संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃स्वयमेवात्मनाऽत्मानं वेत्थ त्वं पुरुषोत्तम।
भूतभावन भूतेश देवदेव जगत्पते
।।10.15।।

♦️svayamevaatmanaa'tmaanaM vettha tvaM puruShottama|
bhuutabhaavana bhuutesha devadeva jagatpate10.15

O Creator and Lord of all beings, God of all gods, Supreme person and Lord of the universe, You alone know Yourself by Yourself. (10.15)

हे पुरुषोत्तम हे भूतभावन हे भूतेश हे देवों के देव हे जगत् के स्वामी आप स्वयं ही अपने आप को जानते हैं।।10.15।।

#geeta
🌞🚩आज का पञ्चाङ्ग🚩 🌞
दिनांक - 16 मार्च 2022
दिन - बुधवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
तिथि - त्रयोदशी दोपहर 01:39 तक तत्पश्चात चतुर्दशी
नक्षत्र - मघा रात्रि 12:21 तक तत्पश्चात पूर्वाफाल्गुनी
योग - धृति 17 मार्च रात्रि 02:39 तक तत्पश्चात शूल
राहुकाल - दोपहर 12:47 से दोपहर 02:18 तक
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : काश्मीरे हिन्दूनां पलायनम्
(Exodus of Hindus from kashmir)
THE KASHMIR FILES
दिनाङ्कः : 16th March 2022,
बुधवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (तस्मिन् समये हिन्दूजनैः सह किं किं जातम् ,तथा चलचित्रे किं किं प्रदर्शितम् अस्ति) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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न वर्ण्यवस्तुमाहात्म्यान्महत्तां भजते कविः ।
तथा सति कवीन्द्रः स्यात्सर्वोऽद्रीभादि वर्णयन् ॥

One doesn't become a महाकवि just because the object of one's description is महत् (big/great). If that had been the case, everyone who describes an elephant or a mountain would be महाकवि

संस्कृतार्थः -
विशालस्य ग्रन्थस्य लेखनेन एव कोऽपि महाकविः न भवति। यदि तथा भवेत् चेत् ते सर्वे महाकवयः सन्ति ये गजं पर्वतं वा वर्णयन्ति।
इत्युक्ते गुणाः एव प्रधानाः न तु कुलीनता।

#Subhashitam
योगी आदित्यनाथः निर्वाचनप्रक्रियायां जयं _______।
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यस्य पुत्रो न वै विद्वान्न शूरो न च धार्मिकः। अप्रकाशं कुलं तस्य नष्टचन्द्रेव शर्वरी।। = जिसका पुत्र न विद्वान् हो, न शूरवीर हो और न धार्मिक हो उसका कुल उसी प्रकार प्रकाशरहित (प्रसिद्धिरहित) रहता है जैसे चन्द्रमा से रहित रात्रि। संसारतापदग्धानां त्रयो…
आत्माऽपराधवृक्षस्य फलान्येतानि देहिनाम्। दारिद्र्यरोगदुःखानि बन्धनव्यसनानि च।।
= दरिद्रता, रोग, कष्ट, दुःख, बन्धन और आपत्तियां ये सब मनुष्य के अपने ही किए पापरूप वृक्ष के फल हैं।

यद् व्यङ्गाः कुष्ठिनश्चान्धाः पङ्गवश्च दरिद्रिणः। पूर्वोपार्जितपापस्य फलमश्नाति देहिनः।।
= अपंग, कोढ़ी, नेत्रहीन, लंगड़े तथा दरिद्र लोग वास्तव में अपने पूर्वोपार्जित पापों का फल ही भोग रहे होते हैं।

बहूनां चैव सत्त्वानां समवायो रिपुञ्जयः।
वर्षधाराधरो मेघस्तृणैरपि निवार्यते।।
= संगठित मनुष्यों का समूह शत्रु के छक्के छुड़ा सकता है, जैसे मूसलाधार वर्षा के वेग को क्षुद्र तिनके (छप्पर के रूप में) रोक देते हैं।

उत्पन्नपश्चात्तापस्य बुद्धिर्भवति यादृशी।
तादृशी यदि पूर्वं स्यात् कस्य न स्यानमहोदयः।।
= अशुभ कर्म कर चुकने के उपरान्त जैसी बुद्धि पछतानेवाले मनुष्य की उत्पन्न होती है वैसी बुद्धि कर्म करने के पूर्व में हो जाए तो किसका मोक्ष नहीं होगा ? अर्थात् सभी का कल्याण होगा।

स जीवति गुणा यस्य यस्य धर्मः स जीवति। गुणधर्मविहीनस्य जीवितं निष्प्रयोजनम्।।
= वह जीवित है जिसके पास गुण हैं, वहभी जीवित है जिसके पास धर्म है। गुण तथा धर्म से रहित व्यक्ति का जीवन निष्फल तथा व्यर्थ है।

संसारकटुवृक्षस्य द्वे फले अमृतोपमे।
सुभाषितं च सुस्वादु सङ्गतिः सुजने जने।।
= संसार रूपी कड़वे वृक्ष के अमृत के समान मधुर दो ही फल हैं। रसीला प्रिय वचन और सज्जनों की संगति।

पिता रत्नाकरो यस्य लक्ष्मीर्यस्य सहोदरा।
शङ्खो भिक्षाटनं कुर्यान्नाऽदत्तमुपतिष्ठते।।
= समुद्र जिसका पिता है, लक्ष्मी जिसकी बहन है, चन्द्रमा के समान चमकता हुआ शंङ्ख भी यदि भीख मांगता फिरे तो समझ लेना चाहिए कि बिना दान दिए धन नहीं मिलता।

तक्षकस्य विषं दन्ते मक्षिकायास्तु मस्तके।
वृश्चिकस्य विषं पुच्छे सर्वाङ्गे दुर्जने विषम्।।
= सांप का विष उसके दांत में, मक्खी के सिर में, बिच्छु के पूंछ में होता है। जबकि दुर्जन व्यक्ति के तो अंग अंग में विष होता है।

परोपकरणं येषां जागर्त्ति हृदये सताम्।
नश्यन्ति विपदस्तेषां सम्पदः स्युः पदे पदे।।
= जिन सज्जनों के हृदय में परोपकार की भावना जागृत रहती है, उनकी आपत्तियां दूर हो जाती हैं और कदम कदम पर उन्हें सम्पत्तियां प्राप्त होती हैं।

परोपकारशून्यस्य धिङ् मनुष्यस्य जीवितम्। जीवन्तु पशवो येषां चर्माप्युपकरिष्यति।।
= परोपकाररहित मानव के जीवन को धिक्कार है अर्थात् उनका जीना बेकार है। जिनका मरणोपरान्त चमड़ा भी उपकार में लगता है ऐसे पशुओं का जीना सार्थक है।

शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते।
= योगभ्रष्ट व्यक्ति पवित्र और श्रीमन्त लोगों के घर में जन्म लेता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

आत्मा तु सततं प्राप्तोऽप्यप्राप्तवदविद्यया।
तन्नाशे प्राप्तवद्भाति स्वकण्ठाभरणं यथा।।44।।

44. Atman is an ever-present Reality. Yet, because of ignorance it is not realised. On the destruction of ignorance Atman is realised. It is like the missing ornament of one’s neck.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 44:

आत्म-बोध के 44th श्लोक में आचार्यश्री हमें एक प्रचलित प्रश्न का उत्तर दे रहे हैं। प्रश्न है - कि, महाराज हमने इतनी साधना करि, इतनी पढ़ाई करी लेकिन अभी तक हमें आत्मा की प्राप्ति नहीं हुई है, कब होगी? ऐसे लोगों को आचार्य कहते है की आत्मा की प्राप्ति किसी दिव्य अज्ञात तत्व की प्राप्ति नहीं होती है। आत्मा तो मैं को बोलते हैं और वो तो प्राप्त ही है। समस्या तो अपने आप को ठीक से न जानने की है। न जानना ही अज्ञान ही - और अज्ञान के दो रूप होते हैं - न जानना और गलत जानना। वेदान्त शास्त्र इन्ही दोनों को दूर कर देते हैं और उसके बाद हमें मनो प्राप्त हो जाती है - जैसे गले में पड़ा हुआ माला।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : "होली" उत्सवः
दिनाङ्कः : 17th March 2022,
गुरुवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (कथं भवतां स्थाने एतस्याः आचरणं भवति, कश्चन अनुभवः अस्ति,का पौराणिकी कथा अस्ति, कः संदेशः प्राप्यते। ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

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BVGch10vs16
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.16]
🍃वक्तुमर्हस्यशेषेण दिव्या ह्यात्मविभूतयः।
याभिर्विभूतिभिर्लोकानिमांस्त्वं व्याप्य तिष्ठसि
।।10.16।।

♦️vaktumarhasyasheSheNa divyaa hyaatmavibhuutayaH|
yaabhirvibhuutibhirlokaanimaaMstvaM vyaapya tiShThasi10.16

(Therefore), You alone are able to fully describe Your own divine glories, the manifestations, by which You exist pervading all the universe. (10.16)

आप ही उन अपनी दिव्य विभूतियों को अशेषत कहने के लिए योग्य हैं जिन विभूतियों के द्वारा इन समस्त लोकों को आप व्याप्त करके स्थित हैं।।10.16।।

#geeta
BVGch10vs17
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.17]