संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - चतुर्थी शाम 06:05 तक तत्पश्चात पंचमी


दिनांक - 16 अप्रैल 2021
दिन - शुक्रवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - रोहिणी रात्रि 11:40 तक तत्पश्चात मॄगशिरा
योग - सौभाग्य शाम 06:24 तक तत्पश्चात शोभन
राहुकाल - सुबह 11:04 से दोपहर 12:39 तक
सूर्योदय - 06:20
सूर्यास्त - 18:56
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
writereaddata_Bulletins_Text_NSD_2021_Apr_NSD_Sanskrit_Sanskrit.pdf
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संस्कृत समाचार १६.०४
Sanskrit-0655-0700
आकाशवाणी संस्कृत १६.०४
चाणक्य नीति ⚔️
✒️द्वादशः अध्याय

♦️श्लोक:-१०


न विप्रपादोदक पंकिलानि न वेदशास्त्रध्वनिगर्जितानि।
स्वाहास्वधाकारध्वनिवर्जितानि
श्मशानतुल्यानि गृहाणितानि।।१०।।

जिस घर में विप्र के पाँवों को धुलाने से कीचड़ ना हुआ हो, जहाँ वेद आदि शास्त्रों के पाठ स्वर नहीं गूँजें हों,जो घर स्वाह की ध्वनि से रहित हो, वह घर निश्चय ही शमशान भूमि के समान है।।
हितोपदेशः - HITOPADESHAH

यः कुर्यात्सचिवायत्तां
श्रियं तद्व्यसने सति।।
सोऽन्धवज्जगतीपालः
सीदेत् सञ्चारकैर्विना।।

अर्थः:

जो राजा अपनी सारी संपत्ति को अपने मंत्री के हाथ में सौंपकर आराम करता है, जब वही मंत्री मर जाता है, तो वही राजा बिना मार्गदर्शक के अंधे की तरह हो जाता है और उसकी स्थिति बिगड़ जाती है।

MEANING:

When a king delegates the responsibility of managing his wealth to his minister and relaxes, he becomes like a blind man when the minister dies, unable to navigate or manage his realm effectively.

ॐ नमो भगवते हयास्याय।

©Sanju GN #Subhashitam
🙏 16.4.21 वेदवाणी 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा,🙏🌷

उत शुष्णस्य धृष्णुया प्र मृक्षो अभि वेदनम्।
पुरो यदस्य सम्पिणक्॥ ऋग्वेद ३-३०-१३॥🙏🌷

हे राजन् ! लोगों का शोषण करने वाले शत्रुओं के सुदृढ़ दुर्गों को तुम धराशायी कर दो। उनके धन कोषों को अपने अधिकार में ले लो। उनको बलहीन कर दो। उस धनकोष का उपयोग जनहित में करो।🙏🌷

O Ruler ! You should destroy the strong fortifications of the enemies who exploit people.Take their wealth in your possession. Make them powerless. Utilise that wealth in the public interest. (Rig Veda 4-30 -13)🙏🌷#vedgsawan🙏🌷
अर्जुन उवाच :

पद्मपत्रविशालाक्ष
पद्मनाभ सुरोत्तम ।
भक्तानामनुरक्तानां
त्राता भव जनार्दन ॥


भगवानुवाच।

यो मां नामसहस्रेण
स्तोतुमिच्छति पाण्डव ।
सोऽहमेकेन श्लोकेन
स्तुत एव व संशयः ॥


पदच्छेदः पदपरिचयशास्त्रं च ।

उपरिलिखितश्लोकद्वयोः निम्नलिखित शब्दाः अकारान्तपुल्लिङ्गे, एकवचने तथा सम्बोधनाविभक्तौ सन्ति । अतः तेषां विग्रहवाक्यानि एव अत्र प्रस्तूयते ।

- पद्मपत्रविशालाक्ष - पद्मस्य पत्रं पद्मपत्रम्। पद्मपत्रं इव विशाले अक्षे यस्य सः पद्मपत्रविशालाक्षः। तत्सम्बुद्धिः।
- पद्मनाभ - नाभौ पद्मं यस्य सः पद्मनाभः। तत्सम्बुद्धिः।
- सुरोत्तम - सुरेषु या सुराणां उत्तमः सुरोत्तमः। तत्सम्बुद्धिः।
- जनार्दन - जनान् अर्दयति इति जनार्दनः। तत्सम्बुद्धिः।
- पाण्डव - पाण्डोः अपत्यं पुमान् पाण्डवः। तत्सम्बुद्धिः।

अथ श्लोकद्वयानां शेषशब्दानां विवरणं निम्नलिखितोऽस्ति ।

- भक्तानाम् - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य भक्तशब्दस्य षष्ठीविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- अनुरक्तानाम् - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य अनुरक्तशब्दस्य षष्ठीविभक्तेः बहुवचनान्तं पदमिदम्।
- त्राता - ऋकारान्तपुल्लिङ्गस्य त्रातृ शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- भव - भू सत्तायां इति धातोः अकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिनः आज्ञार्थे लोट् लकारस्य मध्यमपुरुष एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- यः - दकारान्तपुल्लिङ्गस्य यद् शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- माम् - त्रिषुलिङ्गेषुसमस्य दकारान्तस्य अस्मद् शब्दस्य द्वितियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- नामसहस्रेण - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य नामसहस्रशब्दस्य तृतियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्। नामानां सहस्रं नामसहस्रं। तेन। (अर्थात् विष्णुसहस्रनामस्तोत्रेण इति अर्थः)
- स्तोतुम् - स्तु स्तवने इति धातोः तुमुन् प्रत्ययान्तं अव्ययमिदम्।
- इच्छति - इषु इच्छायां इति धातोः सकर्मकस्य कर्तरीप्रयोगस्य परस्मैपदिनः वर्तमानकालस्य लट् लकारस्य प्रथमपुरुषस्य एकवचनान्तं क्रियापदमिदम्।
- सः - दकारान्तपुल्लिङ्गस्य तद् शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- अहम् - त्रिषुलिङ्गेषु समस्य दकारान्तस्य अस्मद् शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- एकेन - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य एकशब्दस्य तृतियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- श्लोकेन - अकारान्तनपुंसकलिङ्गस्य श्लोकशब्दस्य तृतियाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- स्तुतः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य स्तुतशब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।
- एव, - अव्ययानि।
- संशयः - अकारान्तपुल्लिङ्गस्य संशय शब्दस्य प्रथमाविभक्तेः एकवचनान्तं पदमिदम्।

अन्वय:

अर्जुनः उवाच

हे पद्मपत्रविशालाक्ष पद्मनाभ सुरोत्तम जनार्दन अनुरक्तानां भक्तानां त्राता भव ।

भगवान् उवाच

हे पाण्डव यः मां नामसहस्रेण स्तोतुम् इच्छति सः अहं एकेन श्लोकेन स्तुतः एव । न संशयः ।

हिंदी में प्रतिपदार्थ एवं विवरण :-

- अर्जुनः उवाच - अर्जुन ने कहा
- पद्मपत्रविशालाक्ष - हे कमल के पत्तों जैसे विशाल नयन या आंखों वाले,
- पद्मनाभ - हे नाभी में कमल वाले,
- सुरोत्तम - सभी देवताओं में श्रेष्ठ
- जनार्दन - जन की रक्षा करनेवाले
- अनुरक्तानाम् - प्यार करने वाले
- भक्तानाम् - भक्तों का
- त्राता - रक्षक
- भव - बनिये

- भगवान् उवाच - भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा
- हे पाण्डव - हे अर्जुन
- यः - जो
- माम् - मेरे
- नामसहस्रेण - सहस्रनाम से
- स्तोतुम् - स्तोत्र या स्तुति करने की
- इच्छति - इच्छा रखता है,
- सः अहम् - वह विष्णु, मैं
- एकेन - एक
- श्लोकेन एव - श्लोक से ही
- स्तुतः - स्तुत हो जाता हूँ
- न संशयः - इस बात पर कोई शंका नहीं
विवरण :-

जब श्रीमन्महाविष्णु जी के हजारों नामों की रचना विष्णुसहस्रनाम में भगवान विष्णु ने वेदव्यास जी के अवतार में की, तो अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण, जो उसी महाविष्णु जी का सखा भी था, से पूछा कि क्या भक्तों को प्रसन्न करने के लिए पूरे 1000 नाम पढ़ना अनिवार्य है?

महाबली अर्जुन ने पहले श्लोक में अप्रत्यक्ष रूप से यही प्रश्न उठाया है। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा कि हे कमल की पंखुड़ी जैसे नेत्रों वाले, नाभि में कमल से भगवान ब्रह्मा जी को उत्पन्न करने वाले, प्रलय काल में सभी जीवों की रक्षा करने वाले और सभी देवताओं में सर्वोच्च रहने वाले भगवान श्रीकृष्ण, क्या आप अपने प्रिय भक्तों के रक्षक बनेंगे जो सहस्रनाम का पूरा पाठ नहीं कर सकते?

तब भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे पाण्डवों में श्रेष्ठ अर्जुन, जो भी मेरे सहस्रनाम का पारायण करने की इच्छा रखता है, उसे एक श्लोक का उच्चारण या मनन करने से ही पूरे सहस्रनाम का पारायण हो जाता है। इस एक श्लोक से ही मैं सहस्रनाम से स्तुत हो जाऊंगा। इसमें कोई संदेह नहीं है।

भगवान हमेशा अपने भक्तों के प्रति प्रेमभाव रखते हैं। उन्हें प्रिय भक्तों पर अपनी कृपा सदा बनी रहती है। इसलिये भक्त को सहस्रनाम पूरा पढ़ने, रटने या जोर से पारायण करने की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ मन से किसी एक श्लोक का पारायण करने से ही भगवान अवश्य प्रसन्न होंगे।

श्रीकृष्णं वन्दे जगद्गुरुम्।

© Sanjeev GN #Subhashitam
वैद्येन मे पत्न्याः जिह्वायां तापमापकः स्थापितः ।

ताम् उक्तञ्च किञ्चित् कालपर्यंतम् औष्ठौ पिधाय उपविश।

पत्नीं तूष्णीं दृष्ट्वा पतिः अनुक्षणमेव वैद्यमहोदयं सानन्देन अपृच्छत्
कियत् मूल्यं अस्य यन्त्रस्य भोः।

दर्शना #hasya