"हनुमते सूर्यः एव रोचते"।
अस्मिन् वाक्ये कर्ता कः अस्ति।
अस्मिन् वाक्ये कर्ता कः अस्ति।
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49%
हनुमते
10%
कर्ता नास्ति
1%
एव
40%
सूर्यः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अनग्निरनिकेतः स्याद् ग्राममन्नार्थमाश्रयेत्। उपेक्षकोऽसंकुसुको मुनिर्भाव समाहितः।। = (संन्यासी) स्वभोजनादि हेतु अग्नि अर्थात् चूल्हे आदि का बखेडा न करे। स्वयं हेतु कोई भवन नहीं बनावे, भोजन हेतु ही ग्रामादि का आश्रय लेवे, सामान्य सांसारिक व्यवहारों को उपेक्षा…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ: (37) कृदन्त (4) निष्ठा प्रत्यय
(क्त प्रत्यय भाव में। अकर्मक धातुओं से क्त प्रत्यय भाव में होता है। सकर्मक धातुओं में भी जब कर्म की अविवक्षा होती है, तब सकर्मक धातुओं से भी क्त प्रत्यय भाव में हो सकता है। भाव में क्त प्रत्ययान्त क्रिया नित्य ही नपुंसकलिंग एकवचन में होती है, तथा कर्त्ता में तृतीया विभक्ति होती है।)
बुभुक्षया बालेन रुदितम्
= भूख के कारण बच्चे के द्वारा रोया गया।
अध्यापकस्याऽनुपस्थितौ बालैः जल्पितम्
= अध्यापक के अनुपस्थित होने से बच्चों के द्वारा गपशप की गई।
आतंकवादिनो मुक्तिं श्रुत्वा जनैर्भृशमाक्रुष्टम्
= आतंकवादी की रिहाई सुनकर लोगों के द्वारा खूब आक्रोश किया गया।
वने सिंहं दृष्ट्वा भीतेन भृशं धावितम् = वन में शेर को देखकर डरे हुए व्यक्ति के द्वारा खूब दौड़ा गया।
पदं मिथ्याकरणात् शिक्षकेण क्रुद्धम्
= शब्द का गलत उच्चारण करने से शिक्षक ने गुस्सा किया।
गुरुकुले यत् भुक्तं पीतं तप्तं जल्पितमटितं तन्न प्रस्मर्यते
= गुरुकुल में जो खाया-पीया, तप किया, बातें की, घूमे वह भूला नहीं जा रहा है।
स्थालीपक्वमेव पितामहो भुङ्क्ते
= दादाजी बटलोई का पका ही खाते हैं।
चुल्लीपक्वं सुपाच्यं मधुरञ्च भवति
= चूल्हे में पकाया हुआ सुपाच्य और मधुर होता है।
उपकृतं दत्तञ्चैव परलोकं सह गच्छति
= उपकार किया हुआ और दान किया हुआ ही परलोक को जाता है।
अभुक्तमदत्तं नित्यं हि क्षीयते
= न स्वयं भोगा हुआ, न किसी को दिया हुआ, वह नष्ट ही होता है।
मुहूर्तं ज्वलितं श्रेयो न च धूमायितं चिरम्
= एक मुहूर्तभर भी प्रज्वलित रहना अच्छा है, परन्तु दीर्घकाल तक धुंआ छोड़ते हुए सुलगना अच्छा नहीं है।
गतं न शुच्यतामनागतं न चिन्त्यताम्, वर्त्तमानं दृश्यताम्
= बीते हुए का शोक न करें, जो अभी आया नहीं उसकी व्यर्थ चिन्ता न करें, वर्तमान को अच्छी तरह सोच-समझकर जीएं।
शोको नाशयते धैर्यं शोको नाशयते श्रुतम्।
शोको नाशयते सर्वं नास्ति शोकसमो रिपुः।।
= शोक धैर्य को नष्ट कर देता है, शोक शास्त्रज्ञान को भी लुप्त कर देता है, शोक सबकुछ नष्ट कर देता है, अतः शोक के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं।
गते शोको न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।
= बीती हुई बात का शोक नहीं करना चाहिए, और भविष्य में क्या होगा इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, बुद्धिमान लोग वर्तमान काल के अनुसार कार्य में जुट जाते हैं।
यज्जीव्यते क्षणमपि प्रथितं मनुष्यैर्विज्ञानशौर्यविभवार्यगुणैः समेतम्।
तन्नाम जीवितमिह प्रवदन्ति तज्ज्ञाः काकोऽपि जीवति चिराय बलिं च भुङ्क्ते।।
= मनुष्यों से जिस जीवन में विज्ञान शूरता तथा ऐश्वर्य आदि सद्गुणों से युक्त होकर क्षणभर भी प्रतिष्ठा के साथ जीया जाता है उसे ही विद्वान लोग वास्तविक जीवन कहते हैं। यूं तो कौआ भी बहुत दिनों तक जीता है और बलि खाकर अपना पेट भरता है।
वाच्यं श्रद्धा समेतस्य पृच्छतेश्च विशेषतः।
प्रोक्तं श्रद्धा विहीनस्य अरण्यरुदितोपमम्।।
= विशेष श्रद्धा से युक्त होकर यदि कोई जानने की इच्छा से पूछे तो उससे बात करनी चाहिए। श्रद्धारहित मनुष्यों से कुछ भी कहना निर्जन वन में रोने के समान निरर्थक है।
यस्य न ज्ञायते वीर्यं न कुलं न विचेष्टितम्।
न तेन सङ्गतिं कुर्यादित्युवाच बृहस्पतिः।।
= जिसके सामर्थ्य वंश और कार्य का पता न हो, उसके साथ मेल-संगति नहीं करनी चाहिए, ऐसा बृहस्पति ने कहा है।
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।
= अश्रद्धा से जो यज्ञ किया जाता है, जो दान दिया जाता है, जो तप किया जाता है हे पार्थ ! वह असत् अर्थात् न किया हुआ माना जाता है। वह न मरने पर कोई लाभ देता है और न यहां जीते जी कोई लाभ देता है।
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।
= जब तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को पार कर जाएगी, तब तू उस सबके प्रति उदासीन हो जाएगा, जो कुछ तूने सुनना है या सुना है।
एको हि दोषो गुणसन्निपाते निमज्जतीन्दोरिति यो बभाषे।
नूनं न दृष्टं कविनापि तेन दारिद्र्यदोषो गुणकोटिनाशी।।
= जिस कवि ने यह कहा है कि जहां बहुत सारे गुण हों वहां एक दोष ऐसे छिप जाता है, जैसे चन्द्रमा की किरणों में उसका कलंक। उस कवि ने निश्चय से यह नहीं सोचा कि एक दरिद्रतारूपी दोष सारे गुणों को मिट्टी में मिला देता है।
सर्वे क्षयान्ता निचयः पतनान्ताः समुच्छ्रयाः।
संयोगा विप्रयोगान्ता मरणान्तं च जीवितम्।।
= समस्त संग्रहों का अन्त विनाश है, लौकिक उन्नतियों का अन्त पतन है, संयोग का अन्त वियोग है और जीवन का अन्त मरण है।
#vakyabhyas
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ: (37) कृदन्त (4) निष्ठा प्रत्यय
(क्त प्रत्यय भाव में। अकर्मक धातुओं से क्त प्रत्यय भाव में होता है। सकर्मक धातुओं में भी जब कर्म की अविवक्षा होती है, तब सकर्मक धातुओं से भी क्त प्रत्यय भाव में हो सकता है। भाव में क्त प्रत्ययान्त क्रिया नित्य ही नपुंसकलिंग एकवचन में होती है, तथा कर्त्ता में तृतीया विभक्ति होती है।)
बुभुक्षया बालेन रुदितम्
= भूख के कारण बच्चे के द्वारा रोया गया।
अध्यापकस्याऽनुपस्थितौ बालैः जल्पितम्
= अध्यापक के अनुपस्थित होने से बच्चों के द्वारा गपशप की गई।
आतंकवादिनो मुक्तिं श्रुत्वा जनैर्भृशमाक्रुष्टम्
= आतंकवादी की रिहाई सुनकर लोगों के द्वारा खूब आक्रोश किया गया।
वने सिंहं दृष्ट्वा भीतेन भृशं धावितम् = वन में शेर को देखकर डरे हुए व्यक्ति के द्वारा खूब दौड़ा गया।
पदं मिथ्याकरणात् शिक्षकेण क्रुद्धम्
= शब्द का गलत उच्चारण करने से शिक्षक ने गुस्सा किया।
गुरुकुले यत् भुक्तं पीतं तप्तं जल्पितमटितं तन्न प्रस्मर्यते
= गुरुकुल में जो खाया-पीया, तप किया, बातें की, घूमे वह भूला नहीं जा रहा है।
स्थालीपक्वमेव पितामहो भुङ्क्ते
= दादाजी बटलोई का पका ही खाते हैं।
चुल्लीपक्वं सुपाच्यं मधुरञ्च भवति
= चूल्हे में पकाया हुआ सुपाच्य और मधुर होता है।
उपकृतं दत्तञ्चैव परलोकं सह गच्छति
= उपकार किया हुआ और दान किया हुआ ही परलोक को जाता है।
अभुक्तमदत्तं नित्यं हि क्षीयते
= न स्वयं भोगा हुआ, न किसी को दिया हुआ, वह नष्ट ही होता है।
मुहूर्तं ज्वलितं श्रेयो न च धूमायितं चिरम्
= एक मुहूर्तभर भी प्रज्वलित रहना अच्छा है, परन्तु दीर्घकाल तक धुंआ छोड़ते हुए सुलगना अच्छा नहीं है।
गतं न शुच्यतामनागतं न चिन्त्यताम्, वर्त्तमानं दृश्यताम्
= बीते हुए का शोक न करें, जो अभी आया नहीं उसकी व्यर्थ चिन्ता न करें, वर्तमान को अच्छी तरह सोच-समझकर जीएं।
शोको नाशयते धैर्यं शोको नाशयते श्रुतम्।
शोको नाशयते सर्वं नास्ति शोकसमो रिपुः।।
= शोक धैर्य को नष्ट कर देता है, शोक शास्त्रज्ञान को भी लुप्त कर देता है, शोक सबकुछ नष्ट कर देता है, अतः शोक के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं।
गते शोको न कर्त्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्तन्ते विचक्षणाः।।
= बीती हुई बात का शोक नहीं करना चाहिए, और भविष्य में क्या होगा इसकी चिन्ता नहीं करनी चाहिए, बुद्धिमान लोग वर्तमान काल के अनुसार कार्य में जुट जाते हैं।
यज्जीव्यते क्षणमपि प्रथितं मनुष्यैर्विज्ञानशौर्यविभवार्यगुणैः समेतम्।
तन्नाम जीवितमिह प्रवदन्ति तज्ज्ञाः काकोऽपि जीवति चिराय बलिं च भुङ्क्ते।।
= मनुष्यों से जिस जीवन में विज्ञान शूरता तथा ऐश्वर्य आदि सद्गुणों से युक्त होकर क्षणभर भी प्रतिष्ठा के साथ जीया जाता है उसे ही विद्वान लोग वास्तविक जीवन कहते हैं। यूं तो कौआ भी बहुत दिनों तक जीता है और बलि खाकर अपना पेट भरता है।
वाच्यं श्रद्धा समेतस्य पृच्छतेश्च विशेषतः।
प्रोक्तं श्रद्धा विहीनस्य अरण्यरुदितोपमम्।।
= विशेष श्रद्धा से युक्त होकर यदि कोई जानने की इच्छा से पूछे तो उससे बात करनी चाहिए। श्रद्धारहित मनुष्यों से कुछ भी कहना निर्जन वन में रोने के समान निरर्थक है।
यस्य न ज्ञायते वीर्यं न कुलं न विचेष्टितम्।
न तेन सङ्गतिं कुर्यादित्युवाच बृहस्पतिः।।
= जिसके सामर्थ्य वंश और कार्य का पता न हो, उसके साथ मेल-संगति नहीं करनी चाहिए, ऐसा बृहस्पति ने कहा है।
अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।
= अश्रद्धा से जो यज्ञ किया जाता है, जो दान दिया जाता है, जो तप किया जाता है हे पार्थ ! वह असत् अर्थात् न किया हुआ माना जाता है। वह न मरने पर कोई लाभ देता है और न यहां जीते जी कोई लाभ देता है।
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
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= जब तेरी बुद्धि मोहरूपी दलदल को पार कर जाएगी, तब तू उस सबके प्रति उदासीन हो जाएगा, जो कुछ तूने सुनना है या सुना है।
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टेलीग्राम पर ही प्रतिदिन मात्र २० मिनट देकर संस्कृत सीखिए ।
t.me/samskrt_samvadah पर सोमवार से शनिवार प्रतिदिन रात 9 बजे संस्कृत की कक्षा होती है। इन कक्षाओं को संस्कृताश्रम नाम दिया गया है। जिसमें प्रतिदिन भिन्न-भिन्न पाठ पढाए जातें हैं, जिसकी पूर्व सूचना भी हमारे चैनल पर आ जाती है। कक्षा पूर्णतः निश्शुल्क है और सभी के लिए खुली हैं।
बस नीचे दिये गये लिंक से कक्षा से जुड़े। ध्यान रहे लिंक बस कक्षा के समय यानि रात 9 बजे ही कार्य करती है।
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
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@samskrt_samvadah प्रारंभ करता है, संस्कृताश्रमः - संस्कृतशिक्षण की लघु कक्षाऐं
⏳20 मिनट
🕚 09:00 PM 🇮🇳
🔰लोट्लकारः
🗓10th मई 2022, मङ्गलवासरः
🔴 कक्षाओं की प्रति हमारे युट्युब चैनल पर डाली जायेगी
कृपया अलार्म लगा लें और विलंब से न आयें।
👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
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♦️amaanitvamadambhitvamahiMsaa kShaantiraarjavam|
aachaaryopaasanaM shauchaM sthairyamaatmavinigrahaH
⚜Humility, unpretentiousness, non-injury, forgiveness, uprightness, service of the teacher, purity, steadfastness, self-control. (13.8)
⚜अमानित्व अदम्भित्व अहिंसा क्षमा आर्जव आचार्य की सेवा शुद्धि स्थिरता और आत्मसंयम।।13.8।।
#geeta
अमानित्वमदम्भित्वमहिंसा क्षान्तिरार्जवम्।
आचार्योपासनं शौचं स्थैर्यमात्मविनिग्रहः
।।13.8।।♦️amaanitvamadambhitvamahiMsaa kShaantiraarjavam|
aachaaryopaasanaM shauchaM sthairyamaatmavinigrahaH
⚜Humility, unpretentiousness, non-injury, forgiveness, uprightness, service of the teacher, purity, steadfastness, self-control. (13.8)
⚜अमानित्व अदम्भित्व अहिंसा क्षमा आर्जव आचार्य की सेवा शुद्धि स्थिरता और आत्मसंयम।।13.8।।
#geeta
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♦️indriyaartheShu vairaagyamanaha~Nkaara eva cha|
janmamRRityujaraavyaadhiduHkhadoShaanudarshanam
⚜13.9 Indifference to the objects of the senses and also absence of egoism; perception of (or reflection on) the evil in birth, death, old age, sickness and pain.
⚜।।13.9।। इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य अहंकार का अभाव जन्म मृत्यु वृद्धवस्था व्याधि और दुख में दोष दर्शन৷৷.।।
#geeta
इन्द्रियार्थेषु वैराग्यमनहङ्कार एव च।
जन्ममृत्युजराव्याधिदुःखदोषानुदर्शनम्
।।13.9।।♦️indriyaartheShu vairaagyamanaha~Nkaara eva cha|
janmamRRityujaraavyaadhiduHkhadoShaanudarshanam
⚜13.9 Indifference to the objects of the senses and also absence of egoism; perception of (or reflection on) the evil in birth, death, old age, sickness and pain.
⚜।।13.9।। इन्द्रियों के विषय के प्रति वैराग्य अहंकार का अभाव जन्म मृत्यु वृद्धवस्था व्याधि और दुख में दोष दर्शन৷৷.।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - दशमी शाम 07:31 तक तत्पश्चात एकादशी
⛅️दिनांक 11 मई 2022
⛅️दिन - बुधवार
⛅️विक्रम संवत - 2079
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - ग्रीष्म
⛅️मास - वैशाख
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र -पूर्वाफाल्गुनी शाम 07:28 तक तत्पश्चात उत्तराफाल्गुनी
⛅️योग - व्याघात रात्रि 07:25 तक तत्पश्चात हर्षण
⛅️राहुकाल - दोपहर 12:36 से 02:15 तक
⛅️सर्योदय - 06:01
⛅️सर्यास्त - 07:12
⛅️दिशाशूल - उत्तर दिशा में
⛅️बरह्म मुहूर्त- प्रातः 04:34 से 05:17 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
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⛅️सर्यास्त - 07:12
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Forwarded from ॐ पीयूषः
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Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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वार्ताः | Vaarta | Sanskrit News Bulletin | 11.05.2022