संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
5.1K subscribers
3.13K photos
297 videos
309 files
5.92K links
Largest Online Sanskrit Network

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
Download Telegram
क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय ।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम्
॥5॥

अन्वय – हि नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रुः देहस्थितः क्रोधः (अस्ति)। हि यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव) सः एव (शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।

सरलार्थ - निश्चय ही मनुष्यों के शरीर के विनाश के लिए प्रथम शत्रु शरीर में स्थित क्रोध है। क्योंकि जैसे लकड़ी में स्थित आग लकड़ी को ही जलाती है, वैसे ही शरीर में स्थित क्रोध ही शरीर को जला देता है।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनाऽऽगमे। मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।। = कार्य में नियुक्त करने पर नौकरों की, दुःख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्रों की और धन नष्ट होने पर स्त्री की परीक्षा होती है। आतुरे व्यसने प्राप्ते…
तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयुरा घनगर्जिते।
साधवः परसम्पत्तौ खलः परविपत्तिषु।।
= ब्राह्मण भरपेट भोजन मिलने पर, मोर बादलों के गरजने पर, सज्जन दूसरों के सम्पन्न होने पर और दुष्ट अन्यों की विपत्ति में प्रसन्न होते हैं।

आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा स्मृतिः।
स्मृतिलम्भे सर्वग्रन्थीनां विप्रमोक्षः।।
= आहार (इन्द्रियों के विषय) के शुद्ध हो जाने पर अन्तःकरण की मलिनता दूर हो जाती है। अन्तःकरण के शुद्ध होने पर आत्मस्वरूप की स्थिर स्मृति प्राप्त होती है। आत्मस्वरूप के सतत स्मरण से (अविद्यारूपी) सब गांठे खुल जाती हैं।

अजीर्णे भेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।।
= अपच में पानी पीना औषध के समान है, भोजन पचने पर पीना बलदायक है, भोजन के मध्य जल का सेवन अमृत के समान है और भोजन के अन्त में पानी पीना विषतुल्य हानिकारक है।

एकवृक्षसमारूढा नाना वर्णाः विहङ्गमाः।
प्रभाते दिक्षु दशसु का तत्र परिदेवना।।
= अनेक रंग व रूपोंवाले पक्षी सायंकाल होने पर एक वृक्ष पर आकर बैठ जाते हैं और प्रातःकाल होने पर समस्त दसों दिशाओं में उड़ जाते हैं। (ऐसे ही बन्धु-बान्धव एक परिवार में मिलते हैं और बिछुड़ जाते हैं) इस विषय में शोक यानी रोना-धोना कैसा ?

सम्पत्सु महतां चित्तं भवत्युत्पलकोमलम्।
आपत्सु च महाशैलशिलासंघातकर्कशम्।।
= समृद्धि में महापुरुषों का चित्त नीलकमल के समान कोमल हो जाता है परन्तु आपत्ति में वह महापर्वत के पत्थरों के समान कठोर हो जाता है।

राज्ञि धर्मिणि धर्मिष्ठाः पापे पापाः समे समाः।
राजानमनुवर्तन्ते यथा राजा तथा प्रजाः।।
= राजा के धार्मिक होने पर प्रजा भी धर्मपरायण, राजा के पापी होने पर प्रजा भी पापी तथा राजा के उदासीन होने पर प्रजा भी उदासीन होती है। प्रजा राजा का अनुसरण करती है अर्थात् जैसा राजा हुआ करता है प्रजा भी वैसे ही हो जाती है।

देहाभिमाने गलिते विज्ञाते परमात्मनि।
यत्र यत्र मनो याति तत्र तत्र समाधयः।।
= देह के अभिमान का नाश और परमात्म-निष्ठ हो जाने पर जहां-जहां मन जाता है वहीं-वहीं समाधि समझनी चाहिए।

यथा धेनुसहस्रेषु वत्सो गच्छति मातरम्।
तथा यच्च कृतं कर्म कर्त्तारमनुगच्छति।।
= हजारों गायों में भी बछड़ा अपनी मां के पास पहुंच जाता है, वैसे ही असंख्य जीवों के होने पर भी किया हुआ कर्म कर्ता तक पहुंच ही जाता है।

वहेदमित्रं स्कन्धेन यावत्कालस्य पर्ययः।
ततः प्रत्यागते काले भिन्द्यात् घटमिवाश्मनि।।
= जब तक समय अपने अनुकूल न हो तब तक शत्रु को अपने कन्धे पर ढोना चाहिए अर्थात् उसका आदर-सत्कार करना चाहिए। परन्तु जब समय अपने अनुकूल आ जाए तो उसे उसी प्रकार नष्ट कर दे जैसे घड़े को पत्थर पर पटककर फोड़ डालते हैं।

रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातं, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार।।
= सायंकाल प्रेम के बन्धन में फंसकर मुंदी हुई कमलिनी के भीतर बैठा हुआ एक भौंरा इस प्रकार सोच रहा था- रात बीत जाएगी, सुन्दर प्रभात होगा, सूर्योदय होगा और कमल खिल उठेगा, तब मैं यहां से मुक्त हो जाऊंगा। किन्तु दुःख है कि भौंरा इस प्रकार चिन्तन कर ही रहा था कि एक हाथी ने उस कमल को उखाड़कर फैंक दिया।

यस्मिन्रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।
= जिसके क्रोधित होने पर कोई भय नहीं है और प्रसन्न होने पर धन-प्राप्ति की कोई आशा भी नहीं है, जो न दण्ड दे सकता है और कृपा ही कर सकता है, ऐसा व्यक्ति रुष्ट होता है तो क्या बिगाड़ लेगा ?

#vakyabhyas
Teacher :- You didn't wash your mouth well, right ? I can tell you from your face , what you ate in the morning !
Student :- Is it so ? Then please tell !
Teacher :- Its Biriyani , no ?
Student :- No madam, you are wrong ! I ate biriyani last night only. Ha..ha..ha

#hasya
🍃यथा प्रदीप्तं ज्वलनं पतङ्गा विशन्ति नाशाय समृद्धवेगाः।
तथैव नाशाय विशन्ति लोका स्तवापि वक्त्राणि समृद्धवेगाः
।।11.29।।

♦️yathaa pradiiptaM jvalanaM pata~Ngaa
vishanti naashaaya samRRiddhavegaaH|
tathaiva naashaaya vishanti lokaa
stavaapi vaktraaNi samRRiddhavegaaH

As moths rush with great speed into the blazing flame for destruction, similarly all these people are rapidly rushing into Your mouths for destruction. (11.29)

जैसे पतंगे अपने नाश के लिए प्रज्वलित अग्नि में अतिवेग से प्रवेश करते हैं? वैसे ही ये लोग भी अपने नाश के लिए आपके मुखों में अतिवेग से प्रवेश करते हैं।।11.29।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.29]
🍃लेलिह्यसे ग्रसमानः समन्ता ल्लोकान्समग्रान्वदनैर्ज्वलद्भिः।
तेजोभिरापूर्य जगत्समग्रं भासस्तवोग्राः प्रतपन्ति विष्णो
।।11.30।।

♦️lelihyase grasamaanaH samantaa
llokaansamagraanvadanairjvaladbhiH|
tejobhiraapuurya jagatsamagraM
bhaasastavograaH pratapanti viShNo

You are licking up all the worlds with Your flaming mouths, swallowing them from all sides. Your powerful radiance is burning the entire universe, and filling it with splendor, O Krishna.(11.30)

हे विष्णो आप प्रज्वलित मुखों के द्वारा इन समस्त लोकों का ग्रसन करते हुए आस्वाद ले रहे हैं आपका उग्र प्रकाश सम्पूर्ण जगत् को तेज के द्वारा परिपूर्ण करके तपा रहा है।।11.30।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.30]
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - त्रयोदशी रात्रि 03:55 ( 15 अप्रैल प्रातः ) तक तत्पश्चात चतुर्दशी

⛅️दिनांक 14 अप्रैल 2022
⛅️दिन - गुरुवार
⛅️विक्रम संवत - 2079
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र -पूर्वाफाल्गुनी सुबह 09:56 तक तत्पश्चात उत्तरा फाल्गुनी
⛅️योग - वृद्धि सुबह 09:52 तक तत्पश्चात ध्रुव
⛅️राहुकाल - अपरान्ह 02:15 से 03:50 तक
⛅️सर्योदय - 06:20
⛅️सर्यास्त - 07:00
⛅️दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram
🍃रात्रिर्गमिष्यति भविष्यति सुप्रभातम्, भास्वानुदेष्यति हसिष्यति पङ्कजश्रीः ।
इत्थं विचिन्तयति कोशगते द्विरेफे, हा हन्त हन्त नलिनीं गज उज्जहार॥


🔅कोशगते द्विरेफे इत्थम् विचिन्तयति -" रात्रि: गमिष्यति, सुप्रभातम् भविष्यति, भास्वान् उदेष्यति, पञ्कजश्रीः हसिष्यति-" (किन्तु ) हा हन्त हन्त ! नलिनीम् गजः उद्-जहार !!

As the bee, stuck in the lotus bud, was thinking; "The night will pass, dawn will arrive, the sun will rise and the lotus will bloom" - Alas, alas, an elephant uprooted the lotus!!

#Subhashitam
करोति — कर्तव्यः
ददाति — दातव्यः
शक्नोति — ?
Anonymous Quiz
9%
शक्नतव्यः
8%
शातव्यः
6%
शकतव्यः
7%
शक्तवयः
69%
शक्तव्यः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
तुष्यन्ति भोजने विप्रा मयुरा घनगर्जिते। साधवः परसम्पत्तौ खलः परविपत्तिषु।। = ब्राह्मण भरपेट भोजन मिलने पर, मोर बादलों के गरजने पर, सज्जन दूसरों के सम्पन्न होने पर और दुष्ट अन्यों की विपत्ति में प्रसन्न होते हैं। आहारशुद्धौ सत्त्वशुद्धिः सत्त्वशुद्धौ ध्रुवा…
न निर्मितः केन न दृष्टपूर्वः, न श्रूयते हेममयः कुरङ्गः।
तथाऽपि तृष्णा रघुनन्दनस्य, विनाशकाले विपरीतबुद्धिः।।
= स्वर्णमृग की रचना न तो पहले किसी ने की, न किसी ने स्वर्णमृग देखा, और न कभी उसके सम्बन्ध में सुना गया। फिर भी श्रीराम स्वर्णमृग को पकड़ने के लिए आतुर हो गए। ऐसा लगता है कि विनाशकाल आने पर मनुष्य की बुद्धि उलटी हो जाती है।

कृते प्रतिकृतं कुर्याद् हिंसने प्रतिहिंसनम्।
तत्र दोषो न पतति दुष्टे दुष्टं समाचरेत्।।
= उपकारी के प्रति उपकार और हिंसक के प्रति हिंसा का व्यवहार करना चाहिए, ऐसा करने से कोई दोष नहीं लगता। क्योंकि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार उचित होता है अर्थात् वह इसी भाषा को समझता है।

अध्रुवे हि शरीरे यो न करोति तपोऽर्जनम्।
स पश्चात्तप्यते मूढो मृते गत्वाऽऽत्मगतिम्।।
= यह शरीर क्षणभङ्गुर है। जो मनुष्य इसे पाकर तप का अनुष्ठान नहीं करता वह मूर्ख मरने के पश्चात् जब कर्मफल मिलता है, तब दुःखी होता है।

वयसः परिणामेऽपि यः खलः खल एव सः।
सुपक्वमपि माधुर्यं नोपयातीन्द्रवारुणम्।।
= जैसे अत्यन्त पक जाने पर भी इन्द्रायण के फल में मिठास नहीं आती, वह कड़वा ही बना रहता है ठीक वैसे ही वयोवृद्ध हो जाने पर भी जो दुष्ट है वह दुष्ट ही बना रहता है।

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।
= चित्त के प्रसन्न होने पर समस्त दुःखों का अभाव हो जाता है और इस प्रसन्न चित्तवाले की बुद्धि निश्चय से शीघ्र ही स्थिर हो जाती है।

खल्वाटो दिवसेश्वरस्य किरणैः सन्तापिते मस्तके, वाञ्छन्देशमनातपं विधिवशात्तालस्य मूलं गतः।
तत्राप्यस्य महाफलेन पतता भग्नं सशब्दं शिरः, प्रायो गच्छति यत्र दैवहतकस्तत्रैवयान्त्यापदः।।
= सिर पर पड़नेवाली सूर्य की किरणों से सन्तप्त एक गंजा छायास्थान खोजता हुआ भाग्यवश ताड़ के पेड़ के नीचे जा पहुंचा। जहां एक बहुत बड़ा फल धड़ाम से उसके सिर पर गिर पड़ा जिससे उसका सिर फट गया। भाग्यहीन मनुष्य जहां भी पहुंच जाता है विपत्तियां वहीं उसका पीछा करती हैं।

दैवेन प्रभुणा स्वयं जगति यद्यस्य प्रमाणीकृतम्, तत्तस्योपनमेन्मनागपि महान्नैवाश्रयः कारणम्।
सर्वाऽऽशापरिपूरके जलधरे वर्षत्यपि प्रत्यहं, सूक्ष्मा एव पतन्ति चातकमुखे द्वित्राः पयोबिन्दवः।।
= सर्वशक्तिमान परमात्मा ने (कर्मानुसार) सब का भाग्य जैसा निर्धारित किया है, वह उसे अवश्य मिलेगा। इसके लिए किसी को भी सिफारिश की थोड़ी सी भी आवश्यकता नहीं है। उदाहरण के लिए चातक को देखिए- प्रतिदिन चारों दिशाओं को भर देनेवाली घनघोर वर्षा के बीच मुंह खोलकर बैठे रहने पर भी उसके मुख में वर्षा की छोटी-छोटी दो-चार बूंदे ही पड़ पाती हैं।

छिन्नोऽपि रोहति तरुः क्षीणोऽप्युपचीयते पुनश्चन्द्रः।
इति विमृशन्तः सन्तः सन्तप्यते न दुःखेषु।।
= कट जाने पर भी समय पाकर वृक्ष फिर से पल्लवित हो बढ़ता है, क्षीण होने पर भी चन्द्रमा पुनः बढ़ता है। इस प्रकार का विचार करनवाले सज्जन पुरुष विपत्ति आने पर दुःखी नहीं होते।

#vakyabhyas
Teacher - On the way I saw a man beating a donkey. I stopped him. What feeling was there in my action ?
Student - Sympathy towards own people. What else ?

#hasya
Sri Chambu Krishna sastri Mahodayh's recent tweet about UGC recent notification to allow two degrees simultaneously.
' Let all the Bharatiya Bhasha UG/PG students do a course from other streams also. Non-Bharatiya Bhasha UG/PG students, including technical/professional, do a Bharatiya Bhasha course since future job market will be for those who are good in both modern subjects & Bharatiya Bhasha! https://t.co/IC8cq2Zt3H

#SanskritEducation
🍃आख्याहि मे को भवानुग्ररूपो नमोऽस्तु ते देववर प्रसीद।
विज्ञातुमिच्छामि भवन्तमाद्यं न हि प्रजानामि तव प्रवृत्तिम्
।।11.31।।

♦️
aakhyaahi me ko bhavaanugraruupo
namo'stu te devavara prasiida|
vij~naatumichChaami bhavantamaadyaM
na hi prajaanaami tava pravRRittim

Tell me who are You in such a fierce form? My salutations to You, O best of gods, be merciful! I wish to understand You, the primal Being, because I do not know Your mission. (11.31)

(कृपया) मेरे प्रति कहिये? कि उग्ररूप वाले आप कौन हैं हे देवों में श्रेष्ठ आपको नमस्कार है आप प्रसन्न होइये। आदि स्वरूप आपको मैं (तत्त्व से) जानना चाहता हूँ क्योंकि आपकी प्रवृत्ति (अर्थात् प्रयोजन को) को मैं नहीं समझ पा रहा हूँ।।11.31।।

#geeta