संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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#⃣ ००३
🏬 नीलाचलपुरी
📣 Level - 4
🔰 सन्धयः समासाः कारकाणि क्रियाः च
5:30 PM 🇮🇳
⌛️ 6:45 PM 🇮🇳
🗓 मङ्गलवासरः गुरुवासरः च
🔛 1st week of April onwards
📱Zoom
💰 ₹४१०० भारतीयेभ्यः
📞 +917500286183
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❗️ Total 18-19 classes with recordings
🔒पिहिता
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BVGch10vs29
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.29]
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्
।।10.29।।

♦️anantashchaasmi naagaanaaM varuNo yaadasaamaham|
pitRRi़Naamaryamaa chaasmi yamaH saMyamataamaham10.29

I am Sheshanaaga among the Naagas, I am Varuna among the water gods, and Aryamaa among the manes. I am Yama among the controllers. (10.29)

मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।10.29।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - षष्टी रात्रि 02:16 तक तपश्चात सप्तमी

दिनांक - 23 मार्च 2022
दिन - बुधवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - अनुराधा शाम 06:53 तक तपश्चात ज्येष्ठा
योग - वज्र सुबह 10:20 तक तत्पश्चात सिद्धि
राहुकाल - दोपहर 12:46 से 02:18 तक
सूर्योदय - 06:41
सूर्यास्त - 06:52
चन्द्रोदय - रात्रि 12:08
दिशाशूल - उत्तर
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वाक्याभ्यासः

दिनाङ्कः : 23th March 2022,
बुधवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(चित्राणि दृष्ट्वा वाक्यानि वक्तव्यानि।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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Live stream scheduled for
उपकारिषु यः साधुः साधुत्वे तस्य को गुणः।
अपकारिषु यः साधुः स साधुरिति कीर्तितः।।

संस्कृतार्थः -
उपकारं ये कुर्वन्ति तेषु एव यस्य व्यवहारः सम्यक् भवति तस्य सज्जनता , सज्जनता नास्ति।
अपकारं ये कुर्वन्ति तेषु अपि यस्य व्यवहारः उत्तमः सः एव सज्जनः।

#Subhashitam
"रामात्-याचय"।
सन्धिं कृत्वा किं भवति।
Anonymous Quiz
31%
रामात्याचय
12%
रामादयाचय
56%
रामाद्याचय
1%
रामादय्चय
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
नाथेऽहं संस्कृतस्य समृद्धेः = मैं संस्कृत की समृद्धि चाहती/चाहता हूं। नाथेरन् विश्वे विश्वविकासस्य = सभी विश्व के विकास को चाहें। उज्जासतां दुष्टानां रक्षकभटाः उज्जासयन्ति = हत्यारे दुष्टों को पुलिस मार रही है। सर्वकारः एतस्याऽऽतङ्किनः निप्रहन्यात्…
(कभी कभी चतुर्थी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग देखा जाता है।)

तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम्।
जिताऽक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत्।।
= ब्रह्मज्ञानी के लिए स्वर्ग, शूरवीर के लिए जीवन, जितेन्द्रिय के लिए स्त्री और निर्लोभी के लिए संसार तिनके के समान तुच्छ है।

को हि भारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्। को विदेशः सविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम्।।
= शक्तिशालियों के लिए कौनसा कार्य कठिन है,व्यापारियों के लिए कौन सा स्थान दूर है, विद्वानों के लिए कौन देश विदेश है और मधुर बोलनेवालों के लिए कौन पराया है..? अर्थात् कोई नहीं।

दरिद्रान् भर कौन्तेय मा प्रयच्छेश्वरे धनम्।
व्याधितस्यौषधं पथ्यं नीरुजस्य किमौषधेः।।
= हे युधिष्ठिर ! निर्धनों का पालन करो, धनिकों को दान न दो। रोगी के लिए दवा लाभकारी होती है, निरोगी को दवाई से क्या प्रयोजन।

खलानां कण्टकानां च द्विविधैव प्रतिक्रिया। उपानान्मुखभङगं वा दूरतो वा विसर्जनम्।।
= दुष्ट व कांटे के लिए दो ही प्रकार की प्रतिक्रिया है, या तो जूते से इनका मुंह कुचल दो या तो दूर से ही इन्हें त्याग दो।

युक्ताहारविहारस्य युक्तचेष्टस्य कर्मसु।
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुःखहा।।
= जिसका आहार-विहार नियमित हो, जिसके कर्म नियमित हों, जिसका सोना-जागना नियमित हो ऐसे व्यक्ति द्वारा किया योग उसके दुःखों का हरनेवाला होता है।

(अर्थे, कृते तथा हेतु शब्दों के साथ षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

त्यजेदेकं कुलस्याऽर्थे ग्रामस्याऽर्थे कुलं त्यजेत्। ग्रामं जनपदस्याऽर्थे आत्माऽर्थे पृथिवीं त्यजेत्।।
= मनुष्य को चाहिए कि कुल की रक्षार्थ एक व्यक्ति को त्याग दे, गांव की उन्नति के लिए कुल का त्याग करे, जिले की उन्नति के लिए गांव को छोड़ दे और और अपने आत्मा की उन्नति के लिए सारे धरतीवासियों के मोह को त्याग दे।

मूर्खः स उच्यते यो हिरण्यस्यार्थे कृते वा अलीकं वदति
= वह मूर्ख कहाता है जो सोने (धन) के लिए झूठ बोलता है।

विद्यायाः कृते सुखं त्यजेत्
= विद्या के लिए सुख को छोड़ देना चाहिए।

मन्दभाग्योऽर्थस्यार्थे स्वदेशं जहाति
= भाग्यहीन व्यक्ति धन के लिए अपना देश छोड़ देता है।

अध्ययनस्य हेतोः गुरुकुले वसामि
= अध्ययन के लिए गुरुकुल में रहता हूं।

धर्मस्य हेतोः स्वप्राणानुदसृजत् श्रद्धानन्दः
= धर्म के लिए श्रद्धानन्द ने प्राणों का त्याग किया।

जीवनस्य कृते भोजनमस्ति न तु भोजनस्य कृते जीवनम्
= जीने के लिए खाना चाहिए न कि खाने के लिए जीना।

न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्मं जह्याज्जीवितस्यापि हेतोः।
= व्यक्ति काम, लोभ, भय के वशीभूत होकर तथा जान बचाने के लिए भी धर्म का परित्याग न करे।

जश्त्व सन्धिः

{झलां झशोऽन्ते। झलों (वर्ग के प्रथम, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थ वर्ण तथा हकार) को जश् (वर्ग का तृतीय वर्ण) होता है यदि झल् पद के अन्त में हो तो।}
अर्थात् यदि पदान्त में-
क्, ख्, ग्, घ् होगा तो उसे ग् हो जाता है।
च्, छ्, ज्, झ् होगा तो उसे ज् हो जाता है।्
ट्, ठ्, ड्, ढ् होगा तो उसे ड् हो जाता है।
त्, थ्, द्, ध्, होगा तो उसे द् हो जाता है।
प्, फ, ब्, भ्, होगा तो उसे ब् हो जाता है।
ह्, होगा तो उसे द् हो जाता है।

यथा जगत् + ईशः = जगद् + र्ईशः = जगदीशः।
चित् + आनन्दः = चिद् + आनन्दः = चिदानन्दः।
वाक् + ईशः = वाग् + ईशः = वागीशः।

षट् + दर्शनानि
= षड्दर्शनानि।

वैदिकवाङ्मये षड्दर्शनानि सन्ति
= वैदिक साहित्य में छै दर्शन हैं।

तत् + एजति
= तदेजति;

तत् + दूरे
= तद्दूरे;

तत् + उ
= तदु।

तदेजति तन्नैजति तद्दूरे तद्वन्तिके
= वह (र्ईश्वर) चलता है, नहीं चलता है, वह दूर है, वह निश्चय से समीप है।

विनयात् + याति
= विनयाद्याति;

पात्रत्वात् + धनम्
= पात्रत्वाद्धनम्;
धनात् + धर्मम्
= धनाद्धर्मम्।

विद्या ददाति विनयं विनयाद्याति पात्रताम्। पात्रत्वाद्धनमाप्नोति धनाद्धर्मं ततः सुखम्।।
= विद्या से मानव में विनम्रता आती है, विनम्रता से योग्यता प्राप्त होती है, योग्यता से धन मिलता है, धन से धर्म कमाया जाता है और धर्म से सुख मिलता है।

ककुभ् + दिक् + उच्यते
= ककुब् दिगुच्यते।

ककुब् दिगुच्यते संस्कृते
= संस्कृत में ककुभ् दिशा को कहते हैं।

समिध् + इति
= समिदिति।

समिधा समिदित्यपि कथ्यते
= समिधा को समिध् भी कहते हैं।

समिध् + आधानाम्
= समिदाधानम्।

अग्निहोत्रे समिदाधानं कर्म क्रियते
= हवन में समिदाधान क्रिया की जाती है।

अप् + भक्षी
= अब्भक्षी।

अब्भक्षी बालोऽयं किमपि न भुङ्क्ते
= यह बालक केवल पानी पीता है और कुछ भी नहीं खाता।

उपानह् + विक्रेता
= उपानद्विक्रेता।

उपानद्विक्रेता महार्घ्याः उपानहाः विक्रीणीते
= जूते बेचनेवाला बहुत मंहगे जूते बेचता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

बाह्यानित्यसुखासक्तिं हित्वात्मसुखनिर्वृतः।
घटस्थदीपवच्छश्वदन्तरेव प्रकाशते।।51।।

51. The self-abiding Jivan Mukta, relinquishing all his attachments to the illusory external happiness and satisfied with the bliss derived from the Atman, shines inwardly like a lamp placed inside a jar.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 51:

आत्म-बोध के 51st श्लोक में आचार्यश्री हमें जीवन्मुक्त के कुछ और लक्षण देते हैं। वे कहते हैं की जीवन्मुक्त की जीवन की यात्रा में सर्वप्रथम यह जाना की जो भी बाहरी - अर्थात इन्द्रियग्राह्य वस्तुएँ होती हैं वे सब अनित्य होती हैं। इनके ऊपर निर्भर होना इनसे आसक्ति हो जाना ही समस्त दुःख का मूल होता है। इसलिए वेदान्त के अधिकारी में वैराग्य होना चाहिए। भगवान् शंकराचार्य भी आग्रह पूर्वक कहते हैं की बिना संन्यास के ब्रह्म-विद्या प्राप्त नहीं हो सकती है। जब हम सभी बाह्य चीज़ों से आसक्ति दूर कर देते हैं, तभी आत्म-ज्ञान का मार्ग प्रशस्त होता है। वो आत्मा को नित्य जान जाता है। वो ही सत्य है, शास्वत है, आनन्दस्वरूप है - वो ही हम हैं। ऐसा व्यक्ति ही वास्तविक रूप से स्वस्थ है - जैसे एक घड़े के अंदर दीपक स्थित है और खुद भी प्रकाशित हो रहा है और समस्त बाहरी वस्तुओं को भी प्रकाशित कर रहा है।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : सिक्खानां दश गुरवः
(Ten gurus of Sikhs.)
दिनाङ्कः : 24th March 2022,
गुरुवासरः
७५तमः स्वातन्त्र्योत्सवः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (सिक्खजनानां गुरूणां जीवनप्रसङ्गं, घटनां,कथां तथा समाजाय तेषां त्यागः कः इति वक्तुं शक्नुमः।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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