संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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प्रशासक समिति 🚩

🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७

तिथि - प्रतिपदा सुबह 09:01 तक तत्पश्चात द्वितीया
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दिनांक - 14 जनवरी 2021
दिन - गुरुवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - दक्षिणायन
ऋतु - शिशिर
मास - पौष
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - श्रवण 15 जनवरी प्रातः 05:05 तक तत्पश्चात धनिष्ठा
योग - वज्र रात्रि 10:06 तक तत्पश्चात सिद्धि
राहुकाल - दोपहर 02:10 से शाम 03:33 तक
सूर्योदय - 07:19
सूर्यास्त - 18:15
दिशाशूल - दक्षिण दिशा में
व्रत पर्व विवरण - मकर संक्रांति (पुण्यकाल सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक) चन्द्र दर्शन, हरिद्वार कुंभ स्नान

💥 विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)

🌷 उत्तरायण / सूर्य मंत्र 🌷
🙏🏻 इसका जप करें । वो ब्रह्मवेत्ता महाव्याधि और भय, दरिद्रता और पाप से मुक्त हो जाता है ।
🌞 सूर्य देव का मूल मंत्र है --
🌷 ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नमः ।
🙏🏻 ये पद्म पुराण में आता है ....
🌞 सूर्य नमस्कार करने से ओज, तेज और बुद्धि की बढोत्तरी होती है |
🌷 ॐ सूर्याय नमः ।
🌷 ॐ रवये नमः ।
🌷 ॐ भानवे नमः ।
🌷 ॐ खगाय नमः ।
🌷 ॐ अर्काय नमः ।
🙏🏻 सूर्य नमस्कार करने से आदमी ओजस्वी, तेजस्वी और बलवान बनता है इसमें प्राणायाम भी हो जाते हैं ।
💥 विशेष - 14 जनवरी 2021 गुरुवार को मकर संक्रांति (पुण्यकाल : सुबह 08:16 से शाम 04:16 तक ) है ।

🌷 मकर संक्रांति 🌷
🌷 नारद पुराण के अनुसार

“मकरस्थे रवौ गङ्गा यत्र कुत्रावगाहिता ।
पुनाति स्नानपानाद्यैर्नयन्तीन्द्रपुरं जगत् ।।”

🌞 सूर्य के मकर राशिपर रहते समय जहाँ कहीं भी गंगा में स्नान किया जाय , वह स्नान आदि के द्वारा सम्पूर्ण जगत्‌‍ को पवित्र करती और अन्त में इन्द्रलोक पहुँचाती है।

🌷 पद्मपुराण के सृष्टि खंड अनुसार मकर संक्रांति में स्नान करना चाहिए। इससे दस हजार गोदान का फल प्राप्त होता है। उस समय किया हुआ तर्पण, दान और देवपूजन अक्षय होता है।
🌷 गरुड़पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति, चन्द्रग्रहण एवं सूर्यग्रहण के अवसर पर गयातीर्थ में जाकर पिंडदान करना तीनों लोकों में दुर्लभ है।

👉🏻 मकर संक्रांति के दिन लक्ष्मी प्राप्ति व रोग नाश के लिए गोरस (दूध, दही, घी) से भगवान सूर्य, विपत्ति तथा शत्रु नाश के लिए तिल-गुड़ से भगवान शिव, यश-सम्मान एवं ज्ञान, विद्या आदि प्राप्ति के लिए वस्त्र से देवगुरु बृहस्पति की पूजा महापुण्यकाल / पुण्यकाल में करनी चाहिए।

👉🏻 मकर संक्रांति के दिन तिल (सफ़ेद तथा काले दोनों) का प्रयोग तथा तिल का दान विशेष लाभकारी है। विशेषतः तिल तथा गुड़ से बने मीठे पदार्थ जैसे की रेवड़ी, गजक आदि। सुबह नहाने वाले जल में भी तिल मिला लेने चाहिए।
🌷 विष्णु पुराण, द्वितीयांशः अध्यायः 8 के अनुसार
कर्कटावस्थिते भानौ दक्षिणायनमुच्यते । उत्तरायणम्प्युक्तं मकरस्थे दिवाकरे ।।

🌞 सूर्य के ‎कर्क राशि में उपस्थित होने पर ‎दक्षिणायन कहा जाता है और उसके मकर राशि पर आने से उत्तरायण कहलाता है ॥

🌷 धर्मसिन्धु के अनुसार

तिलतैलेन दीपाश्च देया: शिवगृहे शुभा:। सतिलैस्तण्डुलैर्देवं पूजयेद्विधिवद् द्विजम्।। तस्यां कृष्ण तिलै: स्नानं कार्ये चोद्वर्त्नम तिलै: . तिला देवाश्च होतव्या भक्ष्याश्चैवोत्तरायणे
👉🏻 उत्तरायण के दिन तिलों के तेल के दीपक से शिवमंदिर में प्रकाश करना चाहिए , तिलों सहित चावलों से विधिपूर्वक शिव पूजन करना चाहिए. ये भी बताया है की उत्तरायण में तिलों से उबटन, काले तिलों से स्नान, तिलों का दान, होम तथा भक्षण करना चाहिए .

🌞 अत्र शंभौ घृताभिषेको महाफलः . वस्त्रदानं महाफलं

👉🏻 मकर संक्रांति के दिन महादेव जी को घृत से अभिषेक (स्नान) कराने से महाफल होता है . गरीबों को वस्त्रदान से महाफल होता है .

🌞 अत्र क्षीरेण भास्करं स्नानपयेव्सूर्यलोकप्राप्तिः

👉🏻 इस संक्रांति को दूध से सूर्य को स्नान करावै तो सूर्यलोक की प्राप्ति होती है .

🌷 नारद पुराण के अनुसार “क्षीराद्यैः स्नापयेद्यस्तु रविसंक्रमणे हरिम् । स वसेद्विष्णुसदने त्रिसप्तपुरुषैः सह ।।

🌞 जो सूर्य की संक्रान्ति के दिन दूध आदिसे श्रीहरिको नहलाता है , वह इक्कीस पीढ़ियोंके साथ विष्णुलोक में वास करता है।

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🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️

*गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुध्दि- स्तथापि भाषान्तरलालुपोऽहम् ।
यथा सुधायाममरिषु सत्यां स्वर्गड्गनानामधरासवे रुचिः ।।


भावार्थ:- *यद्यपि देववाणी में विशेष योग्यता है फिर भी भाषान्तर का लोभी हूँ मैं। जैसे स्वर्ग में विद्यमान अमृत जैसी उत्तम वस्तु है फिर भी देवताओं को देवांगनाओं के अधरामृत पान करने की रुचि रहती ही है।
(चाणक्यनीति - 10/18)
प्रेषक; *गुरु दीनदयाल


🙏🌹प्रातःवंदन🌹🙏
🚩🇮🇳 जय मां भारती 🇮🇳🚩
Forwarded from अ उ
*सहस्रकिरणोज्ज्वल। लोकदीप नमस्तेऽस्तु नमस्ते कोणवल्लभ।।*
*भास्कराय नमो नित्यं खखोल्काय नमो नमः। विष्णवे कालचक्राय सोमायामिततेजसे।।*

अर्थात्- हे देवदेवेश! आप सहस्र किरणों से प्रकाशमान हैं। हे कोणवल्लभ! आप संसार के लिए दीपक हैं, आपको हमारा नमस्कार है। विष्णु, कालचक्र, अमित तेजस्वी, सोम आदि नामों से सुशोभित एवं अंतरिक्ष में स्थित होकर सम्पूर्ण विश्व को प्रकाशित करने वाले आप भगवान भास्कर को हमारा नमस्कार है।
*🌞🌻सुप्रभातम्🌻🌞*
मकरसंक्रांन्तिपर्वणः सर्वेभ्यः शुभाशयाः।
Forwarded from Deleted Account
*सूर्य संवेदना पुष्पे:, दीप्ति कारुण्यगंधने|*
*लब्ध्वा शुभम् मकर संक्रांते अस्मिन् कुर्यात्सर्वस्य मंगलम् ||*

जिस तरह सूर्य प्रकाश देता है, संवेदना करुणा को जन्म देती है, पुष्प सदैव महकता रहता है, उसी तरह यह मकर संक्रांति आपके लिए हर दिन, हर पल के लिए मंगलमय हो।


_*मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनायें !*_
Channel name was changed to «संस्कृत संवादः 🕉»
ईडे भवत्पादपाथोजमाध्याय ।
भूयोऽपि भूयो भयात्पाहि भो ।।
श्रीराघवेन्द्रार्य श्रीराघवेन्द्रार्य ।
श्रीराघवेन्द्रार्य पाहि प्रभो


अर्थः-
हे श्रीराघवेंद्रतीर्थयति जी, मैं आपके कमल जैसे चरणों का हर बार ध्यान करके आपकी पूजा करता हूँ। कृपया हर बार मुझे सभी भय से रक्षा प्रदान करें। हे प्रभु श्रीराघवेंद्रतीर्थयति जी, मेरी रक्षा करें।

Meaning

O great pontiff Shri Raghavendratirthaswami, I worship you by remembering your lotus feet again and again. Please rescue me from all fears. O Lord Shri Raghavendratirthaswami, please protect me.

ॐ श्रीराघवेन्द्राय नमः।

© Sanjeeva GN #Subhashitam
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संस्कृतभाषायां सन्देशान् सम्प्रेषयितुमुपयुज्यतामयं Sansgreet नामानुप्रयोगः (Android Mobile App) | महद्व्यक्तीनां जन्मदिनानि, स्मृतिदिनानि, अन्यानि विशेषदिनानि,देशीयान्तर्देशीयोत्सवाः,नवरात्रदीपावलीप्रभृतयः उत्सवाः, जन्मदिनं, विवाहः इत्यादिषु अवसरेषु तथा प्रतिदिनाभिवादनार्थं चाशंसापत्राणि उपलभ्यन्ते। आप्नुयात्संस्कृतस्पर्शनं दैनिकजीवने। प्रियजनेभ्यः प्रेष्यताम् आशिषः संस्कृते।



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📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें

📙 ऋग्वेद

सूक्त - १६ , प्रथम मंडल ,
मंत्र - ३ , देवता - इन्द्र


🍃 इन्द्र प्रातर्हवामह इन्द्र प्रयत्यध्वरे, इन्द्रं सोमस्य पीतये.. (३ )

⚜️ मैं प्रत्येक यज्ञ में प्रातः काल सोमपान के लिए इंद्र को बुलाता हूँ। (३)

क्रमशः ...

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हरिःॐ। गुरुवासर-सायङ्कालशुभेच्छाः।

आकाशवाण्या अद्यतनसायङ्कालवार्ताः।

जयतु संस्कृतम्॥
*SANSKRIT CLASSES*

*Weekend, Online classes*
These classes enable you to learn fundamentals of Sanskrit in a *systematic* and *logical* manner

*Schedule:*
Classes are held on Saturday and Sunday, 1 hour each
Duration: 6 months
Classes start:
mid-February 2021(tentative)
Time: Will be announced soon

*Prerequisites:*
1. Prior knowledge of Devanagari script is essential ( you need to know how to read/write Hindi alphabets)
2. Age should be more than 16 years
3. No upper age limit

*Teacher:* Dr. Praveen

*If interested:* Please send me a WhatsApp message with your *Name* to 8105688384.
Further details will then be shared with you

Dhanyavaadah🙏
सुमतिभिरनुमेयं शुभ्रकायं सखायं ।
सुखमयमनपायं मुक्त्युपायं विमायम् ।।
नृहयमहममेयं ध्येयमाम्नायगेयं ।
सदयमसदजेयं श्रीसहायं भजेयम् ।।

ಸುಮತಿಭಿರನುಮೇಯಂ ಶುಭ್ರಕಾಯಂ ಸಖಾಯಂ |
ಸುಖಮಯಮನಪಾಯಂ ಮುಕ್ತ್ಯುಪಾಯಂ ವಿಮಾಯಮ್ ||
ನೃಹಯಮಹಮಮೇಯಂ ಧ್ಯೇಯಮಾಮ್ನಾಯಗೇಯಂ |
ಸದಯಮಸದಜೇಯಂ ಶ್ರೀಸಹಾಯಂ ಭಜೇಯಮ್ ||

ಅನ್ವಯ: (ಸಂಸ್ಕೃತವಾಕ್ಯರಚನಾಪದ್ಧತಿ)

ಅಹಂ ಸುಮತಿಭಿಃ ಅನುಮೇಯಂ ಶುಭ್ರಕಾಯಂ ಸುಖಮಯಂ, ಅನಪಾಯಂ ಮುಕ್ತ್ಯುಪಾಯಂ, ವಿಮಾಯಂ, ಅಮೇಯಂ, ಧ್ಯೇಯಂ, ಆಮ್ನಾಯಗೇಯಂ, ಸದಯಂ, ಅಸದಜೇಯಂ, ಶ್ರೀಸಹಾಯಂ, ಸಖಾಯಂ, ನೃಹಯಂ ಭಜೇಯಮ್.

ಅನ್ವಯಾರ್ಥ:

ಅಹಮ್ - ನಾನು

ಸುಮತಿಭಿಃ - ಉತ್ತಮವಾದ ಬುದ್ಧಿಯುಳ್ಳ ಜ್ಞಾನಿಗಳಿಂದ

ಅನುಮೇಯಮ್ - ತರ್ಕವಾದದಲ್ಲಿ ದೊರಕುವ

ಶುಭ್ರಕಾಯಮ್ - ಅತ್ಯಂತನಿರ್ಮಲಶರೀರವುಳ್ಳ

ಸುಖಮಯಮ್ - ಸುಖ, ಆನಂದಗಳಿಂದ ಯುಕ್ತರಾದ,

ಅನಪಾಯಮ್ - ತಮ್ಮ ಭಕ್ತರಿಗೆ ಸುಲಭದಲ್ಲಿ ಸಿಗುವವರಾದ

ಮುಕ್ತ್ಯುಪಾಯಂ - ಮುಕ್ತಿಗೆ ಒಂದೇ ಉಪಾಯರಾದ,

ವಿಮಾಯಮ್ - ದುರ್ಮಾಯೆಯಿಂದ ರಹಿತರಾದ,

ಅಮೇಯಮ್ - ದುರ್ಜನರಿಂದ ನಿಲುಕದವರಾದ,

ಧ್ಯೇಯಮ್ - ಸಜ್ಜನರಿಂದ ಧ್ಯಾನಿಸಲ್ಪಡುವ,

ಆಮ್ನಾಯ - ಸಕಲ ವೇದವಾಙ್ಮಯದಿಂದ

ಗೇಯಮ್ - ಗುಣಗಾನಮಾಡಲ್ಪಡುವ,

ಸದಯಮ್ - ಭಕ್ತರಲ್ಲಿ ದಯೆಯುಳ್ಳ,

ಅಸತ್ - ಅಸತ್ಯವನ್ನು

ಅಜೇಯಮ್ - ಗೆಲ್ಲುವವರಾದ,

ಶ್ರೀ - ಶ್ರೀಮಹಾಲಕ್ಷ್ಮೀದೇವಿಯ (ಜ್ಞಾನಸಂಪತ್ತಿನ)

ಸಹಾಯಮ್ - ಪತಿಯಾದ ಒಡೆಯರಾದ,

ಸಖಾಯಮ್ - ಭಕ್ತರ ಪರಮಮಿತ್ರರಾದ,

ನೃಹಯಮ್ - ನರಹರಿಯನ್ನು (ಹರಿ ಎಂಬ ಪದಕ್ಕೆ ಕುದುರೆ ಎಂಬ ಅರ್ಥವೂ ಇದೆ)

ಭಜೇಯಮ್ - ಭಜಿಸಬೇಕು.

ವಿವರಣೆ:

ಶ್ರೀಮದ್ಭಾವಿಸಮೀರರೆಂದೇ ಸಕಲ 14 ಲೋಕಗಳಲ್ಲಿ ಪ್ರಸಿದ್ಧರಾದ ಶ್ರೀಮದ್ವಾದಿರಾಜತೀರ್ಥಯತಿಗಳ ಕರಕಮಲಗಳಿಂದ ವಿರಚಿತವಾದ "ಸರಸಭಾರತೀವಿಲಾಸ" ಎಂಬ ಉದ್ಗ್ರಂಥದ ಮೊದಲನೇ ವಿಲಾಸದ ಹತ್ತನೇ ಶ್ಲೋಕವಿದು.

ಯತಿವರ್ಯರು ಈ ಗ್ರಂಥದ ಎರಡನೇ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ

ಚಾರ್ವಪೂರ್ವಪದಶ್ರೇಣೀಂ |
ಉರ್ವಾಗ್ಗರ್ವಾಪಹಾರಿಣೀಮ್ ||
ಸರ್ವೇಷ್ಟಕಾರಿಣೀಮುರ್ವೀಂ |
ಕುರ್ವೇ ಸರಸಭಾರತೀಮ್ ||

ಎಂದು ತಿಳಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಇದರರ್ಥ ಅತ್ಯಂತಸುಂದರವಾದ ಹಾಗೂ ಹಿಂದೆ, ಈಗ ಹಾಗೂ ಮುಂದೆಂದೂ ನೋಡಲು ಸಿಗದ ಪದಗಳ ವಿನ್ಯಾಸವಿರುವ ಶ್ಲೋಕಗಳುಳ್ಳ, ಅತ್ಯಂತ ಹೆಚ್ಚು ಜನಜನಿತವಾದ ಗ್ರಂಥಗಳ ಗರ್ವವನ್ನು ಅಪಹರಿಸುವ, ಸಕಲ ಇಷ್ಟಾರ್ಥಗಳನ್ನೂ ನೆರವೇರಿಸಿಕೊಡುವ ಸರಸಭಾರತೀವಿಲಾಸ ಎಂಬ ಗ್ರಂಥವನ್ನು ರಚಿಸುತ್ತೇನೆ ಎಂದು ತಿಳಿಸಿದ್ದಾರೆ. ಆದ್ದರಿಂದ ಈ ಗ್ರಂಥದಲ್ಲಿ ಇರುವ ಶ್ಲೋಕಗಳೆಲ್ಲವೂ ವಿಶಿಷ್ಟವಾಗಿ ಪದವಿನ್ಯಾಸಯುಕ್ತವಾಗಿವೆ. ಓದುಗರಿಗೆ, ಅಧ್ಯಯನಕಾರರಿಗೆ, ಪಾರಾಯಣಮಾಡುವವರಿಗೆ ಅತ್ಯಂತ ಆನಂದವನ್ನು ಇಹ ಮತ್ತು ಪರದಲ್ಲಿ ಲಭ್ಯವಾಗುವಂತೇ ಮಾಡುತ್ತವೆ.

"ಮಾಲಿನೀ" ಎಂಬ ಗಾನಯೋಗ್ಯವಾದ ಛಂದಸ್ಸಿನಲ್ಲಿ ಈ ಶ್ಲೋಕವು ಯತಿಗಳ ಕರಕಮಲಗಳಿಂದ ವಿರಚಿತವಾಗಿದೆ. (ನ ನ ಮ ಯ ಯ ಯುತೇಯಂ ಮಾಲಿನೀ ಭೋಗಿಲೋಕೈಃ) "ಸುಮತಿಭಿಃ" ಮತ್ತು "ಅಹಮ್" ಈ ಎರಡು ಪದಗಳನ್ನು ಬಿಟ್ಚರೆ ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಉಪಯೋಗಿಸಲ್ಪಟ್ಟ ಪದಗಳು "ಯಮ್" ಎಂಬ ಸಂಯುಕ್ತಾಕ್ಷರದಿಂದ ಅಂತ್ಯವಾಗಿವೆ ಎಂಬುವ ವಿಶೇಷ ವಿಷಯವನ್ನು ಗಮನಿಸಿ. ಇಂತಹ ಶ್ಲೋಕಗಳನ್ನು ವಿರಚಿಸುವುದು ಯತಿವರ್ಯರಿಗೆ ಅತಿ ಸುಲಭವಾದ ಕೆಲಸ. ಇಲ್ಲಿ "ಯಮ್" ಸಂಯುಕ್ತಾಕ್ಷರವು ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಪುನರಾವರ್ತನೆಯಾಗುತ್ತಿರುವುದರಿಂದ ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ "ವರ್ಣಶ್ಲೇಷಾಲಂಕಾರ" ವೂ ಹಾಗೆಯೇ ಪ್ರತೀ ಪಾದದ ಕೊನೆಯಲ್ಲಿಯೂ ಸಹ "ಯಮ್" ಬಂದಿರುವುದರಿಂದ "ಪಾದಾಂತಪ್ರಾಸಾಲಂಕಾರ"ವೂ ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಇವೆ.

ಶ್ರೀಹಯವದನದೇವರು ಉತ್ತಮಬುದ್ಧಿಯುಳ್ಳವರಿಂದ ತರ್ಕಕ್ಕೆ ಒಳಪಟ್ಟು ಸಿಗುವಂಥವರು, ಅರ್ಥಾತ್ ತಾರ್ಕಿಕವಾಗಿ ಭಗವಂತನ ಗುಣಗಳ ಅಧ್ಯಯನಮಾಡಿ ಆತನನ್ನೇ ಸರ್ವೋತ್ತಮನೆಂದು ತಿಳಿಯುವವರಿಗೆ ದೊರಕುವಂಥವರು. ಜ್ಞಾನ ಆನಂದಾದಿಗಳೇ ದೇಹದಲ್ಲಿ ತುಂಬಿದ್ದರಿಂದ ಇವರು ಶುಭ್ರವಾದ ದೇಹವುಳ್ಳವರು. ಭಕ್ತರಿಗೆ ಸುಲಭವಾಗಿ ದೊರಕುವವರು, ಜೀವನ್ಮರಣಚಕ್ರದ ಮುಕ್ತಿಗೆ ಏಕೈಕ ಉಪಾಯವೇ ಇವರು. ದುರ್ಮಾಯೆಯು ಇವರಲ್ಲಿಲ್ಲ. ಸದಾ ಭಕ್ತರಿಂದ ಧ್ಯಾನಯೋಗ್ಯರಿವರು. ಯಾವ ದುಸ್ತರ್ಕಕ್ಕೂ ನಿಲುಕದವರಿವರು. ಸಕಲ ವೇದ ವಾಙ್ಮಯಗಳಿಂದ ಸ್ತುತಿಸಲ್ಪಡುವವರು ಇವರು. ಅತ್ಯಂತ ದಯಾಮಯರೂ, ಅಸತ್ಯವನ್ನು ಸೋಲಿಸುವವರೂ, ಜ್ಞಾನಸಂಪತ್ತನ್ನು ವೃದ್ಧಿಸುವವರೂ ಹಾಗೂ ಲಕ್ಷ್ಮೀದೇವಿಯ ಪತಿಯಾದ ಇವರನ್ನು ನಾನು ಭಜಿಸಬೇಕು ಎಂದು ಯತಿವರ್ಯರು ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ನರಹರಿಯನ್ನು ವರ್ಣಿಸಿದ್ದಾರೆ.

ಈ ಶ್ಲೋಕದಲ್ಲಿ ಭಜೇಯಮ್ ಎಂಬ ಕ್ರಿಯಾಪದವನ್ನು ಉಪಯೋಗಿಸಿದ್ದಾರೆ ಯತಿವರ್ಯರು. "ಭಜ್ ಸೇವಾಯಾಮ್" ಎಂಬ ಧಾತುವಿನ ವಿಧಿಲಿಙ್ ಕಾಲದ ಉತ್ತಮಪುರುಷದ ಏಕವಚನಾಂತವಾದ ಪದವಿದು. ಈ ಪದವೂ ಕೂಡ ಕೊನೆಯಲ್ಲಿ "ಯಮ್" ನ್ನು ಹೊಂದಿರುವುದೇ ವಿಶೇಷ. ಮನಸ್ಸಿಗೆ ಆಶ್ಚರ್ಯವನ್ನೂ, ಆನಂದವನ್ನೂ, ಜ್ಞಾನದ ಹಸಿವಿನಿಂದ ಕಂಗೆಟ್ಟ ಮನಗಳಿಗೆ ಭೂರಿಭೋಜನವನ್ನು ಉಣಬಡಿಸುವ ಸಂಪತ್ತು ಯತಿವರ್ಯರ ಕರಕಮಲಗಳಿಗೆ ಇದೆ ಎಂಬ ಸಂತೋಷಕರವಾದ ವಿಷಯವು ಇಂಥ ಶ್ಲೋಕಗಳ ಅಧ್ಯಯನದಿಂದ ಗೊತ್ತಾಗುತ್ತದೆ.

ಓಂ ನಮೋ ಭಗವತೇ ಹಯತುಂಡಾಕೃತಿನೇ ||

अन्वय: (संस्कृतवाक्यरचनापद्धति)

अहं सुमतिभिः अनुमेयं, शुभ्रकायं, सुखमयं, अनपायं, मुक्त्युपायं विमायं, अमेयं, ध्येयं, आम्नायगेयं, सदयं, असदजेयं, श्रीसहायं, सखायं, नृहयं भजेयम् ।

हिंदी मे प्रतिपदार्थ:

अहम् - मैं

सुमतिभिः - उत्तम बुद्धिवाले सज्जनों से

अनुमेयम् - तर्कशास्त्र द्वारा निर्णयकरवानेवाले,

शुभ्रकायम् - अत्यंत श्वेत शरीरवाले,

सुखमयम् - सदा आनंद से भरे,

अनपायम् - अपने भक्तों को सुलभता से मिलनेवाले,

मुक्त्युपायम् - मुक्ति के लिये एक मात्र विकल्प वाले

विमायम् - सभी दुष्ट मायाओं से परे

अमेयम् - दुर्जनों की गणना में न आनेवाले,

ध्येयम् - ध्यान करने के याग्य

आम्नाय - वेदों से

गेयम् - गुणगान करवानेवाले,

सदयम् - दया से युक्त

असदजेयम् - असत्य से सदा जीतनेवाले,
श्री - ज्ञान या श्रीमहालक्ष्मी जी के

सहायम् - सहायता करनेवाले,

सखायम् - परम मित्र

नृहयम् - मनुष्य और घोडे के शरीर धारणकरनेवाले श्रीहयवदन जी को

भजेयम् - पूजता हूँ ।

विवरण:

श्रीवादिराजतीर्थ जी के करकमलों से विरचित "सरसभारतीविलास" नाम के श्रेष्ठ ग्रंथ का प्रथमविलास का यह 10 वाँ श्लोक है । इस ग्रंथ के द्वितीय श्लोक में यतिवर्य जी ने कहा है कि...

चार्वपूर्वपदश्रेणीं ।
उर्वाग्गर्वापहारिणीम् ।।
सर्वेष्टकारिणीमुर्वीं ।
कुर्वे सरसभारतीम् ।।

(बहुत सुंदर और पहले कभी भी नहीं देखा गया पदों का विन्यास, सभी दुर्जनों के अहंकार को हरण करनेवाला, सज्जनों के इच्छाओं को पूर्ण करनेवाला सरसभारतीविलास नाम का ग्रंथ मैं रचता हूँ ।)

इस से यह पता चलता है कि इस ग्रंथ में उपयोग किये गये श्लोकों में पदों का विन्यास बहुत ही उच्च कोटी की है । पढने, अध्ययन करने, तथा पारायण करनेवालों के मन को सदैव आनंदित करने में यह ग्रंथ अत्यंत समर्थ भी है । साथ ही साथ इस ग्रंथ के अध्ययन से विष्णु में भक्ति जाग्रत होती है, जो कि हर जीव के लिये एक मात्र मुक्ति का मार्ग है ।

"मालिनी" नाम के छंद के (न न म य य युतेयं मालिनी भोगिलोकैः) प्रति पाद में 15 अक्षरों का विन्यास होता है । यह श्लोक मालिनी छंद में रचा गया है । इस श्लोक के हर पद या शब्द के अंत में "यम्" संयुक्ताक्षर का प्रयोग हुआ है । इसलिये इस श्लोक में वर्णश्लेषालंकार और पादान्तप्रासालङ्कार है ।

यतिवर्य जी इस श्लोक में "भजेयम्" क्रियापद का उपयोग कर रहे हैं, यह क्रियापद भज् सेवायां धातु के विधिलिङ् काल में तथा उत्तमपुरुष में हैं । इस का अर्थ "मुझे सेवा करना है" के रूप में आता है । श्रीहयवदन जी का शरीर निर्मल और बहुत ही श्वेत वर्ण का है । इसीलिये वे शुभ्रकाय हैं । सुमति या उत्तम बुद्धि वाले होनहार पंडितों के तर्क से इन का होना सि्ध होता है, इसलिये ये सुमतिभिरनुमेय हैं । सभी जीवों के उद्धार करने वाले हैं, इसीलिये वे सभी जीवों के एकमात्र परममित्र हैं । सदा सुख और आनंद से भरे शरीर के धारण करने के कारण ये सुखमय हैं । अपने भक्तों के लिये अत्यंत सुलभता से मिलने के कारण ये अनपाय हैं । हर एक जीव का एक मात्र लक्ष्य जीवन की मुक्ति है, इस मुक्ति का एक मात्र मार्ग ही भगवान श्रीहयवदन हैं इसीलिये वे मुक्त्युपाय हैं । इन के पास कोई भी बुरी माया नहीं है जो लोगों को आकर्षित कर के उन को मुक्ति के मार्ग से भटका दें । जिस का जितना सत्कर्म हैं, उस को उसके सत्कर्मों के आधार पर मुक्ति मिलता है । इसलिये भगवान विमाय हैं । दुर्जनों के बुद्धि की तीक्ष्णता भी इन को समझ नहीं सकती, इसीलिये ये अमेय हैं । सभी वेदवाङ्मय इन के सद्गुणों का गान करते हैं, इसलिये ये आम्नायगेय हैं । दया से भरे श्रीहयवदन जी असत्य पर सदा विजय पानेवाले हैं इसलिये असदजेय हैं । श्री या सभी संपत्तियों को अपने भक्तों को दिलाने में ये सहायता करते हैं, इसलिये ये "श्रीसहाय" हैं । इन सभी कारणों से यतिवर्य कहते हैं कि ऐसे श्रीहयवदन जी की पूजा या सेवा मुझे करनी है ।

ज्ञान की भूख संसार में जब मनुष्य को बाधित करता है तो सामान्य भूख से भी भयानक बन जाता है । क्यों कि सामान्य भूख मनुष्य के शरीर के मरने तक सताती है, जब की ज्ञान की भूख आत्मा को भी नहीं छोडती, जन्म जन्म तक आत्मा को सताती रहती है । इसीलिये आत्मा को ज्ञान का भूरिभोजन कराना चाहिये । लेकिन कैसे करायें..? इस का उत्तर ऐसे ऊपर विवृत श्लोक हैं जो पढनेवालों के मन, बुद्धी तथा आत्माओं को मोह लेकर उन को उत्तम ज्ञान प्रदान करते हैं । मनुष्य को भगवान के विषय में ज्ञान प्राप्त कराने के लिये ही ऋजुदेवता श्रीवादिराजयतिश्रेष्ठ जी ने अपने ज्ञान के संपत्ती से भरे मस्तिष्क से ऐसे ग्रंथों का प्रदान हम जैसे ज्ञान के भूखे लोगों को दे कर हम पर और हमारी आत्मा पर बहुत ही कृपा किया है । इसलिये हम सदा इन के ऋणी रहेंगे ।

ॐ नमो भगवते हयतुण्डाकृतिने ।।
*नमोनमः*
दिनाङ्कः -१५.१.२०२१
___________________________________
*अद्यतनं‌ पञ्चाङ्गम्*
शार्वरी-संवत्सरः उत्तरायणम् हेमन्त-ऋतुः
पुष्य-मासः शुक्ल-पक्षः द्वितीया-तिथिः
धनिष्ठा-नक्षत्रम् शुक्रवासरः
सिद्धि-योगः कौलव-करणम्
सौर : मकर-मासः : दिनम्-2 उत्तराषाढ़-नक्षत्रम् : द्वितीयः-पादः
ग्रेगोरियन् : जनवरी-15
___________________________________
*६३४ . ।। तृष्णा ।।*
*वलिभिर्मुखमाक्रान्तं*
*पलितेनाङ्कितं शिरः।*
*गात्राणि शिथिलायन्ते*
*तृष्णैका तरुणायते॥*
~ चेहरे पर झुर्रियां छा गईं , सर पर के बाल सफेद हो गये हैं , सब अंग
शिथिल होते जा रहे हैं । किन्तु एक _तृष्णा_ ही हैं जो युवा होती जा रही हैं ।
~Due to old age the face is covered with wrinkles , hairs on the head have turned grey and the limbs are becoming weak and unsteady . But the _'Trushna'_ is becoming younger and overpowering .
___________________________________
●प्रधानमन्त्री कौशल योजनायाः तृतीयः चरणः अशेषदेशस्य षड़शतं जनपदेषु समारप्स्यते।
●प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी दुश्य-श्रव्य-परान्तर्जालीय माध्यमेन उद्यमिभिः समं सहभागितां करिष्यति। श्वः भविता मोदिनः सम्बोधनम् ।
●प्रधानमन्त्री नरेन्द्रमोदी श्वः दृश्यश्रव्यपरान्तजालीयमाध्यमेन विश्वस्य बृहत्तमम् कोविड-19 संक्रमण-प्रतिरोधी-सूच्यौष-प्रयोगाभियानं समारप्स्यते। सूच्यौषध- प्रयोगाभियानमिदं अशेषे हि देशे समारभते।
●कोविड-19 इति वैश्विक-संक्रमणात् अशेषे हि देशे षड् चत्वादिशदधिक- एकलक्ष्योन्तरैकोटिसंख्याकाः जनाः स्वस्थीभूताः अनैन सहैव अस्मात् संक्रमणात् प्रत्यवाप्तमितिः पञ्च द्वे दशमलवोन्तर षण्णवति-प्रतिशतं यावत् संवृत्ता।
*अपि च*
●ऑस्ट्रेलियां-भारतं चान्तरा अनुवर्तमानायाः चतसृणां निकषस्पर्धाश्रृंखलायाः अन्तिमा स्पर्धा प्रचलति। ऑस्ट्रेलिया दलं प्रत्यग्रसूचनानूसारि ऑस्ट्रेलिया दलं 02 क्रीडकयोः हानिपुरस्कारं 39 धावनाडान् समार्जयत्।
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*कोविडोपनिंग*
कोरोना इति वैश्विकसङ्क्रमणं विरुद्धं राष्ट्रभावनया युद्ध्यते। भवन्तोऽपि कोरोणासङ्क्रमणं अवसानं गच्छेत् तदर्थम् अस्मभिः साकं सुरक्षाया: उपायत्रयं यथावस्थमेव सन्धारयेयुः। कुशाग्रबुद्धिपरिचायकपरं मुखनासिकाच्छादकं
सामाजिकदौर्यानुपालनं पाणिपादप्रक्षालनं च सर्वदैव अवधारयन्तु यतोहि यावन्न औषधं तावन्न शैथिल्यम्।
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*Kaushal Vikash Yojna*
प्रधानमन्त्री कौशल योजनायाः तृतीयः चरणः अशेषदेशस्य षड़शतं जनपदेषु समारप्स्यते। कौशल-विकासोद्यमिता-मन्त्रालय-द्वारा देशस्य षड्शतं जनपदे समारप्स्यमाणे अस्मिन् तृतीयचरणे नवयुगः कोविड-संबंद्ध-कौशलञ्च इत्येतयोः विषययोः सबलम् अवधानं दीयते। प्रधानमन्त्री-कौशल-विकासयोजनायाः अस्मै तृतीय चरणाय एतदार्थिकवर्षाय नव शून्य दशमलवोत्तर अष्टचत्वादिशधिक नव कोटिरूप्पकाणि व्ययीक्रियन्ते यैः लक्षशः प्रशिक्षुणां प्रशिक्षणं परिकल्प्यते। नवविइत्यधिक-सप्तशतं प्रधानमन्त्री-कौशल-केन्द्राणि, एतद्योजनेतर-प्रशिक्षण- केन्द्राणि, कौशलभारतन्तर्गतं द्विशत-सख्याकानि भारतीय-प्रौद्यगिकसंस्थान केन्द्राणि सम्भूय सुदृढं सेतु निमान्ति।
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*PM - Prarambh*
प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी दश्य-श्रव्य-परान्तर्जालीय माध्यमेन उदयमिभिः समं सहभागितां करिष्यति। केन्द्रीय-वाणिज्योद्योग मन्त्रालय द्वारा समायोज्यमाणे अस्मिन् प्रारम्भ-उद्यम-भारतान्ताराष्ट्रियं शिखर सम्मेलनम् इत्याख्ये समारोहे श्वः प्रधानमन्त्रिणो मोदिनः सम्बोधनं भविता। केन्द्रीय-वाणिज्योद्योग-मन्त्री पीयूष गोयलः अद्य शिखर-सम्मेलनमिदं समुद्घाटयिष्यते अवधेयं तथ्यमिदं यत् शिखर-सम्मेलनमिदं प्रधानमन्त्रिणो नरेन्द्रमोदिनो बिम्सटेक इत्याख्ये बहु-उद्देश्यीय- प्रौद्योगिकार्थिक-सम्मेलनस्य पुनःस्मारणपूर्वकं विद्यते
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*PM - Vaccination*
प्रधानमन्त्री नरेन्द्रमोदी श्वः दृश्यश्रव्य परान्तजालीयमाध्यमेन विश्वस्य बृहतमं कोविड-19 संक्रमण-प्रतिरोधी-सूच्यौष-प्रयोगाभियानं समारप्स्यते। सूच्यौषध- प्रयोगाभियानमिदं अशेषे हि देशे समायोक्ष्यते राज्येषु-केन्द्रशासित प्रदेशेषु च देशव्याप्यभियानाय षडधिक-त्रि-सहस्र-संख्याकानि केन्द्रेषु समवधानपरं इदं अभियानम् समारप्स्यते। प्रथमे दिवसे प्रत्येक केन्द्रेषु शतसंख्याके, जनेषु अस्य संक्रमण-प्रतिरोधी सूच्चौषधस्य प्रयोगः समनुष्ठीयते। प्रक्रिया इयं को-विन इति प्रौद्यौगिक-पटल द्वारा विधास्यते।
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*National Covid*
कोविड-19 इति वैश्विक-संक्रमणात् अशेषे हि देशे षड् चत्वादिंशदधिक- एकलक्ष्योन्तरैकोटि संख्याकाः जनाः स्वस्थीभूताः अनैन सहैव अस्मात् संक्रमणात् प्रत्यवाप्तमितिः पञ्च द्वे दशमलवोन्तर षण्णवति प्रतिशतं यावत् संवृत्ता। विगते अहोरात्रे सार्ध-सप्तदश सहस्रसंख्याकाः जनाः पूर्णतया स्वस्थीभूताः । इदानीम् संक्रमणमानांकः प्रत्यहिन सहस्रतोऽपि न्यूनायते।
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*Aus-Ind Cricket*
ऑस्ट्रेलियां-भारतं चान्तरा अनुवर्तमानायाः चतसृणां निकषस्पर्धाश्रृंखलायाः अन्तिमा स्पर्धा इदानीं ब्रिसबेन क्रीड़ागणे प्रचलति ऑस्ट्रेलिया दलं पणकं विजित्य क्रीडां समारभत। प्रत्यग्रसूचनानूसारि ऑस्ट्रेलिया दलं 02 क्रीडकयोः हानिपुरस्कार 39 धावनाडान् समार्जयत्। अवधेयास्पदं तथ्यमिदं यत् उभे दले स्पर्धाश्रृंखलायामः अस्यां समत्वं भजेते। इयं निर्णायिका-स्पर्धा विद्यते । इतः प्राकृ प्रथमां स्पर्धा आस्ट्रेलियादलं, द्वितीयां स्पर्धा भारतं विजितवत्। तृतीया स्पर्धा परिणामरहिता समजायत। स्पर्धाश्रृंखलां जेतुं अस्यां स्पर्धायाम् विजयो वर्तते आवश्यकः। भारतं स्पर्धा इमां विजित्य श्रृंखलां जेतुं अस्ति करिबद्धम् ।
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*||इति वार्ताः||*
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नोट्स - संस्कृत* 📝

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