संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
5.1K subscribers
3.13K photos
297 videos
309 files
5.92K links
Largest Online Sanskrit Network

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
Download Telegram
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

श्रवणादिभिरुद्दीप्त
ज्ञानाग्निपरितापितः।
जीवः सर्वमलान्मुक्तः
स्वर्णवद्द्योतते स्वयम्।।66।।

66. The’Jiva’ free from impurities, being heated in the fire of knowledge kindled by hearing and so on, shines of itself like gold.


आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 66:

आत्म-बोध के 66th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी हमें अपने ब्रह्म-ज्ञान हेतु पूरी यात्रा का सारांश बता रहे हैं। वे कहते हैं की याद करो की यह तुम्हारी आध्यात्मिक यात्रा कहाँ से प्रारम्भ हुई थी। हम सब के अंदर एक अपूर्णता थी, असुरक्षा थी, जिसकी निवृत्ति के लिए अनेकानेक आकांक्षाएं थी। इन कामनाओं के कारण अनेकों आसक्तियां, राग और द्वेष उत्पन्न हो जाते हैं। इनके फलस्वरूप हम लोग और पराधीन हो जाते हैं। इस तरह से अनेकों प्रकार के मल जमा हो जाते हैं। इनसे मुक्ति ही वास्तविक मुक्ति होती है। इसी लक्ष्य को ध्यान रखते हुए हमारे गुरु हमें जीवन के यथार्थ का ज्ञान देते हैं। श्रवण, मनन और निदिध्यासन से ही ज्ञान उत्पन्न होता है। ज्ञान अग्नि की तरह होता है - जो समस्त अज्ञान और उसके कार्य को भस्मीभूत कर देता है। और एक जीव अपने जीवत्व से मुक्त होकर स्वर्ण-तुल्य साक्षात् ब्रह्म होकर स्थित हो जाता है।

#Atmabodha
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.17]
🍃किरीटिनं गदिनं चक्रिणं च तेजोराशिं सर्वतोदीप्तिमन्तम्।
पश्यामि त्वां दुर्निरीक्ष्यं समन्ता द्दीप्तानलार्कद्युतिमप्रमेयम्
।।11.17।।

♦️kiriiTinaM gadinaM chakriNaM cha
tejoraashiM sarvatodiiptimantam|
pashyaami tvaaM durniriikShyaM samantaa
ddiiptaanalaarkadyutimaprameyam

I see You with Your crown, club, discus; and a mass of radiance, difficult to behold, shining all around with immeasurable brilliance of the sun and the blazing fire. (11.17)

मैं आपका मुकुटयुक्त गदायुक्त और चक्रधारण किये हुये तथा सब ओर से प्रकाशमान् तेज का पुंज दीप्त अग्नि और सूर्य के समान ज्योतिर्मय देखने में अति कठिन और अप्रमेयस्वरूप सब ओर से देखता हूँ।।11.17।।

#geeta
🍃त्वमक्षरं परमं वेदितव्यं त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
त्वमव्ययः शाश्वतधर्मगोप्ता सनातनस्त्वं पुरुषो मतो मे
।।11.18।।

♦️tvamakSharaM paramaM veditavyaM
tvamasya vishvasya paraM nidhaanam|
tvamavyayaH shaashvatadharmagoptaa
sanaatanastvaM puruSho mato me

I believe You are the imperishable, the Supreme to be realized. You are the ultimate resort of the universe. You are the protector of eternal Dharma, and the imperishable primal spirit. (11.18)

आप ही जानने योग्य (वेदितव्यम्) परम अक्षर हैं आप ही इस विश्व के परम आश्रय (निधान) हैं आप ही शाश्वत धर्म के रक्षक हैं और आप ही सनातन पुरुष हैं ऐसा मेरा मत है।।11.18।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.18]
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - सप्तमी रात्रि 11:05 तक तत्पश्चात अष्टमी

⛅️दिनांक 08 अप्रैल 2022
⛅️दिन - शुक्रवार
⛅️शक संवत - 1944
⛅️अयन - उत्तरायण
⛅️ऋतु - वसंत
⛅️मास - चैत्र
⛅️पक्ष - शुक्ल
⛅️नक्षत्र - आर्द्रा रात्रि 01:43 तक तत्पश्चात पुनर्वसु
⛅️योग - शोभन सुबह 10:31 तक तत्पश्चात अतिगण्ड
⛅️राहुकाल - सुबह 11:08 से दोपहर 12:42 तक
⛅️सर्योदय - 06:26
⛅️सर्यास्त - 06:58
⛅️दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
🔰चित्रं दृष्ट्वा पञ्चवाक्यानि रचयत।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।

🔰 चित्र देखकर पांच वाक्य बनायें।
✍🏼आप कमेंट बॉक्स में टङ्कण कर सकते हैं या कॉपी पर लिखकर फोटो भी भेज सकते हैं।

🔰Make 5 sentences, Observing the attached image.
✍🏼You can type in the comment box or you can also send a photo by writing on the notebook.

#chitram
दृष्टिपूत न्यसेत् पादं वस्त्रपूतं जलं पिबेत्। शास्त्रपूतं वदेत् वाक्यं मन:पूतं समाचरेत्।।

अन्वय: – (मानवः) पादं दृष्टिपूतं न्यसेत्, जलं वस्त्रपूतं पिबेत्, वाक्यं शास्त्रपूतं वदेत् मनः पूत (च) समाचरेत्।

#Subhashitam
ताड़ी (the juice of palms) इत्युक्ते संंस्कृतेन किम्?🌴
Anonymous Quiz
17%
मद्यपः
10%
तारी
10%
तारिका
19%
मदोदकः
44%
तारीरसः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अकरुणत्वमकारणविग्रहः परधने परयोषिति च स्पृहा। सुजनबन्धुजनेष्वसहिष्णुता प्रकृति सिद्धमिदं हि दुरात्मनाम्।। = निर्दयता याने दया का अभाव, बिना कारण लड़ाई-झगडा करना, दूसरे के धन और स्त्री को पाने की इच्छा करना, सज्जनों और सगे सम्बन्धियों के साथ डाह रखना ये…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२९) सप्तमी विभक्ति (३)

(अभिव्यापक आधार- ऐसा आधार जिसके साथ आधेय का व्याप्य-व्यापक सम्बन्ध हो, उसको अभिव्यापक आधार कहते हैं।)

गुडे माधुर्यं वर्तते
= गुड़ में मिठास है।

जले शैत्यं वर्तते
= पानी में शीतलता होती है।

तिलेषु तैलं केन पूरितम् ?
= तिलों में तेल किसने भरा है ?

दधनि सर्पिर्भवति, परं न दृश्यते
= दही में घी होता है किन्तु दीखता नहीं है।

तथैव सर्वत्र ईश्वरोऽपि वर्तते, केवलं ज्ञानचक्षुषैव दृश्यते
= वैसे ही ईश्वर सर्वत्र विद्यमान है, किन्तु केवल ज्ञान की आंखों से ही दिखाई देता है।

यावद् देहे प्राणो वसति तावत् प्राणी जीवति
= जब तक शरीर में प्राण है, तब तक प्राणी जीवित रहता है।

यस्मिन् काष्ठेऽग्निरस्ति, तदेव जलति, तदेव ज्वालयितुं शक्यते
= जिस लकड़ी में आग है, वही जलती है, उसे ही जलाना सम्भव है।

पुष्पे गन्धं दृष्ट्वा क्षुद्रा तत्रैवोपविष्टा
= फूल में गन्ध देखकर मधुमक्खी वहीं बैठ गई।

यथा सिकतासु तैलं नास्ति तथैव प्रकृतौ चैतन्यं नास्ति
= जैसे रेत में तेल का अभाव है, वैसे ही प्रकृति में चैतन्य का सर्वथा अभाव है।

सुतप्तेऽयोगोलके विद्यमानेनाग्निना दग्धोऽयं वटुः
= तपे हुए लोहे के गोले में विद्यमान अग्नि से यह बच्चा जल गया।

मूर्खोऽयं जले घृतमन्वेषयति
= मूर्ख है यह जो पानी में घी खोज रहा है।

पुष्पेषु मधु यथा मक्षिकैव पश्यति तथा सर्वेष्वात्मानं ज्ञानिन एव पश्यन्ति
= जैसे फूलों में शहद मक्खी को ही दीखता है, वैसे सब में व्यापक ईश्वर केवल ज्ञानियों को ही दीखता है।

यस्तु सर्वाणि भूतान्यात्मन्येवानुपश्यति।
सर्वभूतेषु चात्मानं ततो न विजुगुप्सते।।
= जो सकल भूत चराचर जगत् में परमात्मा को देखता है और सब भूतों में परमात्मा को व्यापक देखता है, फिर वह पाप नहीं करता अथवा किसी से घृणा नहीं करता है।

यावत्पवनो निवसति देहे, तावत्पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये, भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये।।
= जब तक इस देह में प्राण रहता है, तब तक घर में सब कुशल-मंगल पूछते हैं, किन्तु प्राण के छूट जाने पर जब देह गिर जाता है, तब पत्नी भी उस मृत शरीर को देखकर भयभीत हो जाती है।

तोये शैत्यं दाहकत्वं च भानौ तापो भानौ शीतभानौ प्रसादः।
पुष्पे गन्धो दुग्धमध्ये च सर्पिर्यत्तच्छम्भो ! त्वं ततस्त्वां प्रपद्ये।।
= पानी में शीतलता, सूर्य में ताप तथा दाहकता, चन्द्रमा में चांदनी, फूल में गन्ध और दूध में घी है हे शम्भो ! (कल्याणकारी परमेश्वर) यह सब तेरी कारीगरी है अतः मैं तेरी शरण आया हूं।

तिलेषु तैलं दधनीव सर्पिरापः स्रोतःस्वरणीषु चाग्निः।
एवमात्माऽऽत्मनि गृह्यतेऽसौ सत्येनैनं तपसा योऽनुपश्यति।।
= जैसे तिलों में तेल, दही में घी, स्रोतों में जल, अरणियों में अग्नि रहती है, और तिलों को पीडने से, दही को बिलोने से, स्रोतों को खोदने से, अरणियों को रगड़ने से ये प्रकट होते हैं, वैसे जीवात्मा में परमात्मा निहित है, और वहीं उसका ग्रहण होता है, परन्तु वह दिखता सत्य और तप की रगड़ से है।

सर्वव्यापिनमात्मानं क्षीरे सर्पिरिवार्पितम्।
आत्मविद्यातपोमूलं तद्ब्रह्मोपनिषत्परमिति।।
= जैसे दूध के कण-कण में घी व्याप्त है, वैसे समस्त पदार्थों में परमेश्वर व्याप्त है। इस बात को आत्मविद्या और तप से जान लेना ही ‘‘परम ब्रह्मोपनिषद’’ कहाता है।

#vakyabhyas
. ।। ॐ।।
हास-सेचनम् ।

कश्चन धनिकः तस्य पुत्रं प्रति उपदेशं करोति ।

धनिकः - प्राणेषु कण्ठम् आगतेषु अपि अन्यजनेभ्यः दत्तस्य वचनस्य पालनम् अवश्यं कठोरतया च एव करणीयम् । वचनभङ्गः तु कदापि नैव भवेत् ।

पुत्रः - आं , पितृवर्य !

धनिकः - तस्मात् अपि अधिकम् एव महत्वपूर्णम् अस्ति यद् .........

पुत्रः - आम् । वदतु पितृवर्य ! श्रुणोमि अहम् ।

धनिकः - प्राणेषु कण्ठम् आगतेषु अपि कस्मै अपि कदापि किमपि वचनं नैव दातव्यम् !

भवतां सर्वेषां जीवनं वचनभाररहितं भवेत् !
-------- संस्कृतानन्दः ।

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

हृदाकाशोदितो ह्यात्मा
बोधभानुस्तमोपहृत्।
सर्वव्यापी सर्वधारी
भाति भासयतेऽखिलम्।।67।।

67. The Atman, the Sun of Knowledge that rises in the sky of the heart, destroys the darkness of the ignorance, pervades and sustains all and shines and makes everything to shine.


आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 67:

आत्म-बोध के 67th श्लोक में भगवान् शंकराचार्यजी महाराज हमें आत्म-ज्ञान के उदय को एक सूर्य उदय से तुलना करते हैं। जैसे जब सूर्योदय होता है, तब दुनिया में विराजमान अन्धकार तत्क्षण दूर हो जाता है, और इसके फल-स्वरुप अन्धकार के समस्त कार्य भी दूर हो जाते हैं। उसी प्रकार अपने यथार्थ से अनभिज्ञ हम सब अनेकानेक कल्पनाओं में पड़े हुए हैं। हम लोगों का पूरा संसार केवल कल्पनाओं और धारणाओं पर आधारित होता है। हम लोगों ने न अपने बारे में और न ही दुनियां के बारे में कभी विचार किया है, बस अविचारपूर्वक धारणाएँ उत्पन्न कर रही हैं। अज्ञान की निवृत्ति के साथ ही सब कल्पनाएँ समाप्त होने लगाती हैं और हम अपने आप को सर्वव्यापी और सर्व-धारी ब्रह्म जान लेते हैं।

#Atmabodha