संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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BVGch10vs10
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.10]
🍃तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम्।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते
।।10.10।।

♦️teShaaM satatayuktaanaaM bhajataaM priitipuurvakam|
dadaami buddhiyogaM taM yena maamupayaanti te10.10

I give the knowledge, to those who are ever united with Me and lovingly adore Me, by which they come to Me. (10.10)

उन (मुझ से) नित्य युक्त हुए और प्रेमपूर्वक मेरा भजन करने वाले भक्तों को मैं वह बुद्धियोग देता हूँ जिससे वे मुझे प्राप्त होते हैं।।10.10।।

#geeta
BVGch10vs11
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.11]
🍃तेषामेवानुकम्पार्थमहमज्ञानजं तमः।
नाशयाम्यात्मभावस्थो ज्ञानदीपेन भास्वता
।।10.11।।

♦️teShaamevaanukampaarthamahamaj~naanajaM tamaH|
naashayaamyaatmabhaavastho j~naanadiipena bhaasvataa10.11

Out of compassion for them I, who dwell within their heart, destroy the darkness born of ignorance by the shining lamp of knowledge. (10.11)

उनके ऊपर अनुग्रह करने के लिए मैं उनके अन्तकरण में स्थित होकर? अज्ञानजनित अन्धकार को प्रकाशमय ज्ञान के दीपक द्वारा नष्ट करता हूँ।।10.11।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - एकादशी 12:05 पी. एम. तक ततपश्चात द्वादशी

दिनांक 14 मार्च 2022
दिन - सोमवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - पुष्य 10:08 पी. एम तक तपश्चात अश्लेषा
योग - अतिगण्ड 04:15 ए. एम मार्च 15 तत्पश्चात सुकर्मा
राहुकाल -8:20 ए.एम से 09:49 ए.एम. तक
सूर्योदय - 06:50 ए. एम.
सूर्यास्त - 06:48 पी.एम
चन्द्रोदय - 03:14 पी.एम.
चन्द्रोस्त - 5:01 ए.एम मार्च 15
दिशाशूल - पूर्व
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वार्ताः
(News)
दिनाङ्कः : 14th March 2022,
सोमवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन ( प्रदेशीयां , राष्ट्रीयां, अन्ताराष्ट्रीयां वा वार्तां वदन्तु ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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Live stream scheduled for
सेवितव्यो महान् वृक्षः फलच्छायासमन्वितः।
यदि दैवात् फलं नास्ति छाया केन निवार्यते।।

संस्कृतार्थः -
फलसहितान् छायावृक्षान् एव आश्रयन्तु यतः अभाग्यवशात् फलानि न मिलन्ति चेदपि छाया अस्मान् आतपात् रक्षति एव किल?

#Subhashitam
परश्वः (16-03-2022)संलापशालायाः विषयः भविष्यति
"THE KASHMIR FILES" इति कृपया सर्वे आगच्छन्तु तथा यदि शक्यते चेत् चलचित्रं दृष्ट्वा अपि आगच्छन्तु।
हास्यकणिका
- सुजाता हळदीपुर , मुम्बई

जनक: — विशाल, अद्य तव अम्बायाः स्वास्थ्यं सम्यक् नास्ति वा ? होराद्वयं सा किमपि न उक्तवती । किमर्थम् ? मूर्ख , किं कृतवान् त्वम् ??
विशालः — तात, चिन्ता मास्तु। स्वस्था अस्ति सा । सा ओष्ठरङ्गम् ( लिप्स्टिक 💄) इष्टवती। अहम् अनवधानेन तस्यै फेविस्टिक-लेपम् दत्तवान्।
जनक: — अत्युत्तमम्। शतायुषी भव। ईश्वरकृपया ईदृश: सुपुत्र: सर्वे लभेयु:।

#hasya
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(प्रभृति, आरभ्य, बहिः, ऊर्ध्वम्, अनन्तरम् के योग में भी पञ्चमी विभक्ति होती है।) इतः प्रभृति नगर पर्यन्तं वृष्टो देवः = यहां से लेकर शहर तक वर्षा हुई। हिमालयात् प्रभृति रामेश्वर पर्यन्तं भारतवर्षं वर्तते = हिमालय से लेकर रामेश्वर तक भारतवर्ष है।…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२२) षष्ठी विभक्ति (१) + श्चुत्व सन्धिः

(सम्बन्ध का बोध कराने के लिए षष्ठी विभक्ति होती है।)

इदं रामस्य पुस्तकमस्ति
= यह राम की पुस्तक है।

एषः सीतायाः सेवकोऽस्ति
= यह सीतायाः का सेवक है।

तक्षकः तक्षण्या हस्तस्याऽङ्गुलीः अप्यतक्षत्
= बढ़ई ने रंदे से हाथ की ऊंगलियां भी छील दीं।

ग्रामीणाः बालाः ग्रामस्य विद्यालये पठितुं नेच्छन्ति
= गांव के बच्चे गांव के विद्यालय में पढ़ना नहीं चाहते हैं।

किं रामस्य पिता दशरथो रामं वनं प्रैषयत् ?
= क्या राम के पिता दशरथ ने राम को वन में भेजा था ?

कर्मकाण्डे विविधानां यागानां षोडश ऋत्विजः भवन्ति
= कर्मकाण्ड में विविध यागों के सोलह ऋत्विग् होते हैं।

अतिप्रयोगात् घटस्य तले छिद्रं जातम्
= अधिक प्रयोग के कारण घड़े के तले में छेद हो गया है।

लब्धप्रतिष्ठाः पुष्करस्य पयोऽपूपाः
= पुष्कर के दूध के मालपूए विख्यात हैं।

घृतस्य घटः चिक्कणोऽस्ति, सम्यक् मार्जय
= घी का घड़ा चिकना है ठीक से साफ कर।

रामस्य सेतुरिदानीं नष्टप्रायः संजातोऽस्ति
= राम के द्वारा निर्मित पुल अब प्रायः नष्ट-भ्रष्ट हो गया है।

चन्दनचौराः चन्दनस्य वनं प्राविशत्
= चन्दनचोर चन्दन के वन में घुस गए।

वने रावणो रामस्य सीतां अपजहार
= वन में रावण ने राम की सीता का अपहरण किया।

अरबदेशस्य खर्जुराणि संसारे प्रसिद्धानि सन्ति
= अरब देश के खजूर संसारभर में प्रसिद्ध हैं।

रामोजीरावस्य चलचित्रनगरं जगति प्रसिद्धमस्ति
= रामोजीराव की फिल्मसिटि जगप्रसिद्ध है।

रे मूर्खा ! सेटकस्य स्थाल्यां सेटकतण्डुलान् पचति
= अरे मूर्ख स्त्री ! एक किलो की पतीली में एक किलो चावल पका रही है।

बकस्य धौर्त्यं ‘बकभक्ति’ इति नाम्ना जगति प्रसिद्धमस्ति
= बगुले की धूर्तता ‘बगुलाभक्ति’ नाम से जगविख्यात है।

एकडद्वयस्य क्षेत्रे गुरुकुलाय भवनं निर्मातुमिच्छति
= दो एकड़ के खेत में गुरुकुल के लिए भवन बनाना चाहता है।

रथे नियुक्तं विवाहस्य घोटकं चालयितुं चालकः वाद्यं वादयति
= रथ में जोते हुए विवाह के घोड़े को चलाने के लिए चालक बाजा बजाता है।

कोकिलानां स्वरो रूपं स्त्रीणां रूपं पतिव्रतम्। विद्या रूपं कुरूपाणां क्षमा रूपं तपस्विनाम्।।
= कोयल की शोभा स्वर के कारण से है, स्त्रियों की शोभा पतिव्रत धर्म से है, कुरूपों की शोभा विद्या से है और तपस्वी लोग क्षमा से शोभायमान होते हैं।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

एवमात्मारणौ ध्यानमथने सततं कृते।
उदितावगतिज्वाला सर्वाज्ञानेन्धनं दहेत्।।42।।

42. When this the lower and the higher aspects of the Self are well churned together, the fire of knowledge is born from it, which in its mighty conflagration shall burn down all the fuel of ignorance in us.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 42:

आत्म-बोध के 42nd श्लोक में आचार्यश्री हमें निदिध्यासन रूपी ध्यान की प्रक्रिया को एक दृष्टांत से समझते हैं। वो दृष्टांत है अरणी का। किसी यज्ञ में अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए प्राचीन तरीका होता है - दो लकड़ियों के घर्षण और मंथन का। लकड़ियों के घर्षण से अग्नि प्रज्वलित होती है जिससे यज्ञ आदि कार्य संपन्न किये जाते हैं। दो लकड़ियां ऊपर और नीचे होती है और एक मथानी बीच में खड़ी होती है - जिसे किसी रस्सी आदि से अथवा हाथ से मथा जाता है। इसमें नीचे की लकड़ी को जीव भाव समझें और ऊपर को अपना ब्रह्म-स्वरूपता का लक्ष्य। बीच की खड़ी लकड़ी को वेदांत ज्ञान समझें। मंथन से जो ज्ञान रुपी अग्नि निकलती है वो हमारे अज्ञान रुपी संसार के ईंधन को जला देती है।

#Atmabodha