Google Translate has now opened Sanskrit for contributions! This is the learning phase for Google Translate - it doesn't yet support Sanskrit translation but it accepts contributions from those of us who know the language even partially and in due course it would support actual Sanskrit translation!
Those who are proficient in Sanskrit can now contribute to Google's database and "knowledge" of Sanskrit. I have no doubt that our dream of seeing Sanskrit becoming accessible to all is soon going to turn into a reality!
To contribute:
1. Go to translate.google.com
2. Click on Contribute
3. Select Sanskrit as language
4. Contribute by either Validating or Writing your contribution of sentences shown.
Thank you for your support to this initiative!
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Read in English👇🏼
https://t.me/samskrt_samvadah/9223?single
Google Translate इति संस्कृतम् आरभते योगदानाय, एषा अभिज्ञानस्य अवस्थायां वर्तते । एषः इदानीं पर्यन्तं संस्कृतस्य अनुवादकरणं तु न आरब्धवान् परन्तु तथा अग्रे भवेत् तदर्थं ये जनाः ईषदपि संस्कृतं जानन्ति तेभ्यः योगदानं स्वीकरोति येन भविष्ये तथा अनुवादकरणं भवेत्।
अपि च ये जनाः संस्कृते पारङ्गताः वर्तन्ते ते गुगल् इत्यस्य दत्तनिधये संस्कृतस्य च ज्ञानाय स्वयोगदानं दातुम् अर्हन्ति।
संस्कृतं सर्वेषां कृते सुलभं भविष्यति इति मया दृष्टं स्वप्नं शीघ्रमेव सत्यतां यास्यति।
योगदानार्थम्
१. translate.google.com अत्र गच्छन्तु।
२. Contribute उपरि नुदन्तु।
३.संस्कृतं भाषारूपेण चिन्वन्तु।
४. वाक्यं मान्यं कृत्वा अथवा दत्तस्य वाक्यस्य विषये लिखित्वा योगदानं कर्तुं शक्नुमः।
एतस्य नूतनोपक्रमाय भवतां सहयोगार्थं धन्यवादाः।
https://t.me/samskrt_samvadah/9223?single
Google Translate इति संस्कृतम् आरभते योगदानाय, एषा अभिज्ञानस्य अवस्थायां वर्तते । एषः इदानीं पर्यन्तं संस्कृतस्य अनुवादकरणं तु न आरब्धवान् परन्तु तथा अग्रे भवेत् तदर्थं ये जनाः ईषदपि संस्कृतं जानन्ति तेभ्यः योगदानं स्वीकरोति येन भविष्ये तथा अनुवादकरणं भवेत्।
अपि च ये जनाः संस्कृते पारङ्गताः वर्तन्ते ते गुगल् इत्यस्य दत्तनिधये संस्कृतस्य च ज्ञानाय स्वयोगदानं दातुम् अर्हन्ति।
संस्कृतं सर्वेषां कृते सुलभं भविष्यति इति मया दृष्टं स्वप्नं शीघ्रमेव सत्यतां यास्यति।
योगदानार्थम्
१. translate.google.com अत्र गच्छन्तु।
२. Contribute उपरि नुदन्तु।
३.संस्कृतं भाषारूपेण चिन्वन्तु।
४. वाक्यं मान्यं कृत्वा अथवा दत्तस्य वाक्यस्य विषये लिखित्वा योगदानं कर्तुं शक्नुमः।
एतस्य नूतनोपक्रमाय भवतां सहयोगार्थं धन्यवादाः।
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
रूपयौवनसम्पन्नाः विशालकुलसम्भवाः। विद्याहीनाः न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः।। = रूप और यौवन से सम्पन्न तथा ऊंचे कुल में जन्म लेने पर भी विद्याहीन मनुष्य ऐसे ही सुशोभित नहीं होता जैसे ढाक के गन्धरहित फूल। किं तया क्रियते धेन्वा या न दोग्ध्री न च गुर्विणी।…
अप्रियवचनदरिद्रैः प्रवचनाढ्यैः स्वदारपरितुष्टैः।
परपरिवादनिवृत्तैः क्वचित्क्वचिन्मण्डिता वसुधा।।
= अप्रिय और कठोर वचन बोलने में दरिद्र, प्रिय और मधुर वचनों के धनी, अपनी पत्नी से ही सदा सन्तुष्ट रहनेवाले और दूसरों की निन्दा से विमुख सज्जनों द्वारा ये धरती किसी-किसी स्थान पर ही अलंकृत है, सर्वत्र नहीं, अर्थात् ऐसे महापुरुष संसार में विरले ही होते हैं।
यमाजीवन्ति पुरुषं सर्वभूतानि स´्जय।
पक्वं द्रुममिवाऽऽसाद्य तस्य जीवितमर्थवत्।।
= हे संजय पके हुए फलोंवाले वृक्ष के समान जिस मनुष्य का सहारा लेकर सभी प्राणी अपना जीवनयापन करते हैं, उसी का जीवन सफल है।
प्रदानं प्रच्छन्नं गृहमुपगते सम्भ्रमविधिः, प्रियं कृत्वा मौनं सदसि कथनं चाप्युकृतेः।
अनुत्सेको लक्ष्म्यां निरभिभवसाराः परकथाः, सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम्।।
= गुप् रूप से दान देना, घर पर आए हुए का तत्परता से सत्कार करना, किसी का प्रिय कार्य करके चुप रहना और दूसरे के द्वारा अपना कार्य किए जाने पर उसका सभा में बखान करनार, धन-सम्पत्ति होने पर अभिमान न करना और दूसरों की चर्चा के प्रसंग में उनके लिए अपमानजनक वचन न कहना, तलवार की धार पर चलने के समान इन कठोर व्रतों को करने का सत्पुरुषों को किसने आदेश दिया है ?
न स्वे सुखे वै कुरुते प्रहर्षं नान्यस्य दुःखे भवति प्रहृष्टः।
दत्त्वा न पश्चात्कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः।।
= जो अपने सुख में प्रसन्न नहीं होता और अन्यों के दुःख में हर्षित नहीं होता, जो किसी को कुछ देकर बाद में पछताता नहीं, वही सत्पुरुष आर्य चरित्रवाला कहलाता है।
अपां समीपे नियतो नैत्यकं विधिमास्थितः।
सावित्रीमप्यधीयीत गत्वाऽरण्यं समाहितः।।
= मनुष्य प्रतिदिन वन में जाकर, नदी सरोवर आदि के तट पर बैठकर, दैनिक नित्य कर्त्तव्य प्राणायामादि करके गायत्री मन्त्र का अर्थचिन्तनपूर्वक जप करे।
आचम्य प्रयतो नित्यमुभे सन्ध्ये समाहितः।
शुचौ देशे जप´्जप्यमुपासीत यथाविधिः।।
= मनुष्य प्रतिदिन दोनों सन्ध्याबेलाओं में शुद्ध स्थान पर बैठकर, आचमन करे, एकाग्र होकर, विधिपूर्वक ओम् का जप करता हुआ ईश्वरोपासना करे।
उत्थायाऽऽवश्यकं कृत्वा कृतशौचः समाहितः।
पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् स्वकाले चाऽपरां चिरम्।।
= मनुष्य प्रातः उठकर आवश्यक कार्य करके स्नानादि से शुद्ध होकर एकाग्रचित्त से बैठे। प्रातःकाल की सन्ध्याबेला में स्थिरतापूर्वक जप करे और सायंकालीन सन्ध्याबेला में भी चिरकाल तक जप करे।
अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते।
छेत्तुः पार्श्वगतां छायां नोपसंहरते दु्रमः।।
= घर पर आए हुए शत्रु का भी यथोचित अतिथि-सत्कार करना चाहिए। वृक्ष को देखो वह अपनी फैली हुई छाया को अपने ही को आटनेवाले के ऊपर से भी नहीं हटाता।
दुःखात्तेषु प्रमत्तेषु नास्तिकेष्वलसेषु च।
न श्रीर्वसत्यदान्तेषु ये चोत्साहविवर्जिताः।।
= दुःख से परेशान, प्रमादी तथा नशाखोर, नास्तिक, आलसी, मन आदि को वश में न रखनेवाले और उत्साहहीन मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास नहीं करती है।
तानीन्द्रिण्यविकलानि तदेव नाम, सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव।
अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव, त्वन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत्।।
= वही सामर्थ्ययुक्त इन्द्रियां हैं और नाम भी वही है, वही अबाध चिन्तनवाली बुद्धि है, और वचन भी वही है, तथा धनरूपी ऊष्णता से रहित पुरुष भी वही है। किन्तु धन चले जाने के कारण क्षणभर में सबकुछ बदला हुआ लगता है, यह कितने आश्चर्य की बात है ?
स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्याद् दान्तो मैत्रः समाहितः।
दाता नित्यमनादाता सर्वभूतानुकम्पकः।।
= (वानप्रस्थी) सदा स्वाध्याय में लगा रहे। तथा वह मनादि को दमन करनेवाला, सबसे मित्रभाव रखनेवाला, एकाग्र, दान देनेवाला, कभी न लेनेवाला और सब प्रणियों पर दया रखनेवाला बने।
#vakyabhyas
परपरिवादनिवृत्तैः क्वचित्क्वचिन्मण्डिता वसुधा।।
= अप्रिय और कठोर वचन बोलने में दरिद्र, प्रिय और मधुर वचनों के धनी, अपनी पत्नी से ही सदा सन्तुष्ट रहनेवाले और दूसरों की निन्दा से विमुख सज्जनों द्वारा ये धरती किसी-किसी स्थान पर ही अलंकृत है, सर्वत्र नहीं, अर्थात् ऐसे महापुरुष संसार में विरले ही होते हैं।
यमाजीवन्ति पुरुषं सर्वभूतानि स´्जय।
पक्वं द्रुममिवाऽऽसाद्य तस्य जीवितमर्थवत्।।
= हे संजय पके हुए फलोंवाले वृक्ष के समान जिस मनुष्य का सहारा लेकर सभी प्राणी अपना जीवनयापन करते हैं, उसी का जीवन सफल है।
प्रदानं प्रच्छन्नं गृहमुपगते सम्भ्रमविधिः, प्रियं कृत्वा मौनं सदसि कथनं चाप्युकृतेः।
अनुत्सेको लक्ष्म्यां निरभिभवसाराः परकथाः, सतां केनोद्दिष्टं विषममसिधाराव्रतमिदम्।।
= गुप् रूप से दान देना, घर पर आए हुए का तत्परता से सत्कार करना, किसी का प्रिय कार्य करके चुप रहना और दूसरे के द्वारा अपना कार्य किए जाने पर उसका सभा में बखान करनार, धन-सम्पत्ति होने पर अभिमान न करना और दूसरों की चर्चा के प्रसंग में उनके लिए अपमानजनक वचन न कहना, तलवार की धार पर चलने के समान इन कठोर व्रतों को करने का सत्पुरुषों को किसने आदेश दिया है ?
न स्वे सुखे वै कुरुते प्रहर्षं नान्यस्य दुःखे भवति प्रहृष्टः।
दत्त्वा न पश्चात्कुरुतेऽनुतापं स कथ्यते सत्पुरुषार्यशीलः।।
= जो अपने सुख में प्रसन्न नहीं होता और अन्यों के दुःख में हर्षित नहीं होता, जो किसी को कुछ देकर बाद में पछताता नहीं, वही सत्पुरुष आर्य चरित्रवाला कहलाता है।
अपां समीपे नियतो नैत्यकं विधिमास्थितः।
सावित्रीमप्यधीयीत गत्वाऽरण्यं समाहितः।।
= मनुष्य प्रतिदिन वन में जाकर, नदी सरोवर आदि के तट पर बैठकर, दैनिक नित्य कर्त्तव्य प्राणायामादि करके गायत्री मन्त्र का अर्थचिन्तनपूर्वक जप करे।
आचम्य प्रयतो नित्यमुभे सन्ध्ये समाहितः।
शुचौ देशे जप´्जप्यमुपासीत यथाविधिः।।
= मनुष्य प्रतिदिन दोनों सन्ध्याबेलाओं में शुद्ध स्थान पर बैठकर, आचमन करे, एकाग्र होकर, विधिपूर्वक ओम् का जप करता हुआ ईश्वरोपासना करे।
उत्थायाऽऽवश्यकं कृत्वा कृतशौचः समाहितः।
पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् स्वकाले चाऽपरां चिरम्।।
= मनुष्य प्रातः उठकर आवश्यक कार्य करके स्नानादि से शुद्ध होकर एकाग्रचित्त से बैठे। प्रातःकाल की सन्ध्याबेला में स्थिरतापूर्वक जप करे और सायंकालीन सन्ध्याबेला में भी चिरकाल तक जप करे।
अरावप्युचितं कार्यमातिथ्यं गृहमागते।
छेत्तुः पार्श्वगतां छायां नोपसंहरते दु्रमः।।
= घर पर आए हुए शत्रु का भी यथोचित अतिथि-सत्कार करना चाहिए। वृक्ष को देखो वह अपनी फैली हुई छाया को अपने ही को आटनेवाले के ऊपर से भी नहीं हटाता।
दुःखात्तेषु प्रमत्तेषु नास्तिकेष्वलसेषु च।
न श्रीर्वसत्यदान्तेषु ये चोत्साहविवर्जिताः।।
= दुःख से परेशान, प्रमादी तथा नशाखोर, नास्तिक, आलसी, मन आदि को वश में न रखनेवाले और उत्साहहीन मनुष्य के पास लक्ष्मी निवास नहीं करती है।
तानीन्द्रिण्यविकलानि तदेव नाम, सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव।
अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव, त्वन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत्।।
= वही सामर्थ्ययुक्त इन्द्रियां हैं और नाम भी वही है, वही अबाध चिन्तनवाली बुद्धि है, और वचन भी वही है, तथा धनरूपी ऊष्णता से रहित पुरुष भी वही है। किन्तु धन चले जाने के कारण क्षणभर में सबकुछ बदला हुआ लगता है, यह कितने आश्चर्य की बात है ?
स्वाध्याये नित्ययुक्तः स्याद् दान्तो मैत्रः समाहितः।
दाता नित्यमनादाता सर्वभूतानुकम्पकः।।
= (वानप्रस्थी) सदा स्वाध्याय में लगा रहे। तथा वह मनादि को दमन करनेवाला, सबसे मित्रभाव रखनेवाला, एकाग्र, दान देनेवाला, कभी न लेनेवाला और सब प्रणियों पर दया रखनेवाला बने।
#vakyabhyas
संस्कृत संवादः (@samskrt_samvadah) वाहिन्या आयोज्यते कार्यशाला एका (Voice-chat माध्यमेन) यत्र अनुष्टुप्-छन्दसि श्लोकनिर्माणं ज्ञास्यन्ति भवन्तः , इयं कार्यशाला मे मासस्य 11 दिनाङ्के बुधवासरे मध्याह्ने 12:00 वादने भविष्यति।
यदि श्लोकनिर्माणं ज्ञातुम् इच्छन्ति चेत् निश्चयेन आयान्तु।
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http://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
यदि श्लोकनिर्माणं ज्ञातुम् इच्छन्ति चेत् निश्चयेन आयान्तु।
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «संस्कृत संवादः (@samskrt_samvadah) वाहिन्या आयोज्यते कार्यशाला एका (Voice-chat माध्यमेन) यत्र अनुष्टुप्-छन्दसि श्लोकनिर्माणं ज्ञास्यन्ति भवन्तः , इयं कार्यशाला मे मासस्य 11 दिनाङ्के बुधवासरे मध्याह्ने 12:00 वादने भविष्यति। यदि श्लोकनिर्माणं ज्ञातुम् इच्छन्ति…»
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM विषयः
🔰वार्ताः
🗓09th May2022,सोमवासरः
🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.
📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (स्वस्थानीयां,प्रादेशीयां, अन्ताराष्ट्रीयाम् उत्तमां वार्तां वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु ⏰
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https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।।
⏳45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM विषयः
🔰वार्ताः
🗓09th May2022,सोमवासरः
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📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (स्वस्थानीयां,प्रादेशीयां, अन्ताराष्ट्रीयाम् उत्तमां वार्तां वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु ⏰
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🍃
♦️tatkShetraM yachcha yaadRRik cha yadvikaari yatashcha yat|
sa cha yo yatprabhaavashcha tatsamaasena me shrRRiNu
⚜What the field is and of what nature, what are its modifications and whence it is and also who He is and what His powers are hear all that from Me in brief.(13.4)
⚜इसलिये वह क्षेत्र जो है और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस (कारण) से जो (कार्य) हुआ है तथा वह (क्षेत्रज्ञ) भी जो है और जिस प्रभाव वाला है वह संक्षेप में मुझसे सुनो।।13.4।।
#geeta
तत्क्षेत्रं यच्च यादृक् च यद्विकारि यतश्च यत्।
स च यो यत्प्रभावश्च तत्समासेन मे श्रृणु
।।13.4।।♦️tatkShetraM yachcha yaadRRik cha yadvikaari yatashcha yat|
sa cha yo yatprabhaavashcha tatsamaasena me shrRRiNu
⚜What the field is and of what nature, what are its modifications and whence it is and also who He is and what His powers are hear all that from Me in brief.(13.4)
⚜इसलिये वह क्षेत्र जो है और जैसा है तथा जिन विकारों वाला है और जिस (कारण) से जो (कार्य) हुआ है तथा वह (क्षेत्रज्ञ) भी जो है और जिस प्रभाव वाला है वह संक्षेप में मुझसे सुनो।।13.4।।
#geeta
🍃
♦️RRiShibhirbahudhaa giitaM ChandobhirvividhaiH pRRithak|
brahmasuutrapadaishchaiva hetumadbhirvinish्ichataiH
⚜Sages have sung in many ways, in various distinctive chants and also in the suggestive words indicative of the Absolute, full of reasoning and decisive. (13.05)
⚜(क्षेत्रक्षेत्रज्ञ के विषय में) ऋषियों द्वारा विभिन्न और विविध छन्दों में बहुत प्रकार से गाया गया है तथा सम्यक् प्रकार से निश्चित किये हुये युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा (अर्थात् ब्रह्म के सूचक शब्दों द्वारा) भी (वैसे ही कहा गया है)।।13.5।।
#geeta
ऋषिभिर्बहुधा गीतं छन्दोभिर्विविधैः पृथक्।
ब्रह्मसूत्रपदैश्चैव हेतुमद्भिर्विनिश्िचतैः
।।13.5।।♦️RRiShibhirbahudhaa giitaM ChandobhirvividhaiH pRRithak|
brahmasuutrapadaishchaiva hetumadbhirvinish्ichataiH
⚜Sages have sung in many ways, in various distinctive chants and also in the suggestive words indicative of the Absolute, full of reasoning and decisive. (13.05)
⚜(क्षेत्रक्षेत्रज्ञ के विषय में) ऋषियों द्वारा विभिन्न और विविध छन्दों में बहुत प्रकार से गाया गया है तथा सम्यक् प्रकार से निश्चित किये हुये युक्तियुक्त ब्रह्मसूत्र के पदों द्वारा (अर्थात् ब्रह्म के सूचक शब्दों द्वारा) भी (वैसे ही कहा गया है)।।13.5।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩तिथि - अष्टमी शाम 06:32 बजे तक तत्पश्चात नवमी
⛅दिनांक 09 मई 2022
⛅दिन - सोमवार
⛅विक्रम संवत - 2079
⛅शक संवत - 1944
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - ग्रीष्म
⛅मास - वैशाख
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - अश्लेषा दोपहर 05:08 तक तत्पश्चात मघा
⛅योग - वृद्धि रात्रि 08:44 तक तत्पश्चात ध्रुव
⛅राहुकाल - सुबह 07:40 से 09:19 तक
⛅सूर्योदय - 06:02
⛅सूर्यास्त - 07:11
⛅दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:35 से 05:18 तक
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅ 🚩तिथि - अष्टमी शाम 06:32 बजे तक तत्पश्चात नवमी
⛅दिनांक 09 मई 2022
⛅दिन - सोमवार
⛅विक्रम संवत - 2079
⛅शक संवत - 1944
⛅अयन - उत्तरायण
⛅ऋतु - ग्रीष्म
⛅मास - वैशाख
⛅पक्ष - शुक्ल
⛅नक्षत्र - अश्लेषा दोपहर 05:08 तक तत्पश्चात मघा
⛅योग - वृद्धि रात्रि 08:44 तक तत्पश्चात ध्रुव
⛅राहुकाल - सुबह 07:40 से 09:19 तक
⛅सूर्योदय - 06:02
⛅सूर्यास्त - 07:11
⛅दिशाशूल - पूर्व दिशा में
⛅ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:35 से 05:18 तक