संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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हितोपदेशः - HITOPADESHAH

यस्मिन्नेवाधिकं चक्षुर्
आरोहयति पार्थिवः।
सुतेऽमात्येऽप्युदासीने
स लक्ष्म्याश्रीयते जनः।। 370/123।।

अर्थः:

पुत्र, मंत्री या उदासीन की गयी प्रजा इन तीनों में से राजा की दृष्टि जिस पर पड़ती है, लक्ष्मी उसी का आश्रय लेती है, अर्थात् वह धनवान हो जाता है।

MEANING:

The person among the son, minister, or a subject who is favored by the king's gaze is sheltered by goddess Lakshmi, meaning he becomes rich.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

#Subhashitam
*🙏।।ओ३म्।।🙏*

*🌷सर्गारम्भ में ऋषियों से ईश्वरप्रदत्त वेद का आविर्भाव🌷*

बृह॑स्पते प्रथ॒मं वा॒चो अग्रं॒ यत्प्रैर॑त नाम॒धेयं॒ दधा॑नाः। यदे॑षां॒ श्रेष्ठं यद॑रि॒प्रमासी॑त्प्रे॒णा तदे॑षां॒ निहि॑तं॒ गुहा॒विः॥ - ऋग्वेद १०/७१/१

शब्दार्थ - (बृहस्पते) हे वेदाधिपते महेश! (प्रथमम्) पहले वा सृष्टि के आरम्भ में (नामधेयम् दधानाः) सृष्टि के पदार्थों का नाम  रखते हुए, महर्षि (यत् प्रैरत) जो वचन प्रेरते हैं, उच्चारण करते हैं, (वाचः अग्रम्) वह वाणी का मुख्य, प्रधान वा श्रेष्ठभाग है, (यत् एषाम् श्रेष्ठम्) जो सृष्टि के प्रारम्भ में उत्पन्न हुए इन व्यक्तियों में श्रेष्ठ थे, (यत् अरिप्रम् आसीत्) और जो निर्दोष वा सर्वाधिक पवित्र थे, (तत्) वह वेदज्ञान (एषाम् गुहा) इन श्रेष्ठ लोगों के हृदय रूपी गुहा में (प्रेणा/प्रेम्णा निहितम्) प्रभु प्रेम के कारण स्थापित हुआ और इस प्रकार (आविः) प्रकट हुआ।

भावार्थ - जब सर्गारम्भ में मनुष्य उत्पन्न हुए और उन्होंने चारों ओर परिदृश्यमान पदार्थों के नामकरण की इच्छा की, तब परमगुरु, सर्वविद्यानिधान भगवान् ने उनके लिए वेद रूपी वाणी की प्रेरणा की। वही वेदवाणी का प्रथम प्रकाश है। वह वेदवाणी किनको मिली? जो सर्गारम्भ के मनुष्यों में श्रेष्ठ एवं निर्दोष होने के साथ प्रभु की कल्याणी वेदवाणी के प्रचार के लिए भी उत्कट भावना रखते थे, सर्वव्यापक अन्तर्यामी प्रभु ने उनके हृदय में वेदज्ञान स्थापित किया और मनुष्यों के कल्याणार्थ प्रकट किया।

*🌺 सप्तरेभा वेदवाणी का ऋषियों में प्रवेश 🌺*

य॒ज्ञेन॑ वा॒चः प॑द॒वीय॑माय॒न्तामन्व॑विन्द॒न्नृषि॑षु॒ प्रवि॑ष्टाम्। तामा॒भृत्या॒ व्य॑दधुः पुरु॒त्रा तां स॒प्त रे॒भा अ॒भि सं न॑वन्ते॥ - ऋग्वेद १०/७१/३

शब्दार्थ - धीर विद्वान् जन (यज्ञेन) यज्ञ वा उस उपास्य प्रभु के द्वारा (वाचः पदवीयम् आयन्) वेदवाणी के मार्ग को प्राप्त हुए। सृष्टि के प्रारम्भ में प्रभु के द्वारा अग्नि आदि ऋषियों को इस वेदवाणी का ज्ञान हुआ और (ऋषिषु प्रविष्टाम्) अग्नि आदि ऋषियों के हृदयों में प्रविष्ट हुई (ताम्) उस वेदवाणी को (अन्वविन्दन्) पीछे अन्य ऋषियों ने प्राप्त किया। प्रभु ने अग्नि आदि को ज्ञान दिया। अग्नि आदि से अन्य ऋषियों ने इसे पाया। (तां आभृत्या) उस वेदवाणी को उत्तमता से धारण करके उन्होंने (पुरुत्रा व्यदधुः) बहुत स्थानों में इसे स्थापित किया। इसका मनुओं में, विचारशील पुरुषों में प्रचार किया, (ताम्) उस वेदवाणी को (सप्त रेभाः अभिसंनवन्ते) सात गायत्री आदि छन्द प्राप्त होते हैं। यह वेदवाणी गायत्री आदि सात छन्दों में प्रवृत्त होती है।

भावार्थ - प्रभु अग्नि आदि ऋषियों को वेदज्ञान देते हैं, इनसे अन्य यज्ञिय वृत्तिवाले ऋषियों को यह प्राप्त होती है। उसे ये ऋषि मानवसमाज में प्रचारित करते हैं। यह वेदवाणी गायत्री आदि सात छन्दों से युक्त है।

मंत्र के भाष्य में सहायक ग्रन्थ -
१. स्वाध्याय संदीप - स्वामी वेदानन्द तीर्थ
२. ऋग्वेदभाष्यम् - पंडित हरिशरण सिद्धान्तालङ्कार

✍️ प्रस्तुति - आर्य विजय चौहान
🙏 *19.4.21 वेदवाणी* 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌺

स घेदुतासि वृत्रहन्समान इन्द्र गोपतिः।
यस्ता विश्वानि चिच्युषे॥ ऋग्वेद ४-३०-२२॥🙏🌺

एक शासक को सूर्य के समान सभी के साथ न्यायोचित व्यवहार करना चाहिए। कोई भेदभाव नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार सूर्य काले बादलों का नाश करता है, उसी प्रकार दुष्ट व्यक्तियों का नाश भी करना चाहिए।🙏🌺

A ruler should treat all in a justified manner like Sun There should be no discrimination. Just as the sun destroys dark clouds, a ruler should destroy evil forces. (Rig Veda 4-30-22)🙏🌺
#vedgsawan🙏🌺
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। चतुर्दशः सर्गः ।।

🍃 गवां शतसहस्राणि दश तेभ्यो दर्दो तृपः।
दशकोटीः सुवर्णस्य रजतस्य चतुर्गुणम् ॥४८॥

⚜️ महाराज ने एक लाख गौवे, दस करोड़ साने की मोहरे चालीस करोड़ चांदी के मोहरें सब ऋत्विजों को दिये ॥४८॥

🍃 ऋत्विजस्तु ततः सर्वे मरददुः सहिता वसु।
ऋश्यशृङ्गाय मुनये वसिष्ठाय च धीमते ।।४९।।

⚜️ उन सब ने दक्षिणा में मिली हुई ये सब चीजें बांटने के लिये वशिष्ठ जी व ऋषि श्रृंग जो के सामने रख दीं ॥४९॥

#Ramayan
📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें

📙 ऋग्वेद

सूक्त - २४ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ०२, देवता - अग्नि आदि।

🍃 अग्नेर्वयं प्रथमस्यामृतानां मनामहे चारु देवस्य नाम। स नो मह्या अदितये पुनत्पितरं च दृशेयं मातरं च.. (२)

⚜️ मैं देवताओं में सबसे पहले अग्नि का नाम पुकारता हूँ। वे मुझे इस विशाल धरती पर रहने देंगे, जिससे मैं अपने माता-पिता को देख सकूँ। (२)

#Rgveda
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - नवमी रात्रि 12:35 तक तत्पश्चात दशमी

दिनांक - 21 अप्रैल 2021
दिन - बुधवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - चैत्र
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - पुष्य सुबह तक 07:59 तत्पश्चात अश्लेशा
योग - शूल शाम 06:43 तक तत्पश्चात गण्ड
राहुकाल - दोपहर 12:37 से दोपहर 02:13 तक
सूर्योदय - 06:16
सूर्यास्त - 18:58
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
व्रत पर्व विवरण - श्रीराम नवमी, चैत्र नवरात्र समाप्त, हरिद्वार कुंभ स्नान
https://youtu.be/_eP6ADMo7Ws
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes sanskrit news.
Tuesday, April 20, 2021

 संस्कृतनगरपदमाप्तुं वाराणसी ।

  लख्नौ> प्रधानमन्त्रिणः मण्डले अन्तर्भूतं वाराणसीनगरं भारतस्य प्रथमं संस्कृतनगरम् इति पदप्राप्त्यर्थं उत्तरप्रदेशसर्वकारेण प्रयत्नमारभ्यते। अधुना ११० अधिकाः संस्कृतविद्यालयाः वाराणसी नगरे प्रवर्तन्ते। 

  संस्कृतभाषाप्रवृद्ध्यर्थं सविशेषं निदेशकस्थानं [Directorate] स्थापयिष्यति। वार्तालेखाः संस्कृते प्रकाशयितुमारब्धाः। मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथः स्वकीयट्वीट्सन्देशान् संस्कृते कर्तुमारब्धवान्।

  उत्तरप्रदेशस्य 'सेकन्टरि संस्कृत शिक्षासमित्याः' अधीने ११६४ संस्कृतविद्यालयाः सन्ति। तेषु ९७,०००अधिकाः छात्राः अध्ययनं कुर्वन्ति च।

 १८ वयोपर्यन्तेभ्यः अपि वाक्सिनम्। 

   नवदिल्ली> भारते १८ वयोपरि ४५ वयस्केभ्यः युवकेभ्य अपि कोविड्वाक्सिनसुविधां निर्णीय केन्द्रसर्वकारेण स्वीयवाक्सिननये समग्रं परिष्करणं कृतम्। गतदिने प्रधानमन्त्रिणः नरेन्द्रमोदिनः नेतृत्वे समायोजिते उपवेशने एवायं निर्णयः कृतः। मेय्मासस्य प्रथमदिनादारभ्य युवकेभ्यः वाक्सिनीकरणसुविधा लप्स्यते। 

  परिष्कृतनयमनुसृत्य सामान्यविपण्यामपि वोक्सिनौषधं लप्स्यते। मूल्यविषये निर्णयः करणीयः। उत्पाद्यमानानाम्  औषधानामर्धभागः केन्द्सर्वकाराय राज्यसर्वकारेभ्यश्च वितरणं करणीयम्।

~ संप्रति वार्ता
Audio
👆संस्कृत रामजन्म गीत
Sri Rama Panchakam - Devi Bhagavatam .pdf
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Dhi Shuddi Stavam - Harivamsha Puranam.pdf
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चाणक्य नीति ⚔️
✒️द्वादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१५


मातृवत् परदारेषु परद्रव्याणि लोष्ठवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति सः पंडितः।।१५।।

♦️भावार्थ --दूसरों की पत्नी को माता की भांति, दूसरे के धन को मिट्टी के ढेले की भाँति तथा सारे प्राणियों को अपनी आत्मा की भांति देखने वाला ही संसार में यथार्थ रुप में मनुष्य है।।

#Chanakya
घोराः सिंहाः कुपितशरभाः कुञ्जरेन्द्रा मदान्धाः
घोरा व्याघ्राः कटुककिटयो भीमभल्लूकसङ्घाः ।
सर्वे चान्ये सहजरिपवो जन्तवो यत्रवासाः
सङ्गाहन्ते प्रशमितरुषः स्वैरमेकोदपाने॥


अन्वयः (संस्कृतवाक्यरचनापद्धतिः)

यत्र घोराः सिंहाः कुपितशरभाः मदान्धाः कुञ्जरेन्द्राः घोराः व्याघ्राः कटुककिटयः भीमभल्लूकसङ्घाः च सर्वे अन्ये सहजरिपवः जन्तवः प्रशमितरुषः स्वैरं एकोदपाने वासाः सन्तः सङ्गाहन्ते (तं फणीन्द्रक्ष्माभृतं नमामि ।)

अन्वयार्थः (प्रतिपदार्थः)
- यत्र - जहाँ
- घोराः - क्रूर एवं बडे
- सिंहाः - सिंह
- कुपित - क्रोधित
- शरभाः - आठ पैर वाला प्राचीन प्राणी
- मद - मद या नशे से
- अन्धाः - भरे या अंधे हुए
- कुञ्जरेन्द्राः - बडे हाथी
- घोराः - बडे
- व्याघ्राः - बाघ
- कटुक - काटखानेवाले
- किटयः - वनसूकर
- भीम - भयंकर
- भल्लूक - भालुओं का
- सङ्घाः - झुंड
- - और
- सर्वे - सभी
- अन्ये - अनेक या बाकी
- सहज - सहज
- रिपवः - शत्रु
- जन्तवः - प्राणियाँ
- प्रशमित - दमन किये गये
- रुषः - कोपवाले हो कर
- स्वैरम् - अपने मन से
- एक - एक ही
- उदपाने - पानी से भरे श्रीस्वामिपुष्करिणी में
- वासाः - वास
- सन्तः - होकर
- सङ्गाहन्ते - पानी में स्नान करते हैं
- तम् - उस
- फणीन्द्र - सर्पों में श्रेष्ठ शेषगिरी
- क्ष्माभृतम् - पर्वत को
- नमामि - नमस्कार करता हूँ।

कवि-काव्य परिचय:

यह श्लोक श्री वेदांतदेशिक जी के परमशिष्य श्री प्रतिवादिभयंकर अण्णंगराचार्य जी के करकमलों से लिखित "फणीन्द्रक्ष्माभृत्स्तोत्रं" नामक स्तोत्रकाव्य का नौवाँ श्लोक है। कविवर्य का काल 13वीं शताब्दी के क्रिस्ताब्द का है और वे श्रीवैष्णव धर्म के प्रसिद्ध यतिश्रेष्ठ थे। इस स्तुतिकाव्य में कुल 10 श्लोक हैं। दसवें श्लोक में कविवर्य ने इस स्तुति का फल और अपने बारे में लिखा है।

श्रीमद्वादिप्रवरभयकृद्देशिकोक्तं फणीन्द्रक्ष्माभृत्स्तोत्रं भुवनमहितं शब्दतोऽर्थाच्च साधु ।

। इस स्तुतिकाव्य के सभी श्लोक "मन्दाक्रान्ता" नाम के वृत्त या छंद में लिखे गये हैं ।

विवरणम् -

इस श्लोक में कवि श्रीफणींद्रगिरी या शेषाचल पर्वत की महत्ता का वर्णन कर रहे हैं। तिरुमल पर्वत पर निवास करने वाले सभी क्रूर प्राणी, जैसे शेर, प्राचीन क्रोधित शरभ, क्रूर बाघ, नशे में धुत हाथी, लंबे दांत वाले जंगली सूअर, भयंकर भालू और अन्य छोटे-बड़े सभी प्राणी अपनी वैरता और घृणा को त्यागकर गुस्से से रहित होकर शांत भाव से इस क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध श्रीस्वामिपुष्करिणी नामक कल्याणी में स्नान करते हुए निवास कर रहे हैं। ऐसे पवित्र पर्वत को प्रणाम करते हुए यतिवर्य उसकी महिमा का बखान करते हैं।

ॐ नमो भगवते वाहाननाय

© Sanjeev GN #Subhashitam
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*🌷॥ओ३म्॥🌷*

🙏 राम के जन्मदिवस रामनवमी पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं।🙏

*🌼 आदर्श चरित्र ईश्वरोपासक श्रीराम*
- आर्य विजय चौहान

वाल्मीकि के राम यज्ञरक्षक, त्यागी, तपस्वी, सत्यवादी और वीर पुरुष थे। विश्वामित्र के आश्रम में राक्षसों से यज्ञ की रक्षा करने वाले, भाई भरत के लिए राजपाट का त्याग करने वाले भ्रातृप्रेमी, १४ वर्ष तक वनवास में रहकर तपस्वी जीवन जीने वाले, पत्नी प्रेम से युक्त होकर हरण की गई सीता की खोज और प्राप्ति के लिए महान् परिश्रम करने वाले, रावण जैसे दुष्ट और बलवान् को पराजित करने वाले वीर थे। साथ ही वह ईश्वर के उपासक थे। वह जहांँ भी रहे और गये, उन्होंने प्रातः सायं संध्या उपासना का कभी त्याग नहीं किया।

*🌺 श्रीराम वेदवेदाङ्गवेत्ता और आर्य अर्थात् सदाचारी थे। 🌺*
वाल्मीकि रामायण में श्रीराम का गुण वर्णन करते हुए नारद मुनि कहते हैं -

रक्षिता स्वस्य धर्मस्य स्वजनस्य च रक्षिता । वेदवेदाङ्गतत्त्वज्ञो धनुर्वेदे च निष्ठितः ॥ १-१-१४

- श्रीराम स्वधर्म और स्वजनों के पालक, वेद-वेदाङ्गों के तत्त्ववेत्ता तथा धनुर्वेद में प्रवीण हैं॥

सर्वदाभिगतः सद्भिः समुद्र इव सिन्धुभिः। #आर्यः सर्वसमश्चैव सदैव प्रियदर्शनः॥ १-१-१६

- जैसे नदियाँ समुद्र में मिलती हैं, उसी प्रकार सदा राम से साधु पुरुष मिलते रहते हैं। वे आर्य एवं सब में समान भाव रखने वाले हैं, उनका दर्शन सदा ही प्रिय मालूम होता है॥

*🌷श्रीराम द्वारा सन्ध्योपासना अर्थात् ईश्वर की उपासना (ध्यान और जप)*

👉 रामचरितमानस में सन्ध्या करने के प्रमाण -

ऋषि विश्वामित्र के साथ जनकपुर निवासकाल में सन्ध्या करने के दो उद्धरण -

निशि प्रवेश मुनि आयसु दीन्हा। सबहीं सन्ध्या वन्दन कीन्हा॥ - बालकाण्ड २२५/१
- रात्रि का प्रवेश होते ही (संध्या के समय) मुनि ने आज्ञा दी, तब सबने सन्ध्यावन्दन किया।

विगत दिवसु गुरु आयसु पाईं। सन्ध्या करन चले दोउ भाई॥ - बालकाण्ड २३६/३
- दिन बीतने पर गुरु की आज्ञा पाकर दोनों भाई सन्ध्या करने चले गये।

निषाद राज से भेंट के पश्चात् की यह चौपाई अवलोकनीय है -
पुरजन करि जोहारु, घर आए। रघुबर सन्ध्या करन सिधाए। - अयोध्याकाण्ड ८८/३
- नगरवासी श्रीराम आदि को अभिवादन करके घर चले गए और श्रीराम सन्ध्या करने के लिए चल दिए।

👉 वाल्मीकि रामायण में अनेक स्थानों पर श्रीराम के द्वारा प्रातः और सायं संध्योपासना और उसमें गायत्री मंत्र जप करने का वर्णन है -

*विश्वामित्र के आश्रम में संध्योपासना*

कौसल्या सुप्रजा राम पूर्वा संध्या प्रवर्तते। उत्तिष्ठ नरशार्दूल कर्तव्यं दैवमाह्निकम् ॥ १-२३-२
तस्यर्षेः परमोदारं वचः श्रुत्वा नरोत्तमौ ।
स्नात्वा कृतोदकौ वीरौ जेपतुः परमं जपम् ॥ १-२३-३
- कौसल्यानन्दन! नरश्रेष्ठ राम! प्रातः काल की‌ सन्ध्या का समय हो रहा है; उठो और प्रतिदिन किये जानेवाले देवसम्बन्धी कार्यों (संध्या, अग्निहोत्र) को पूर्ण करो। महर्षि के परम उदार वचन सुनकर वे नरश्रेष्ठ राम और लक्ष्मण वीर, स्नान और आचमन करके परम जप गायत्री मंत्र का जप करने लगे।

*पुनः विश्वामित्र के आश्रम में संध्योपासना*

कुमारावेव तां रात्रिमुषित्वा सुसमाहितौ। प्रभातकाले चोत्थाय पूर्वां संध्यामुपास्य च ॥ १-२९-३१
प्रशुची परं जप्यं समाप्य नियमेन च ।
हुताग्निहोत्रमासीनं विश्वामित्रमवन्दताम् ॥ १-२९-३२

- वे दोनों राजकुमार भी सावधानी के साथ रात व्यतीत करके सवेरे उठे और स्नान आदि से शुद्ध हो, प्रातःकाल की संध्योपासना तथा नियमपूर्वक सर्वश्रेष्ठ गायत्री मंत्र का जप करने लगे। जप पूरा होने पर उन्होंने अग्रिहोत्र करके बैठे हुए विश्वामित्र जी के चरणों में वन्दना की।

*अयोध्या में राज्याभिषेक से पूर्व प्रातः संध्योपासना*

एकयामावशिष्टायां रात्र्यां प्रतिविबुध्य सः। अलञ्कारविधिं कृत्स्नं कारयामास वेश्मनः ॥ २-६-५
तत्र शृण्वन् सुखा वाचः सूतमागधवन्दिनाम्। पूर्वां सन्ध्यामुपासीनो जजाप यतमानसः ॥ २-६-६

- जब तीन पहर बीतकर एक ही पहर रात शेष रह गयी, तब वे शयन से उठ बैठे। उस समय उन्होंने सभामण्डप को सजाने के लिये सेवकों को आज्ञा दी। वहां सूत, मागध और बंदियों की श्रवण-सुखद वाणी सुनते हुए, श्रीराम प्रातःकालिक संध्योपासना हेतु बैठकर एकाग्रचित्त होकर जप करने लगे।

****************************
*श्रीराम लक्ष्मण और सीता द्वारा संध्योपासना के अन्य प्रमाण*

ततः चीर उत्तर आसङ्गः संध्याम् अन्वास्य पश्चिमाम् । जलम् एव आददे भोज्यम् लक्ष्मणेन आहृतम् स्वयम् ॥ २-५०-४८

- तत्पश्चात् वल्कल का उत्तरीय वस्त्र धारण करने वाले श्रीराम ने सायंकाल की संध्योपासना करके, भोजन के नाम पर स्वयं लक्ष्मण का लाया हुआ जलमात्र पी लिया।

स तम् वृक्षम् समासाद्य संध्याम् अन्वास्य पश्चिमाम् । रामः रमयताम् श्रेष्ठैति ह उवाच लक्ष्मणम् ॥ २-५३-१
- उस वृक्ष के नीचे पहुंचकर आनंद प्रदान करने वालों में श्रेष्ठ श्रीराम ने सायंकाल की‌ संध्योपासना करके लक्ष्मण से इस प्रकार कहा।

उपास्य पश्चिमाम् संध्याम् सह भ्रात्रा यथा विधि । प्रविवेश आश्रम पदम् तम् ऋषिम् च अभ्यवादयत् ‌‌॥ ४-११-६९

- अपने भाई लक्ष्मण के साथ विधिपूर्वक सायंकालीन संध्योपासना करके श्रीराम ने अगस्त्य मुनि के आश्रम में प्रवेश किया।

*अशोक वाटिका में सीता जी के द्वारा संध्योपासना करने के लिए नदी पर आने का श्री हनुमान् द्वारा वर्णन* -

संध्या काल मनाः श्यामा ध्रुवम् एष्यति जानकी । नदीम् च इमाम् शिव जलाम् संध्या अर्थे वर वर्णिनी ॥ ५-१४-४९

- संध्याकाल में मन लगाने वाली सीता संध्या करने के लिए इस नदी पर अवश्य आएगी।

*🌻 संध्या का अर्थ है 🌻* -

'सन्ध्यायन्ति सन्ध्यायते वा परब्रह्म यस्यां सा सन्ध्या' अर्थात् जिसमें भली-भाँति परमेश्वर का ध्यान करते हैं अथवा जिसमें परमेश्वर का ध्यान किया जाय, वह सन्ध्या कहाती है। - (पञ्चमहायज्ञ विधि)

उद्यन्तमस्तं यन्तमादित्यमभिध्यायन् कुर्वन् ब्राह्मणो विद्वान् सकलं भद्रमश्नुते। - (तैत्तिरीय आ ०२ । प्रपा ०२ । अनु०२)

अर्थ - जब सूर्य के उदय और अस्त का समय आवे, उसमें नित्य प्रकाशस्वरूप आदित्य परमेश्वर की उपासना करता हुआ ब्रह्मोपासक ही मनुष्य सम्पूर्ण सुख को प्राप्त होता है। इससे सब मनुष्यों को उचित है कि दो समय में परमेश्वर की नित्य उपासना किया करें।

तस्माद् ब्राह्मणोऽहोरात्रस्य संयोगे सन्ध्यामुपास्ते। स ज्योतिष्या ज्योतिषो दर्शनात् सोऽस्याः काल:, सा सन्ध्या। तत् सन्ध्यायाः सन्ध्यात्वम्॥ (षड्विश ब्रा० प्रपा० ४ । खं० ५)

अर्थ - ब्रह्म का उपासक मनुष्य रात्रि और दिवस के सन्धि समय में नित्य उपासना करे। जो प्रकाश और अप्रकाश का संयोग है, वही संध्या का काल जानना और उस समय में जो सन्ध्योपासन की ध्यान-क्रिया करनी होती है, वह सन्ध्या है। और जो एक ईश्वर को छोड़ के दूसरे की उपासना न करनी तथा सन्ध्योपासन कभी न छोड़ देना, इसी को सन्ध्योपासन कहते हैं ।।

पूर्वां सन्ध्यां जपंस्तिष्ठेत् सावित्रीमर्कदर्शनात् । पश्चिमां तु समासीनः सम्यग् ऋक्षविभावनात् ।। - (मनुस्मृति २ । १०१)

अर्थ - दो घड़ी रात्रि से सूर्योदय पर्यन्त प्रातः सन्ध्या और सूर्यास्त से लेकर अच्छे प्रकार तारों के दर्शन पर्यन्त सायंकाल में भलीभांँति स्थित होकर, सविता अर्थात् सब जगत् की उत्पत्ति करने वाले परमेश्वर की उपासना, सावित्री/गायत्र्यादि मन्त्रों का जप करते हुए इनके अर्थ विचारपूर्वक, नित्य करने के लिए बैठे। (पञ्चमहायज्ञ विधि)

इन प्रमाणों से स्पष्ट ही संध्योपासना में नेत्र बंद करके अपने भीतर ईश्वर-ध्यान और गायत्री आदि श्रेष्ठ वेदमंत्रों का जप करते हुए ईश्वर की उपासना करना है। ईश्वर की प्राप्ति भी वहीं हो सकती है, जहां आत्मा और परमात्मा दोनों का निवास हो अर्थात् हमारा अंतःकरण।

*☀️ जय श्रीराम! ☀️*

*🙏॥ओ३म् शम्॥🙏*