संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

तद्युक्तमखिलं वस्तु व्यवहारश्चिदन्वितः।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म क्षीरे सर्पिरिवाखिले।।59।।

59. All objects are pervaded by Brahman. All actions are possible because of Brahman: therefore Brahman permeates everything as butter permeates milk.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 59:

आत्म-बोध के 59th श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें ब्रह्म की एक और महिमा बता रहे हैं। संसारी लोगों की दुनिया से आये हम सब की बुद्धि एक बहुत बड़े दोष से युक्त होती है - और वो है की ब्रह्म को भी अन्य किसी विषय की तरह से बाहरी, ग्राह्य एवं कर्म के प्राप्त करने योग्य वस्तु समझना। कर्म की सीमाओं की चर्चा आत्म-बोध के प्रारम्भिक श्लोकों में करी जा चुकी है। अब यहाँ ब्रह्म को व्यवहार की वस्तु की तरह से एकदेशीय समझने की संभावना का निषेध किया जा रहा रहा है। जो वस्तु भी एकदेशीय होती है वो सीमित एवं संकुचित होती है - और ब्रह्म ऐसा नहीं होता है। ब्रह्म व्यवहार की समस्त वस्तुओं, व्यक्तोयों आदि को व्याप्त करता है। वो सबका सत्य होता है, सबको आत्मवान करता है। ब्रह्म ही सबको सत्तू, स्फूर्ति एवं प्रियता प्रदान करता है। आचार्य कहते हैं की जैसे दूध में मक्खन व्याप्त होता है, उसी तरह से जगत के कण-कण में ब्रह्म व्याप्त होता है, अर्थात ब्रह्म-ज्ञान से सब कुछ प्राप्त हो जाता है।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका..... इत्यादयः
दिनाङ्कः : 1st April 2022,
शुक्रवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं ,लौकिकन्यायं वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु

यदीच्छसि वशीकर्तुं, भाषणमेककर्मणा।।
यायास्संलापशालां वै, भवति यत्र भाषणम्
।।


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श्रीमद्भगवद्गीता [11.04]
🍃मन्यसे यदि तच्छक्यं मया द्रष्टुमिति प्रभो।
योगेश्वर ततो मे त्वं दर्शयाऽत्मानमव्ययम्
।।11.4।।

♦️manyase yadi tachChakyaM mayaa draShTumiti prabho|
yogeshvara tato me tvaM darshayaa'tmaanamavyayam11.4

O Lord, if You think it is possible for me to see this, then O Lord of the yogis, show me Your imperishable Self. (11.04)

हे प्रभो यदि आप मानते हैं कि मेरे द्वारा वह आपका रूप देखा जाना संभव है तो हे योगेश्वर आप अपने अव्यय रूप का दर्शन कराइये।।11.4।।

#geeta
Audio
श्रीमद्भगवद्गीता [11.05]
🍃श्री भगवानुवाच
पश्य मे पार्थ रूपाणि शतशोऽथ सहस्रशः।
नानाविधानि दिव्यानि नानावर्णाकृतीनि च
।।11.5।।

♦️shrii bhagavaanuvaacha
pashya me paartha ruupaaNi shatasho'tha sahasrashaH|
naanaavidhaani divyaani naanaavarNaakRRitiini cha11.5

The Supreme Lord said: 
O Arjuna, behold My hundreds and thousands of multifarious divine forms of different colors and shapes. (11.05)

श्रीभगवान् ने कहा -- 
हे पार्थ मेरे सैकड़ों तथा सहस्रों नाना प्रकार के और नाना वर्ण तथा आकृति वाले दिव्य रूपों को देखो।।11.5।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - अमावस्या 11:53 तक तपश्चात प्रतिपदा

दिनांक 01 अप्रैल 2022
दिन - शुक्रवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद सुबह 10:40 तक तपश्चात रेवती
योग - ब्रह्म सुबह 09:37 तक तत्पश्चात इन्द्र
राहुकाल - सुबह 11:11 से दोपहर 12:44 तक
सूर्योदय - 06:33
सूर्यास्त - 06:55
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
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धारणाद्धर्म इत्याहुः धर्मो धारयते प्रजाः।
यत् स्याद्धारणसंयुक्तं स धर्म इति निश्चयः॥

(Due to) bearing, (it) is called 'dharma', dharma supports people. That which is associated with upholding (the creation) is called dharma.

संस्कृतार्थः -
यस्य धारणं क्रियते सः धर्मः, धर्मः एव प्रजाः धारयति, तथा यः (संसारं) धारयति तस्मै हि निश्चयेन धर्मः इति संज्ञा दीयते।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यः प्रीणयेत्सुचरितैः पितरं स पुत्रो, यद्भर्तुरेव हितमिच्छति तत्कलत्रम्। तन्मित्रमापदि सुखे च समक्रियं, यदेतत्त्रयं जगति पुण्यकृतो लभन्ते।। = जो अपने उत्तम आचरण से पिता को प्रसन्न करे, वस्तुतः वही पुत्र है। जो सदा पति का कल्याण चाहे वही पत्नी है। जो सुख…
धनानि भूमौ पशवश्च गोष्ठे भार्या गृहद्वारि जनः स्मशाने। देहश्चितायां परलोकमार्गे कर्मानुगो गच्छति जीव एकः।।
= जीवनभर संग्रह किया धन भूमिपर, पालतू पशु बाड़े में रह जाते हैं। पत्नी अधिक से अधिक द्वार तक और इष्ट-मित्र बन्धु-बान्धव श्मशान तक पहुंच जाते हैं, शरीर चिता तक साथ देता है। परलोक गमन में मनुष्य के साथ केवल उसके शुभाशुभ कर्म ही साथ जाते हैं।

नामुत्र हि सहायार्थं पिता-माता च तिष्ठतः। न पुत्रदारा न ज्ञातिर्धर्मस्तिष्ठति केवलः।।
= परलोक में माता-पिता, पुत्र-पत्नी और बन्धु-बान्धव कोई भी सहायता के लिए नहीं रहते हैं। वहां तो केवल धर्म ही सहायक होता है।

मृतं शरीरमुत्सृज्य काष्ठलोष्ठसमं क्षितौ।
विमुखा बान्धवा यान्ति धर्मस्तमनुगच्छति।।
= बन्धु-बान्धव, निर्जीव शरीर को लकड़ी और मिट्टी के ढेले के समानभूमि पर छोड़कर मुंह मोड़कर चले जाते हैं। एक धर्म ही उसके साथ जाता है।

चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणाश्चलं जीवित यौवनम्। चलाचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः।।
= इस चराचर जगत में लक्ष्मी (धन-सम्पत्ति) प्राण, यौवन और जीवन सभी कुछ नाशवान् है। केवल एक धर्म ही निश्चल है।

अस्मिन्महामोहमये कटाहे सूर्याग्निना रात्रिदिवेन्धनेन। मासर्तुदर्वी परिघट्टनेन भूतानि कालः पचतीति वार्ता।।
= इस महामोहरूपी कड़ाह (संसार) में काल समस्त प्राणियों को मास और ऋतुरूपी कडछी से उलट-पुलट कर सूर्यरूपी अग्नि और दिन-रात रूपी इन्धन के द्वारा पका रहा है.. यही वार्ता (खबर) है।

स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद् विमुच्यते।।
= जीव स्वयं ही कर्म करता है, स्वयं ही उन कर्मों का फल सुख-दुःख रूप में भोगता है, स्वयं ही संसार में विभिन्न योनियों में जन्म लेता है और स्वयं ही पुरुषार्थ करके संसार बन्धन से छूटकर मुक्त हो जाता है।

जन्ममृत्यू हि यात्येको भुनक्त्येकः शुभाशुभम्। नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम्।।
= मनुष्य अकेला ही जन्म-मृत्यु के चक्र में फंसता है, अकेला ही पाप-पुण्य के फलों को भोगता है, अकेला ही नरक अर्थात् विविध दुःखदायी योनियों को प्राप्त करता है तथा अकेला ही मोक्ष को प्राप्त करता है।

यत्पृथिव्यां व्रीहियवं हिरण्यं पशवः स्त्रियः। नालमेकस्य तत्सर्वमिति पश्यन्न मुह्यति।।
= पृथ्वी पर जितना धान, जौ, सोना, पशु और स्त्रियां हैं, वे सब एक मनुष्य की समस्त कामनाओं को पूर्ण करके तृप्त करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है; इस प्रकार विचार करनेवाला मनुष्य मोह में नहीं फंसता।

स्वर्गस्थितानामिह जीवलोके चत्वारि चिह्नानि वसन्ति देहे। दानप्रसङ्गो मधुरा च वाणी देवाऽर्चनं ब्राह्मणतर्पणं च।।
= इस संसार में स्वर्गवासियों के शरीर में चार चिह्न होते हैं.. १. दान देने का स्वभाव, २. मधुर वाणी, ३. देवों का सत्कार करना तथा ४. ब्राह्मणों को तृप्त करना।

#vakyabhyas