@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका..... इत्यादयः
दिनाङ्कः : 1st April 2022,
शुक्रवासरः
Please Join the voicechat on time.
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं ,लौकिकन्यायं वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु⏰
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यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्
।।👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
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🍃
♦️manyase yadi tachChakyaM mayaa draShTumiti prabho|
yogeshvara tato me tvaM darshayaa'tmaanamavyayam11.4
⚜O Lord, if You think it is possible for me to see this, then O Lord of the yogis, show me Your imperishable Self. (11.04)
⚜हे प्रभो यदि आप मानते हैं कि मेरे द्वारा वह आपका रूप देखा जाना संभव है तो हे योगेश्वर आप अपने अव्यय रूप का दर्शन कराइये।।11.4।।
#geeta
मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्
।।11.4।।♦️manyase yadi tachChakyaM mayaa draShTumiti prabho|
yogeshvara tato me tvaM darshayaa'tmaanamavyayam
⚜O Lord, if You think it is possible for me to see this, then O Lord of the yogis, show me Your imperishable Self. (11.04)
⚜हे प्रभो यदि आप मानते हैं कि मेरे द्वारा वह आपका रूप देखा जाना संभव है तो हे योगेश्वर आप अपने अव्यय रूप का दर्शन कराइये।।11.4।।
#geeta
🍃
♦️shrii bhagavaanuvaacha
pashya me paartha ruupaaNi shatasho'tha sahasrashaH|
naanaavidhaani divyaani naanaavarNaakRRitiini cha11.5
⚜The Supreme Lord said:
O Arjuna, behold My hundreds and thousands of multifarious divine forms of different colors and shapes. (11.05)
⚜श्रीभगवान् ने कहा --
हे पार्थ मेरे सैकड़ों तथा सहस्रों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति वाले दिव्य रूपों को देखो।।11.5।।
#geeta
श्री भगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च
।।11.5।।♦️shrii bhagavaanuvaacha
pashya me paartha ruupaaNi shatasho'tha sahasrashaH|
naanaavidhaani divyaani naanaavarNaakRRitiini cha
⚜The Supreme Lord said:
O Arjuna, behold My hundreds and thousands of multifarious divine forms of different colors and shapes. (11.05)
⚜श्रीभगवान् ने कहा --
हे पार्थ मेरे सैकड़ों तथा सहस्रों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति वाले दिव्य रूपों को देखो।।11.5।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - अमावस्या 11:53 तक तपश्चात प्रतिपदा
⛅ दिनांक 01 अप्रैल 2022
⛅ दिन - शुक्रवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - चैत्र
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद सुबह 10:40 तक तपश्चात रेवती
⛅योग - ब्रह्म सुबह 09:37 तक तत्पश्चात इन्द्र
⛅ राहुकाल - सुबह 11:11 से दोपहर 12:44 तक
⛅सूर्योदय - 06:33
⛅ सूर्यास्त - 06:55
⛅ दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
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https://youtu.be/SyuvmJhArZM
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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वार्ता : पीएम मोदी छात्रों के साथ परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में करेंगे चर्चा व अन्य प्रमुख ख़बरें
वार्ता : पीएम मोदी छात्रों के साथ परीक्षा पे चर्चा कार्यक्रम में करेंगे चर्चा व अन्य प्रमुख ख़बरेंDD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the ...
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं ,लौकिकन्यायं वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
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धारणाद्धर्म इत्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः।
यत् स्याद्धारणसंयुक्तं स धर्म इति निश्चयः॥
(Due to) bearing, (it) is called 'dharma', dharma supports people. That which is associated with upholding (the creation) is called dharma.
संस्कृतार्थः -
यस्य धारणं क्रियते सः धर्मः, धर्मः एव प्रजाः धारयति, तथा यः (संसारं) धारयति तस्मै हि निश्चयेन धर्मः इति संज्ञा दीयते।
#Subhashitam
यत् स्याद्धारणसंयुक्तं स धर्म इति निश्चयः॥
(Due to) bearing, (it) is called 'dharma', dharma supports people. That which is associated with upholding (the creation) is called dharma.
संस्कृतार्थः -
यस्य धारणं क्रियते सः धर्मः, धर्मः एव प्रजाः धारयति, तथा यः (संसारं) धारयति तस्मै हि निश्चयेन धर्मः इति संज्ञा दीयते।
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यः प्रीणयेत्सुचरितैः पितरं स पुत्रो, यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम्। तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं, यदेतत्त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते।। = जो अपने उत्तम आचरण से पिता को प्रसन्न करे, वस्तुतः वही पुत्र है। जो सदा पति का कल्याण चाहे वही पत्नी है। जो सुख…
धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे भार्या गृहद्वारि जनः स्मशाने। देहश्चितायां परलोकमार्गे कर्मानुगो गच्छति जीव एकः।।
= जीवनभर संग्रह किया धन भूमिपर, पालतू पशु बाड़े में रह जाते हैं। पत्नी अधिक से अधिक द्वार तक और इष्ट-मित्र बन्धु-बान्धव श्मशान तक पहुंच जाते हैं, शरीर चिता तक साथ देता है। परलोक गमन में मनुष्य के साथ केवल उसके शुभाशुभ कर्म ही साथ जाते हैं।
नामुत्र हि सहायार्थं पिता-माता च तिष्ठतः। न पुत्रदारा न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः।।
= परलोक में माता-पिता, पुत्र-पत्नी और बन्धु-बान्धव कोई भी सहायता के लिए नहीं रहते हैं। वहां तो केवल धर्म ही सहायक होता है।
मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति।।
= बन्धु-बान्धव, निर्जीव शरीर को लकड़ी और मिट्टी के ढेले के समानभूमि पर छोड़कर मुंह मोड़कर चले जाते हैं। एक धर्म ही उसके साथ जाता है।
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चलं जीवित यौवनम्। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः।।
= इस चराचर जगत में लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) प्राण, यौवन और जीवन सभी कुछ नाशवान् है। केवल एक धर्म ही निश्चल है।
अस्मिन्महामोहमये कटाहे सूर्याग्निना रात्रिदिवेन्धनेन। मासर्तुदर्वी परिघट्टनेन भूतानि कालः पचतीति वार्ता।।
= इस महामोहरूपी कड़ाह (संसार) में काल समस्त प्राणियों को मास और ऋतुरूपी कडछी से उलट-पुलट कर सूर्यरूपी अग्नि और दिन-रात रूपी इन्धन के द्वारा पका रहा है.. यही वार्ता (खबर) है।
स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद् विमुच्यते।।
= जीव स्वयं ही कर्म करता है, स्वयं ही उन कर्मों का फल सुख-दुःख रूप में भोगता है, स्वयं ही संसार में विभिन्न योनियों में जन्म लेता है और स्वयं ही पुरुषार्थ करके संसार बन्धन से छूटकर मुक्त हो जाता है।
जन्ममृत्यू हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्।।
= मनुष्य अकेला ही जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसता है, अकेला ही पाप-पुण्य के फलों को भोगता है, अकेला ही नरक अर्थात् विविध दुःखदायी योनियों को प्राप्त करता है तथा अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है।
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः। नालमेकस्य तत्सर्वमिति पश्यन्न मुह्यति।।
= पृथ्वी पर जितना धान, जौ, सोना, पशु और स्त्रियां हैं, वे सब एक मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूर्ण करके तृप्त करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है; इस प्रकार विचार करनेवाला मनुष्य मोह में नहीं फंसता।
स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे। दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवाऽर्चनं ब्राह्मणतर्पणं च।।
= इस संसार में स्वर्गवासियों के शरीर में चार चिह्न होते हैं.. १. दान देने का स्वभाव, २. मधुर वाणी, ३. देवों का सत्कार करना तथा ४. ब्राह्मणों को तृप्त करना।
#vakyabhyas
= जीवनभर संग्रह किया धन भूमिपर, पालतू पशु बाड़े में रह जाते हैं। पत्नी अधिक से अधिक द्वार तक और इष्ट-मित्र बन्धु-बान्धव श्मशान तक पहुंच जाते हैं, शरीर चिता तक साथ देता है। परलोक गमन में मनुष्य के साथ केवल उसके शुभाशुभ कर्म ही साथ जाते हैं।
नामुत्र हि सहायार्थं पिता-माता च तिष्ठतः। न पुत्रदारा न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः।।
= परलोक में माता-पिता, पुत्र-पत्नी और बन्धु-बान्धव कोई भी सहायता के लिए नहीं रहते हैं। वहां तो केवल धर्म ही सहायक होता है।
मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति।।
= बन्धु-बान्धव, निर्जीव शरीर को लकड़ी और मिट्टी के ढेले के समानभूमि पर छोड़कर मुंह मोड़कर चले जाते हैं। एक धर्म ही उसके साथ जाता है।
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चलं जीवित यौवनम्। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः।।
= इस चराचर जगत में लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) प्राण, यौवन और जीवन सभी कुछ नाशवान् है। केवल एक धर्म ही निश्चल है।
अस्मिन्महामोहमये कटाहे सूर्याग्निना रात्रिदिवेन्धनेन। मासर्तुदर्वी परिघट्टनेन भूतानि कालः पचतीति वार्ता।।
= इस महामोहरूपी कड़ाह (संसार) में काल समस्त प्राणियों को मास और ऋतुरूपी कडछी से उलट-पुलट कर सूर्यरूपी अग्नि और दिन-रात रूपी इन्धन के द्वारा पका रहा है.. यही वार्ता (खबर) है।
स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद् विमुच्यते।।
= जीव स्वयं ही कर्म करता है, स्वयं ही उन कर्मों का फल सुख-दुःख रूप में भोगता है, स्वयं ही संसार में विभिन्न योनियों में जन्म लेता है और स्वयं ही पुरुषार्थ करके संसार बन्धन से छूटकर मुक्त हो जाता है।
जन्ममृत्यू हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्।।
= मनुष्य अकेला ही जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसता है, अकेला ही पाप-पुण्य के फलों को भोगता है, अकेला ही नरक अर्थात् विविध दुःखदायी योनियों को प्राप्त करता है तथा अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है।
यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः। नालमेकस्य तत्सर्वमिति पश्यन्न मुह्यति।।
= पृथ्वी पर जितना धान, जौ, सोना, पशु और स्त्रियां हैं, वे सब एक मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूर्ण करके तृप्त करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है; इस प्रकार विचार करनेवाला मनुष्य मोह में नहीं फंसता।
स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे। दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवाऽर्चनं ब्राह्मणतर्पणं च।।
= इस संसार में स्वर्गवासियों के शरीर में चार चिह्न होते हैं.. १. दान देने का स्वभाव, २. मधुर वाणी, ३. देवों का सत्कार करना तथा ४. ब्राह्मणों को तृप्त करना।
#vakyabhyas
एकचक्रम्
Sanskrit movie for Sanskrit Lovers
After 40 years a full fledged Sanskrit movie titled ‘Ekachakram’ was premiered at Suchitra film institute last Sunday. The movie was directed by the renowned director K Suchendra Prasad. The movie is based on the Sanskrit kavya ‘Ekachakram’ by Mahamahopadhyaya Late NadahaLLi Ranganath’s Sharma, a renowned grammarian, Philosopher and Scholar. The story is based on the historic epic Mahabharata from the episode of Pandava’s exile in the village Ekachakram. It is very important to support such movies especially when Sanskrit is being pushed to the margins and being projected as a dead language.
Please share with family, friends, Sanskrit and movie lovers and support the movie. You can watch the trailer here. Watch out for the official release.
https://youtu.be/pjzGVl3VOKM
Sanskrit movie for Sanskrit Lovers
After 40 years a full fledged Sanskrit movie titled ‘Ekachakram’ was premiered at Suchitra film institute last Sunday. The movie was directed by the renowned director K Suchendra Prasad. The movie is based on the Sanskrit kavya ‘Ekachakram’ by Mahamahopadhyaya Late NadahaLLi Ranganath’s Sharma, a renowned grammarian, Philosopher and Scholar. The story is based on the historic epic Mahabharata from the episode of Pandava’s exile in the village Ekachakram. It is very important to support such movies especially when Sanskrit is being pushed to the margins and being projected as a dead language.
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Ekachakram Samskrutha Trailer
A Samskrutha feature Film based on published literary work by Vidwan N Ranganatha Sharma..Directed by K. Suchendra Prasad, presented by VOICING SILENCE, a juxtapose of the past and present through an important presentation as a play, a film, alongside contemporary…