संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
4.6K subscribers
3.07K photos
285 videos
307 files
5.82K links
Daily dose of Sanskrit.

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Download Telegram
🍃यथा धेनुसहस्रेषु, वत्सो विन्दति मातरम्।
तथा पूर्वकृतं कर्म, कर्तारमनुगच्छति

- चाणक्यनीतिः 13.15

Just as in a herd of thousands of cows, a calf recognizes its mother easily, similarly, all past actions (of past human lives) always follow the doer.

जैसे एक बछड़ा हज़ारो गायों के झुंड मे अपनी माँ के पीछे चलता है। उसी प्रकार आदमी के अच्छे और बुरे कर्म उसके पीछे चलते हैं।

🔅यथा बहुधेनुषु वत्सः स्वमातरं सरलेन प्राप्नोति , तथैव पूर्वकृतानि कर्माणि तेषां यः कर्ता भवति तस्य पृष्ठतः अग्रिमजन्मनि अपि गच्छन्ति, तस्मात् सर्वदा उत्तमानि कर्तव्यानि एव करणीयानि।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अप्रियवचनदरिद्रैः प्रवचनाढ्यैः स्वदारपरितुष्टैः। परपरिवादनिवृत्तैः क्वचित्क्वचिन्मण्डिता वसुधा।। = अप्रिय और कठोर वचन बोलने में दरिद्र, प्रिय और मधुर वचनों के धनी, अपनी पत्नी से ही सदा सन्तुष्ट रहनेवाले और दूसरों की निन्दा से विमुख सज्जनों द्वारा ये धरती…
अनग्निरनिकेतः स्याद् ग्राममन्नार्थमाश्रयेत्।
उपेक्षकोऽसंकुसुको मुनिर्भाव समाहितः।।
= (संन्यासी) स्वभोजनादि हेतु अग्नि अर्थात् चूल्हे आदि का बखेडा न करे। स्वयं हेतु कोई भवन नहीं बनावे, भोजन हेतु ही ग्रामादि का आश्रय लेवे, सामान्य सांसारिक व्यवहारों को उपेक्षा की दृष्टि से देखे, चंचलमति न बने, मननशील बने और ब्रह्मभाव में लीन रहे।

दूषितोऽपि चरेद् धर्मं यत्र तत्राऽऽश्रमे रतः।
समः सर्वेषु भूतेषु न लिङ्गं धर्मकारणम्।।
= लोगों द्वारा दोषारोपण किए जाने पर भी सब आश्रमों में धर्मोपदेश करता हुआ अपने संन्यासधर्म का पालन करता रहे और सब प्राणियों पर समभाव रखे। इस प्रकार अपने आश्रम के नियम का पालन करते हुए यह ध्यान रखे कि दण्ड कमण्डलु गेरुए वस्त्र आदि चिह्न ही संन्यास धर्म का आधार नहीं हैं।

उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।
= सब काम पुरुषार्थ से ही सिद्ध होते हैं, केवल मनोरथ से नहीं। जैसे सोए हुए सिंह के मुख में हिरण अपने आप प्रविष्ट नहीं हो जाता।

दक्षः श्रियमधिगच्छति पथ्याशीः कल्यतां सुखमरोगी।
उद्युक्तो विद्यान्तं धर्मार्थयशांसि च विनीतः।।
= निपुण व्यक्ति सम्पत्ति को प्राप्त कर लेता है, पथ्य (हितकारक तथा मात्रा में) भोजन करनेवाला स्वास्थ्य को, निरोग सुख को, तत्पर पूर्ण विद्या को और विनम्र मनुष्य धर्म अर्थ तथा कीर्ति को प्राप्त कर लेता है।

द्रष्ट्राविरहितः सर्पो मदहीनो यथा गजः।
सर्वेषां जायते वश्यो दुर्गहीनस्तथा नृपः।।
= जिस प्रकार दांत रहित सांप और मद रहित हाथी सबके वश में हो जाते हैं वैसे ही दुर्ग रहित राजा सबके वश में हो जाता है।

अर्धार्धाद् योजनशतादामिषं वीक्षते खगः।
सोऽपि पार्श्वस्थितं दैवाद् बन्धनं न च पश्यति।।
= जो पक्षी पचास-पचास योजन दूर से भी अपनी भोग्य वस्तु को देख लेता है, वही पक्षी दुर्भाग्यवशात् पास में स्थित बन्धन को नहीं देख पाता।

न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्तेऽपि न विश्वसेद्।
विश्वासाद् भयमुत्पन्नं मूलान्यपि निकृन्तति।।
= विश्वास के अयोग्य पुरुष का कभी विश्वास न करे तथाविश्वस्त आदमी का भी अधिक विश्वास न करे, क्योंकि विश्वास के द्वारा उत्पन्न भय जड़ों को भी काट देता है, अर्थात् सर्वथा नष्ट कर देता है।

किं तेन जातु जातेन मातुर्यौवनहारिणा।
आरोहति न यः स्वस्य वंशस्याग्रे ध्वजो यथा।।
= माता की युवावस्था हरण करनेवाले उस पुत्र के जन्म से क्या लाभ ?जो अपने वंश (कुल) में वंश (बांस) के अग्रिम भाग में स्थित पताका के समान नहीं फहरता।

अश्वः शस्त्रं शास्त्रं वीणा वाणी नरश्च नारी च।
पुरुषविशेषं प्राप्ता भवन्त्ययोग्याश्च योग्याश्च।।
= घोड़ा, शस्त्र, शास्त्र, वीणा, वाणी, नर और नारी ये पुरुष विशेष को प्राप्त होकर योग्य अथवा अयोग्य हो जाया करते हैं।

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
= जो जन्मा है उसकी मत्यु निश्चित है और जो मर चुका है उसका जन्म निश्चित है। इस लिए इस अपरिहार्य न टाले जाने योग्य बात के लिए तुझे शोक करना उचित नहीं है।

भोगैश्वर्यप्रसक्तानां तयाऽपहृतचेतसाम्।
व्यवसायात्मिका बुद्धिःसमाधौ न विधीयते।।
= भोग और ऐश्वर्यों में डूबे हुए तथा भोग और ऐश्वर्यों की बातों में ही जिसका चित्त खोया हुआ है, ऐसे लोगों की बुद्धि समाधि में स्थिर नहीं होती।

कर्मजं बुद्धियुक्ता हि फलं त्यक्त्वा मनीषिणः।
जन्मबन्धविनिर्मुक्ताः पदं गच्छन्त्यनामयम्।।
= मनीषी ज्ञानयोग (समाधि-ज्ञान से युक्त होकर) कर्म से प्राप्त होनेवाले फलों को त्यागकर, जन्म के बन्धन से मुक्त होकर दुःख से रहित स्थिति को प्राप्त कर लेते हैं।

हतो वा प्राप्स्यसि स्वर्गं जित्वा वा भोक्ष्यसे महीम्।
तस्मादुतिष्ठ कौन्तेय युद्धाय कृतनिश्चयः।।
= अगर तू युद्ध में मारा गया तो स्वर्ग को प्राप्त करेगा और जीत गया तो पृथ्वी का राज्य भोगेगा। इसलिए हे कुन्तिपुत्र तू युद्ध के लिए निश्चय करके उठ खड़ा हो !

#vakyabhyas
@samskrt_samvadah प्रारंभ करता है, संस्कृताश्रमः - संस्कृतशिक्षण की लघु कक्षाऐं

20 मिनट
🕚 09:00 PM 🇮🇳
🔰भूतकालः
🗓09th मई 2022, सोमवासरः

🔴 कक्षाओं की प्रति हमारे युट्युब चैनल पर डाली जायेगी
कृपया अलार्म लगा लें और विलंब से न आयें।

👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
Different states of Face Masks after the re opening of the schools.

#hasya
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।

45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM
🔰भारते संस्कृतस्य विरोधः
🗓10th May2022,मङ्गलवासरः

🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.

📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (भारते किमर्थं संस्कृतस्य विरोधः क्रियते तथा वयं किं कर्तुं शक्नुमः तस्य निराकरणाय) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
Live stream scheduled for
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.06]
🍃महाभूतान्यहङ्कारो बुद्धिरव्यक्तमेव च।
इन्द्रियाणि दशैकं च पञ्च चेन्द्रियगोचराः
।।13.6।।

♦️mahaabhuutaanyaha~Nkaaro buddhiravyaktameva cha|
indriyaaNi dashaikaM cha pa~ncha chendriyagocharaaH

The great elements, egoism, intellect, and also the Unmanifested Nature, the ten senses and one (mind), and the five objects of the senses. (13.06)

पंच महाभूत अहंकार बुद्धि अव्यक्त (प्रकृति) दस इन्द्रियाँ एक मन इन्द्रियों के पाँच विषय।।13.6।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [13.07]
🍃इच्छा द्वेषः सुखं दुःखं सङ्घातश्चेतनाधृतिः।
एतत्क्षेत्रं समासेन सविकारमुदाहृतम्
।।13.7।।

♦️ichChaa dveShaH sukhaM duHkhaM sa~NghaatashchetanaadhRRitiH|
etatkShetraM samaasena savikaaramudaahRRitam

Desire, hatred, pleasure, pain, the aggregate (the body), intelligence, fortitude the field has thus been briefly described with its modifications. (13.07)

इच्छा द्वेष सुख दुख संघात (स्थूलदेह) चेतना (अन्तकरण की चेतन वृत्ति) तथा धृति इस प्रकार यह क्षेत्र विकारों के सहित संक्षेप में कहा गया है।।13.7।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
🚩तिथि - नवमी शाम 07:24 बजे तक तत्पश्चात दशमी

दिनांक 10 मई 2022
दिन - मंगलवार
विक्रम संवत - 2079
शक संवत - 1944
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - वैशाख
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - मघा शाम 06:40 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग - ध्रुव रात्रि 08:22 तक तत्पश्चात व्याघात
राहुकाल - अपराह्न 03:54 से 05:32 तक
सूर्योदय - 06:01
सूर्यास्त - 07:11
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:35 से 05:18 तक