संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्
।।9.27।।

♦️yatkaroShi yadashnaasi yajjuhoShi dadaasi yat|
yattapasyasi kaunteya tatkuruShva madarpaNam9.27

O Arjuna, whatever you do, whatever you eat, whatever you offer as oblation to the sacred fire, whatever charity you give, whatever austerity you perform, do all that as an offering unto Me. (See also 12.10, 18.46) (9.27)

हे कौन्तेय तुम जो कुछ कर्म करते हो जो कुछ खाते हो जो कुछ हवन करते हो जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो वह सब तुम मुझे अर्पण करो।।9.27।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - तृतीया रात्रि 08:35 तक तत्पश्चात चतुर्थी

दिनांक - 05 मार्च 2022
दिन - शनिवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - रेवती 06 मार्च रात्रि 02:29 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग - शुक्ल रात्रि 12:36 तक तत्पश्चात ब्रह्म
राहुकाल - सुबह 09:53 से सुबह 11:22 तक
सूर्योदय - 06:57
सूर्यास्त - 18:43
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : मतदानम्
(Polling)

दिनाङ्कः : 05th March 2022,
शनिवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(स्वमतदानं कस्मै किं दृष्ट्वा च कर्तव्यं,अस्माकं नेतारः कीदृशाः भवेयुः, मतदानस्य महत्त्वं किम्।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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अन्नदानं परं दानं विद्यदानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।

संस्कृतभावार्थः -
अन्नदानं श्रेष्ठं दानम् अस्ति, अन्नदानात् श्रेष्ठतरं दानं विद्यादानम् अस्ति। यतः अन्नेन किञ्चित् कालं यावत् तृप्तिः भवति। परन्तु विद्यया जीवनपर्यन्तम् अपि तृप्तिः भवति।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः। तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत् = लाड-प्यार से बच्चों में अनेकों दोष उत्पन्न हो जाते हैं और दण्ड देने से अनेक गुण उत्पन्न होते हैं, अतः बच्चों को व शिष्यों को (उचित) ताड़न करना चाहिए, (अनुचित) लाड़ नहीं करना…
सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम्।
अहार्यत्वादनर्घ्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा।।
= चुराया न जाने से, अत्यन्त मूल्यवान होने से, (व्यय करने पर भी कभी भी) नष्ट न होने से विद्या को सब धनों में उत्तम धन माना गया है।

आत्मद्वेषाद् भवेन्मृत्युः परद्वेषाद् धनक्षयः।
राजद्वेषाद् भवेन्नाशो ब्रह्मद्वेषात् कुलक्षयः।।
= स्वयं से द्वेष करने से मृत्यु होती है, अन्यों से द्वेष करने से धन का नाश होता है, राजा से द्वेष करने से अपना नाश होता है और ब्राह्मण से द्वेष करने से कुल का नाश होता है।

सन्तोषादनुत्तमः सुखलाभः
= सन्तोष के धारण करने से सर्वोत्तम सुख मिलता है।

धर्मदानकृतं सौख्यमधर्माद् दुःखसम्भवम्।
तस्माद् धर्मं सुखार्थाय कुर्यात् पापं विवर्जयेत्।।
= धर्म और दान से सुख तथा अधर्म से दुःख होता है, अतः सुख के लिए धर्माचरण करे पाप को सर्वथा त्याग दे।

प्रियवाक्यप्रदानेन तुष्यन्ति सर्व जन्तवः।
तस्मात्तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता।।
= प्रिय वचन बोलने से समस्त प्राणी खुश होते हैं, अतः सदा मीठा ही बोलना चाहिए, मधुर वाणी बोलने में कैसी कंजूसी ?

अनभ्यासेन वेदानाम् आचारस्य च वर्जनात्। आलस्यादन्नदोषाच्च मृत्युर्विप्राञ्जिघांसति।।
= वेद का अभ्यास न करने से, आचार का त्याग करने से, आलस्य से और अन्नदोष से ब्राह्मण को मृत्यु मारना चाहती है।

न जातु कामान्न भयान्न लोभाद् धर्मं जह्याज्जीवितस्यापि हेतोः
= कामना (इच्छा), भय और लोभ के कारण तथा प्राणों की रक्षा के लिए भी कभी धर्म का त्याग न करें।

अधर्मोपार्जितैरर्थैः करोत्यौर्ध्वदेहिकम्।
न स तस्य फलं प्रेत्य भुङ्क्तेऽर्थस्य दुरागमात्।।
= जो मनुष्य जन्मान्तर में प्राप्त होनेवाले सुख के उपाय (दान, यज्ञादि कर्म) अधर्म से कमाए हुए धन से सम्पन्न करता है वह उस धन के अनुचित मार्ग से आने के कारण मरने के बाद उन दानादि कर्मों का फल नहीं पाता है।

अप्रशस्तानि कर्याणि यो मोहादनुतिष्ठति।
स तेषां विपरिभ्रंशाद् भ्रंश्यते जीवितादपि।।
= जो पुरुष निन्दित कर्म को मोह के कारण करता है, वह उन कर्मों के दूषित होने से जीवन से भी नष्ट हो जाता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

अमनस्त्वान्न मे दुःखरागद्वेषभयादयः।
अप्राणो ह्यमनाः शुभ्र इत्यादिश्रुतिशासनात्।।33।।

33. I am other than the mind and hence, I am free from sorrow, attachment, malice and fear, for “HE is without breath and without mind, Pure, etc.”, is the Commandment of the great scripture, the Upanishads.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 33:

आत्म-बोध के 33rd श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की जैसे हम लोगों ने पिछले श्लोक में देखा की अपने आप को शरीर और इन्द्रियों से अलग देखने के कारण उनके धर्म भी हमारे नहीं रहते हैं, उसी प्रकार से अपने को मन से पृथक देखने के कारण मन के भी विकार हमारे नहीं होते हैं। मन के विकार, जैसे दुःख, राग, द्वेष, भय आदि। हम मन नहीं हैं - इस विषय में हम लोगों ने अनेकों युक्तियाँ देखि और अनुभूति भी है, और अब आचार्यश्री यहाँ श्रुति प्रमाण भी देते हैं, की, अप्राणो अमनः शुभ्र - की आत्मा निर्मल और चिन्मयी है, तथा उसमे कोई मन अथवा प्राण नहीं है।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वन्यजीवाः
(Wildlife)

दिनाङ्कः : 06th March 2022,
रविवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन ( किमर्थं वन्यजीवानाम् आवश्यकता वर्तते, तेषाम् उपरि पर्यावरणपरिवर्तनस्य प्रभावः, मनुष्येण तेषाम् उपरि क्रियमाणाः अत्याचाराः।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.28]
🍃शुभाशुभफलैरेवं मोक्ष्यसे कर्मबन्धनैः।
संन्यासयोगयुक्तात्मा विमुक्तो मामुपैष्यसि
।।9.28।।

♦️shubhaashubhaphalairevaM mokShyase karmabandhanaiH|
saMnyaasayogayuktaatmaa vimukto maamupaiShyasi9.28

By this attitude of complete renunciation (or Samnyasa-yoga) you shall be freed from the bondage, good and bad, of Karma. You shall be liberated, and come to Me. (9.28)

इस प्रकार तुम शुभाशुभ फलस्वरूप कर्मबन्धनों से मुक्त हो जाओगे और संन्यासयोग से युक्तचित्त हुए तुम विमुक्त होकर मुझे ही प्राप्त हो जाओगे।।9.28।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.29]