संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

स्थाणौ पुरुषवद्भ्रान्त्या कृता ब्रह्मणि जीवता।
जीवस्य तात्त्विके रूपे तस्मिन्दृष्टे निवर्तते।।45।।

45. Brahman appears to be a’Jiva’ because of ignorance, just as a post appears to be a ghost. The ego-centric-individuality is destroyed when the real nature of the’Jiva’ is realised as the Self.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 45:

आत्म-बोध के 45th श्लोक में आचार्यश्री एक अत्यंत महत्वपूर्ण विषय पर प्रकाश डाल रहे हैं। यह विषय है की आत्मा का दर्शन और उसमे निष्ठा कब होगी। क्या हम सदैव आत्मा का ध्यान करें? आचार्य बोलते हैं कि नहीं, आत्मा का नहीं 'जीव' पर ध्यान दो। जीव किसको कहते हैं? ये कैसे उत्पन्न होता है? इसकी संकुचिताएँ कैसे आती हैं, और कैसे जाती हैं? वे कहते हैं की वस्तुतः जीव आत्मा को ठीक से न जानने के कारण एक भ्रान्ति मात्र होती है, और भ्रान्ति की समाप्ति से यह भी दूर हो जाता है, और उसके स्थान पर एक अनन्त सत्ता विद्यमान होती है - वो ब्रह्म है।

#Atmabodha
🍁 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍁

नमः सर्वेभ्यः,
नूतनसम्भाषणशिबिरार्थिनां कृते विशेष सूचना

मार्च मासस्य 14 दिनाङ्कतः 31 दिनाङ्कपर्यन्तं अभ्यासकक्ष्या चाल्यते।

समयः -- सायं 7pm-7.40pm

विषयः -- सुलभसम्भाषणम्

पुस्तकम् -- संस्कृतभारती पुस्तकविभागस्य अभ्यास पुस्तकम्

-- https://us05web.zoom.us/j/7286226080?pwd=a0hNQnJ4aHVvVXUvWm1SSm9HTjFkUT09

Meeting ID:
7286226080
Passcode:
9TXy4g

🍁*सर्वेषां हार्दं स्वागतम्* 🍁
🍀 प्रतिदिनं संस्कृतम् 🍀

नमः सर्वेभ्यः

प्रतिदिनं वयं मिलित्वा लकारपठनं करिष्यामः
लट् , लोट्, लङ्,विधिलिँङ् लकाराः

समयः - 9.30-10.10. PM (भारतीय समयानुसारम् ) केवलं 40 निमेषाः

सोमवासरतः शुक्रवासरपर्यन्तम्

कक्ष्या मार्च मासस्य 16 दिनाङ्कतः आरभते

https://meet.google.com/dck-rnvy-hhn
BVGch10vs18
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.18]
🍃विस्तरेणात्मनो योगं विभूतिं च जनार्दन।
भूयः कथय तृप्तिर्हि श्रृण्वतो नास्ति मेऽमृतम्
।।10.18।।

♦️vistareNaatmano yogaM vibhuutiM cha janaardana|
bhuuyaH kathaya tRRiptirhi shrRRiNvato naasti me'mRRitam10.18

O Lord, explain to me again in detail, Your yogic power and glory; because, I am not satiated by hearing Your nectar-like words. (10.18)

हे जनार्दन अपनी योग शक्ति और विभूति को पुन विस्तारपूर्वक कहिए क्योंकि आपके अमृतमय वचनों को सुनते हुए मुझे तृप्ति नहीं होती।।10.18।।

#geeta
BVGch10vs19
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.19]
🍃श्री भगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
प्राधान्यतः कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे
।।10.19।।

♦️shrii bhagavaanuvaacha
hanta te kathayiShyaami divyaa hyaatmavibhuutayaH|
praadhaanyataH kurushreShTha naastyanto vistarasya me10.19

The Supreme Lord said: 
O Arjuna, now I shall explain to you My prominent divine manifestations, because My manifestations are endless. (10.19)

श्रीभगवान् ने कहा --
हन्त अब मैं तुम्हें अपनी दिव्य विभूतियों को प्रधानता से कहूँगा। हे कुरुश्रेष्ठ मेरे विस्तार का अन्त नहीं है।।10.19।।

#geeta
अग्ने॒ नय॑ सु॒पथा॑ रा॒ये अ॒स्मान्।

Hindi Translation:
हे अग्नि, सभी प्रकार के ज्ञान को जानकर, हमें अच्छे मार्ग से धन की ओर ले चलो।

English Translation:
O Agni, knowing all kinds of knowledge, lead us to wealth in good ways.

Source:
(bṛhadāraṇyaka-upaniṣad 5.15.1) (īśa-upaniṣad 18) (ṛgvedaḥ 1.189.1) (yajurvedaḥ 5.36)

सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:।
आप सभी को होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
सर्वेभ्य: होलिका पर्वण्: हार्दिक्य शुभकामना:।
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - पूर्णिमा 12:47 पी. एम. तक ततपश्चात प्रतिपदा

दिनांक 18 मार्च 2022
दिन - शुक्रवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी 12:18 ए. एम तक,मार्च 19 तपश्चात हस्त
योग - गण्ड 11:15 पी. एम तक तत्पश्चात वृद्धि
राहुकाल -11:17 ए.एम से 12:48 पी.एम. तक
सूर्योदय - 06:46 ए. एम.
सूर्यास्त - 06:50 पी.एम
चन्द्रोदय - 07:01 पी.एम.
दिशाशूल - पश्चिम
चिन्ता चिता समानास्ति बिन्दुमात्रविशेषतः।
सजीवन्दहते चिन्ता निर्जीवन्दहते चिता।।

🌞 चिन्ताचिताशब्दयोः मध्ये बिन्दुमात्रः भेदः अस्ति।
परन्तु तयोः कार्यं पूर्णतः भिन्नम् अस्ति, चिता तु मृतं शरीरम् एव दहति किन्तु चिन्ता जीवन्तं मनुष्यं दहति।

चिंता चिता के समान है, बिन्दु (अनुस्वार) मात्र का अन्तर है। चिंता जीवित को जलाती है, जबकि चिता मृतक को जलाती है।

Worry is similar to a funeral pyre, the difference is of a point (anusvāra) only. Worry consumes the living, while a funeral pyre consumes the dead.

#Subhashitam
संस्कृतभाषायां प्रसिद्धा: लोकोक्तय: -

1. संघे शक्ति: कलौ युगे। – एकता में बल है।
2. अविवेक: परमापदां पद्म। – अज्ञानता विपत्ति का घर है।
3. कालस्य कुटिला गति:। – विपत्ति अकेले नहीं आती।
4. अल्पविद्या भयंकरी। – नीम हकीम खतरे जान।
5. बह्वारम्भे लघुक्रिया। – खोदा पहाड़ निकली चुहिया।
6. वरमद्य कपोत: श्वो मयूरात। – नौ नगद न तेरह उधार।
7. वीरभोग्य वसुन्धरा। – जिकसी लाठी उसकी भैंस।
8. शठे शाठ्यं समाचरेत् – जैसे को तैसा।
9. दूरस्था: पर्वता: रम्या:। – दूर के ढोल सुहावने लगते हैं।
10. बली बलं वेत्ति न तु निर्बल : जौहर की गति जौहर जाने।
11. अतिदर्पे हता लंका। – घमंडी का सिर नीचा।
12. अर्धो घटो घोषमुपैति नूनम्। – थोथा चना बाजे घना।
13. कष्ट खलु पराश्रय:। – पराधीन सपनेहुँ सुख नाहीं।
14. क्षते क्षारप्रक्षेप:। – जले पर नमक छिड़कना।
15. विषकुम्भं पयोमुखम। – तन के उजले मन के काले।
16. जलबिन्दुनिपातेन क्रमश: पूर्यते घट:। – बूँद-बूँद घड़ा भरता है।
17. गत: कालो न आयाति। – गया वक्त हाथ नहीं आता।
18. पय: पानं भुजङ्गानां केवलं विषवर्धनम्। – साँपों को दूध पिलाना उनके विष को बढ़ाना है।
19. सर्वनाशे समुत्पन्ने अर्धं त्य​जति पण्डित:। – भागते चोर की लंगोटी सही।
20. यत्नं विना रत्नं न लभ्यते। – सेवा बिन मेवा नहीं।
-सङकलन- वशिष्ठ कुमार व्यास
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
श्चुत्व सन्धिः {(स्तोः श्चुना श्चुः) सकार या तवर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) से पहले या बाद में शकार या चवर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) कोई भी हो तो सकार और तवर्ग को क्रमशः शकार और चवर्ग हो जाता है। (अर्थात् ‘स्’ को ‘श्’, ‘त्’ को ‘च्’, ‘थ्’ को ‘छ्’, ‘द्’ को ‘ज्’, ‘ध्’…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२३) षष्ठी विभक्ति (२) + ष्टुत्व सन्धिः

(बहुतों में एक को छांटने में जिसमें से छांटा जाए उसमें षष्ठी तथा सप्तमी दोनों का प्रयोग देखा जाता है।)

व्याकरणअध्येतृणां व्याकरणाध्येतृषु दयानन्दः पटुः अस्ति
= व्याकरण पढ़नेवालों में दयानन्द चतुर/कुशल है।

कविषु कवीनां वा कालिदासः श्रेष्ठोऽस्ति
= कवियों में कालिदास श्रेष्ठ है।

गवां गोषु वा देशि-गौ श्रेष्ठतमा भवति
= गायों में देशी गाय सर्वोत्तम होती है।

पशुनां पशुषु वा सिंहः शूरो भवति
= पशुओं में शेर शूर होता है।

मृगानां मृगेषु वा चित्रकः वेगेन धावति
= जंगली पशुओं में चीता तेजी से दौड़ता है।

वयसां वयस्सु हंसः दूरम् उड्डयति
= पक्षियों में हंस लम्बी उड़ान भरता है।

पेयानां पेयेषु वा दुग्धं सम्पूर्णाहार इति कथ्यते
= पेय पदार्थों में दूध को सम्पूर्णाहार कहा जाता है।

जीवेषु जीवानां वा मानवः श्रेष्ठः
= प्राणियों में मनुष्य श्रेष्ठ है।

मानवानां मानवेषु वा पण्डिताः श्रेष्ठाः
= मानवों में पण्डित श्रेष्ठ है।

वृक्षानां वृक्षेषु वा चन्दनं शीतलं वर्तते
= वृक्षों में चन्दन शीतल होता है।

वस्त्रेषु वस्त्राणां वा कार्पासं वस्त्रं स्वास्थ्यप्रदं भवति
= कपड़ों में सूती कपड़ा स्वास्थ्यप्रद होता है।

धातूनां धातुषु वा सुवर्णस्य महिमा अधिकोऽस्ति =
धातुओं में सोने का महत्व अधिक है।

सैनिकानां सैनिकेषु वा पञ्च सैनिकाः अद्य वीरगतिं प्राप्नुवन्
= सैनिकों में आज पांच सैनिक शहीद हो गए।

राजनीतिज्ञानां राजनीतिज्ञेषु वा कृष्णोऽन्यतमः
= राजनीतिज्ञों में कृष्ण जैसा कोई नहीं है।

पुरुषेषु पुरुषाणां वा राम एव मर्यादापुरुषोत्तमो बभूव
= पुरुषों में श्रीराम ही मर्यादापुरुषोत्तम हुए।

देशेषु देशाणां वा भारत एव जगद्गुरु-नाम्ना लब्धख्यातिकोऽस्ति
= देशों में केवल भारत ही जगद्गुरु नाम से प्रसिद्ध है।

भाषाणां भाषासु वा संस्कृतस्य साहित्यं विशालं वर्तते
= सकल भाषाओं में संस्कृत भाषा का साहित्य विशाल है।

ऋतुनां ऋतुषु वा शरदृतुर्जीवग्राही वर्तते वसन्तर्तु च स्वास्थ्यदायी
= ऋतुओं में शरद्-ऋतु जानलेवा होती है जबकि वसन्त-ऋतु स्वास्थ्यदायी।

भोजनानां भोजनेषु वा उष्णिका शीतर्तौ स्वद्यते
= व्यंजनों में गरमागरम लप्सी ठंड में खूब स्वादिष्ट लगती है।

धर्मार्थकाममोक्षाणां यस्यैकोऽपि न विद्यते।
जन्म-जन्मनि मर्त्येषु मरणं तस्य केवलम्।।
= जिस मानव ने अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में से एक भी नहीं प्राप्त किया, उसे इस मृत्यु लोक में बार-बार जन्म लेने और मृत्युदुःख भोगने का ही विकल्प बचता है।

#vakyabhyas