@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका..... इत्यादयः
दिनाङ्कः : 25th March 2022,
शुक्रवासरः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं ,लौकिकन्यायं वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु⏰
👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼👇🏼
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विषयः :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
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शुक्रवासरः
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
https://youtu.be/ESXDH4alI94
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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वार्ता: संस्कृत भाषा में समाचार
सदयं हृदयं यस्य भाषितं सत्यभूषितम्।
कायः परहिते यस्य कलिस्तस्य करोति किम्।।
संस्कृतार्थः -
यस्य जनस्य हृदयं दयया(कृपया) पूरितम् अस्ति , यस्य वदनं(वाक्यं) माधुर्येण पूरितम् अस्ति, यस्य कायः(शरीरं) परोपकारे एव लग्नम् अस्ति तादृशस्य जनस्य कलिः(मृत्युः) किं वा कर्तुं शक्नोति।
#Subhashitam
कायः परहिते यस्य कलिस्तस्य करोति किम्।।
संस्कृतार्थः -
यस्य जनस्य हृदयं दयया(कृपया) पूरितम् अस्ति , यस्य वदनं(वाक्यं) माधुर्येण पूरितम् अस्ति, यस्य कायः(शरीरं) परोपकारे एव लग्नम् अस्ति तादृशस्य जनस्य कलिः(मृत्युः) किं वा कर्तुं शक्नोति।
#Subhashitam
हनुमान् पर्वतम् __________।
Anonymous Quiz
17%
उत्तिष्ठयति
64%
उत्थापयति
7%
प्रस्थापयति
12%
उत्थापययति
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (२५) षष्ठी विभक्ति ४ (कृत् संज्ञक प्रत्यय के प्रयोग में कर्त्ता व कर्म में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है जब वाक्य में कर्त्ता व कर्म कारक दोनों का एक साथ प्रयोग किया गया हो तब कर्म में षष्ठी विभक्ति…
सृष्टिं करोति, धरति, हरति च
= सृष्टि को बनाता, धारण करता और विनाश करता है।
सृष्टेः कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता चेश्वरो वर्त्तते
= सृष्टि का कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता ईश्वर है।
विषयान् भुङ्क्ते
= विषयों को भोगता है।
विषयाणां भोक्ता दुःखमेव लभते
= विषयों को भोगनेवाला दुःख ही पाता है।
शास्त्राणि शृणोति
= शास्त्रों को सुनता है।
शास्त्राणां श्रोता कामं शनैः शनैः किन्तु वर्धते एव
= शास्त्रों का (आध्यात्मिक) श्रवण करनेवाला धीरे धीरे ही सही बढ़ता ही है।
शास्त्रं जानाति
= शास्त्रों को जानता है।
शास्त्राणां ज्ञाता आचरणेन ज्ञायते
= शास्त्रों का ज्ञाता है या नहीं यह आचरण से पता चलता है।
वेदान् वेत्ति
= वेदों को जानता है।
वेदानां वेत्ता वेदवेत्ता कथ्यते
= वेदों का ज्ञाता वेदवेत्ता कहाता है।
दुग्धं दोग्धि
= दूध दुहता है।
दुग्धस्य दोग्धा प्रतिदिनं शतं सेटकं दुग्धं दोग्धि
= ग्वाला प्रतिदिन सौ लीटर दूध दुहता है।
जगतः करोति
= विविध जगत को करता है।
जगतां यदि नो कर्त्ता कुलालेन विना घटः। चित्रकारं विना चित्रं स्वत एव भवेत्तथा।।
= यदि कर्त्ता के बिना स्वयं जगत बन गया है ऐसा मान लिया जाए तो कुम्हार के बिना घड़ा और चित्रकार के बिना चित्र भी स्वयमेव बन जाना चाहिए।
ज्ञानं ददाति, धनं च
= ज्ञान देता है और धन भी।
ज्ञानस्य दाता धनस्य दातुरतिरिच्यते
= ज्ञानदाता धनदाता से श्रेष्ठ है।
प्रश्नं पृच्छति
= प्रश्न पूछता है।
प्रश्नस्य प्रष्टारं शिक्षकः उत्तरति
= प्रश्नकर्त्ता को शिक्षक उत्तर दे रहा है।
जीवनं गच्छति
= जीवन बीत रहा है।
जीवनस्य गतिं दृष्ट्वा मनुष्यः पुनर्जन्म निश्चेतुमर्हति
= जीवन की गति देखकर व्यक्ति पुनर्जन्म का निश्चय कर सकता है।
धनं गच्छति
= धन खर्च हो रहा है।
धनस्य तिस्रो गतयः सन्ति, भोगो दानं नाशश्च
= धन की तीन गतियां हैं, भोग दान और नाश।
सूर्यो दीप्यति
= सूर्य चमक रहा है।
सूर्यस्य दीप्त्या दीपकस्य प्रकाशो न दृश्यते
= सूर्यप्रकाश में दीपक का प्रकाश नहीं दीखता है।
मनः संयमति
= मन को संयमित करता है।
मनसः संयतिः उन्नत्याय कल्पते
= मन का संयम उन्नति का कारण बनता है।
अहं प्रणमामी
= मैं प्रणाम करता/करती हूं।
गुरवे मम प्रणतिं निवेदयतु
= गुरुजी को मेरा नमस्कार कहना।
धनं प्राप्नोति
= धन को प्राप्त करता है।
धर्मरहिता धनस्य प्राप्तिरवनत्याय कल्पते
= धर्मरहित धन की प्राप्ति अवनति का कारण बनती है।
#vakyabhyas
= सृष्टि को बनाता, धारण करता और विनाश करता है।
सृष्टेः कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता चेश्वरो वर्त्तते
= सृष्टि का कर्त्ता धर्त्ता हर्त्ता ईश्वर है।
विषयान् भुङ्क्ते
= विषयों को भोगता है।
विषयाणां भोक्ता दुःखमेव लभते
= विषयों को भोगनेवाला दुःख ही पाता है।
शास्त्राणि शृणोति
= शास्त्रों को सुनता है।
शास्त्राणां श्रोता कामं शनैः शनैः किन्तु वर्धते एव
= शास्त्रों का (आध्यात्मिक) श्रवण करनेवाला धीरे धीरे ही सही बढ़ता ही है।
शास्त्रं जानाति
= शास्त्रों को जानता है।
शास्त्राणां ज्ञाता आचरणेन ज्ञायते
= शास्त्रों का ज्ञाता है या नहीं यह आचरण से पता चलता है।
वेदान् वेत्ति
= वेदों को जानता है।
वेदानां वेत्ता वेदवेत्ता कथ्यते
= वेदों का ज्ञाता वेदवेत्ता कहाता है।
दुग्धं दोग्धि
= दूध दुहता है।
दुग्धस्य दोग्धा प्रतिदिनं शतं सेटकं दुग्धं दोग्धि
= ग्वाला प्रतिदिन सौ लीटर दूध दुहता है।
जगतः करोति
= विविध जगत को करता है।
जगतां यदि नो कर्त्ता कुलालेन विना घटः। चित्रकारं विना चित्रं स्वत एव भवेत्तथा।।
= यदि कर्त्ता के बिना स्वयं जगत बन गया है ऐसा मान लिया जाए तो कुम्हार के बिना घड़ा और चित्रकार के बिना चित्र भी स्वयमेव बन जाना चाहिए।
ज्ञानं ददाति, धनं च
= ज्ञान देता है और धन भी।
ज्ञानस्य दाता धनस्य दातुरतिरिच्यते
= ज्ञानदाता धनदाता से श्रेष्ठ है।
प्रश्नं पृच्छति
= प्रश्न पूछता है।
प्रश्नस्य प्रष्टारं शिक्षकः उत्तरति
= प्रश्नकर्त्ता को शिक्षक उत्तर दे रहा है।
जीवनं गच्छति
= जीवन बीत रहा है।
जीवनस्य गतिं दृष्ट्वा मनुष्यः पुनर्जन्म निश्चेतुमर्हति
= जीवन की गति देखकर व्यक्ति पुनर्जन्म का निश्चय कर सकता है।
धनं गच्छति
= धन खर्च हो रहा है।
धनस्य तिस्रो गतयः सन्ति, भोगो दानं नाशश्च
= धन की तीन गतियां हैं, भोग दान और नाश।
सूर्यो दीप्यति
= सूर्य चमक रहा है।
सूर्यस्य दीप्त्या दीपकस्य प्रकाशो न दृश्यते
= सूर्यप्रकाश में दीपक का प्रकाश नहीं दीखता है।
मनः संयमति
= मन को संयमित करता है।
मनसः संयतिः उन्नत्याय कल्पते
= मन का संयम उन्नति का कारण बनता है।
अहं प्रणमामी
= मैं प्रणाम करता/करती हूं।
गुरवे मम प्रणतिं निवेदयतु
= गुरुजी को मेरा नमस्कार कहना।
धनं प्राप्नोति
= धन को प्राप्त करता है।
धर्मरहिता धनस्य प्राप्तिरवनत्याय कल्पते
= धर्मरहित धन की प्राप्ति अवनति का कारण बनती है।
#vakyabhyas
द्रोणाचार्यः - "अर्जुन! त्वं किं पश्यसि?"
अर्जुनः- "आचार्य! अहं केवलं एकम् आम्रफलं पश्यामि"।
द्रोणः- " तर्हि अहं भवनस्य अन्तः प्रविश्य द्वारं कीलयामि। तदनन्तरं त्वं अस्त्रप्रेषणेन आम्रफलं पातय।"
#hasya
अर्जुनः- "आचार्य! अहं केवलं एकम् आम्रफलं पश्यामि"।
द्रोणः- " तर्हि अहं भवनस्य अन्तः प्रविश्य द्वारं कीलयामि। तदनन्तरं त्वं अस्त्रप्रेषणेन आम्रफलं पातय।"
#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
उपाधिविलयाद्विष्णौ निर्विशेषं विशेन्मुनिः।
जले जलं वियद्व्योम्नि तेजस्तेजसि वा यथा।।53।।
53. On the destruction of the Upadhis, the contemplative one is totally absorbed in’Vishnu’, the All-pervading Spirit, like water into water, space into space and light into light.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 53:
आत्म-बोध के 53rd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें जीवन्मुक्त के अंतिम क्षण हैं - कि वे अंतिम क्षण में ब्रह्म में कैसे लीं होते हैं। पहले तो यह बात स्पष्ट करनी चाहिए की ब्रह्म-ज्ञानी के लिए शरीर के मरने से ब्रह्म में लीन होने का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। ईश्वर के अवतार में भी यह सिद्धांत स्पष्ट हो जाता है की भगवान् शरीर के रहते-रहते पूर्ण रूप से मुक्त होते हैं। पिछले श्लोक में भी यह बात स्पष्ट हो गयी थी की ब्रह्म-ज्ञानी उपाधि में स्थित रहते हुए भी उपाधि के धर्मों से अलिप्त होते हैं। तात-तवं-ऐसी महावाक्य के शोधन के बाद वे अपने को मात्र चेतन तत्त्व देखते हैं और ईश्वर के भी तत्त्व को यह ही देखते हैं। अब चेतन चेतन में कैसे लीन होता है। केवल नाम मात्र के लिए ही वे लीन होते हैं। वस्तुतः जहाँ उन्होने अपनी उपाधि के धर्मों का निषेध किया उसी क्षण वे मानो ब्रह्म हो गए। उनका ब्रह्म में लीन होना कुछ ऐसा होता है - जैसे जल, जल में विलीन होता है, जैसे आकाश, आकाश में लीन होता है, जैसे तेज, तेज में विलीन होता है।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
उपाधिविलयाद्विष्णौ निर्विशेषं विशेन्मुनिः।
जले जलं वियद्व्योम्नि तेजस्तेजसि वा यथा।।53।।
53. On the destruction of the Upadhis, the contemplative one is totally absorbed in’Vishnu’, the All-pervading Spirit, like water into water, space into space and light into light.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 53:
आत्म-बोध के 53rd श्लोक में भी भगवान् शंकराचार्यजी हमें जीवन्मुक्त के अंतिम क्षण हैं - कि वे अंतिम क्षण में ब्रह्म में कैसे लीं होते हैं। पहले तो यह बात स्पष्ट करनी चाहिए की ब्रह्म-ज्ञानी के लिए शरीर के मरने से ब्रह्म में लीन होने का कोई सम्बन्ध नहीं होता है। ईश्वर के अवतार में भी यह सिद्धांत स्पष्ट हो जाता है की भगवान् शरीर के रहते-रहते पूर्ण रूप से मुक्त होते हैं। पिछले श्लोक में भी यह बात स्पष्ट हो गयी थी की ब्रह्म-ज्ञानी उपाधि में स्थित रहते हुए भी उपाधि के धर्मों से अलिप्त होते हैं। तात-तवं-ऐसी महावाक्य के शोधन के बाद वे अपने को मात्र चेतन तत्त्व देखते हैं और ईश्वर के भी तत्त्व को यह ही देखते हैं। अब चेतन चेतन में कैसे लीन होता है। केवल नाम मात्र के लिए ही वे लीन होते हैं। वस्तुतः जहाँ उन्होने अपनी उपाधि के धर्मों का निषेध किया उसी क्षण वे मानो ब्रह्म हो गए। उनका ब्रह्म में लीन होना कुछ ऐसा होता है - जैसे जल, जल में विलीन होता है, जैसे आकाश, आकाश में लीन होता है, जैसे तेज, तेज में विलीन होता है।
#Atmabodha
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कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वितरितानि पद्मपुरस्काराणि
(Distributions of padma awards.)
दिनाङ्कः : 26th March 2022,
शनिवासरः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (ये पद्मपुरस्काराणि प्राप्तवन्तः तेषां विषये वक्तव्यम्।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
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विषयः : वितरितानि पद्मपुरस्काराणि
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दिनाङ्कः : 26th March 2022,
शनिवासरः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (ये पद्मपुरस्काराणि प्राप्तवन्तः तेषां विषये वक्तव्यम्।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
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BVGch10vs34
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.34]
🍃
♦️mRRityuH sarvaharashchaahamudbhavashcha bhaviShyataam|
kiirtiH shriirvaakcha naariiNaaM smRRitirmedhaa dhRRitiH kShamaa10.34
⚜I am the all-devouring death, and also the origin of future beings. Among the feminine nouns I am fame, prosperity, speech, memory, intellect, resolve, and forgiveness. (10.34)
⚜मैं सर्वभक्षक मृत्यु और भविष्य में होने वालों की उत्पत्ति का कारण हूँ स्त्रियों में कीर्ति श्री वाक (वाणी) स्मृति मेधा धृति और क्षमा हूँ।।10.34।।
#geeta
मृत्युः सर्वहरश्चाहमुद्भवश्च भविष्यताम्।
कीर्तिः श्रीर्वाक्च नारीणां स्मृतिर्मेधा धृतिः क्षमा
।।10.34।।♦️mRRityuH sarvaharashchaahamudbhavashcha bhaviShyataam|
kiirtiH shriirvaakcha naariiNaaM smRRitirmedhaa dhRRitiH kShamaa
⚜I am the all-devouring death, and also the origin of future beings. Among the feminine nouns I am fame, prosperity, speech, memory, intellect, resolve, and forgiveness. (10.34)
⚜मैं सर्वभक्षक मृत्यु और भविष्य में होने वालों की उत्पत्ति का कारण हूँ स्त्रियों में कीर्ति श्री वाक (वाणी) स्मृति मेधा धृति और क्षमा हूँ।।10.34।।
#geeta
BVGch10vs35
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.35]
🍃
♦️bRRihatsaama tathaa saamnaaM gaayatrii Chandasaamaham|
maasaanaaM maargashiirSho'hamRRituunaaM kusumaakaraH10.35
⚜10.35 Among the hymns also I am the Brihatsaman; among metres Gayatri am I; among the montsh I am the Margasirsha; among the seasons (I am) the flowery season.
⚜।।10.35।। सामों (गेय मन्त्रों) में मैं बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ मैं मासों में मार्गशीर्ष (दिसम्बरजनवरी के भाग) और ऋतुओं में वसन्त हूँ।।
#geeta
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्।
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः
।।10.35।।♦️bRRihatsaama tathaa saamnaaM gaayatrii Chandasaamaham|
maasaanaaM maargashiirSho'hamRRituunaaM kusumaakaraH
⚜10.35 Among the hymns also I am the Brihatsaman; among metres Gayatri am I; among the montsh I am the Margasirsha; among the seasons (I am) the flowery season.
⚜।।10.35।। सामों (गेय मन्त्रों) में मैं बृहत्साम और छन्दों में गायत्री छन्द हूँ मैं मासों में मार्गशीर्ष (दिसम्बरजनवरी के भाग) और ऋतुओं में वसन्त हूँ।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - नवमी रात्रि 08:01 तक तपश्चात दशमी
⛅ दिनांक 26 मार्च 2022
⛅ दिन - शनिवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - चैत्र
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा अपरान्ह 02:47 तक तपश्चात उत्तराषाढ़ा
⛅ योग - परिघ रात्रि 10:59 तक तत्पश्चात शिव
⛅ राहुकाल - सुबह 9:42 से 11:14 तक
⛅ सूर्योदय - 06:38
⛅ सूर्यास्त - 06:53
⛅ चन्द्रोदय - रात्रि 03:13
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - नवमी रात्रि 08:01 तक तपश्चात दशमी
⛅ दिनांक 26 मार्च 2022
⛅ दिन - शनिवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - चैत्र
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - पूर्वाषाढ़ा अपरान्ह 02:47 तक तपश्चात उत्तराषाढ़ा
⛅ योग - परिघ रात्रि 10:59 तक तत्पश्चात शिव
⛅ राहुकाल - सुबह 9:42 से 11:14 तक
⛅ सूर्योदय - 06:38
⛅ सूर्यास्त - 06:53
⛅ चन्द्रोदय - रात्रि 03:13
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में