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♦️rudraadityaa vasavo ye cha saadhyaa
vishve'sh्ivanau marutashchoShmapaashcha|
gandharvayakShaasurasiddhasa~Nghaa
viikShante tvaaM vismitaashchaiva sarve
⚜Rudras, Adityas, Vasus, Saadhyas, Vishwedevas, Ashvins, Maruts,Ushmapas, Gandharvas, Yakshas, Asuras, and Siddhas; they all amazingly gaze at You. (11.22)
⚜रुद्रगण, आदित्य, वसु और साध्यगण, विश्वेदेव तथा दो अश्विनीकुमार, मरुद्गण और उष्मपा, गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धगणों के समुदाय ये सब ही विस्मित होते हुए आपको देखते हैं।।11.22।।
#geeta
रुद्रादित्या वसवो ये च साध्या विश्वेऽश्िवनौ मरुतश्चोष्मपाश्च।
गन्धर्वयक्षासुरसिद्धसङ्घा वीक्षन्ते त्वां विस्मिताश्चैव सर्वे
।।11.22।।♦️rudraadityaa vasavo ye cha saadhyaa
vishve'sh्ivanau marutashchoShmapaashcha|
gandharvayakShaasurasiddhasa~Nghaa
viikShante tvaaM vismitaashchaiva sarve
⚜Rudras, Adityas, Vasus, Saadhyas, Vishwedevas, Ashvins, Maruts,Ushmapas, Gandharvas, Yakshas, Asuras, and Siddhas; they all amazingly gaze at You. (11.22)
⚜रुद्रगण, आदित्य, वसु और साध्यगण, विश्वेदेव तथा दो अश्विनीकुमार, मरुद्गण और उष्मपा, गन्धर्व, यक्ष, असुर और सिद्धगणों के समुदाय ये सब ही विस्मित होते हुए आपको देखते हैं।।11.22।।
#geeta
Nama Ramayanam.pdf
127.6 KB
Sri Nama Ramayanam
लक्ष्मीश्चन्द्रादपेयाद्वा हिमवान्वा हिमं त्यजेत्।
अतीयात्सागरो वेलां न प्रतिज्ञामहं पितुः॥
The Moon might lose its splendour, snow might abandon the Himavat mountain,
the ocean might overstep its shores, but I (Shri Ram) shall not forsake the promise made to my father.
Hindi translation
चन्द्रमा का सौन्दर्य जा सकता है, हिमालय बर्फ़ त्याग सकता है,
और सागर अपनी सीमा लांघ सकता है, पर मैं पिता से की गयी प्रतिज्ञा कदापि नहीं तोड़ सकता।
Source – Vālmīkirāmāyaṇam 2.112.18
श्री रामचंद्र कृपालु भज
मन हरण भवभय दारुणम।
नवकंज लोचन, कंज मुख,
कर कंज, पद कंजारुणम।
श्रीराम नवमी की शुभकामनाः !🙏🌈
अतीयात्सागरो वेलां न प्रतिज्ञामहं पितुः॥
The Moon might lose its splendour, snow might abandon the Himavat mountain,
the ocean might overstep its shores, but I (Shri Ram) shall not forsake the promise made to my father.
Hindi translation
चन्द्रमा का सौन्दर्य जा सकता है, हिमालय बर्फ़ त्याग सकता है,
और सागर अपनी सीमा लांघ सकता है, पर मैं पिता से की गयी प्रतिज्ञा कदापि नहीं तोड़ सकता।
Source – Vālmīkirāmāyaṇam 2.112.18
श्री रामचंद्र कृपालु भज
मन हरण भवभय दारुणम।
नवकंज लोचन, कंज मुख,
कर कंज, पद कंजारुणम।
श्रीराम नवमी की शुभकामनाः !🙏🌈
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
प्रशासक समिति ✊🚩
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - नवमी रात्रि 03:15 ( 11 अप्रैल सुबह ) तक तत्पश्चात दशमी
⛅️दिनांक 10 अप्रैल 2022
⛅️दिन - रविवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - पुष्य पूर्णरात्री तक
⛅️योग - सुकर्मा दोपहर 12:04 तक तत्पश्चात धृति
⛅️राहुकाल - शाम 05:24 से 06:58 तक
⛅️सर्योदय - 06:24
⛅️सर्यास्त - 06:58
⛅️दिशाशूल पश्चिम दिशा में
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
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⛅️दिन - रविवार
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⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - पुष्य पूर्णरात्री तक
⛅️योग - सुकर्मा दोपहर 12:04 तक तत्पश्चात धृति
⛅️राहुकाल - शाम 05:24 से 06:58 तक
⛅️सर्योदय - 06:24
⛅️सर्यास्त - 06:58
⛅️दिशाशूल पश्चिम दिशा में
Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform (Bhavani Raman)
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
https://youtu.be/6T1n-IeQapo
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वार्ता: संस्कृत भाषा में समाचार
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।
🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.
#chitram
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#chitram
गुणी गुणं वेत्ति न वेत्ति निर्गुणो,
बली बलं वेत्ति न वेत्ति निर्बलः । पिको वसन्तस्य गुणं न वायसः,
करी च सिंहस्य बलं न मूषकः
॥2॥ अन्वय - गुणी गुणं वेत्ति, निर्गुणः (गुण) न वेत्ति, बली बलं वेत्ति, निर्बलं (बल) न वेत्ति, वसन्तस्य गुणं पिकः (वैत्ति), वायसः न (वेत्ति), सिंहस्य बलं करी (वैत्ति), मूषकः न।
सरलार्थ – गुणी गुण जानता है, निर्गुण गुण नहीं जानता। बलशाली बल जानता है, निर्बल बल नहीं जानता। वसन्त का गुण कोयल जानती है, कौआ नहीं जानता। शेर का बल हाथी जानता है, चूहा नहीं जानता।
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यो देवोऽग्नौ योऽप्सु यो विश्वं भुवनमाविवेश। यो औषधीषु यो वनस्पतिषु तस्मै देवाय नमो नमः।। = जो देव अग्नि में है, जलों में सम्पूर्ण भुवन में सब जगह पहुंचा हुआ है, जो औषधियों में है, वनस्पतियों में है; उस देव को नमस्कार हो। अरण्योर्निहितौ जातवेदा गर्भ इव…
पञ्चमेऽहनि षष्ठे वा शाकं पचति स्वगृहे।
अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते।।
= हे यक्ष ! भले ही कोई पांचवे या छठे दिन में अपने घर में शाक पकाकर खाता हो, किन्तु यदि वह किसी का ऋणी नहीं है और विदेश में नहीं रहता है तो वह सुखी माना जाता है।
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते। जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।
= जिस मनुष्य ने अपने जीवन में धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में से एक भी नहीं प्राप्त किया उसे प्रत्येक जन्म में मृत्युलोक में मरण ही प्राप्त होता है।
वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्ते गतं धनम्।
भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बना।।
= वृद्धावस्था में पत्नी का देहान्त हो जाना, अपने धन का बन्धुओं के हाथ में चला जाना और भेजन के लिए दूसरों का मूंह तकना; ये तीनों बातें मनुष्य के लिए अत्यन्त दुःखदायी हैं।
युगान्ते प्रचलते मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः।
साधवः प्रतिपन्नार्थान् न चलन्ति कदाचन।।
= युग के अन्त में सुमेरु पर्वत चलायमान हो जाता है, कल्पान्त में सातों समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़ देते हैं, परन्तु श्रेष्ठ पुरुष अपने हाथ में लिए हुए कार्य से अथवा अपनी प्रतिज्ञा से कभी भी विमुख नहीं होते हैं।
वरं प्राणपरित्यागो मानभङ्गेन जीवनात्।
प्राणत्यागे क्षणं दुःखं मानभङ्गे दिने दिने।।
= अपमानित होकर जीने की अपेक्षा मर जाना अधिक अच्छा है, क्यों कि मरते समय तो क्षणभर के लिए कष्ट होता है परन्तु अपमानित व्यक्ति का हर दिन दुःखदायी होता है।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
= साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए मैं श्रेष्ठ जनों को प्रत्येक युग में उत्पन्न करता हूं।
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।
= नीतिनिपुण लोग चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, मनचाहा धनैश्वर्य प्राप्त होता हो या चला जाता हो, दीर्घजीवी हों या आज ही मौत का सामना करना पड़ जाए किन्तु धीर पुरुष न्यायसङ्गत मार्ग से एक पग भी इधर-उधर नहीं हटते।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।
= प्राणीमात्र के लिए जो रात होती है, उसमें संयमी पुरुष जागता रहता है। जिसमें प्राणीमात्र जाग रहे होते हैं, ज्ञानचक्षु से देखनेवाले मुनि के लिए वह रात होती है।
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।
= जब तेरी बुद्धि मोह के दलदल से पार हो जाएगी, तब सुनने योग्य तथा जो कुछ तूने अभी सुना है, उन सब के प्रति उदासीन हो जाएगा।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
= यह आत्मा न कभी उत्पन्न होता है न मरता है। ऐसा भी नहीं कि एक बार यह अस्तित्व में आ गया तब फिर दोबारा नहीं होगा। यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है। शरीर के वध हो जाने पर भी यह मरता नहीं है।
#vakyabhyas
अनृणी चाप्रवासी च स वारिचर मोदते।।
= हे यक्ष ! भले ही कोई पांचवे या छठे दिन में अपने घर में शाक पकाकर खाता हो, किन्तु यदि वह किसी का ऋणी नहीं है और विदेश में नहीं रहता है तो वह सुखी माना जाता है।
धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते। जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।
= जिस मनुष्य ने अपने जीवन में धर्म अर्थ काम और मोक्ष इन चारों पुरुषार्थों में से एक भी नहीं प्राप्त किया उसे प्रत्येक जन्म में मृत्युलोक में मरण ही प्राप्त होता है।
वृद्धकाले मृता भार्या बन्धुहस्ते गतं धनम्।
भोजनं च पराधीनं तिस्रः पुंसां विडम्बना।।
= वृद्धावस्था में पत्नी का देहान्त हो जाना, अपने धन का बन्धुओं के हाथ में चला जाना और भेजन के लिए दूसरों का मूंह तकना; ये तीनों बातें मनुष्य के लिए अत्यन्त दुःखदायी हैं।
युगान्ते प्रचलते मेरुः कल्पान्ते सप्त सागराः।
साधवः प्रतिपन्नार्थान् न चलन्ति कदाचन।।
= युग के अन्त में सुमेरु पर्वत चलायमान हो जाता है, कल्पान्त में सातों समुद्र भी अपनी मर्यादा छोड़ देते हैं, परन्तु श्रेष्ठ पुरुष अपने हाथ में लिए हुए कार्य से अथवा अपनी प्रतिज्ञा से कभी भी विमुख नहीं होते हैं।
वरं प्राणपरित्यागो मानभङ्गेन जीवनात्।
प्राणत्यागे क्षणं दुःखं मानभङ्गे दिने दिने।।
= अपमानित होकर जीने की अपेक्षा मर जाना अधिक अच्छा है, क्यों कि मरते समय तो क्षणभर के लिए कष्ट होता है परन्तु अपमानित व्यक्ति का हर दिन दुःखदायी होता है।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।
= साधुओं की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए तथा धर्म की स्थापना के लिए मैं श्रेष्ठ जनों को प्रत्येक युग में उत्पन्न करता हूं।
निन्दन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवन्तु, लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम्।
अद्यैव मरणमस्तु युगान्तरे वा, न्याय्यात्पथः प्रविचलन्ति पदं न धीराः।।
= नीतिनिपुण लोग चाहे निन्दा करें या प्रशंसा, मनचाहा धनैश्वर्य प्राप्त होता हो या चला जाता हो, दीर्घजीवी हों या आज ही मौत का सामना करना पड़ जाए किन्तु धीर पुरुष न्यायसङ्गत मार्ग से एक पग भी इधर-उधर नहीं हटते।
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।
= प्राणीमात्र के लिए जो रात होती है, उसमें संयमी पुरुष जागता रहता है। जिसमें प्राणीमात्र जाग रहे होते हैं, ज्ञानचक्षु से देखनेवाले मुनि के लिए वह रात होती है।
यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च।।
= जब तेरी बुद्धि मोह के दलदल से पार हो जाएगी, तब सुनने योग्य तथा जो कुछ तूने अभी सुना है, उन सब के प्रति उदासीन हो जाएगा।
न जायते म्रियते वा कदाचिन्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
= यह आत्मा न कभी उत्पन्न होता है न मरता है। ऐसा भी नहीं कि एक बार यह अस्तित्व में आ गया तब फिर दोबारा नहीं होगा। यह अजन्मा है, नित्य है, शाश्वत है, पुरातन है। शरीर के वध हो जाने पर भी यह मरता नहीं है।
#vakyabhyas
प्रियदासः ख्यापयति वृन्दावने तुलसीदासस्य चमत्कृता कथा।
यदा सः एकस्मिन् कृष्णालये जगाम। यदा सः कृष्णस्य प्रतिमायै प्रणमति स्म तदैव परशुरामः नाम्ना पुरोहितः तम् परीक्षितुम् ऐच्छत्। परशुरामः तुलसीदासम् अवदत् यो कोऽपि स्वेष्टदेवं विहाय अन्यस्मै कस्मैचित् नमति सो मूर्खः इति यतः तुलसीदासस्य इष्टदेवः श्रीरामः आसीत्। तत्क्षणमेव सः एतत् पङ्क्तिद्वयम् उवाच
तदैव सः कृष्णप्रतिमा वंशीधरेण शरचापधारीं ससाम।
Priyadas narrates a miracle of Tulsidas at Vrindavan, when he visited a temple of Krishna.When he began bowing down to the idol of Krishna, the Mahant of the temple named Parshuram decided to test Tulsidas.
He told Tulsidas that he who bows down to any deity except their Ishta Devata is a fool, as Tulsidas' Ishta Devata was Rama.
In response, Tulsidas recited the following extempore:
काह कहौं छबि आजुकि भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै धरो धनुष शर हाथ ॥
When Tulsidas recited this couplet, the idol of Krishna holding the flute in hands changed to the idol holding the bow and arrow.
यदा सः एकस्मिन् कृष्णालये जगाम। यदा सः कृष्णस्य प्रतिमायै प्रणमति स्म तदैव परशुरामः नाम्ना पुरोहितः तम् परीक्षितुम् ऐच्छत्। परशुरामः तुलसीदासम् अवदत् यो कोऽपि स्वेष्टदेवं विहाय अन्यस्मै कस्मैचित् नमति सो मूर्खः इति यतः तुलसीदासस्य इष्टदेवः श्रीरामः आसीत्। तत्क्षणमेव सः एतत् पङ्क्तिद्वयम् उवाच
काह कहौं छबि आजुकि भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै धरो धनुष शर हाथ ॥
तदैव सः कृष्णप्रतिमा वंशीधरेण शरचापधारीं ससाम।
Priyadas narrates a miracle of Tulsidas at Vrindavan, when he visited a temple of Krishna.When he began bowing down to the idol of Krishna, the Mahant of the temple named Parshuram decided to test Tulsidas.
He told Tulsidas that he who bows down to any deity except their Ishta Devata is a fool, as Tulsidas' Ishta Devata was Rama.
In response, Tulsidas recited the following extempore:
काह कहौं छबि आजुकि भले बने हो नाथ ।
तुलसी मस्तक तब नवै धरो धनुष शर हाथ ॥
When Tulsidas recited this couplet, the idol of Krishna holding the flute in hands changed to the idol holding the bow and arrow.
. ।। ॐ ।।
चिरन्तन-हासः ।
कस्मिंश्चित् वर्गे कश्चन शिक्षकः “ स्म भूतकालः" इति बिन्दोः पाठनं करोति ।
शिक्षकः - या क्रिया पूर्वकाले सातत्येन घटिता सा क्रिया भूतकालस्य एतेन प्रकारेण दर्शिता भवेत् । अधुना सा क्रिया नैव घटति इति तस्य भावार्थः अस्ति ।
भूतकाले अमुककृतिः कर्तृणा बहुवारं कृता किन्तु सद्यः नैव क्रियते इति भावं दर्शयितुं एतस्य प्रयोगः भवति ।
आङ्ग्लभाषायाम् एतस्य अनुवादः “ used to " इत्येन भवितुं शक्नोति ।
उदाहरणार्थं ,
युवावस्थायाम् अहं नृत्यं करोमि स्म । ( अधुना न करोमि । )
In the young age I used to dance. ( Presently I don't. )
पूर्वं सा गायति स्म । ( अधुना न गायति । )
सत्ययुगे साक्षात् ईश्वर-दर्शनं भवति स्म । ( अधुना न भवति । )
…….
…….
…….
इदानीं भवन्तः अपि कानिचित् उदाहरणानि वदन्तु । राहुल ! भवान् प्रथमं वदतु ।
राहुलः - शैशवकाले अहं सत्यं वदामि स्म ।
( भवतां सर्वेषां जीवनम् सत्ययुतं भवेत् । )
🙏
------- संस्कृतानन्दः ।
**
#hasya
चिरन्तन-हासः ।
कस्मिंश्चित् वर्गे कश्चन शिक्षकः “ स्म भूतकालः" इति बिन्दोः पाठनं करोति ।
शिक्षकः - या क्रिया पूर्वकाले सातत्येन घटिता सा क्रिया भूतकालस्य एतेन प्रकारेण दर्शिता भवेत् । अधुना सा क्रिया नैव घटति इति तस्य भावार्थः अस्ति ।
भूतकाले अमुककृतिः कर्तृणा बहुवारं कृता किन्तु सद्यः नैव क्रियते इति भावं दर्शयितुं एतस्य प्रयोगः भवति ।
आङ्ग्लभाषायाम् एतस्य अनुवादः “ used to " इत्येन भवितुं शक्नोति ।
उदाहरणार्थं ,
युवावस्थायाम् अहं नृत्यं करोमि स्म । ( अधुना न करोमि । )
In the young age I used to dance. ( Presently I don't. )
पूर्वं सा गायति स्म । ( अधुना न गायति । )
सत्ययुगे साक्षात् ईश्वर-दर्शनं भवति स्म । ( अधुना न भवति । )
…….
…….
…….
इदानीं भवन्तः अपि कानिचित् उदाहरणानि वदन्तु । राहुल ! भवान् प्रथमं वदतु ।
राहुलः - शैशवकाले अहं सत्यं वदामि स्म ।
( भवतां सर्वेषां जीवनम् सत्ययुतं भवेत् । )
🙏
------- संस्कृतानन्दः ।
**
#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगव़
त्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ
आत्मबोधः संपूर्णः।।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य श्रीगोविन्दभगव़
त्पूज्यपादशिष्यस्य श्रीमच्छंकरभगवतः कृतौ
आत्मबोधः संपूर्णः।।
#Atmabodha
Media is too big
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#Atmabodha
All 68 Shlokas🙏
All 68 Shlokas🙏