द्विकर्मकस्य) कर्तरीप्रयोगस्य अनद्यतनभूतकालस्य लङ् लकारस्य प्रथमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- वन्दामहे - वदि अभिवादन स्तुत्यो: इति धातो: सकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य आत्मनेपदिन: वर्तमानकालस्य लट् लकारस्य उत्तमपुरुषस्य बहुवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- पुरुष - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य पुरुष शब्दस्य सम्बोधनाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- ते - त्रिषुलिङ्गेषुसमस्य दकारान्तस्य युष्मद् शब्दस्य षष्ठीविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्।
- चरणारविन्दम् - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य चरणारविन्दशब्दस्य द्वितियाविभक्ते: एकवचनान्तं पदमिदम्। चरणौ अरविन्दं इव चरणारविन्दम् ।

अन्वय:

हे पुरुष यत् धर्मिष्ठं चरणारविन्दं आर्यवचसा सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीं त्यक्त्वा अरण्यं अगात् दयितया ईप्सितं मायामृगं अन्वधावत् तत् ते चरणारविन्दं वयं वन्दामहे।

हिंदी में अर्थ और विवरण:

हे पुरुष - हे पुरुष नाम से प्रसिद्ध श्रीमन्महाविष्णु जी
यत् - जो
धर्मिठम् - सदैव धर्म मार्ग पर स्थिर रहनेवाले
चरणारविन्दम् - कमल जैसे चरण
आर्यवचसा - पिता के बात से
सुदुस्त्यजसुरेप्सितराज्यलक्ष्मीम् - त्याग करने को मुश्किल और देवताओं से इच्छा रखनेवाली राज्य संपत्ति को
त्यक्त्वा - त्याग करके
अरण्यम् - जंगल को
अगात् - गया
दयितया - प्रिय पत्नी देवी सीता से
ईप्सितम् - इच्छा कियेगये
मायामृगम् - माया से भरे हिरण को
अन्वधावत् - पीछा किया
तत् - ऐसे
ते - आपके
चरणारविन्दम् - कमल जैसे चरण को
वयम् - हम
वन्दामहे - प्रणाम करते हैं

विवरण:

मध्वमत के गुरु श्रीमदानन्दतीर्थ ने, जो त्रिलोकों में प्रसिद्ध और 13वीं शती में आचार्य मध्वजी से अलंकृत थे, यह श्लोक रचित किया है। इस श्लोक में भगवान श्रीरामजी के गुणों का वर्णन किया गया है।

श्लोक के अर्थ:

दशरथ महाराज से शासित अयोध्या नगरी इतनी प्रसिद्ध थी कि देवतागण भी उसकी गद्दी पर शासन करने की इच्छा रखते थे। इस महान राज्य की सम्पत्ति को त्याग कर भगवान श्रीरामजी ने अपने पिता द्वारा दिये गये वचन को पूरा किया। वे जंगल में अपनी प्रिय पत्नी भगवती श्री सीतामाता की इच्छा से माया से भरे हिरण का पीछा करने निकले, जबकि उन्हें हिरण की वास्तविकता का पता था। इस प्रकार के भगवान श्रीरामजी के कोमल कमल जैसे चरणों को, हे पुरुष नामक श्रीमन्महाविष्णु जी, हम वंदन करते हैं।

Meaning:

We pay homage to the lotus feet of Lord Shreeram, who:

- Abandoned the kingdom of Ayodhya, a land coveted even by the gods, to live in the forest, solely on the oath of his father, Dasharatha.
- Pursued the golden deer only to fulfill the heartfelt request of his beloved wife, Goddess Seeta.

ॐ नमो भगवते हयवक्त्राय

©Sanjeev GN #Subhashitam
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। चतुर्दशः सर्गः ।।

🍃 ततस्ते न्यायतः कृत्वा प्रविभागं द्विजात्तमा:।
नुम्रीतमनसः सर्वे प्रत्यूचुर्मुदिता भृशम्॥५०॥

⚜️ भावार्थ - उन्होंने न्यायानुसार हिस्सा कर सब को वह धन वांट दिया। वे अपना अपना हिस्सा बाट कर और प्रसन्न हो बोले, हम बहुत प्रसन्न है ॥४०॥

🍃 ततः प्रसर्पकेभ्यस्तु हिरण्यं सुसमाहितः।
जाम्बूनदं कोटिशतं ब्राह्मणेभ्यो ददौ तदा॥५१॥

⚜️ भावार्थ - फिर महाराज ने उन लोगों को जो यज्ञ देखने आये थे मोहर बाटी और जाम्बूनद के सोने की कई करोड़ मेाहरें अन्य बाह्मरणों को दी ॥५१॥

#Ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०३ , देवता - अग्नि आदि।

🍃 अभि त्वा देव सवितरीशानं वार्याणाम्, सदावन्भागमीमहे.. (३)

⚜️ भावार्थ - हे सदा रक्षा करने वाले सूर्य देव! तुम उत्तम धन के स्वामी हो, इसलिए मैं तुमसे उपभोग करने योग्य धन मांगता हूँ। (३)

#Rgveda
संस्कृतपठनेन बुद्धि: वर्धते इति मतिमुन्नीय गवेषका:॥ संस्कृतेन सर्वदा व्यवहर्तुं प्रयतत - जगद्गुरु भारतीतीर्थस्वामिनः

Wednesday, April 21, 2021

 भारते प्रतिदिनकोविड्रोगिणः त्रिलक्षसमीपं प्राप्तम्। 

नवदिल्ली> भारते कोविड्रोगिणां प्रतिदिनसंख्या भीतिदा संवर्धते। गतदिने २,९५,०४१ जनाः कोविड्बाधिताः अभवन्। अनेन आहत्य १,५६,१६,१३० जनाः कोविड्बाधिताः इति सर्वकारगणनातः स्पष्टीक्रियते। 

     ह्यः एव २०२३ जनाः कोविड्बाधया मृत्युपुरिं प्राप्ताः। आहत्य १,८२,५५३ जनाः अनेन रोगेण कालवशं गताः। इदानीं २१,५७,८३८ रोगिणः परिचर्यायां वर्तन्ते। ह्यः १,६७,४५७ जनाः रोगमुक्ताः जाताः। १३ कोट्यधिकाः वाक्सिनीकृताः इति सर्वकारप्रस्तावे सूच्यते।

 वाक्सिनस्य निर्माण संस्थाभ्यां ४५०० कोटि रूप्यकाणां साहाय्यं निश्चितम्। 

  नवदिल्ली> राष्ट्रस्य वाक्सिन् निर्माण संस्थाभ्यां ४५०० कोटि रूप्यकाणां धनसाहाय्यं प्रदातुं केन्द्रसर्वकारेण निश्चितम्। सेरं इन्स्टिट्यूट् भारतबयोटक् इत्याख्ये संस्थे च  औषधनिर्माणं कुर्वत:। पूर्वधनराशिरूपेण सेरं इन्स्टिट्यूट् संस्थायै ३००० कोटि रूप्यकाणि लप्स्यन्ते भारतबयोटक् संस्थायै  १५६७ कोटि रूप्यकाणि च लप्स्यन्ते। आहत्य  ४५०० कोटि रूप्यकाणां साहाय्यः भविष्यति। मेय् मासस्य प्रथम दिनाङ्कतः अष्टादश वयस्कादारभ्य सर्वेभ्यः नागरिकेभ्यः वाक्सिनौषधं दास्यते इति ख्यापनानन्तरम् आसीत् धनसाहाय्यम्  अधिकृत्य विज्ञापनम्।
🌻 सभी सदस्यों को संस्कृत संवादः के 200 सदस्य पूरे होने पर अनेकों शुभकामनाएं। आशा करते हैं हमारी एकता और दृढ़ और विस्तृत हो🌼

🐚Congratulations everyone for achievement of 200 members in संस्कृत संवादः । May Our unity be more firm and extensive.🦚
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - दशमी रात्रि 11:35 तक तत्पश्चात एकादशी

दिनांक - 22 अप्रैल 2021
दिन - गुरुवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - चैत्र
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - अश्लेशा सुबह तक 08:15 तत्पश्चात मघा
योग - गण्ड शाम 05:02 तक तत्पश्चात वृद्धि
राहुकाल - दोपहर 02:13 से शाम 03:49 तक
सूर्योदय - 06:15
सूर्यास्त - 18:59
दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
व्रत पर्व विवरण - धर्मराज दशम
https://youtu.be/o71EhrFF464
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes sanskrit news.
writereaddata_Bulletins_Text_NSD_2021_Apr_NSD_Sanskrit_Sanskrit.pdf
69.5 KB
संस्कृत bulletin २२.०४
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चाणक्य नीति ⚔️
✒️द्वादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१६


धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता मित्रेअ्वञ्चकता गुरौ विनयता चित्तेअ्पि गम्भीरता।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता रुपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्ति भो राघव।।१६।।

♦️भावार्थ --धर्म में तत्परता, मुख में माधुर्य(मिठे वचन), दान देने में अत्यंत उत्साह होना, मित्र के साथ निष्कपटता एवं निश्छलता, गुरु के प्रति नम्रता, अन्तःकरन में गम्भीरता, आचरण गुण-ग्राहकता, शास्त्रों में विशेष ज्ञान का होना, रूप में सौन्दर्य और परमात्मा में भक्ति का होना ये बातें श्रेष्ठ और सज्जन व्यक्तियों में ही दिखाई देती हैं।।

#Chanakya
सदा रहस्यस्तुत हृत्तमिस्र-
प्रदीप पापात्मभिरप्रधृष्य ।
हयास्य विश्वाश्रय भक्तवश्य
तवाङ्घ्रिदास्यं मम सर्वदा स्यात् ॥


विवरण:

श्री लातव्य नामक ऋजु देवता, जो 15वीं सदी के अंत में श्रीवापदिराजतीर्थ के नाम से माध्वधर्म के यति बने, के द्वारा रचित "सरसभारतीविलास" नामक ग्रंथ के पहले उल्लास का यह ग्यारहवां श्लोक है।

जैसा कि पहले ही बताया गया है, यतिवर्य श्री हयवदन जी के परम भक्त हैं और उनकी भक्ति प्राप्ति, भक्तों की उन्नति, और अन्य ग्रंथों के गर्व का खंडन करने के लिए इस ग्रंथ में विशेष और अद्वितीय पदों का प्रयोग किया गया है। इस ग्रंथ में उपयोग किए गए शब्द प्रायः अन्य प्राचीन या नवीन ग्रंथों में नहीं मिलते, यही इसकी विशेषता है।

इस श्लोक में यतिवर्य ने कहा है कि श्री हयवदन जी ब्रह्मांड के रहस्यमयी वेदों से स्तुत हैं, अर्थात् वेदों में इनकी महिमा का गुणगान मिलता है। ये भक्तों के हृदय के अज्ञान के अंधकार को नष्ट करने वाले दीपक के समान हैं। पापियों से असहनीय हैं, अर्थात् इनकी शक्ति पापियों को सहन नहीं होती। वे समस्त ब्रह्मांडों के एकमात्र आश्रय हैं। फिर भी, वे अपने भक्तों के वश में रहते हैं। यतिवर्य इसीलिए कहते हैं कि कृपालु श्री हयवदन देवता के कमल जैसे चरणों की सेवा में मैं सदा बना रहूं।

इस श्लोक में प्रत्येक पाद में 11 मात्राएँ या अक्षर हैं, और यहाँ "उपजाति" नामक छंद का प्रयोग हुआ है। यह श्लोक इस ग्रंथ के पहले उल्लास का ग्यारहवां श्लोक है। यतिवर्य ने इस श्लोक में 11 अक्षर या मात्राओं के साथ रचकर सहृदय लोगों को एक अद्वितीय आनंद प्रदान किया है।

Meaning:

O Lord Hayagriva, with a face like that of a horse, revered in the ancient and sacred Vedas, the embodiment of knowledge that dispels the darkness of ignorance, the relentless deity against sinful beings, the sole refuge of the entire universe, yet remarkably gracious and easily accessible to your devotees—may I remain forever in the service of your divine lotus feet.

Explanation:

This verse is from the esteemed work of HH Shri Vadirajateerthaswamin, revered as the future Brahma and an incarnation of the third Riju God, Shri Latavya, who graced the earth with his divine presence in 1480 AD. The book, titled "SarasabhAratIvilAsa," features verses with unparalleled poetic elegance, crafted by the saint, which have not been used before and are unlikely to be used by future poets. The verse describing Lord Hayagriva is the 11th in the first canto of the book, and it follows the "UpajAti" meter in Sanskrit grammar, with each quarter consisting of 11 syllables. This unique meter and the profound description of Lord Hayagriva in this verse are believed to bring lasting and invaluable benefits to its readers and scholars.

ॐ नमो भगवते हयास्याय

©Sanjeev GN #Subhashitam
A Primary Course on Sanskrit
- Online -
(**for Beginners**)
----

Structure: 6 units (each of 4 months)

1st level :

1st unit: Basic language structure/Formation of simple sentences
2nd unit: Introduction to grammar, Understanding proses, verses
3rd unit: Study of Shlokas/subhashitas/Stotras
---
2nd level

4th unit: Lessons on grammar, Brief Introduction to Sanskrit texts
5th unit: Sankshepa Ramayanam - I
6th unit: Sankshepa Ramayanam – II

Eligibility: No prior knowledge of Sanskrit is required.

Age: 12 yrs. & above

Online Medium - Free Conference Call

Learners can chose one of the following modules.

I module : Week-day sessions
Starting Date: 10th May onwards
Days: Weekly 3 days (Mon, Wed, Fri)
Time : 3pm – 5pm IST
----
II module : only Weekend sessions
Starting Date: *15th May 2021* onwards
Days: Weekly 2 days (Sat and Sun)
Time : 11am – 1pm IST
----
III module :
A different module can be customised and worked out, if a group of people are interested then, as per their convenience and teachers’ availability.
Eg : Weekly once or late evening (daily one hour) either way depending on mutually agreeable duration /frequency /timings

For students abroad different timings can be offered:
10pm–11:30 pm (IST).

Note:
1. Initially, introductory/preliminary sessions will be held for 5 days (free) .
Date: 03 May 2021 – 07 May 2021.
Thereafter, actual course (with monthly fee) begins.

2. We are starting actual course right from the basics - Devanagari script/alphabets. So need not worry if you don’t know Sanskrit script/alphabet.

Benefits:
● Improving pronunciation
● Conversational skills
● Understanding simple shlokas/prayers
● Basic level grammar
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If interested, please contact:
Ramakrishna Bhat

**Whatsapp No: 93810 44256**
दन्तवैद्यः — किमभवत्? कथं दन्ताः नष्टाः?🦷

रोगी —  ह्यः पत्न्या दत्तरोटिकाः अतिदृढाः आसन् भोक्तुमेव न योग्याः।।🫓

दन्तवैद्यः — तर्हि ” खादितुं न शक्नोमि ” इत्येव वक्तव्यम् असीत् खलु!🤨

रोगी — तावदेव प्रोक्तवान् भो
😂🤣

#hasya
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

अप्रियस्यापि पथ्यस्य
परिणामः सुखावहः।
वक्ता श्रोता च यत्रास्ति
रमन्ते तत्र सम्पदः।। 371/124।।

अर्थः:

आहार खाने लायक भी न हो तो भी वह खानेवाले को सुख प्रदान करने का परिणाम रखता है। प्रवचन करनेवाला तथा प्रवचन सुननेवाला जहाँ पर साथ हों, वहां संपत्ति रमण करती है।

MEANING:

Even if the food is not pleasant, it results in blissful comfort for the eater. Where the speaker and the listener are present together, wealth flourishes in that place.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam