संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(हेतु = कारणवाची शब्दों में पंचमी तथा तृतीया दोनों का प्रयोग होता है।) गुणात् शुकः पञ्जरे बध्यते, तस्माद् गुणाः गोपनीयाः = गुण के कारण तोता पिंजरे में बांध दिया जाता है इसलिए गुणों को छिपाकर रखना चाहिए। गुणैः गुणी उच्यते = गुणों के कारण से मनुष्य…
लालनाद् बहवो दोषास्ताडनाद् बहवो गुणाः।
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत्
= लाड-प्यार से बच्चों में अनेकों दोष उत्पन्न हो जाते हैं और दण्ड देने से अनेक गुण उत्पन्न होते हैं, अतः बच्चों को व शिष्यों को (उचित) ताड़न करना चाहिए, (अनुचित) लाड़ नहीं करना चाहिए।
दिवसेनैव तत्कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।
अष्टमासेन तत्कुर्याद् येन वर्षाः सुखं वसेत्।।
पूर्वे वयसि तत्कुर्याद् येन वृद्धः सुखं वसेत्।
यावज्जीवने तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्।।
= मनुष्य को चाहिए कि दिन में ऐसा काम करे, जिससे रात को सुख की नीन्द सोवे। आठ महिनों में ऐसा प्रयत्न करे जिससे वर्षा ऋतु में सुखपूर्वक रह सके। आयु के पूर्वार्द्ध में ऐसा काम करे जिससे वृद्धावस्था में सुखपूर्वक रह सके। और जीवनभर ऐसा काम करे जिससे परलोक में सुख से रह सके।
अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेण रावणः।
अतिदानाद् बलिर्बद्धस्तस्मादतिं विवर्जयेत्।।
= अत्यधिक सौंदर्य के कारण सीता का अपहरण हुआ, अतिगर्व के कारण रावण मारा गया, अतिदान देने के कारण बलि बन्धन में पड़ा अतः अति का त्याग करना चाहिए।
अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारती।
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयतामायाति सञ्चयात्।।
= हे विद्यादेवी तेरा कोश अद्भुत है, व्यय करने से बढ़ता है और संचय करने से घटता है।
कुभोज्येन दिनं नष्टं कुकलत्रेण शर्वरी।
कुपुत्रेण कुलं नष्टं तन्नष्टं यन्न दीयते।।
= कुभोजन से दिन कुपत्नी से रात और कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है तथा जो नहीं दिया गया वह धन भी नष्ट हो जाता है।
अभ्यासाद् धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते।।
= निरन्तर अभ्यास से विद्या स्थिर रहती है, शील उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव से कुल का विस्तार होता है। आर्य की पहचान श्रेष्ठ गुण से होती है और क्रोध आंख से जाना जाता है।
धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम्।
धर्मेण लभते सर्वं धर्मसारमिदं जगत्।।
= धर्म से धन प्राप्त होता है और धर्म से सुख भी। धर्म से ही सब कुछ मिलता है, इस संसार में धर्म ही सार है।
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे।
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते।।
= मैं दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर पुकार-पुकार कर कह रहा हूं किन्तु मेरी बात कोई नहीं सुनता। (धर्म से मोक्ष तो मिलता ही है) अर्थ और काम भी धर्म से ही सिद्ध होते हैं, फिर भी लोग उसका सेवन नहीं करते।
भयादस्याग्निस्तपति भयाच्च तपति सूर्यः।
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः।।
= परमेश्वर के भय से (नियम से) अग्नि तप रहा है। उसी के भय से सूर्य भी तप रहा है। विद्युत् और वायु भी उसके भय से चलते हैं। मृत्यु भी उसी के शासन से भागता फिरता है।
अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेऽन्नं निरम्बुपानाच्च स एव दोषः।
तस्मान्नरो वह्निविवर्धनाय मुहुर्मुर्वारि पिबेदभूरि।।
= अधिक पानी पीने से अन्न का पाचन ठीक नहीं होता और बिलकुल पानी न पीने से भी वही दोष होता है अतः जठराग्नि को प्रदीप्त करने के लिए मनुष्य को भोजन के मध्य बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।
#vakyabhyas
तस्मात्पुत्रं च शिष्यं च ताडयेन्न तु लालयेत्
= लाड-प्यार से बच्चों में अनेकों दोष उत्पन्न हो जाते हैं और दण्ड देने से अनेक गुण उत्पन्न होते हैं, अतः बच्चों को व शिष्यों को (उचित) ताड़न करना चाहिए, (अनुचित) लाड़ नहीं करना चाहिए।
दिवसेनैव तत्कुर्याद् येन रात्रौ सुखं वसेत्।
अष्टमासेन तत्कुर्याद् येन वर्षाः सुखं वसेत्।।
पूर्वे वयसि तत्कुर्याद् येन वृद्धः सुखं वसेत्।
यावज्जीवने तत्कुर्याद् येन प्रेत्य सुखं वसेत्।।
= मनुष्य को चाहिए कि दिन में ऐसा काम करे, जिससे रात को सुख की नीन्द सोवे। आठ महिनों में ऐसा प्रयत्न करे जिससे वर्षा ऋतु में सुखपूर्वक रह सके। आयु के पूर्वार्द्ध में ऐसा काम करे जिससे वृद्धावस्था में सुखपूर्वक रह सके। और जीवनभर ऐसा काम करे जिससे परलोक में सुख से रह सके।
अतिरूपेण वै सीता अतिगर्वेण रावणः।
अतिदानाद् बलिर्बद्धस्तस्मादतिं विवर्जयेत्।।
= अत्यधिक सौंदर्य के कारण सीता का अपहरण हुआ, अतिगर्व के कारण रावण मारा गया, अतिदान देने के कारण बलि बन्धन में पड़ा अतः अति का त्याग करना चाहिए।
अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारती।
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयतामायाति सञ्चयात्।।
= हे विद्यादेवी तेरा कोश अद्भुत है, व्यय करने से बढ़ता है और संचय करने से घटता है।
कुभोज्येन दिनं नष्टं कुकलत्रेण शर्वरी।
कुपुत्रेण कुलं नष्टं तन्नष्टं यन्न दीयते।।
= कुभोजन से दिन कुपत्नी से रात और कुपुत्र से कुल नष्ट हो जाता है तथा जो नहीं दिया गया वह धन भी नष्ट हो जाता है।
अभ्यासाद् धार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते।
गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते।।
= निरन्तर अभ्यास से विद्या स्थिर रहती है, शील उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव से कुल का विस्तार होता है। आर्य की पहचान श्रेष्ठ गुण से होती है और क्रोध आंख से जाना जाता है।
धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम्।
धर्मेण लभते सर्वं धर्मसारमिदं जगत्।।
= धर्म से धन प्राप्त होता है और धर्म से सुख भी। धर्म से ही सब कुछ मिलता है, इस संसार में धर्म ही सार है।
ऊर्ध्वबाहुर्विरौम्येष न च कश्चिच्छृणोति मे।
धर्मादर्थश्च कामश्च स किमर्थं न सेव्यते।।
= मैं दोनों भुजाएं ऊपर उठा कर पुकार-पुकार कर कह रहा हूं किन्तु मेरी बात कोई नहीं सुनता। (धर्म से मोक्ष तो मिलता ही है) अर्थ और काम भी धर्म से ही सिद्ध होते हैं, फिर भी लोग उसका सेवन नहीं करते।
भयादस्याग्निस्तपति भयाच्च तपति सूर्यः।
भयादिन्द्रश्च वायुश्च मृत्युर्धावति पञ्चमः।।
= परमेश्वर के भय से (नियम से) अग्नि तप रहा है। उसी के भय से सूर्य भी तप रहा है। विद्युत् और वायु भी उसके भय से चलते हैं। मृत्यु भी उसी के शासन से भागता फिरता है।
अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेऽन्नं निरम्बुपानाच्च स एव दोषः।
तस्मान्नरो वह्निविवर्धनाय मुहुर्मुर्वारि पिबेदभूरि।।
= अधिक पानी पीने से अन्न का पाचन ठीक नहीं होता और बिलकुल पानी न पीने से भी वही दोष होता है अतः जठराग्नि को प्रदीप्त करने के लिए मनुष्य को भोजन के मध्य बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए।
#vakyabhyas
नमो नमः
(०४ मार्च २०२१)साप्ताहिकमेलनस्य कृते अधोलिखिता योजना अस्ति।
🌼
सायंकाले ६:०० - ६ :०५ - ध्येयमन्त्रम्
( *पुरुषोत्तम पाठक महोदय )*
🌼
६:०५-६:१०- श्लोकः( *अजय द्रविड महोदय)*
🌼
६:१०-६:२०-कथा *"( * डा नीता सरोजिनी महोदया* * )
🌼
६:२०- ६:२५- गीतम्(सहाना भगिनी)
🌼
६:२५-६:४०-कोष पठनम्( *हेमा भगिनी* )
🌼
६.४०- ६:४५-नूतनानां परिचयः
🌼
६:४५-७:०० - मासिक गीतम् *(जनार्दन आचार्यः*/हेमा भगिनी)
🌼
७:००-७:१०- प्रश्न मञ्चः
( *सहाना राव भगिनी)**
🌼
७:१०-७:२०-लघु रूपकम्-(मदन मोहन महोदय,ललिताभगिनी, अपेक्षा भगिनी)
🌼
७:२०-७:२५-मार्गदर्शनं सूचना च
🌼
७:२५ -७:३०एकात्मता मंत्रम् *( * पुरुषोत्तम पाठक महोदय)* *
*सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु*
*All are invited. No eligibility.*
*सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु*
*All are invited.
meet.google.com/mwz-thdc-kgt
(०४ मार्च २०२१)साप्ताहिकमेलनस्य कृते अधोलिखिता योजना अस्ति।
🌼
सायंकाले ६:०० - ६ :०५ - ध्येयमन्त्रम्
( *पुरुषोत्तम पाठक महोदय )*
🌼
६:०५-६:१०- श्लोकः( *अजय द्रविड महोदय)*
🌼
६:१०-६:२०-कथा *"( * डा नीता सरोजिनी महोदया* * )
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६:२०- ६:२५- गीतम्(सहाना भगिनी)
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६:२५-६:४०-कोष पठनम्( *हेमा भगिनी* )
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६.४०- ६:४५-नूतनानां परिचयः
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६:४५-७:०० - मासिक गीतम् *(जनार्दन आचार्यः*/हेमा भगिनी)
🌼
७:००-७:१०- प्रश्न मञ्चः
( *सहाना राव भगिनी)**
🌼
७:१०-७:२०-लघु रूपकम्-(मदन मोहन महोदय,ललिताभगिनी, अपेक्षा भगिनी)
🌼
७:२०-७:२५-मार्गदर्शनं सूचना च
🌼
७:२५ -७:३०एकात्मता मंत्रम् *( * पुरुषोत्तम पाठक महोदय)* *
*सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु*
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*सर्वे निश्चयेन आगच्छन्तु*
*All are invited.
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।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
देहान्यत्वान्न मे जन्मजराकार्श्यलयादयः।
शब्दादिविषयैः सङ्गो निरिन्द्रियतया न च।।32।।
32. I am other than the body and so I am free from changes such as birth, wrinkling, senility, death, etc. I have nothing to do with the sense objects such as sound and taste, for I am without the sense-organs.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 32:
आत्म-बोध के 32nd श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की पिछले श्लोक में हमने देखा की आत्मा के ऊपर से आत्मा का जो अध्यारोप हुआ है हमें मात्र उसका निषेध करना होता है - और मुक्ति प्राप्त हो जाती है। अब यहाँ इस श्लोक में कह रहे हैं की अनात्मा के निषेध के साथ-साथ अभी तक जो इसके साथ सम्बन्ध रहा था उसके कारण अनात्मा के अनेकानेक धर्म हमारे दिल और दिमाग में विद्यमान होते हैं - उन्हें भी दूर करना होता है। इस श्लोक में देह और इन्द्रिय की चर्चा करते हैं। जब हम देह नहीं हैं तब इसके विविध धर्म भी हमारे नहीं हैं। देह के धर्म - अर्थात जन्म, वृद्धि, बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु। इन सब की खुशियां और पीड़ाएँ हम लोगों के दिलोदिमाग में बैठ गयी हैं। हमें यह देखना चाहिए की ये सब हमारे नहीं हैं। किसी का जन्म जरूर होता है, लेकिन हमारा नहीं। अतः हमें इन दोनों को बहुत स्पष्टता से देखना होगा। उसी तरह से हम इन्द्रियां नहीं है, अतः विषयों के साथ हमारा कोई भी संग नहीं है - यह विषयों के मध्य में रहते हुए देखना होगा।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
देहान्यत्वान्न मे जन्मजराकार्श्यलयादयः।
शब्दादिविषयैः सङ्गो निरिन्द्रियतया न च।।32।।
32. I am other than the body and so I am free from changes such as birth, wrinkling, senility, death, etc. I have nothing to do with the sense objects such as sound and taste, for I am without the sense-organs.
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 32:
आत्म-बोध के 32nd श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की पिछले श्लोक में हमने देखा की आत्मा के ऊपर से आत्मा का जो अध्यारोप हुआ है हमें मात्र उसका निषेध करना होता है - और मुक्ति प्राप्त हो जाती है। अब यहाँ इस श्लोक में कह रहे हैं की अनात्मा के निषेध के साथ-साथ अभी तक जो इसके साथ सम्बन्ध रहा था उसके कारण अनात्मा के अनेकानेक धर्म हमारे दिल और दिमाग में विद्यमान होते हैं - उन्हें भी दूर करना होता है। इस श्लोक में देह और इन्द्रिय की चर्चा करते हैं। जब हम देह नहीं हैं तब इसके विविध धर्म भी हमारे नहीं हैं। देह के धर्म - अर्थात जन्म, वृद्धि, बीमारी, बुढ़ापा और मृत्यु। इन सब की खुशियां और पीड़ाएँ हम लोगों के दिलोदिमाग में बैठ गयी हैं। हमें यह देखना चाहिए की ये सब हमारे नहीं हैं। किसी का जन्म जरूर होता है, लेकिन हमारा नहीं। अतः हमें इन दोनों को बहुत स्पष्टता से देखना होगा। उसी तरह से हम इन्द्रियां नहीं है, अतः विषयों के साथ हमारा कोई भी संग नहीं है - यह विषयों के मध्य में रहते हुए देखना होगा।
#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : मतदानम्
(Polling)
दिनाङ्कः : 05th March 2022,
शनिवासरः
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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(स्वमतदानं कस्मै किं दृष्ट्वा च कर्तव्यं,अस्माकं नेतारः कीदृशाः भवेयुः, मतदानस्य महत्त्वं किम्।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।
वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇
स्मारणतंत्रिकां स्थापयन्तु⏰
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🍃
♦️patraM puShpaM phalaM toyaM yo me bhaktyaa prayachChati|
tadahaM bhaktyupahRRitamashnaami prayataatmanaH9.26
⚜Whosoever offers Me a leaf, a flower, a fruit, or water with devotion; I accept and eat the offering of devotion by the pure-hearted. (9.26)
⚜जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र पुष्प फल जल आदि भक्ति से अर्पण करता है उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ।।9.26।।
#geeta
पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः
।।9.26।।♦️patraM puShpaM phalaM toyaM yo me bhaktyaa prayachChati|
tadahaM bhaktyupahRRitamashnaami prayataatmanaH
⚜Whosoever offers Me a leaf, a flower, a fruit, or water with devotion; I accept and eat the offering of devotion by the pure-hearted. (9.26)
⚜जो कोई भी भक्त मेरे लिए पत्र पुष्प फल जल आदि भक्ति से अर्पण करता है उस शुद्ध मन के भक्त का वह भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ (पत्र पुष्पादि) मैं भोगता हूँ अर्थात् स्वीकार करता हूँ।।9.26।।
#geeta
🍃
♦️yatkaroShi yadashnaasi yajjuhoShi dadaasi yat|
yattapasyasi kaunteya tatkuruShva madarpaNam9.27
⚜O Arjuna, whatever you do, whatever you eat, whatever you offer as oblation to the sacred fire, whatever charity you give, whatever austerity you perform, do all that as an offering unto Me. (See also 12.10, 18.46) (9.27)
⚜हे कौन्तेय तुम जो कुछ कर्म करते हो जो कुछ खाते हो जो कुछ हवन करते हो जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो वह सब तुम मुझे अर्पण करो।।9.27।।
#geeta
यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्
।।9.27।।♦️yatkaroShi yadashnaasi yajjuhoShi dadaasi yat|
yattapasyasi kaunteya tatkuruShva madarpaNam
⚜O Arjuna, whatever you do, whatever you eat, whatever you offer as oblation to the sacred fire, whatever charity you give, whatever austerity you perform, do all that as an offering unto Me. (See also 12.10, 18.46) (9.27)
⚜हे कौन्तेय तुम जो कुछ कर्म करते हो जो कुछ खाते हो जो कुछ हवन करते हो जो कुछ दान देते हो और जो कुछ तप करते हो वह सब तुम मुझे अर्पण करो।।9.27।।
#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - तृतीया रात्रि 08:35 तक तत्पश्चात चतुर्थी
⛅ दिनांक - 05 मार्च 2022
⛅ दिन - शनिवार
⛅ शक संवत -1943
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसंत ऋतु
⛅ मास - फाल्गुन
⛅ पक्ष - कृष्ण
⛅ नक्षत्र - रेवती 06 मार्च रात्रि 02:29 तक तत्पश्चात अश्विनी
⛅ योग - शुक्ल रात्रि 12:36 तक तत्पश्चात ब्रह्म
⛅ राहुकाल - सुबह 09:53 से सुबह 11:22 तक
⛅ सूर्योदय - 06:57
⛅ सूर्यास्त - 18:43
⛅ दिशाशूल - पूर्व दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
https://youtu.be/nohFftCGTnY
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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YouTube
वार्ता :संस्कृत भाषा में देखिए सुबह की तमाम अहम ख़बरें बुलेटिन
DD News is India’s 24x7 news channel from the stable of the country’s Public Service Broadcaster, Prasar Bharati. It has the distinction of being India’s only terrestrial cum satellite News Channel. Launched in 2003, DD News has made a name for itself to…
अन्नदानं परं दानं विद्यदानमतः परम्।
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।
संस्कृतभावार्थः -
अन्नदानं श्रेष्ठं दानम् अस्ति, अन्नदानात् श्रेष्ठतरं दानं विद्यादानम् अस्ति। यतः अन्नेन किञ्चित् कालं यावत् तृप्तिः भवति। परन्तु विद्यया जीवनपर्यन्तम् अपि तृप्तिः भवति।
#Subhashitam
अन्नेन क्षणिका तृप्तिर्यावज्जीवं च विद्यया।।
संस्कृतभावार्थः -
अन्नदानं श्रेष्ठं दानम् अस्ति, अन्नदानात् श्रेष्ठतरं दानं विद्यादानम् अस्ति। यतः अन्नेन किञ्चित् कालं यावत् तृप्तिः भवति। परन्तु विद्यया जीवनपर्यन्तम् अपि तृप्तिः भवति।
#Subhashitam