संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🙏 17.4.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा,🙏💐

उत दासस्य वर्चिनः सहस्राणि शतावधीः।
अधि पञ्च प्रधीँरिव॥ ऋग्वेद ४-३०-१५॥🙏💐

हे शासक ! आप समाज में उपस्थित हजारों दुष्टों का नाश करो। आप उन दुष्टों का भी नाश करो जो आपके साथ पहिऐं की धुरी में जुड़े पांच अरों की तरह जुड़े हुए हैं। आप श्रेष्ठ मनुष्यों का सत्कार करो।🙏💐

O ruler ! Destroy thousands of evildoers present in society. You should also destroy the demons who are surrounding you like the five spokes attached to the wheel axle.You should respect good human beings. (Rig Veda 4-30 -15)🙏💐#vedgsawan🙏💐
🙏 18.4.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा🙏🌹

अनु द्वा जहिता नयोऽन्धं श्रोणं च वृत्रहन्।
न तत्ते सुम्नमष्टवे॥ ऋग्वेद ४-३०-१९॥🙏🌹

उस शासक का सुख कभी समाप्त नहीं होता जो अंधे और अपगों का ध्यान रखता है। शासक को समाज में ऐसे लोगों का सम्मान सुनिश्चित करना चाहिए।🙏🌹

The happiness of the ruler who cares for the blind and the handicapped never ends. The ruler has to ensure respect of such people in the society. (Rig Veda 4-30 -19)🙏🌹#vedgsawan🙏🌹
https://youtu.be/wAfG6h6eXL4

🌿चैत्रमासे निम्बपर्णम्। ---पूर्णतः वैज्ञानिकम्।
🌿चैत्र मास में नीम के पत्ते खाना असली चिकित्सा-विज्ञान है।
🌿लेकिन इसको छोडकर विकृत एलोपथी दवाओं के पीछे ही भागते रहना यह स्वयं ही शरीर को रोगीष्ट बनाने का धंधा है।

🌿अब भी समय है....
जागे और सही भारतीय चिकित्सा-विज्ञान को अपनाकर सदैव नीरोगी रहे।
हम भी एसे ही जी रहे तो ...आप भी जीये और आनन्द पाइये.....
🙏नमो नमः।🙏धन्यवादः।🌻🌷
Sunday, April 18, 2021

 पश्चिमवंगः - पञ्चमसोपाने मतदानं ७८.३६%।

कोल्कोत्ता> पश्चिमवंग-विधानसभा-निर्वाचनस्य गतदिने सम्पन्ने पञ्चमचरणे ७८.३६% सम्मतिदायकाः स्वाभिमतं ज्ञापितवन्त इति प्रथमविशकलने सूच्यते। ४५ मण्डलेषु मतदानं सम्पन्नम्। तत्र तत्र संघट्टनानि जातानीति सूच्यते।

 केरले कोविड्व्यापनमतितीव्रम् ; गतदिने त्रयोदशसहस्राधिकाः नूतनरोगिणः। 

   अनन्तपुरी> केरले कोविड्रोगस्य द्वितीयं तरङ्गमतिशक्तम्। गतदिने ८१,२११ जनानां स्रवशोधने सम्पन्ने १३,८३५ जनेषु कोविड्बाधा दृढीकृता। परिशोधनायाः स्पष्टतामानं [rate of test positivity] १७.०४ इति वर्धितम्। किन्तु मृत्युमानं ०.४ इति न्यूनातिन्यूनमस्ति। 

  गतदिनद्वयेषु राज्ये आयोजिते बृहत्परिमाणस्रवविमर्शे [massive swabtest] त्रिलक्षाधिकाः स्रवादर्शाः सञ्चिताः। तेषु कश्चिदंशस्य फलमेव ह्यः बहिरागतम्। कोविड्बाधितानां चिकित्सार्थं राज्यं पूर्णतया सज्जमिति स्वास्थ्यमन्त्रिणी के के शैलजा अवोचत्।

 त्रिंशदधिकेषु सन्न्यासिवर्येषु कोविड् - कुम्भमेला समापिता। 

हरिद्वारं> अखिलभारत अखाडपरिषदः नेतारं महान्त् नरेन्द्रगिरिवर्यमभिव्याप्य ३० अधिकेषु सन्न्यासिप्रमुखेषु कोविड्रोगबाधा दृढीकृता। किञ्च गतपञ्चदिनेषु कुम्भमेलायां भागभागं कृतवन्तः २१६७ तीर्थाटकाश्च कोविड्बाधिताः अभवन्। अतः कुम्भमेलां समापयितुं प्रधानमन्त्रिणः नेतृत्वे सम्पन्नायां चर्चायां निर्णीतम्।  

  रोगव्यापनमालक्ष्य कुम्भमेलाकार्यक्रमेभ्यः प्रतिनिवृत्तमाणाः इति  अखाडसंस्थया  निरञ्जिनि इत्यनया निगदितम्। कुम्भमेलायाः प्रधानकार्यक्रमः 'षाहिस्नानं' समाप्तमित्यतः मेला समाप्तिप्राया अभवदिति निरञ्जिनि अखाडस्य कार्यदर्शिणा रवीन्द्रपुरिणा उक्तम्।

~ संप्रति वार्ता
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

वरमेको गुणी पुत्रो
न च मूर्खशतान्यपि ।
एकश्चन्द्रस्तमो हन्ति
न च तारागणा अपि ॥
18 ॥

पुण्यतीर्थे कृतं येन
तपः क्वाप्यतिदुष्करम् ।
तस्य पुत्रो भवेद्वश्यः
समृद्धो धार्मिकः सुधीः
॥ 19 ॥

अर्थ:

सौ मूर्ख पुत्रों के होने पर भी एक गुणवान पुत्र श्रेष्ठ है, जैसे आकाश में करोड़ों तारे होते हुए भी अंधकार को केवल चंद्रमा ही मिटाता है।। 18 ।।

किसी पुण्यक्षेत्र में अत्यंत कठिन तपस्या करने पर ही वशीभूत, संपत्ति से युक्त, धर्माचरण करनेवाला और बुद्धिमान पुत्र प्राप्त होता है।। 19 ।।

मूल: हितोपदेश, प्रास्ताविका श्लोक 18 & 19
कवि: नारायणपंडित (10/11वीं शती)

MEANING:

It is better to have one child with good qualities than a hundred foolish children, just as the moon is superior to a cluster of stars by dispelling darkness.

A child is considered obedient, financially and mentally sound, and religious only when his father endures the hardship of penance during pilgrimage.

Source: Hitopadeśa, Prastāvikā, Verses 18 and 19
Author: Nārayāṇapaṇḍita (10th-11th century AD)

© Sanjeev GN #Subhashitam
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।


🍃प्राची होने दी राजा दिशं स्कुलवर्धनः।
अध्वर्यवे प्रतीची तु ब्रह्मणे दक्षिणां दिशम्॥४१॥

उद्गात्रे च तथोदीचीं दक्षिणैपा विनिर्मिता ।
अश्वमेधे महायज्ञे स्वयंभूविहिते पुरा॥४२॥

क्रतुं समाप्य तु तदा न्यायतः पुरुषर्षभः ।
ऋत्विग्भ्यो हि ददौ राजा धरां तां कुलवर्धनः ॥४३॥

⚜️स्वकुल-वृद्धि-कारक महाराज दशरथ ने इस महायज्ञ को यथा विधि समाप्ति पर पूर्व दिशा का राज्य होता को, पश्चिम का अध्वर्यु को, दक्षिण दिशा का ब्रह्मा को और उत्तर दिशा का उद्गाता को यज्ञ की दक्षिणा में दिया। स्त्रायंभुवमनु ने जिस प्रकार अपने महायज्ञ में, पूर्वकाल में, दक्षिणा दी थी, उसी प्रकार दशरथजी ने दी । तब यज्ञ को शास्त्रानुसार विधिवत् समाप्त कर, पुरुषश्रेष्ठ महाराज ने ऋत्विजों को पृथिदान कर दी॥४१॥४२॥ ४३॥

#Ramayan
📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें

📙 ऋग्वेद

सूक्त-२३, प्रथम मंडल ,
मंत्र-२४ देवता-वायु आदि

🍃सं माग्ने वर्चसा सृज सं प्रजया समायुषा. विद्युर्में अस्य देवा इन्द्रो विद्यात्सह ऋषिभिः.. (२४)

⚜️हे अग्नि! मुझे तेज, संतान और आयु दो, जिससे देवगण, इंद्र और ऋषि-समूह मेरे यज्ञ को जान सकें. (२४)

👉🏻🚩सूक्त 23 समाप्त हुआ #rgveda
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - सप्तमी रात्रि 12:01 तक तत्पश्चात अष्टमी


दिनांक - 19 अप्रैल 2021
दिन - सोमवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - ग्रीष्म
मास - चैत्र
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - पुनर्वसु पूर्ण रात्रि तक
योग - सुकर्मा रात्रि 08:07 तक तत्पश्चात धृति
राहुकाल - सुबह 07:52 से सुबह 09:27 तक
सूर्योदय - 06:17
सूर्यास्त - 18:58
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
चाणक्य नीति ⚔️
✒️द्वादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१३

निमन्त्रणोत्सवा विप्रा गावो नवतृणोत्सवाः।
पत्युत्साहयुता नार्याः अहं कृष्ण-रणोत्सवः।।13।।

♦️भावार्थ-- आचार्य कहते हैं, जिस प्रकार ब्राह्मण के लिए यजमान से निमंत्रण पाना प्रसन्नता लाता है वहां उसे स्वादिष्ट भोजन और दान दक्षिणा मिलती है|

गाय के लिए हरी भरी घास का मिलना ही उत्सव है, पत्नी के लिए पति की प्रसन्नता उत्सव है, लेकिन एक सज्जन और साधू के लिए भीषण मुसीबतों और युद्धों में भी ख़ुशी और अनुराग उत्सव है

#chanakya
https://youtu.be/uzs0qPNFYzQ
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes sanskrit news.
writereaddata_Bulletins_Text_NSD_2021_Apr_NSD_Sanskrit_Sanskrit.pdf
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१९.०४ आकाशवाणी संस्कृत
By Telegram Channel संस्कृत संवाद: @samskrtsamvadah


संस्कृत सीखने के तरीकें—
(Methods of Learning Sanskrit)

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२. गीतासोपान — संस्कृत भारती

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५. Medha Michika

६. Learn Sanskrit in 30 days

७. SamskrutaShri Patamala — Tamil Medium


⭐️ Videos :–
१.Video Series by Knowledgelogy — हिंदी माध्यम

२. Video series by Sanskrit.Today (English medium)

३. Central Sanskrit University — Sanskrit Medium

४. IIT Kharagpur — Prof. Anuradha Chaudhary

५. Samskrita Bharati USA — Dr.K.N. Padma Kumar

६. कैलाश शर्मा — हिंदी माध्यम


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५. Samskrit Bharati Kerela


⭐️ Websites
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चलचित्र द्वारा

२. Practical Sanskrit — English medium

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४. अमरहासम्

५. Acharya — English medium

६. Good for foreigners

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जयरामेण प्रणीतम्
॥प्लववत्सरपञ्चकम्॥

A Pentad of verses on Plava year by Jayaraman Mahadevan.

(The word Plava means to leap, jump, float)

पुप्लुवे सागरं दीर्घं मारुतिः पारगस्तथा।
दुस्थितेः पारगत्वं स्यात् शुभे नः प्लवहायने॥१॥

 
In ancient times Maruti leapt across the great ocean and reached the other shores. Similarly in this year of plava (leap), let us also leap across our sufferings and attain safer shores.

उडुपः प्लवते नद्यां तरणे करणं हि सः।
सत्कार्ये करणं स्याम प्रार्थ्यते प्लवहायने॥२॥

 
A small boat floats (plavate) in the river. It is instrumental in crossing (the river). It is prayed that we may also be instruments in some good work in this year of Plava (leap/float). 

प्लवगस्य शिशुर्यद्वत् संश्लिष्येद् मातरं दृढम्।
दृढभक्ता तथा चेशे स्यामास्मिन् प्लवहायने॥३॥

 
The kid of a monkey (plava-ga) holds onto its mother firmly. It is prayed that, similarly, our devotion to the divinity may also be firm in this year of Plava..

प्लवगौ कपिभेकौ तावुरुविक्रमणः कपिः (हरिः)।
तथोरुक्रमणाः स्याम शुभेऽस्मिन् प्लवहायने॥४॥

 
Both monkey and frog are called plavaga (as both leap/jump). But the stride of the monkey (hari/monkey) is wider (Hari also refers to Lord Narayana, who covered the entire universe in three steps). Similarly let us make wide strides (of progress) in this year of Plava. 

अप्सु संप्लवते पद्मपत्रं तन्नार्द्रतां व्रजेत्।
तथा निस्पृहता नः स्यात् प्रार्थ्यते प्लवहायने॥५॥

 
The lotus leaf floats (plavate) on the water but does not get wet. It is prayed that, in the same manner, we may develop the quality of overcoming attachments in this year of Plava.

#Celebrating_Sanskrit
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

कुर्वन्नपि व्यलीकानि
यः प्रियः प्रिय एव सः।
अशेषदोषदुष्टोऽपि
कायः कस्य न वल्लभः।। 368/121।।

अर्थः:

जो प्रिय होता है, वह चाहे कितना भी बुराई करे, प्रिय ही होता है, जैसे शरीर में समस्त दोषों या रोगों से युक्त होने पर भी किसको प्रिय नहीं है?

MEANING:

As a body, even if afflicted with all sorts of ailments, remains dear to its owner, a beloved person remains beloved even if he commits many faults.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

© Sanju GN #Subhashitam
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

अप्रियाण्यपि कुर्वाणो
यः प्रियः प्रिय एव सः।
दग्धमन्दिरसारेऽपि
कस्य वह्नावनादरः।। 369/122।।

अर्थः:

मंदिर को जला कर भस्म करने पर अग्नि को क्या कोई अनादर करता है? जो प्रिय होता है, वह कितना भी बुरा बर्ताव करें, वह प्रिय ही होता है।

MEANING:

Even if the fire burns down a temple to ashes, does anyone disrespect it? A beloved person remains beloved no matter how much wrong he does.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

© Sanju GN #Subhashitam
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।। चतुर्दशः सर्गः ।।

🍃 ऋत्विजस्त्वब्रुवन्सर्वे राजानं गतकल्मपम्।
भवानेव महीं कृत्स्नामेको रक्षितुमर्हति ॥४४॥

न भूम्या कार्यमस्माकं न हि शक्ताः स्म पालने।
रताः वाध्यायकरणे वयं नित्यं हि भूमिप॥४५॥

निष्क्रयं किचिदेवेह प्रयच्छतु भवानिति।
मणिरत्नं सुवर्ण वा गावे यद्वा समुद्यतम् ॥४६॥

तत्प्रयच्छ नरश्रेष्ठ धरण्या न प्रयोजनम्।
एवमुक्तो नरपतित्राह्मै्वेदपारगैः ॥ ४७॥

जब दशरथ ने अपने राज्य की सारी भूमि यज्ञ कराने वाले ब्राह्मणों को दे दी, तब सब ब्राह्मण निष्पाप महाराज दशरथ से वाले कि, हे नरनाथ! इस भूमि की रक्षा तो आप ही कर सकते हैं। न तो हमें भूमि की आवश्यकता है और न हम इसका पालन ही करने में समर्थ हैं। क्यों कि हम लोग वेदपाठ में लगे रहते हैं अर्थात् हमें जमींदारी या राज्य के झंझटों में पड़ने की फुरसत कहाँ है ।अतएव आप तो हमें इस भूमिदान के बदले मणि, रत्न, सुवर्ण,गौएँ-जो आप देना चाहे दे दें। हम भूमि लेकर क्या करेंगे ? वेद प्रांगन ब्राह्मणों के ये वचन सुनें॥४४॥४५॥४६॥ ४७॥

#Ramayan