संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यस्योदकं मधुपर्कं च गां च न मन्त्रवित् प्रति गृह्णाति गेहे। लोभाद् भयादथ कार्पण्यतो वा तस्यानर्थं जीवितमाहुरार्याः।। = जिस (कृपण) पुरुष के घर में (गृहस्वामी के) लोभ के कारण, भय के कारण अथवा न दिए जाने से जल मधुपर्क गौ आदि को विद्वान् पुरुष ग्रहण नहीं करता…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (२०) पञ्चमी विभक्ति (४)

(दूर और समीपवाची शब्दों के साथ जिससे दूर या समीप की चर्चा हो उसमें पञ्चमी और षष्ठी दोनों विभक्तियों का प्रयोग किया जाता है तथा दूर और समीपवाची शब्दों में द्वितीया, तृतीया, पञ्चमी व सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

त्वं विद्यालयात् दूरं गच्छ
= तू विद्यालय से दूर जा।

त्वं विद्यालयात् दूरात् गच्छ
= तू विद्यालय से दूर होकर के जाना।

विद्यालयस्य समीपात् मा गच्छ
= विद्यालय के समीप होकर मत जा।

पितुः सकाशं गच्छामि
= पिता के पास जा रहा हूं।

पितुरभ्याशादागच्छामि
= पिता के पास से आ रहा हूं।

ग्रामः नगरात् दूरं दूरे वा वर्तते
= गांव नगर से दूर है।

सा मम मत् वा सकाशात् रुप्यकाणि अनयत्
= वह मेरे पास से पैसे ले गई।

तस्याः समीपे मम रुप्यकाणि सन्ति
= उसके पास मेरे पैसे हैं।

गृहस्य/गृहात् अन्तिकादेव मम आपणः अस्ति
= घर के पास ही मेरी दुकान है।

मम मत् वा निकषा माऽऽगच्छ, दूरादेव वद
= मेरे पास (निकट) मत आ, दूर से ही बोल।

पुत्रः मत् दूरं अभूत्
= बेटा मेरे से दूर हो गया।

बालः स्वस्मात् विप्रकृष्टं विप्रकृष्टे वा पाषाणं क्षिपति
= बच्चा अपने से दूर पत्थर फैंकता है।

(पृथक्, विना एवं नाना शब्दों के साथ तृतीया तथा पञ्चमी का प्रयोग होता है। विना के साथ द्वितीया का भी प्रयोग होता है।)

पुत्रः पितृभ्यां पृथक् वसति
= बेटा मां-बाप से अलग रहता है।

पत्रं वृक्षात् वृक्षेण वा पृथक् अभूत्
= पत्ता पेड़ से अलग हो गया।

पादतलं पादत्राणात् पादत्राणेन वा पृथक् बुभूषति
= जूते का तलवा जूते से अलग होनेवाला है।

सुधालेपनं भित्तिकायाः भित्तिकया वा पृथक् जायते
= चूने की पुताई दीवार से अलग हो रही है।

संमर्दे बालः मात्रा मातुर्वा पृथक् संजातः
= भीड़ में बच्चा मां से अलग हो गया।

बालिका स्वीयया पाञ्चालिकया स्वीयायाः पाञ्चालिकायाः वा पृथक् कृता
= बच्ची को अपनी गुड़िया से अलग कर दिया गया।

अकालं कश्चिदपि स्वजनैः स्वजनेभ्यो वा पृथक् मा भूयात्
= कोई भी समय से पहले अपने स्वजनों से अलग न होवे।

ईश्वरम् ईश्वरेण ईश्वरात् वा विना सृष्टिः कथं चलेत् ?
= ईश्वर के बिना सृष्टि कैसे चल सकती है ?

कर्म कर्मणा कर्मणो वा विना फलं न लभते
= कर्म के बिना फल नहीं मिलता।

पुरुषकारं पुरुषकारेण पुरुषकाराद् वा विना सुखं न भवति
= पुरुषार्थ के बिना सुख नहीं होता।

धर्मं धर्मेण धर्माद् वा विना कुतः सुखम्
= धर्म के बिना सुख कहां ?

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

अहमाकाशवत्सर्वं बहिरन्तर्गतोऽच्युतः।
सदा सर्वसमः सिद्धो निःसङ्गो निर्मलोऽचलः।।35।।

35. Like the space I fill all things within and without. Changeless and the same in all, at all times I am pure, unattached, stainless and motionless.


आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 35:

आत्म-बोध के 35th श्लोक में आचार्यश्री हमें आत्म-चिन्तन रुपी अभ्यास के लिए कुछ और लक्षण प्रदान कर रहे हैं। ये लक्षण उन्ही साधकों के लिए हैं जिसने आत्मा के ऊपर से अनात्मा के धर्मों का अपवाद कर दिया है। अगर नहीं तो ये सब कल्पना मात्र हो जायेगा जिसका कोई लाभ नहीं होगा। जब हमने देह आदि से अपने को मुक्त देख लिया है, तब हम मात्र चिन्मयी सत्ता होते हैं, जो की आकाश की तरह से सबके अंदर-बाहर होता है। ये सैदव ऐसा ही था और रहेगा अतः अच्युत है. सबके प्रति सम, शुद्ध, असंग और निर्मल है। यह ही हम हैं।

#Atmabodha
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कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : विवाहेषु क्रियमाणाः अपव्ययाः
(Wastage in Wedding celebration)

दिनाङ्कः : 08th March 2022,
मङ्गलवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(विवाहकार्यक्रमेषु भोजनस्य धनस्य इत्यादीनां अपव्ययः तथा तस्य रोधः कथं कर्तुं शक्यते।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.32]
🍃मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्
।।9.32।।

♦️maaM hi paartha vyapaashritya ye'pi syuH paapayonayaH|
striyo vaishyaastathaa shuudraaste'pi yaanti paraaM gatim9.32

Anybody, including women, merchants, laborers, and the evil-minded can attain the supreme goal by just surrendering unto My will (with loving devotion), O Arjuna. (See also 18.66) (9.32)

हे पार्थ स्त्री वैश्य और शूद्र ये जो कोई पापयोनि वाले हों वे भी मुझ पर आश्रित (मेरे शरण) होकर परम गति को प्राप्त होते हैं।।9.32।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.33]
🍃किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम्
।।9.33।।

♦️kiM punarbraahmaNaaH puNyaa bhaktaa raajarShayastathaa|
anityamasukhaM lokamimaM praapya bhajasva maam9.33

Then, it should be very easy for the holy Braahmanas and devout royal sages (to attain the Supreme state). Therefore, having obtained this joyless and transient human life, one should always remember Me with loving devotion. (9.33)

फिर क्या कहना है कि पुण्यशील ब्राह्मण और राजर्षि भक्तजन (परम गति को प्राप्त होते हैं) (इसलिए) इस अनित्य और सुखरहित लोक को प्राप्त होकर (अब) तुम भक्तिपूर्वक मेरी ही पूजा करो।।9.33।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - षष्ठी 12:01 ए. एम 9 मार्च तक तत्पश्चात सप्तमी

दिनांक 08 मार्च 2022
दिन - मंगलवार
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - फाल्गुन
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - कृत्तिका पूर्ण रात्रि तक
योग - वैधृति 12:28 ए. एम 9 मार्च तत्पश्चात गर
राहुकाल -3:48 पी.एम से 5:17 पी.एम तक
सूर्योदय - 06:55
सूर्यास्त - 18:46
चन्द्रोदय - 10:27 ए.एम.
चन्द्रोस्त - 12:01 ए.एम 9 मार्च
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : विवाहेषु क्रियमाणाः अपव्ययाः
(Wastage in Wedding celebration)

दिनाङ्कः : 08th March 2022,
मङ्गलवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(विवाहकार्यक्रमेषु भोजनस्य धनस्य इत्यादीनां अपव्ययः तथा तस्य रोधः कथं कर्तुं शक्यते।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

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स्कन्द पुराण के माहेश्वरखण्ड के कौमारिकाखण्ड के अध्याय २३ में एक कन्या को दस पुत्रों के बराबर कहा गया है -

दशपुत्रसमा कन्या दशपुत्रान्प्रवर्द्धयन् ।
यत्फलं लभते मर्त्यस्तल्लभ्यं कन्ययैकया ॥
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॥ स्क॰ पु॰ - २३.४६ ॥
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भावार्थ -
एक पुत्री दस पुत्रों के समान है। कोई व्यक्ति दस पुत्रों के लालन-पालन से जो फल प्राप्त करता है; वही फल केवल एक कन्या के पालन पोषण से प्राप्त हो जाता है।
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अन्नदानं परं दानं विद्यादानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।

संस्कृतार्थः -
अन्नदानं श्रेष्ठं दानम् अस्ति, अन्नदानात् श्रेष्ठतरं दानं विद्यायाः दानम् अस्ति। यतः अन्नेन कञ्चित् कालं यावत् तृप्तिः भवति। परन्तु विद्यया जीवनपर्यन्तम् अपि तृप्तिः भवति।

#Subhashitam