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वार्ता: संस्कृत भाषा में समाचार
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Questions in the category: sfwd-courses. Lahgu siddhanta Kaumudi-Batch 22 Hatha Yoga Sangraha-Batch 22 பஞ்சாங்கம் – Batch 22 Tarkasangra
पुण्यस्य फलमिच्छन्ति पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः। न पापफलमिच्छन्ति पापं कुर्वन्ति यत्नतः॥
संस्कृतार्थः -
प्रायः मावनावां स्वभावः भवति यत् ते पुण्यस्य फलं तु इच्छन्ति परन्तु पुण्यं कर्तुं न इच्छन्ति तथा यद्यपि पापस्य फलं तु न इच्छन्ति तथापि सर्वदा पापाचरणम् एव कुर्वन्ति।
#subhaShitam
संस्कृतार्थः -
प्रायः मावनावां स्वभावः भवति यत् ते पुण्यस्य फलं तु इच्छन्ति परन्तु पुण्यं कर्तुं न इच्छन्ति तथा यद्यपि पापस्य फलं तु न इच्छन्ति तथापि सर्वदा पापाचरणम् एव कुर्वन्ति।
#subhaShitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अत्यन्त कोपः कटुका च वाणी दरिद्रता च स्वजनेषु वैरम्। नीचप्रसङ्गः कुलहीनसेवा चिह्नानि देहे नरकस्थितानाम्।। = नरक में रहनेवालों के शरीर में निम्न चिह्न होते हैं.. १. अत्यन्त क्रोधी स्वभाव, २. कटु वाणी, ३. दरिद्रता, ४. अपनों से वैर, ५. नीचों की सङ्गति और…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (२८) सप्तमी विभक्ति (२)
(वैषयिक आधार :- विषयता सम्बन्ध से जब किसी को आधार माना जाता है, तब वह वैषयिक आधार कहाता है।)
मुमुक्षोः मोक्षे इच्छाऽस्ति
= मुमुक्षु की मोक्ष (के विषय) में इच्छा है।
सर्वेषां व्याकरणे रुचिर्न भवति
= सब की व्याकरण (के विषय) में रुचि नहीं होती।
परमे ब्रह्मणि आस्तिकस्य महति भक्तिरस्ति
= आस्तिक की परब्रह्म (के विषय) में बहुत भक्ति है।
सत्यवादिषु सर्वेषां श्रद्धा भवति
= सत्यवादियों (के विषय) में सबकी श्रद्धा होती है।
परदारेषु न वर्त्तितव्यम्
= पराई स्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं करना चाहिए।
किन्नु खलु बालेऽस्मिन् स्निह्यति मे मनः
= मेरा मन इस बालक को प्यार करता है।
तापसकन्यायां शकुन्तलायां दुष्यन्तस्याभिलाषोऽस्ति
= मुनिकन्या शकुन्तला में दुष्यन्त की अभिलाषा है।
चलचित्रेषु अनुरक्तेयं कन्या आदिनं चलचित्राण्येव पश्यति
= फिल्मों में आसक्त यह कन्या दिनभर पिक्चरें देखती है।
अयोध्यावासिनः रामे दृढमनुरक्ताः आसन्
= अयोध्यावासियों का राम के प्रति खूब अनुराग था।
पिता मयि भृशं स्निह्यति
= पिता मुझे खूब चाहते हैं।
मातुरपि मयि स्नेहो वर्तते
= माता का भी मुझ पर स्नेह है।
वस्त्रेषु केशेषु चासक्ताः अद्यतनाः युवतयः उन्मुक्ताः जाताः सन्ति
= कपड़ों और बालों में आसक्त आज की युवतियां पागल हो रही हैं।
विद्यायां रक्तानां शृङ्गारेण किम् ?
= विद्यार्ज में लगे हुओं को फैशन (सज-धज) से क्या लेना-देना..?
दुर्योधने मूढोऽयं धृतराष्ट्रः भारतं विनाशतामनयत्
= दुर्योधन में मोहित धृतराष्ट्र भारत को विनाश की ओर ले गया।
क्षत्रियेषु कुपितोऽयं परशुरामः क्षितिमिमां क्षत्रियविहीनामकरोत्
= क्षत्रियों पर कुपित इस परशुराम ने धरा को क्षत्रियों से रहित कर दिया।
खलेषु विश्वासो न कर्त्तव्यः
= दुष्टों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
मिथ्यावादिषु न विश्वसेत्
= झूठे व्यक्ति पर विश्वास न करे।
दाने तपसि शौर्ये च यस्य न प्रथितं यशः।
विद्यायामर्थलाभे च मातुरुच्चार एव स।।
= दान, तप, शौर्य, विद्या-प्राप्ति और धनलाभ में जिसकी कीर्ति न फैली वह पुत्र नहीं है अपितु माता के द्वारा उत्पन्न मांस का लोथडा मात्र है।
यस्यात्मबुद्धिः कुणपे त्रिधातुके स्वधीः कलत्रादिषु भौम इज्यधीः।
यत्तीर्थबुद्धिः सलिलेन कर्हिचित् जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखरः।।
= जो वात-पित्त-कफमय शरीर को आत्मा मानता है, जो स्त्री-पुत्रादि को अपना समझता है, जो मूर्ति में पूज्यबुद्धि रखता है, जो जल में तीर्थबुद्धि रखता है ऐसा मनुष्य विद्वानों की दुष्टि में गोखर अर्थात् अत्यन्त मूर्ख है।
#vakyabhyas
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (२८) सप्तमी विभक्ति (२)
(वैषयिक आधार :- विषयता सम्बन्ध से जब किसी को आधार माना जाता है, तब वह वैषयिक आधार कहाता है।)
मुमुक्षोः मोक्षे इच्छाऽस्ति
= मुमुक्षु की मोक्ष (के विषय) में इच्छा है।
सर्वेषां व्याकरणे रुचिर्न भवति
= सब की व्याकरण (के विषय) में रुचि नहीं होती।
परमे ब्रह्मणि आस्तिकस्य महति भक्तिरस्ति
= आस्तिक की परब्रह्म (के विषय) में बहुत भक्ति है।
सत्यवादिषु सर्वेषां श्रद्धा भवति
= सत्यवादियों (के विषय) में सबकी श्रद्धा होती है।
परदारेषु न वर्त्तितव्यम्
= पराई स्त्रियों के साथ व्यवहार नहीं करना चाहिए।
किन्नु खलु बालेऽस्मिन् स्निह्यति मे मनः
= मेरा मन इस बालक को प्यार करता है।
तापसकन्यायां शकुन्तलायां दुष्यन्तस्याभिलाषोऽस्ति
= मुनिकन्या शकुन्तला में दुष्यन्त की अभिलाषा है।
चलचित्रेषु अनुरक्तेयं कन्या आदिनं चलचित्राण्येव पश्यति
= फिल्मों में आसक्त यह कन्या दिनभर पिक्चरें देखती है।
अयोध्यावासिनः रामे दृढमनुरक्ताः आसन्
= अयोध्यावासियों का राम के प्रति खूब अनुराग था।
पिता मयि भृशं स्निह्यति
= पिता मुझे खूब चाहते हैं।
मातुरपि मयि स्नेहो वर्तते
= माता का भी मुझ पर स्नेह है।
वस्त्रेषु केशेषु चासक्ताः अद्यतनाः युवतयः उन्मुक्ताः जाताः सन्ति
= कपड़ों और बालों में आसक्त आज की युवतियां पागल हो रही हैं।
विद्यायां रक्तानां शृङ्गारेण किम् ?
= विद्यार्ज में लगे हुओं को फैशन (सज-धज) से क्या लेना-देना..?
दुर्योधने मूढोऽयं धृतराष्ट्रः भारतं विनाशतामनयत्
= दुर्योधन में मोहित धृतराष्ट्र भारत को विनाश की ओर ले गया।
क्षत्रियेषु कुपितोऽयं परशुरामः क्षितिमिमां क्षत्रियविहीनामकरोत्
= क्षत्रियों पर कुपित इस परशुराम ने धरा को क्षत्रियों से रहित कर दिया।
खलेषु विश्वासो न कर्त्तव्यः
= दुष्टों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
मिथ्यावादिषु न विश्वसेत्
= झूठे व्यक्ति पर विश्वास न करे।
दाने तपसि शौर्ये च यस्य न प्रथितं यशः।
विद्यायामर्थलाभे च मातुरुच्चार एव स।।
= दान, तप, शौर्य, विद्या-प्राप्ति और धनलाभ में जिसकी कीर्ति न फैली वह पुत्र नहीं है अपितु माता के द्वारा उत्पन्न मांस का लोथडा मात्र है।
यस्यात्मबुद्धिः कुणपे त्रिधातुके स्वधीः कलत्रादिषु भौम इज्यधीः।
यत्तीर्थबुद्धिः सलिलेन कर्हिचित् जनेष्वभिज्ञेषु स एव गोखरः।।
= जो वात-पित्त-कफमय शरीर को आत्मा मानता है, जो स्त्री-पुत्रादि को अपना समझता है, जो मूर्ति में पूज्यबुद्धि रखता है, जो जल में तीर्थबुद्धि रखता है ऐसा मनुष्य विद्वानों की दुष्टि में गोखर अर्थात् अत्यन्त मूर्ख है।
#vakyabhyas
व्याकरण बिन्दुः
क्त्वा – एक-क्रियायाः समाप्तौ यदा अन्य-क्रियायाः आरम्भः भवति तदा पूर्वकालिक क्रियाया: ज्ञानार्थ क्त्वा प्रत्ययस्य प्रयोगः भवति। क्त्वा इत्यस्य त्वा अवशिष्यते। यथा —
पठ् + क्त्वा- पठित्वा - पाठं पठित्वा सा उद्यानं गच्छति।
ल्यप् - यदि धातो: पूर्वम् उपसर्गः भवति तदा क्त्वा प्रत्ययस्य स्थाने ल्यप् प्रत्ययस्य प्रयोगः भवति।
यथा —
प्र + दा + ल्यप् - प्रदाय - फलानि प्रदाय वृक्षाः उपकुर्वन्ति।
क्त्वा – एक-क्रियायाः समाप्तौ यदा अन्य-क्रियायाः आरम्भः भवति तदा पूर्वकालिक क्रियाया: ज्ञानार्थ क्त्वा प्रत्ययस्य प्रयोगः भवति। क्त्वा इत्यस्य त्वा अवशिष्यते। यथा —
पठ् + क्त्वा- पठित्वा - पाठं पठित्वा सा उद्यानं गच्छति।
ल्यप् - यदि धातो: पूर्वम् उपसर्गः भवति तदा क्त्वा प्रत्ययस्य स्थाने ल्यप् प्रत्ययस्य प्रयोगः भवति।
यथा —
प्र + दा + ल्यप् - प्रदाय - फलानि प्रदाय वृक्षाः उपकुर्वन्ति।
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
स्वयमन्तर्बहिर्व्याप्य भासयन्नखिलं जगत्।
ब्रह्म प्रकाशते वह्निप्रतप्तायसपिण्डवत्।।62।।
62. Pervading the entire universe outwardly and inwardly the Supreme Brahman shines of Itself like the fire that permeates a red-hot iron-ball and glows by itself.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 62:
आत्म-बोध के 62nd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की प्रकाश स्वरूपता की विलक्षणता दिखा रहे हैं। ब्रह्म की प्रकाशरूपता दिखने के लिए कई बार सूर्य के दृष्टांत का प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टांत में प्रकाश-रूपता की तो साम्यता है, लेकिन एक समस्या भी होती है, और वो है सूर्य जैसे एकदेशीय होने की संभावना। समस्त लौकिक प्रकाश एकदेशीय होते हैं, और यह साम्यता हमें इष्ट नहीं है। ब्रह्म सर्वव्यापी हैं अतः इस श्लोक में कहते हैं की ब्रह्म खुद सब चीज़ों के अंदर और बहार व्याप्त रहते हुए सबको प्रकाशित करता है। इसके लिए आचार्य एक दूसरा दृष्टांत देते हैं - जैसे एक लोहे का टुकड़ा लेलें, उसे जब हम अग्नि में डालते हैं तो अग्नि उसके अंदर और बाहर व्याप्त हो जाती है, और उसके अंदर-बाहर रहते हुए उसे प्रकाशित करती है। उसी तरह से सात-चित-आनंद स्वरुप ब्रह्म सबके अंदर और बाहर विराजमान रहते हुए सबको प्रकाशित करता है।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
स्वयमन्तर्बहिर्व्याप्य भासयन्नखिलं जगत्।
ब्रह्म प्रकाशते वह्निप्रतप्तायसपिण्डवत्।।62।।
62. Pervading the entire universe outwardly and inwardly the Supreme Brahman shines of Itself like the fire that permeates a red-hot iron-ball and glows by itself.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 62:
आत्म-बोध के 62nd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की प्रकाश स्वरूपता की विलक्षणता दिखा रहे हैं। ब्रह्म की प्रकाशरूपता दिखने के लिए कई बार सूर्य के दृष्टांत का प्रयोग किया जाता है। इस दृष्टांत में प्रकाश-रूपता की तो साम्यता है, लेकिन एक समस्या भी होती है, और वो है सूर्य जैसे एकदेशीय होने की संभावना। समस्त लौकिक प्रकाश एकदेशीय होते हैं, और यह साम्यता हमें इष्ट नहीं है। ब्रह्म सर्वव्यापी हैं अतः इस श्लोक में कहते हैं की ब्रह्म खुद सब चीज़ों के अंदर और बहार व्याप्त रहते हुए सबको प्रकाशित करता है। इसके लिए आचार्य एक दूसरा दृष्टांत देते हैं - जैसे एक लोहे का टुकड़ा लेलें, उसे जब हम अग्नि में डालते हैं तो अग्नि उसके अंदर और बाहर व्याप्त हो जाती है, और उसके अंदर-बाहर रहते हुए उसे प्रकाशित करती है। उसी तरह से सात-चित-आनंद स्वरुप ब्रह्म सबके अंदर और बाहर विराजमान रहते हुए सबको प्रकाशित करता है।
#Atmabodha
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♦️anekavaktranayanamanekaadbhutadarshanam|
anekadivyaabharaNaM divyaanekodyataayudham11.10
⚜(Arjuna saw the Universal Form of the Lord) with many mouths and eyes, and many visions of marvel, with numerous divine ornaments, and holding divine weapons. (11.10)
⚜उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अद्भुत दर्शनों वाले एवं बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुये।।11.10।।
#geeta
अनेकवक्त्रनयनमनेकाद्भुतदर्शनम्।
अनेकदिव्याभरणं दिव्यानेकोद्यतायुधम्
।।11.10।।♦️anekavaktranayanamanekaadbhutadarshanam|
anekadivyaabharaNaM divyaanekodyataayudham
⚜(Arjuna saw the Universal Form of the Lord) with many mouths and eyes, and many visions of marvel, with numerous divine ornaments, and holding divine weapons. (11.10)
⚜उस अनेक मुख और नेत्रों से युक्त तथा अनेक अद्भुत दर्शनों वाले एवं बहुत से दिव्य भूषणों से युक्त और बहुत से दिव्य शस्त्रों को हाथों में उठाये हुये।।11.10।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥 🚩यगाब्द-५१२४
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७९
⛅️ 🚩तिथि - तृतीया दोपहर 01:54 तक तपश्चात चतुर्थी
⛅️ दिनांक 04 अप्रैल 2022
⛅️ दिन - सोमवार
⛅️ शक संवत - 1944
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - वसंत
⛅️ मास - चैत्र
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - भरणी दोपहर 02:29 तक तपश्चात कृतिका
⛅️योग - विष्कम्भ सुबह 07:43 तक तत्पश्चात प्रीती
⛅️ राहुकाल - सुबह 08:03 से 09:36 तक
⛅️सर्योदय - 06:29
⛅️ सर्यास्त - 06:56
⛅️ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
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संस्कृत भाषा में देखिए तमाम अहम ख़बरें, डीडी न्यूज़ के ख़ास बुलेटिन वार्ता में-
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🔰ददाति दा धातोः लट्लकारस्य नवरूपेभ्यः एकैकं वाक्यं रचयत।
🎏प्रयासं कुरुत यत् वाक्यानि समानानि न भवेयुः।
✍🏼सर्वे टिप्पणीसञ्चिका (comment box) मध्ये स्वोत्तराणि लेखितुं शक्नुवन्ति अथवा पुस्तिकायां लिखित्वा तस्य चित्रं स्वीकृत्य अपि प्रेषयितुं शक्नुवन्ति।
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