🍃
♦️amii cha tvaaM dhRRitaraaShTrasya putraaH
sarve sahaivaavanipaalasa~NghaiH|
bhiiShmo droNaH suutaputrastathaa'sau
sahaasmadiiyairapi yodhamukhyaiH
⚜The sons of Dhritaraashtra along with the hosts of kings; Bheeshma, Drona, and Karna together with chief warriors on our side are also quickly entering into Your fearful mouths having terrible teeth. Some are seen caught in between the teeth with their heads crushed.(11.26-27)
⚜और ये समस्त धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश करते हैं। भीष्म द्रोण तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित.।।11.26।।
#geeta
अमी च त्वां धृतराष्ट्रस्य पुत्राः सर्वे सहैवावनिपालसङ्घैः।
भीष्मो द्रोणः सूतपुत्रस्तथाऽसौ सहास्मदीयैरपि योधमुख्यैः
।।11.26।।♦️amii cha tvaaM dhRRitaraaShTrasya putraaH
sarve sahaivaavanipaalasa~NghaiH|
bhiiShmo droNaH suutaputrastathaa'sau
sahaasmadiiyairapi yodhamukhyaiH
⚜The sons of Dhritaraashtra along with the hosts of kings; Bheeshma, Drona, and Karna together with chief warriors on our side are also quickly entering into Your fearful mouths having terrible teeth. Some are seen caught in between the teeth with their heads crushed.(11.26-27)
⚜और ये समस्त धृतराष्ट्र के पुत्र राजाओं के समुदाय सहित आप में प्रवेश करते हैं। भीष्म द्रोण तथा कर्ण और हमारे पक्ष के भी प्रधान योद्धाओं के सहित.।।11.26।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - एकादशी 13 अप्रैल सुबह 05:02 तक तत्पश्चात द्वादशी
⛅️दिनांक 12 अप्रैल 2022
⛅️दिन - मंगलवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - अश्लेषा सुबह 08:35 तक तत्पश्चात मघा
⛅️योग - शूल दोपहर 12:04 तक तत्पश्चात गण्ड
⛅️राहुकाल - अपरान्ह 03:50 से 05:24 तक
⛅️सर्योदय - 06:22
⛅️सर्यास्त - 06:59
⛅️दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
https://youtu.be/YxupQUTj1fo
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वार्ता: संस्कृत में समाचार | पीएम मोदी और अमेरिका राष्ट्रपति के बीच हुआ वर्चुअल संवाद
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
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✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।
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#chitram
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#chitram
उदीरितोऽर्थः पशुनापि गृह्यते हयाश्च नागाश्च वहन्ति बोधिताः। अनुक्तमप्यूहति पण्डितो जनः परेङ्गितज्ञानफला हि बुद्धयः
॥4॥ अन्वय - पशुना अपि उदीरितः अर्थः गृह्यते, (यथा) हयाः नागाः च बोधिताः (भार) वहन्ति। पण्डितः जनः अनुक्तम् अपि ऊहति, बुद्धयः परेङ्गितज्ञानफलाः भवन्ति ।
सरलार्थ - पशु के द्वारा भी कहा गया अर्थ समझ लिया जाता है। जैसे घोड़े और हाथी बताए गए (भार को) ढ़ोते हैं। ज्ञानी पुरुष बिना कहे हुए का भी अनुमान लगा लेते हैं, बुद्धियाँ दूसरों के संकेत से उत्पन्न ज्ञान रूपी फल वाली होती हैं।
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (३०) सप्तमी विभक्ति (४) (सति- सप्तमी :- जिस क्रिया से अन्य क्रिया बताई जा रही हो, तब उस पूर्ववाली क्रिया में तथा उस क्रिया के कर्ता व कर्म में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) मयि भक्षितेऽतिथयः आगमन्…
जानीयात् प्रेषणे भृत्यान् बान्धवान् व्यसनाऽऽगमे।
मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।।
= कार्य में नियुक्त करने पर नौकरों की, दुःख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्रों की और धन नष्ट होने पर स्त्री की परीक्षा होती है।
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे।
राजद्वारे स्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः।।
= रोगी होने पर, दुःखी होने पर, अकाल पड़ने पर शत्रु से संकट उपस्थित होने पर, किसी मुकदमे आदि में फंस जाने पर गवाह एवं सहायक के रूप में राजसभा में और मरने पर जो स्मशान में भी साथ देता है, वही सच्चा बन्धु है।
अस्ति पुत्रो वशे यस्य भृत्यो भार्या तथैव च।
अभावे सति सन्तोषः स्वर्गस्थोऽसौ महीतले।।
= जिसका पुत्र, सेवक और पत्नी वश में है, धन का अभाव होने पर भी जो सन्तुष्ट है वह मनुष्य भूतल पर भी स्वर्ग में रहता है।
उद्योगे नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकम्।
मौने च कलहो नास्ति नास्ति जागरिते भयम्।।
= पुरुषार्थी के पास दरिद्रता नहीं फटकती, जप करनेवाले के पास पाप नहीं रहता, मौन रहने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और जागनेवाले को भय नहीं होता।
लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।
= पांच वर्ष की आयु तक पुत्र का प्यार दुलार करना चाहिए, तत्पश्चात दस वर्ष तक (हठ, दुराग्रह करने पर) ताड़ना करनी चाहिए। और सोलहवां वर्ष आरम्भ होते ही पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए।
उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे भयावहे।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायेत् स जीवति।।
= बाढ, महामारी आदि उपद्रव उठने पर, आक्रमण होने पर, भयंकर दुर्भिक्ष में और दुष्टों का संग होने पर जो भागता है वही जीवित रहता है।
यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।।
= जब तक शरीर निरोग है और मृत्यु दूर है, तब तक आत्मकल्याण का उपाय कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु हो जाने पर कोई कुछ नहीं कर सकता।
यावत्स्वस्थमिदं शरीरमरुजं यावज्जरा दूरतो, यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान्, सन्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।।
= जब तक शरीर स्वस्थ और रोग रहित है, जब तक बुढापा दूर है, जब तक सभी इन्द्रियों में भरपूर शक्ति है, जब तक प्राणशक्ति क्षीण नहीं हुई है तब तक बुद्धिमान् को चाहिए कि अपने आत्मकल्याण के लिए महान् प्रयत्न करे। अन्यथा घर में आग लग जाने पर कुंआ खेदने से क्या लाभ ?
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
= अभ्यास (आवृत्ति) के बिना शास्त्र विष है, अर्थात् अर्थों की संगति लगाना समझाना कठिन है, अपच में भोजन विषतुल्य है, दरिद्र के लिए सभा विषसमान है अर्थात् सभा में कंगले को कोई नहीं पूछता और बूढे के लिए युवती विष समान है।
असम्भवं हेममृगस्य जन्म तथाऽपि रामो लुलुभे मृगाय।
प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोऽपि पुंसां मलिनी भवन्ति।।
= सोने के हिरण का जन्म असम्भव है, फिर भी श्रीराम स्वर्णमृग में लुब्ध हो गए। अतः निश्चय होता है कि विपत्ति आने के समय मनुष्य मलिनबुद्धि अर्थात् विचारशून्य हो जाता है।
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।।
= काल सब प्राणियों को पकाता है, काल ही सब प्रजा को नष्ट करता है। सब के सो जाने पर भी काल जागता रहता है। सचमुच काल बड़ा बलवान है, काल को कोई लांघ नहीं सकता।
#vakyabhyas
मित्रं चाऽऽपत्तिकालेषु भार्यां च विभवक्षये।।
= कार्य में नियुक्त करने पर नौकरों की, दुःख आने पर बान्धवों की, विपत्ति काल में मित्रों की और धन नष्ट होने पर स्त्री की परीक्षा होती है।
आतुरे व्यसने प्राप्ते दुर्भिक्षे शत्रुसंकटे।
राजद्वारे स्मशाने च यस्तिष्ठति स बान्धवः।।
= रोगी होने पर, दुःखी होने पर, अकाल पड़ने पर शत्रु से संकट उपस्थित होने पर, किसी मुकदमे आदि में फंस जाने पर गवाह एवं सहायक के रूप में राजसभा में और मरने पर जो स्मशान में भी साथ देता है, वही सच्चा बन्धु है।
अस्ति पुत्रो वशे यस्य भृत्यो भार्या तथैव च।
अभावे सति सन्तोषः स्वर्गस्थोऽसौ महीतले।।
= जिसका पुत्र, सेवक और पत्नी वश में है, धन का अभाव होने पर भी जो सन्तुष्ट है वह मनुष्य भूतल पर भी स्वर्ग में रहता है।
उद्योगे नास्ति दारिद्र्यं जपतो नास्ति पातकम्।
मौने च कलहो नास्ति नास्ति जागरिते भयम्।।
= पुरुषार्थी के पास दरिद्रता नहीं फटकती, जप करनेवाले के पास पाप नहीं रहता, मौन रहने पर लड़ाई-झगड़ा नहीं होता और जागनेवाले को भय नहीं होता।
लालयेत् पञ्चवर्षाणि दशवर्षाणि ताडयेत्।
प्राप्ते तु षोडशे वर्षे पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।
= पांच वर्ष की आयु तक पुत्र का प्यार दुलार करना चाहिए, तत्पश्चात दस वर्ष तक (हठ, दुराग्रह करने पर) ताड़ना करनी चाहिए। और सोलहवां वर्ष आरम्भ होते ही पुत्र के साथ मित्र जैसा व्यवहार करना चाहिए।
उपसर्गेऽन्यचक्रे च दुर्भिक्षे भयावहे।
असाधुजनसम्पर्के यः पलायेत् स जीवति।।
= बाढ, महामारी आदि उपद्रव उठने पर, आक्रमण होने पर, भयंकर दुर्भिक्ष में और दुष्टों का संग होने पर जो भागता है वही जीवित रहता है।
यावत्स्वस्थो ह्ययं देहो यावन्मृत्युश्च दूरतः।
तावदात्महितं कुर्यात् प्राणान्ते किं करिष्यति।।
= जब तक शरीर निरोग है और मृत्यु दूर है, तब तक आत्मकल्याण का उपाय कर लेना चाहिए। क्योंकि मृत्यु हो जाने पर कोई कुछ नहीं कर सकता।
यावत्स्वस्थमिदं शरीरमरुजं यावज्जरा दूरतो, यावच्चेन्द्रियशक्तिरप्रतिहता यावत्क्षयो नायुषः।
आत्मश्रेयसि तावदेव विदुषा कार्यः प्रयत्नो महान्, सन्दीप्ते भवने तु कूपखननं प्रत्युद्यमः कीदृशः।।
= जब तक शरीर स्वस्थ और रोग रहित है, जब तक बुढापा दूर है, जब तक सभी इन्द्रियों में भरपूर शक्ति है, जब तक प्राणशक्ति क्षीण नहीं हुई है तब तक बुद्धिमान् को चाहिए कि अपने आत्मकल्याण के लिए महान् प्रयत्न करे। अन्यथा घर में आग लग जाने पर कुंआ खेदने से क्या लाभ ?
अनभ्यासे विषं शास्त्रमजीर्णे भोजनं विषम्।
दरिद्रस्य विषं गोष्ठी वृद्धस्य तरुणी विषम्।।
= अभ्यास (आवृत्ति) के बिना शास्त्र विष है, अर्थात् अर्थों की संगति लगाना समझाना कठिन है, अपच में भोजन विषतुल्य है, दरिद्र के लिए सभा विषसमान है अर्थात् सभा में कंगले को कोई नहीं पूछता और बूढे के लिए युवती विष समान है।
असम्भवं हेममृगस्य जन्म तथाऽपि रामो लुलुभे मृगाय।
प्रायः समापन्न विपत्तिकाले धियोऽपि पुंसां मलिनी भवन्ति।।
= सोने के हिरण का जन्म असम्भव है, फिर भी श्रीराम स्वर्णमृग में लुब्ध हो गए। अतः निश्चय होता है कि विपत्ति आने के समय मनुष्य मलिनबुद्धि अर्थात् विचारशून्य हो जाता है।
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः।।
= काल सब प्राणियों को पकाता है, काल ही सब प्रजा को नष्ट करता है। सब के सो जाने पर भी काल जागता रहता है। सचमुच काल बड़ा बलवान है, काल को कोई लांघ नहीं सकता।
#vakyabhyas
उपसर्गाणां त्रय गतिः
उपसर्गों की तीन गति होती हैं; जैसे कि कहा गया है
अर्थात् कोई उपसर्ग धातु के अर्थ को विपरीत कर देता है, कोई उपसर्ग उसी अर्थ का अनुसरण करता है तथा कोई उपसर्ग उस अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार उपसर्गों की गति तीन प्रकार की कही गई है। जैसे
1. जय का अर्थ जीत है। उसके पूर्व परा उपसर्ग जोड़ देने पर पराजय का अर्थ हार हो जाता है। परा उपसर्ग ने अर्थ को
विपरीत कर दिया।
2. भू धातु का अर्थ होना है। उसके पूर्व प्र उपसर्ग जोड़ देने पर प्र + भू धातु का अर्थ सामर्थ्यवान् होना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने उसी अर्थ का अनुकरण किया है। अर्थ विपरीत नहीं हुआ है।
3. कृष् धातु का अर्थ खींचना है। उसमें प्र उपसर्ग जोड़ देने पर कृष् धातु का अर्थ खूब जोर से खींचना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर दी है।
उपसर्गों की तीन गति होती हैं; जैसे कि कहा गया है
धात्वर्यं बाधते कश्चित्, कश्चित् चिन्तमनुवर्तते।
तमेव विशिष्ट्यन्यः उपसर्गगति स्त्रिधा॥
अर्थात् कोई उपसर्ग धातु के अर्थ को विपरीत कर देता है, कोई उपसर्ग उसी अर्थ का अनुसरण करता है तथा कोई उपसर्ग उस अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर देता है। इस प्रकार उपसर्गों की गति तीन प्रकार की कही गई है। जैसे
1. जय का अर्थ जीत है। उसके पूर्व परा उपसर्ग जोड़ देने पर पराजय का अर्थ हार हो जाता है। परा उपसर्ग ने अर्थ को
विपरीत कर दिया।
2. भू धातु का अर्थ होना है। उसके पूर्व प्र उपसर्ग जोड़ देने पर प्र + भू धातु का अर्थ सामर्थ्यवान् होना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने उसी अर्थ का अनुकरण किया है। अर्थ विपरीत नहीं हुआ है।
3. कृष् धातु का अर्थ खींचना है। उसमें प्र उपसर्ग जोड़ देने पर कृष् धातु का अर्थ खूब जोर से खींचना हो जाता है। यहाँ प्र
उपसर्ग ने अर्थ में विशेषता उत्पन्न कर दी है।
Accused:- Judge sir, I was not drunk then but was just drinking !
Judge :- Oh...is it so ? Then I will reduce your imprisonment from one month to 30 days.
#hasya
Judge :- Oh...is it so ? Then I will reduce your imprisonment from one month to 30 days.
#hasya
🍃
♦️
vaktraaNi te tvaramaaNaa vishanti
daMShTraakaraalaani bhayaanakaani|
kechidvilagnaa dashanaantareShu
saMdRRishyante chuurNitairuttamaa~NgaiH
⚜11.27 Some hurriedly enter Thy mouths with their terrible teeth, fearful to behold. Some are found sticking in the gaps between the teeth with their heads crushed to powder.
⚜तीव्र वेग से आपके विकराल दाढ़ों वाले भयानक मुखों में प्रवेश करते हैं और कई एक चूर्णित शिरों सहित आपके दांतों के बीच में फँसे हुए दिख रहे हैं।।11.27।।
#geeta
वक्त्राणि ते त्वरमाणा विशन्ति दंष्ट्राकरालानि भयानकानि।
केचिद्विलग्ना दशनान्तरेषु संदृश्यन्ते चूर्णितैरुत्तमाङ्गैः
।।11.27।।♦️
vaktraaNi te tvaramaaNaa vishanti
daMShTraakaraalaani bhayaanakaani|
kechidvilagnaa dashanaantareShu
saMdRRishyante chuurNitairuttamaa~NgaiH
⚜11.27 Some hurriedly enter Thy mouths with their terrible teeth, fearful to behold. Some are found sticking in the gaps between the teeth with their heads crushed to powder.
⚜तीव्र वेग से आपके विकराल दाढ़ों वाले भयानक मुखों में प्रवेश करते हैं और कई एक चूर्णित शिरों सहित आपके दांतों के बीच में फँसे हुए दिख रहे हैं।।11.27।।
#geeta
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♦️yathaa nadiinaaM bahavo'mbuvegaaH
samudramevaabhimukhaaH dravanti|
tathaa tavaamii naralokaviiraa
vishanti vaktraaNyabhivijvalanti
⚜As many torrents of the rivers rush toward the ocean, similarly, those warriors of the mortal world are entering Your blazing mouths. (11.28)
⚜जैसे नदियों के बहुत से जलप्रवाह समुद्र की ओर वेग से बहते हैं वैसे ही मनुष्यलोक के ये वीर योद्धागण आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं।।11.28।।
#geeta
यथा नदीनां बहवोऽम्बुवेगाः समुद्रमेवाभिमुखाः द्रवन्ति।
तथा तवामी नरलोकवीरा विशन्ति वक्त्राण्यभिविज्वलन्ति
।।11.28।।♦️yathaa nadiinaaM bahavo'mbuvegaaH
samudramevaabhimukhaaH dravanti|
tathaa tavaamii naralokaviiraa
vishanti vaktraaNyabhivijvalanti
⚜As many torrents of the rivers rush toward the ocean, similarly, those warriors of the mortal world are entering Your blazing mouths. (11.28)
⚜जैसे नदियों के बहुत से जलप्रवाह समुद्र की ओर वेग से बहते हैं वैसे ही मनुष्यलोक के ये वीर योद्धागण आपके प्रज्वलित मुखों में प्रवेश करते हैं।।11.28।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - द्वादशी 14 अप्रैल प्रातः 04:49 तक तत्पश्चात त्रयोदशी
⛅️दिनांक 13 अप्रैल 2022
⛅️दिन - बुधवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - मघा सुबह 9:37 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
⛅️योग - गण्ड सुबह 11:15 तक तत्पश्चात वृद्धि
⛅️राहुकाल - दोपहर 12:40 से 02:15 तक
⛅️सर्योदय - 06:21
⛅️सर्यास्त - 07:00
⛅️दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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🌥 🚩यगाब्द-५१२४
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वार्ता: संस्कृत में समाचार | न्यूयॉर्क के ब्रुकलिन सब-वे स्टेशन पर गोलीबारी, 16 लोग घायल
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क्रोधो हि शत्रुः प्रथमो नराणां,
देहस्थितो देहविनाशनाय ।
यथास्थितः काष्ठगतो हि वह्निः,
स एव वह्निर्दहते शरीरम्
॥5॥ अन्वय – हि नराणां देहविनाशनाय प्रथमः शत्रुः देहस्थितः क्रोधः (अस्ति)। हि यथा काष्ठगतः स्थितः वह्निः काष्ठम् एव दहते (तथैव) सः एव (शरीरस्थः क्रोधः) शरीरं दहते।
सरलार्थ - निश्चय ही मनुष्यों के शरीर के विनाश के लिए प्रथम शत्रु शरीर में स्थित क्रोध है। क्योंकि जैसे लकड़ी में स्थित आग लकड़ी को ही जलाती है, वैसे ही शरीर में स्थित क्रोध ही शरीर को जला देता है।
#Subhashitam
कर्बुरः इत्युक्ते किम्?
Anonymous Quiz
44%
चितकबरा (spotted)
26%
गोल-मटोल (round)
13%
दुबला (thin)
10%
तुतला (lisp)
7%
हकला (stutter)