संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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BVGch10vs07
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.07]
🍃एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः
।।10.7।।

♦️etaaM vibhuutiM yogaM cha mama yo vetti tattvataH|
so'vikampena yogena yujyate naatra saMshayaH10.7

One who truly understands My manifestations and yogic powers, is united with Me in unswerving devotion. There is no doubt about this. (10.07)

जो पुरुष इस मेरी विभूति और योग को तत्त्व से जानता है वह पुरुष अविकम्प योग (अर्थात् निश्चल ध्यान योग) से युक्त हो जाता है इसमें कुछ भी संशय नहीं है।।10.7।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥 🚩यगाब्द-५१२३
🌥 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅️ 🚩तिथि - नवमी 8:07 ए. एम. तक ततपश्चात दशमी

⛅️ दिनांक 12 मार्च 2022
⛅️ दिन - शनिवार
⛅️ शक संवत - 1943
⛅️ अयन - उत्तरायण
⛅️ ऋतु - वसंत
⛅️ मास - फाल्गुन
⛅️ पक्ष - शुक्ल
⛅️ नक्षत्र - आर्द्रा 5:32 पी. एम तक तपश्चात पुर्नवसु
⛅️ योग - सौभाग्य 3:55 ए. एम मार्च 13 तत्पश्चात शोभन
⛅️ राहुकाल -9:51 ए.एम से 11:20 ए.एम. तक
⛅️ सर्योदय - 06:52
⛅️ सर्यास्त - 18:47
⛅️ चन्द्रोदय - 01:25 पी.एम.
⛅️ चन्द्रोस्त - 3:31 ए.एम मार्च 13
⛅️ दिशाशूल - पूर्व
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः :संस्कृतकथा,सुभाषितम्,
हास्यकणिका..... इत्यादयः
दिनाङ्कः : 12th March 2022,
शनिवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (संस्कृतकथां, सुभाषितं, हास्यकणिकां ,स्वस्य कञ्चित् उत्तमम् अनुभवं ,प्रेरकप्रसङ्गं ,लौकिकन्यायं, गीतं वा वदन्तु) । चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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"आत्मनश्च परेषां च यः समीक्ष्य बलाबलम् ।
अन्तरं नैव जानाति स तिरस्क्रियतेदरिभिः ॥"

अर्थात - "स्वयं के और दूसरे के बल का विचार करके जो योग्य अंतर नहीं रखता वह (राजा) शत्रु के तिरस्कार का पात्र बनता है ।"

संस्कृतार्थः -
यः मनुष्यः स्वस्य अन्येषां च बलं दौर्बल्यं च ज्ञात्वा अपि पर्याप्तम् अन्तरं न स्थापयति, तादृशं जनं शत्रवः सर्वदा तिरस्कुर्वन्ति।

#Subhashitam
हनुमान् लङ्कां _________।
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जलयति
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (२१) पञ्चमी विभक्ति (जब ल्यप्/क्त्वा प्रत्ययान्त धातु/क्रिया का वाक्य में प्रयोग तो न हुआ हो, किन्तु उसका अर्थ प्रतीत हो रहा हो, तब उस ल्यप्/क्त्वा प्रत्ययान्त क्रिया के कर्म व अधिकरण कारक में पञ्चमी…
{अन्य, भिन्न, इतर, आरात्, (निकट, दूर) इन शब्दों से युक्त शब्दों में तथा पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, प्राक्, प्रत्यक्, उदक्, दक्षिणा, उत्तरा, दक्षिणाहि और उत्तराहि शब्दों से युक्त शब्दों में पञ्चमी विभक्ति होती है।}

मत् शीतला अन्य स्वभावा
= मुझसे शीतल का स्वभाव अलग है।

प्रिय ! रामात् अन्यो बलरामः
= प्यारे ! राम से बलराम भिन्न है।

यज्ञात्कर्मणोन्यऽत्र लोकोऽयं कर्मबन्धनः।
तदर्थं कर्म कौन्तेय मुक्तसङ्गः समाचर।।
= यज्ञीय कर्म (निष्काम भावना से किए गए कर्म) से भिन्न कर्म संसार में बांधनेवाले हैं। अतः हे अर्जुन आसक्ति रहित होकर यज्ञीय (निष्काम) कर्म कर।

यथा फलानां पक्वानां नान्यत्र पतनाद् भयम्। एवं नरस्य जातस्य नान्यत्र मरणाद् भयम्।।
= जैसे पके हुए फलों को गिरने के अलावा और कोई भय नहीं होता, वैसे ही उत्पन्न हुए मनुष्य को मृत्यु के सिवा और कोई भय नहीं होता।

एतन्मे संशयं कृष्ण छेत्तुमर्हस्यशेषतः।
त्वदन्यः संशयस्यास्य छेत्ता न ह्युपपद्यते।।
= हे कृष्ण ! मेरे इस संशय को तू पूर्णरूप से नष्ट कर सकता है। तेरे बिना अन्य कोई इस संशय को छिन्न-भिन्न करनेवाला नहीं मिल सकता।

कस्मै अपि दद्यात्, मत्तः मम अनुजो न भिन्नः
= किसी को भी दे सकते हो ! मेरे से मेरा छोटा भाई अलग नहीं है (हम दोनों एक ही हैं)।

एषा सैव वार्ता न, तस्याः भिन्नाऽस्ति
= यह वही बात नहीं है, उससे अलग है।

परशुरामः रामात् इतरः आसीत्
= परशुराम राम से पृथक् (भिन्न) था।

त्वदितरः कः कल्पते कर्त्तुमिदम् ?
= तेरे सिवा कौन इसे कर सकता था ?

भीरवः अस्मद् इतरे खलु स्युः, वयं तु राजपूताः
= डरपोक तो हमसे कोई दूसरे होंगे, हम तो राजपूत हैं।

ग्रामस्य आरात् आरामोऽस्ति
= गांव के समीप बगीचा है।

भारतवर्षं हिमालयात् दक्षिणे वर्त्तते
= भारतवर्ष हिमालय से दक्षिण में है।

मध्यप्रदेशात् गुजरातप्रान्तः पश्चिमो वर्त्तते दिल्ली-नगरी च उत्तरा
= गुजरात मध्यप्रदेश के पश्चिम में है और दिल्ली उत्तर में है।

गुरुकुलं ग्रामात् पूर्वेऽस्ति
= गुरुकुल गांव की पूर्र्व दिशा में है।

रामात् पूर्वो यः स्थितः सः श्यामोऽस्ति
= राम से पहले जो खड़ा है वह श्याम है।

अस्मात् तगाडात् प्राक् प्रत्यक् उदक् च पर्वताः सन्ति
= इस तालाब के पूर्व, पश्चिम तथा उत्तर में पहाड़ हैं।

कृष्णात् प्राक् रामो जातः
= कृष्ण से पहले राम हो गए।

नैव सृष्टिरचनाऽदिकालीना, सृष्टेः प्राक् प्रलयो भवति
= अनादि काल से सृष्टि नहीं चली आ रही है, सृष्टि से पहले प्रलय होता है।

राजस्थानं गुजरातप्रान्ताद् उत्तरा अस्ति
= राजस्थान गुजरात से उत्तर दिशा में है।

आन्ध्रप्रदेशात् रामेश्वरं दक्षिणा वर्तते
= आन्ध्रप्रदेश के दक्षिण में रामेश्वर है।

गृहात् उत्तरा अतीव समीचीनं दृश्यते
= घर का उत्तरवाला भाग बहुत सुन्दर दिख रहा है।

गुरुकुलात् दक्षिणा क्षेत्रं शुष्कं जातम्
= गुरुकुल का दक्षिणभाग का खेत सूख गया।

आश्रमभवनात् दक्षिणाहि विद्यालयः उत्तराहि च भोजनालयः अस्ति
= आश्रम भवन के दक्षिण में विद्यालय और उत्तर में भोजनालय है।

गुरुकुलस्य दक्षिणाहि उत्तराहि च रमणीयं वर्त्तते
= गुरुकुल का दक्षिण व उत्तरभाग सुन्दर है।

संस्थानाद् दक्षिणाहि गच्छ
= चौराहे से दक्षिण में जाना।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

रूपवर्णादिकं सर्वं विहाय परमार्थवित्।
परिपूर्णचिदानन्दस्वरूपेणावतिष्ठते।।40।।

40. He who has realised the Supreme, discards all his identification with the objects of names and forms. (Thereafter) he dwells as an embodiment of the Infinite Consciousness and Bliss. He becomes the Self.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 40:

आत्म-बोध के 40th श्लोक में आचार्यश्री हमें पिछले श्लोक में बताये गए एक बिंदु पर और गहराई से प्रकाश डालते हैं। वो बिंदु है - दृश्य का आत्मा में प्रविलापन। यह प्रविलापन कैसे किया जाता है - वह इस श्लोक में बताया जा रहा है। समस्त दृश्य विविध विषयों से बना है, और सभी विषयों में दो पहलु होते हैं, एक उसका विशिष्ट नाम-रूप और दूसरा उसका तत्त्व। इनकी दोनों को गहराई से समझा जाता है। इसके विवेक से ही प्रविलापन संभव होता है, और एक अखंड तत्त्व का साक्षात्कार हो जाता है।

#Atmabodha
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कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : मैत्र्याः महत्तवम्
(Importance of Friendship)

दिनाङ्कः : 13th March 2022,
रविवासरः

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किसी भी काम को करने के लिए प्रथम प्रयास तो आपको ही करना होता है, इसलिए बिना किसी झिझक के संस्कृत में बोलने की कोशिश करें। अगर आप दोस्तों से मिलते हैं तो उनके साथ सामूहिक चर्चा कीजिये, आप कोई अशुद्ध शब्द बोलते हैं या आपको उच्चारण नहीं आता तो आप बिलकुल भी घबरायें नहीं थोड़ी सी हिम्मत करें और अपने अन्दर का डर बाहर निकालकर खुलके संस्कृत बातें कर सकते हैं।

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