संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वाक्याभ्यासः

दिनाङ्कः : 09th March 2022,
बुधवासरः

Please Join the voicechat on time.
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(चित्राणि दृष्ट्वा वाक्यानि वक्तव्यानि।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.34]
🍃मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः
।।9.34।।

♦️manmanaa bhava madbhakto madyaajii maaM namaskuru|
maamevaiShyasi yuktvaivamaatmaanaM matparaayaNaH9.34

Fix your mind on Me, be devoted to Me, worship Me, and bow down to Me. Thus uniting yourself with Me, and setting Me as the supreme goal and sole refuge, you shall certainly realize (or come to) Me. (9.34)

(तुम) मुझमें स्थिर मन वाले बनो मेरे भक्त और मेरे पूजन करने वाले बनो मुझे नमस्कार करो इस प्रकार मत्परायण (अर्थात् मैं ही जिसका परम लक्ष्य हूँ ऐसे) होकर आत्मा को मुझसे युक्त करके तुम मुझे ही प्राप्त होओगे।।9.34।।

#geeta
🪔सर्वेभ्यः सदस्येभ्यः संस्कृतसंवादस्य १५०० सदस्यानां संगस्य नैकाः शुभकामनाः। आशास्महे अस्माकम् ऐक्यं दृढ़तरं विस्तृततरं भवेत्।🐘

🌻 सभी सदस्यों को संस्कृत संवादः के १५०० सदस्य पूरे होने पर अनेकों शुभकामनाएं। आशा करते हैं हमारी एकता और अधिक दृढ़ और विस्तृत हो🌼

🐚Congratulations everyone for achievement of 1500 members in संस्कृत संवादः । May Our unity be more firm and extensive.🦚
BVGch10vs01
Swami Brahamananda
श्रीमद्भगवद्गीता [10.01]
🍃श्री भगवानुवाच
भूय एव महाबाहो शृणु मे परमं वचः।
यत्तेऽहं प्रीयमाणाय वक्ष्यामि हितकाम्यया
।।10.1।।

♦️shrii bhagavaanuvaacha
bhuuya eva mahaabaaho shrRRiNu me paramaM vachaH|
yatte'haM priiyamaaNaaya vakShyaami hitakaamyayaa10.1

The Supreme Lord said: 
O Arjuna, listen once again to My supreme word that I shall speak to you, who are dear, for your welfare. (10.01)

श्रीभगवान् ने कहा -- 
हे महाबाहो पुन तुम मेरे परम वचनों का श्रवण करो जो मैं तुझ अतिशय प्रेम रखने वाले के लिये हित की इच्छा से कहूँगा।।10.1।।

#geeta
🚩 जय सत्य सनातन 🚩

🚩 आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०७८
🚩 तिथि - सप्तमी 2:56 ए. एम मार्च 10 तक तत्पश्चात अष्टमी

दिनांक 09 मार्च 2022
दिन - बुधवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - कृत्तिका 8:31ए. एम तक तपश्चात रोहिणी
योग - विष्कम्भ 1:16 ए. एम मार्च 10 तत्पश्चात प्रीती
राहुकाल -12:50 पी.एम से 2:19 पी.एम तक
सूर्योदय - 06:54
सूर्यास्त - 18:46
चन्द्रोदय - 11:06 ए.एम.
चन्द्रोस्त - 12:55 ए.एम मार्च 10
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वाक्याभ्यासः

दिनाङ्कः : 09th March 2022,
बुधवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(चित्राणि दृष्ट्वा वाक्यानि वक्तव्यानि।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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"जन्मदुःखं जरादुःखं मृत्युदुःखं पुनः पुनः ।
संसारसागरे दुःखं तस्मात् जागृहि जागृहि ॥"

अर्थात - "संसार सागर में जन्म का, बुढ़ापे का, और मृत्यु का दुःख बार-बार आता है, इसीलिए (हे मानव!), “जाग, जाग !”

संस्कृतार्थः -
अस्मिन् संसारसागरे जन्मनः दुःखं वृद्धावस्थायाः दुःखं तथा मृत्युभयस्य दुःखं वारं वारम् आगच्छति।
तस्मात् कारणात् हे मनुष्य! संसारेण सह मोहं न स्थापय।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
अभिषेकम् अभिषेकेण अभिषेकाद्वा स्वपराक्रमेणैव सिंहो राजा उच्यते = बिना अभिषेक के हि सिंह अपने पराक्रम के कारण राजा कहाता है। गृहिणीं विना कुतो गृहम् ? = गृहिणी के बिना घर कैसा ? जगतां यदि नो कर्त्ता, कुलालेन विना घटः। चित्रकारं विना चित्रं, स्वतः…
(दो की तुलना में जिससे तुलना की जाए उसमें पञ्मी विभक्ति होती है।)

रामात्कृष्णः पटुतरोऽस्ति
= राम की अपेक्षा से कृष्ण चतुर है।

पठने मालायाः रमा पट्वी वर्तते किन्तु कार्ये रमायाः माला
= पढ़ाई में माला की अपेक्षा रमा पटु याने चतुर है, किन्तु काम में रमा की अपेक्षा से माला कुशल है।

भौतिकोन्नतेराध्यात्मिक्युन्नतिर्दुष्कराऽस्ति
= भौतिक उन्नति से आध्यात्मिक उन्नति करना कठिन है।

असत्यात् सत्यमृजु वर्तते
= असत्य की अपेक्षा सत्य का मार्ग सरल है।

धनाद् धर्मोऽतिरिच्यते
= धन की अपेक्षा धर्म श्रेष्ठ है।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी
= जननी और जन्तमभूमि स्वर्ग से भी महान् है।

धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत् क्षत्रियस्य न विद्यते
= क्षत्रिय के लिए धर्मयुद्ध से बढ़कर और कोई कर्त्तव्य नहीं है।

सम्भावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते
= सम्मानित व्यक्तियों के लिए अपयश मरण से भी बढ़कर है।

नियतं कुरु कर्म त्वं। कर्म ज्यायो ह्यकर्मणः शरीरयात्रापि च ते न प्रसिद्ध्येदकर्मणः
= तू नियमितरूप से कर्मों को कर क्योंकि कर्म करना कर्म न करने की अपेक्षा अच्छा है। बिना कर्म के तो यह शरीरयात्रा भी नहीं चल सकती।

श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तपः।
सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते।।
= दूसरों को तपानेवाले अर्जुन ! द्रव्ययज्ञ की अपेक्षा ज्ञानयज्ञ श्रेष्ठ है। क्योंकि सब कर्म ब्रह्मज्ञान हो जाने पर समाप्त हो जाते हैं।

न गृहं गृहमित्याहुर्गृहिणी गृहमुच्यते।
गृहं तु गृहिणीहीनं कान्तारादतिरिच्यते।।
= घर को घर नहीं कहते, गृहिणी को घर कहते हैं। गृहिणी के बिना घर जंगल से भी अधिक भीषण होता है।

चन्दनं शीतलं लोके चन्दनादपि चन्द्रमाः।
चन्द्रचन्दनयोर्मध्ये शीतला साधु संगतिः।।
= संसार में चन्दन शीतल माना जाता है। चन्द्रमा चन्दन से भी शीतल है। परन्तु चन्द्रमा और चन्दन से भी साधु की संगत अधिक शीतल है।

दारिद्र्यान्मरणं वरम्
= दरिद्रता की अपेक्षा मर जाना श्रेष्ठ है।

नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः। नास्ति कोपसमो वह्निर्नाऽस्ति ज्ञानात्परं सुखम्।।
= काम के समान दूसरी कोई व्याधि नहीं है, मोह के समान दूसरा कोई शत्रु नहीं है। क्रोध के समान दूसरी कोई आग नहीं है और आत्मज्ञान से बढ़कर कोई सुख नहीं है।

सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः।
सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्।।
= संसार में सत्य ही समर्थ है, सदा सत्य के आधार पर ही धर्म है। सत्य ही सबकी जड़ है, सत्य से बढ़कर दूसरा कोई परं पद नहीं है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

एवं निरन्तरकृता ब्रह्मैवास्मीति वासना।
हरत्यविद्याविक्षेपान्रोगानिव रसायनम्।।37।।

37. The impression “I am Brahman” thus created by constant practice destroys ignorance and the agitation caused by it, just as medicine or Rasayana destroys disease.


आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 37:

आत्म-बोध के 37th श्लोक में भी आचार्यश्री हमें आत्म-अभ्यास क्या है और इससे क्या होता है वो बताते हैं। आत्मा के वास्तविक स्वरुप का पूरे प्रमाण पूर्वक अर्थात शास्त्रोक्त ज्ञान उत्पन्न करके, अपने जीव-भाव को कल्पित जानकर पूर्णतः बाधित करके, अपनी वास्तविकता की पहले तो अपरोक्ष स्पष्टता उत्पन्न करके - उसी में जगे रहना और रमना चाहिए। ये ही अहम्-ब्रह्मास्मि की वृत्ति है - अर्थात हम ही ब्रह्म है। इस निश्चय को सतत अभ्यास के द्वारा हृदयांवित करना चाहिए। अर्थात - ये सहज और अत्यंत प्रिय हो जाये। जब ऐसा हो जाता है, तब अविद्या और ताड-जनित विक्षेप जड़ से ऐसे समाप्त हो जाते हैं, जैसे दवाई से रोग।

#Atmabodha