संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (२४) षष्ठी विभक्ति (३) + जश्त्व सन्धिः (कर्त्तादि कारकों को कहने की इच्छा न हो तब उन कारकों में षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है।) सीता अशोकवाटिकायामुपविश्य रामस्य स्मरति = सीता अशोकवाटिका में बैठकर…
नाथेऽहं संस्कृतस्य समृद्धेः
= मैं संस्कृत की समृद्धि चाहती/चाहता हूं।
नाथेरन् विश्वे विश्वविकासस्य
= सभी विश्व के विकास को चाहें।
उज्जासतां दुष्टानां रक्षकभटाः उज्जासयन्ति
= हत्यारे दुष्टों को पुलिस मार रही है।
सर्वकारः एतस्याऽऽतङ्किनः निप्रहन्यात्
= सरकार को इस आतंकवादी की हत्या कर देनी चाहिए।
स्वदुर्गुणानां निहन्तु
= अपने दुर्गुणों को मार भगाओ।
प्राहन् ऋषिः सर्वदोषानाम्
= ऋषि ने सारे दोष नष्ट कर दिए।
शरणगतानां न उन्नाटयेत् कदाचित्
= शरणागतों को कभी भी न मारे।
पुरा सङ्ग्रामे निरस्त्रकानां नोन्नाटयन्ति स्म
= प्रचीनकालीन युद्ध में निहत्थे पर वार नहीं करते थे।
यः निरपराधानां क्राथयति तस्य परमेश्वरः क्राथयति
= जो बेकसूरोंको मारता है, उसे ईश्वर मारता है।
आतङ्किप्रहारे नैकेषां निर्दोषानाम् अक्राथयत्
= आतंकवादी हमले में कई सारे निर्दोष मार दिए गए।
बर्बराणां पिंष्यात्
= बर्बरों को पीस दो।
गोघातकानां पिण्ढि
= गाय व पृथ्वी के हत्यारों को पीस दो।
भ्रूणहनोऽपिनट्
= भ्रूणहत्यारे को पीस दिया।
एषः समवायः प्रतिवर्षं सहस्रकोटिरुप्यकाणां व्यवहरति
= इस कंपनी का हजार करोड़ रुपयों का वार्र्षिक लेन-देन है।
एषः आपणिकः लक्षाणां पणते
= यह दुकानदार लाखों रुपयों की लेन-देन करता है।
प्रतिराष्ट्रं शासकाः अब्जानां शङ्कूनां रुप्यकाणां विकासाय दीव्यन्ति
= प्रत्येक राष्ट्र की सरकारें अरबों-खरबों रुपए विकास के लिए लगाती हैं।
कितवाः दीपावल्यां सहस्राणां दीव्यन्ति
= जुआरी दीपावली पर हजारों का जुआ खेलते हैं।
युधिष्ठिरः द्युतक्रीडायां निजपरिवारस्य दिदेव
= युधिष्ठिर ने जुए में अपने परिवार को दांव पर लगा दिया।
एधः उदकस्य उपस्कुरुते
= इन्धन की लकड़ियां शीतल जल को गरम करती हैं।
अग्निहोत्रं परिसरस्य उपस्कुरुते
= अग्निहोत्र परिसर के वायुमण्डल को बदल देता है।
सूपस्य संस्कारो वातावरणस्योपास्करोत्
= दाल के तड़के ने हवा में सुगन्धि फैला दी।
सज्जनानां सङ्गतिः खलहृदयस्योपस्कर्त्तुं शक्नोति
= सज्जनों की संगति दुष्टों का हृदयपरिवर्तन कर सकती है।
फेनिलं हरिद्रावर्णस्योपस्कुरुते
= साबुन हल्दी के रंग को बदल देता है।
क्रोधो मनस उपस्कुरुते
= गुस्सा मन को विकृत कर देता है।
रोगिणः रुजन्ति रोगाः
= बीमारियां बीमारों को सता रही हैं।
व्यायामक्षुण्णगात्रस्य आमयाः न आमयन्ति
= व्यायाम से थकाए हुए शरीरवाले को रोग तंग नहीं करते।
जीर्णभोजिनः व्याधयो न व्यथन्ते
= पहला भोजन पच जाने पर खानेवाले को रोग नहीं सताते।
मानसिकरोगाः कृपणस्य रुजन्ति
= कंजूस को मानसिक रोग सताते हैं।
सा लक्ष्मीरुपकुरुते यया परेषाम्
= वह लक्ष्मी है, जिससे दूसरों का उपकार करता है।
#vakyabhyas
= मैं संस्कृत की समृद्धि चाहती/चाहता हूं।
नाथेरन् विश्वे विश्वविकासस्य
= सभी विश्व के विकास को चाहें।
उज्जासतां दुष्टानां रक्षकभटाः उज्जासयन्ति
= हत्यारे दुष्टों को पुलिस मार रही है।
सर्वकारः एतस्याऽऽतङ्किनः निप्रहन्यात्
= सरकार को इस आतंकवादी की हत्या कर देनी चाहिए।
स्वदुर्गुणानां निहन्तु
= अपने दुर्गुणों को मार भगाओ।
प्राहन् ऋषिः सर्वदोषानाम्
= ऋषि ने सारे दोष नष्ट कर दिए।
शरणगतानां न उन्नाटयेत् कदाचित्
= शरणागतों को कभी भी न मारे।
पुरा सङ्ग्रामे निरस्त्रकानां नोन्नाटयन्ति स्म
= प्रचीनकालीन युद्ध में निहत्थे पर वार नहीं करते थे।
यः निरपराधानां क्राथयति तस्य परमेश्वरः क्राथयति
= जो बेकसूरोंको मारता है, उसे ईश्वर मारता है।
आतङ्किप्रहारे नैकेषां निर्दोषानाम् अक्राथयत्
= आतंकवादी हमले में कई सारे निर्दोष मार दिए गए।
बर्बराणां पिंष्यात्
= बर्बरों को पीस दो।
गोघातकानां पिण्ढि
= गाय व पृथ्वी के हत्यारों को पीस दो।
भ्रूणहनोऽपिनट्
= भ्रूणहत्यारे को पीस दिया।
एषः समवायः प्रतिवर्षं सहस्रकोटिरुप्यकाणां व्यवहरति
= इस कंपनी का हजार करोड़ रुपयों का वार्र्षिक लेन-देन है।
एषः आपणिकः लक्षाणां पणते
= यह दुकानदार लाखों रुपयों की लेन-देन करता है।
प्रतिराष्ट्रं शासकाः अब्जानां शङ्कूनां रुप्यकाणां विकासाय दीव्यन्ति
= प्रत्येक राष्ट्र की सरकारें अरबों-खरबों रुपए विकास के लिए लगाती हैं।
कितवाः दीपावल्यां सहस्राणां दीव्यन्ति
= जुआरी दीपावली पर हजारों का जुआ खेलते हैं।
युधिष्ठिरः द्युतक्रीडायां निजपरिवारस्य दिदेव
= युधिष्ठिर ने जुए में अपने परिवार को दांव पर लगा दिया।
एधः उदकस्य उपस्कुरुते
= इन्धन की लकड़ियां शीतल जल को गरम करती हैं।
अग्निहोत्रं परिसरस्य उपस्कुरुते
= अग्निहोत्र परिसर के वायुमण्डल को बदल देता है।
सूपस्य संस्कारो वातावरणस्योपास्करोत्
= दाल के तड़के ने हवा में सुगन्धि फैला दी।
सज्जनानां सङ्गतिः खलहृदयस्योपस्कर्त्तुं शक्नोति
= सज्जनों की संगति दुष्टों का हृदयपरिवर्तन कर सकती है।
फेनिलं हरिद्रावर्णस्योपस्कुरुते
= साबुन हल्दी के रंग को बदल देता है।
क्रोधो मनस उपस्कुरुते
= गुस्सा मन को विकृत कर देता है।
रोगिणः रुजन्ति रोगाः
= बीमारियां बीमारों को सता रही हैं।
व्यायामक्षुण्णगात्रस्य आमयाः न आमयन्ति
= व्यायाम से थकाए हुए शरीरवाले को रोग तंग नहीं करते।
जीर्णभोजिनः व्याधयो न व्यथन्ते
= पहला भोजन पच जाने पर खानेवाले को रोग नहीं सताते।
मानसिकरोगाः कृपणस्य रुजन्ति
= कंजूस को मानसिक रोग सताते हैं।
सा लक्ष्मीरुपकुरुते यया परेषाम्
= वह लक्ष्मी है, जिससे दूसरों का उपकार करता है।
#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
तीर्त्वा मोहार्णवं हत्वा रागद्वेषादिराक्षसान्।
योगी शान्तिसमायुक्त आत्मा रामो विराजते।।50।।
50. After crossing the ocean of delusion and killing the monsters of likes and dislikes, the Yogi who is united with peace dwells in the glory of his own realised Self – as an Atmaram.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 50:
आत्म-बोध के 50th श्लोक में आचार्यश्री हमें जीवन्मुक्त के जीवन की यात्रा रामायण के दृष्टांत से समझते हैं। रामायण की जो मूल शिक्षा है वो इन जीवन्मुक्त ने समझ ली एवं रामजी ने अपने जीवन से जो आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करी है वो भी प्राप्त कर ली है। रामायण में प्रत्येक मनुष्य के जीवन की आत्मा-कथा बताई गयी है। जहाँ पहले उसके मन की शांति गायब हो जाती है और उसे एक विशाल समुद्र के परे छुपा के रखा गया है, और उसकी अनेकों राक्षस लोग रक्षा करते हैं। ये सागर हमारा मोह है और जो राक्षस हमारी शांति की रक्षा करते हैं वो - राग और द्वेष हैं। अतः जो व्यक्ति पहले गुरु मुख से शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके अपना मोह दूर करते हैं और अपने राग और द्वेष को दूर कर देते हैं, वे ही अपने सीता रुपी शांति से एक होकर शांति से अयोध्या में विराजते हैं। यह रामायण की भषा में एक जीवन्मुक्त की यात्रा होती है।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
तीर्त्वा मोहार्णवं हत्वा रागद्वेषादिराक्षसान्।
योगी शान्तिसमायुक्त आत्मा रामो विराजते।।50।।
50. After crossing the ocean of delusion and killing the monsters of likes and dislikes, the Yogi who is united with peace dwells in the glory of his own realised Self – as an Atmaram.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 50:
आत्म-बोध के 50th श्लोक में आचार्यश्री हमें जीवन्मुक्त के जीवन की यात्रा रामायण के दृष्टांत से समझते हैं। रामायण की जो मूल शिक्षा है वो इन जीवन्मुक्त ने समझ ली एवं रामजी ने अपने जीवन से जो आध्यात्मिक शिक्षा प्रदान करी है वो भी प्राप्त कर ली है। रामायण में प्रत्येक मनुष्य के जीवन की आत्मा-कथा बताई गयी है। जहाँ पहले उसके मन की शांति गायब हो जाती है और उसे एक विशाल समुद्र के परे छुपा के रखा गया है, और उसकी अनेकों राक्षस लोग रक्षा करते हैं। ये सागर हमारा मोह है और जो राक्षस हमारी शांति की रक्षा करते हैं वो - राग और द्वेष हैं। अतः जो व्यक्ति पहले गुरु मुख से शास्त्र का ज्ञान प्राप्त करके अपना मोह दूर करते हैं और अपने राग और द्वेष को दूर कर देते हैं, वे ही अपने सीता रुपी शांति से एक होकर शांति से अयोध्या में विराजते हैं। यह रामायण की भषा में एक जीवन्मुक्त की यात्रा होती है।
#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वाक्याभ्यासः
दिनाङ्कः : 23th March 2022,
बुधवासरः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(चित्राणि दृष्ट्वा वाक्यानि वक्तव्यानि।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु⏰
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BVGch10vs28
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.28]
🍃
♦️aayudhaanaamahaM vajraM dhenuunaamasmi kaamadhuk|
prajanashchaasmi kandarpaH sarpaaNaamasmi vaasukiH10.28
⚜I am thunderbolt among the weapons, Kaamadhenu among the cows, and the cupid among the procreators. Among the serpents, I am Vaasuki. (10.28)
⚜मैं शस्त्रों में वज्र और धेनुओं (गायों) में कामधेनु हूँ? प्रजा उत्पत्ति का हेतु कन्दर्प (कामदेव) मैं हूँ और सर्पों में वासुकि हूँ।।10.28।।
#geeta
आयुधानामहं वज्रं धेनूनामस्मि कामधुक्।
प्रजनश्चास्मि कन्दर्पः सर्पाणामस्मि वासुकिः
।।10.28।।♦️aayudhaanaamahaM vajraM dhenuunaamasmi kaamadhuk|
prajanashchaasmi kandarpaH sarpaaNaamasmi vaasukiH
⚜I am thunderbolt among the weapons, Kaamadhenu among the cows, and the cupid among the procreators. Among the serpents, I am Vaasuki. (10.28)
⚜मैं शस्त्रों में वज्र और धेनुओं (गायों) में कामधेनु हूँ? प्रजा उत्पत्ति का हेतु कन्दर्प (कामदेव) मैं हूँ और सर्पों में वासुकि हूँ।।10.28।।
#geeta
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
neelachalpuri@gmail.com sanskritgita.com +917500286183
#⃣ ००३
🏬 नीलाचलपुरी
📣 Level - 4
🔰 सन्धयः समासाः कारकाणि क्रियाः च
⏳ 5:30 PM 🇮🇳
⌛️ 6:45 PM 🇮🇳
🗓 मङ्गलवासरः गुरुवासरः च
🔛 1st week of April onwards
📱Zoom
💰 ₹४१०० भारतीयेभ्यः
📞 +917500286183
🌐 sanskritgita.com
📧 neelachalpuri@gmail.com
❗️ Total 18-19 classes with recordings
🔒पिहिता
🏬 नीलाचलपुरी
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BVGch10vs29
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.29]
⚜
♦️anantashchaasmi naagaanaaM varuNo yaadasaamaham|
pitRRi़Naamaryamaa chaasmi yamaH saMyamataamaham10.29
⚜I am Sheshanaaga among the Naagas, I am Varuna among the water gods, and Aryamaa among the manes. I am Yama among the controllers. (10.29)
⚜मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।10.29।।
#geeta
अनन्तश्चास्मि नागानां वरुणो यादसामहम्।
पितृ़णामर्यमा चास्मि यमः संयमतामहम्
।।10.29।।♦️anantashchaasmi naagaanaaM varuNo yaadasaamaham|
pitRRi़Naamaryamaa chaasmi yamaH saMyamataamaham
⚜I am Sheshanaaga among the Naagas, I am Varuna among the water gods, and Aryamaa among the manes. I am Yama among the controllers. (10.29)
⚜मैं नागों में अनन्त (शेषनाग) हूँ और जल देवताओं में वरुण हूँ मैं पितरों में अर्यमा हँ और नियमन करने वालों में यम हूँ।।10.29।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन 🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - षष्टी रात्रि 02:16 तक तपश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 23 मार्च 2022
⛅ दिन - बुधवार
⛅ शक संवत - 1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत
⛅ मास - चैत्र
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - अनुराधा शाम 06:53 तक तपश्चात ज्येष्ठा
⛅ योग - वज्र सुबह 10:20 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहुकाल - दोपहर 12:46 से 02:18 तक
⛅ सूर्योदय - 06:41
⛅ सूर्यास्त - 06:52
⛅ चन्द्रोदय - रात्रि 12:08
⛅ दिशाशूल - उत्तर
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
⛅ 🚩तिथि - षष्टी रात्रि 02:16 तक तपश्चात सप्तमी
⛅ दिनांक - 23 मार्च 2022
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⛅ मास - चैत्र
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⛅ योग - वज्र सुबह 10:20 तक तत्पश्चात सिद्धि
⛅ राहुकाल - दोपहर 12:46 से 02:18 तक
⛅ सूर्योदय - 06:41
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विषयः : वाक्याभ्यासः
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
https://youtu.be/8MZoUsRHVRQ
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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YouTube
Vaarta: News in Sanskrit | 23/03/2022
Vaarta: News in Sanskrit | 23/03/2022DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharati. It has...
उपकारिषु यः साधुः साधुत्वे तस्य को गुणः।
अपकारिषु यः साधुः स साधुरिति कीर्तितः।।
संस्कृतार्थः -
उपकारं ये कुर्वन्ति तेषु एव यस्य व्यवहारः सम्यक् भवति तस्य सज्जनता , सज्जनता नास्ति।
अपकारं ये कुर्वन्ति तेषु अपि यस्य व्यवहारः उत्तमः सः एव सज्जनः।
#Subhashitam
अपकारिषु यः साधुः स साधुरिति कीर्तितः।।
संस्कृतार्थः -
उपकारं ये कुर्वन्ति तेषु एव यस्य व्यवहारः सम्यक् भवति तस्य सज्जनता , सज्जनता नास्ति।
अपकारं ये कुर्वन्ति तेषु अपि यस्य व्यवहारः उत्तमः सः एव सज्जनः।
#Subhashitam