संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२४
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७९
🚩तिथि - तृतीया पूर्णरात्रि तक

दिनांक 03 मई 2022
दिन - मंगलवार
विक्रम संवत - 2079
शक संवत - 1944
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - वैशाख
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - रोहिणी रात्रि 03:18 तक तत्पश्चात मृगशिरा
योग - शोभन अपरान्ह 04:16 तक तत्पश्चात अतिगण्ड
राहुकाल - अपरान्ह 03:52 से 05:30 तक
सूर्योदय - 06:05
सूर्यास्त - 07:08
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
ब्रह्म मुहूर्त- प्रातः 04:38 से 05:22 तक
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा। 
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।। 

45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM
🔰ग्रीष्मकालः
🗓03rd May 2022, मङ्गलवासरः

🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.

📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (भवतां प्रदेशे उष्णता कीदृशी अस्ति,एतस्य कारणं किम् तथा निवारणं किम्) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

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Live stream scheduled for
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिकायां स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🗣सहैव तानि वाक्यानि उक्त्वा ध्वनिमाध्यमेन अपि प्रेषयत।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।
🗣 साथ हि वें वाक्य बोलकर भी वाइस नोट भेजें।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.
🗣 Also, Send voice message by uttering those sentences.

#chitram
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
नोदकक्लिन्नगात्रस्तु स्नात इत्यभिधीयते। स स्नातो यो दमस्नातः स बाह्याभ्यन्तरः शुचि।। = जल से भीगे हुए शरीरवाला नहाया हुआ नहीं कहाता, अपितु नहाया हुआ वह है, जो दम (मन के नियन्त्रण) रूपी जल में नहाया हुआ है। वस्तुतः वही बाहर और भीतर से शुद्ध है। यः सर्…
सर्वाः सम्पत्तयस्तस्य सन्तुष्टं यस्य मानसम्।
उपानद्गूढपादस्य ननु चर्मावृतेव भूः।।
= समस्त ऐश्वर्य उसी के हैं जिसका कि मन सन्तुष्ट है। पांव में जूते पहने हुए मनुष्य के लिए तो मानो सारी भूमि ही चर्म से ढकी हुई है।

वयमिह परितुष्टा वल्कलैस्त्वञ्च लक्ष्म्याः सम इह परितोषो निर्विशेषो विशेषः।
स तु भवति दरिद्रो यस्य तृष्णा विशाला मनसि च परितुष्टे कोऽर्थवान् को दरिद्रः।।
= हे ऐश्वर्यमत्त मनुष्य ! हम तपस्वी वृक्ष की छालों के वस्त्रों से सन्तुष्ट हैं और तुम धन-सम्पत्ति से। हम दोनों का सन्तोष तो एक समान ही है, उसमें कोई अन्तर नहीं है। दरिद्र तो वह होता है जिसकी तृष्णा बहुत बड़ी हुआ करती है। मन के सन्तुष्ट हो जाने पर तो क्या धनी क्या निर्धन, सब एक समान हैं।

सत्ये तपसि शौर्ये च यस्य न प्रथितं यशः।
विद्यायामर्थलाभे वा मातुरुच्चार एव सः।।
= सत्य में तप में पराक्रम में विद्या में अथवा धनप्राप्ति में जिसका यश नहीं फैला, वह मनुष्य न होकर मानो अपनी माता के शरीर का मैल है।

अथ ये सहिता वृक्षाः यङ्घशः सुप्रतिष्ठिताः।
ते हि शीघ्रतमान् वातान् सहतेऽन्योऽन्यसंश्रयात्।।
= जो वृक्ष एक साथ समूह में अच्छे प्रकार स्थिर होते हैं, वे एक दूसरे के सहारे से अतितीव्र झंझावातों को भी सह लेते हैं।

एतावज्जन्मसाफल्यं यदनायतवृत्तिता।
ये पराधीनतां यातास्ते वै जीवन्ति के मृताः।।
= इसी में जन्म की सफलता है कि मनुष्य अपनी प्रवृत्तियों को पराधीन न होने दे, जो पराधीनता को प्राप्त हो गए हैं वे भी यदि जीवित कहलाते हैं, तो मरे हुए कौन कहलाएंगे ?

द्वाविमौ पुरुषव्याघ्रौ सूर्यमण्डलभेदिनौ।
परिव्राड् योगयुक्तश्च रणे चाभिऽमुखोहतः।।
= हे पुरुषश्रेष्ठ दो ही प्रकार के मनुष्य इस सूर्यमण्डल को भेदकर उत्तम लोक को प्राप्त करनेवाले हैं। प्रथम है योगसाधक संन्यासी और दूसरा युद्ध में वीरगति को प्राप्त योद्धा।

यां चिन्तयामि सततं मयि सा विरक्ता साप्यन्यमिच्छति जनं स जनोऽन्यसक्तः।
अस्मत्कृते च परितुष्यति काचिदन्या धिक् तां च तं च मदनं इमां च मां च।।
= मैं अपने चित्त में दिन-रात जिसकी स्मृति संजोए रहता हूं, वह बाला मुझसे प्रेम न करते किसी अन्य पुरुष पर मुग्ध है। वह पुरुष किसी अन्य स्त्री में आसक्त है और इस पुरुष की अभिलषित स्त्री मुझे चाहती है। धिक्कार है उस बाला को, उस पुरुष को, उस पुरुष की अभिलषित स्त्री को, मुझे और इस कामदेव को (जिसने यह सारा कुचक्र चलाया है)।

आज्ञा कीर्त्तिः पालनं ब्राह्मणानां दानं भोगो मित्रसंरक्षणं च।
येषामेते षड्गुणा न प्रवृत्ताः कोऽर्थस्तेषां पार्थिवोपाश्रयेण।।
= जिन राजाओं में शासन करने की योग्यता, यश विस्तार की इच्छा, प्रजापालन में दक्षता, सुपात्रों को दान देना, ऐश्वर्य का उपयोग करना और मित्रों के सुख-दुःख का ध्यान रखना; ये छः गुण न हों उनकी शरण में रहना व्यर्थ है।

यदा किञ्चिज्ज्ञोऽहं द्विपइव मदान्धः समभवम्, तदा सर्वज्ञोऽस्मीत्यभवदवलिप्तं मम मनः।
यदा किञ्चित्किञ्चिद् बुधजन सकाशादवगतम्, तदा मूर्खोऽस्मीति ज्वर इव मदो मे व्यपगतः।।
= जब मैं अल्पज्ञ था मदोन्मत्त हाथी की भांति घमण्ड में अन्धा हो गया था और यह समझता था कि मैं सब-कुछ जानता हूं। परन्तु जब बुद्धिमानों के संसर्ग से कुछ-कुछ ज्ञान हुआ तब पता चला कि मैं तो मूर्ख हूं। उस समय मेरा अभिमान ज्वर की भांति उतर गया।

#vakyabhyas
@samskrt_samvadah प्रारंभ करता है, संस्कृताश्रमः - संस्कृतशिक्षण की लघु कक्षाऐं

20 मिनट
🕚 09:00 PM 🇮🇳
🔰लकारपरिचयः
🗓03rd मई 2022, मङ्गलवासरः

🔴 कक्षाओं की प्रति हमारे युट्युब चैनल पर डाली जायेगी
कृपया अलार्म लगा लें और विलंब से न आयें।

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Live stream scheduled for
Wife - Why are you back so early ?
Husband - My boss told me to go to hell.

#hasya
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा। 
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्।। 

45 निमेषाः
🕚 IST 11:00 AM
🔰वाक्याभ्यासः
🗓04th May 2022, बुधवासरः

🔴Voicechat would be recorded and shared on this channel.

📑यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (चित्रं दृष्ट्वा वाक्यानि वक्तव्यानि) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

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Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [12.14]
🍃सन्तुष्टः सततं योगी यतात्मा दृढनिश्चयः।
मय्यर्पितमनोबुद्धिर्यो मद्भक्तः स मे प्रियः
।।12.14।।

♦️santuShTaH satataM yogii yataatmaa dRRiDhanishchayaH|
mayyarpitamanobuddhiryo madbhaktaH sa me priyaH

The yogi who is ever content, who has subdued the mind, whoseresolve is firm, whose mind and intellect are engaged in dwelling upon Me; such a devotee is dear to Me. (12.14)

जो संयतात्मा दृढ़निश्चयी योगी सदा सन्तुष्ट है जो अपने मन और बुद्धि को मुझमें अर्पण किये हुए है जो ऐसा मेरा भक्त है, वह मुझे प्रिय है।।12.14।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [12.15]