संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.20]
🍃त्रैविद्या मां सोमपाः पूतपापा यज्ञैरिष्ट्वा स्वर्गतिं प्रार्थयन्ते।
ते पुण्यमासाद्य सुरेन्द्रलोक मश्नन्ति दिव्यान्दिवि देवभोगान्
।।9.20।।

♦️traividyaa maaM somapaaH puutapaapaa
yaj~nairiShTvaa svargatiM praarthayante|
te puNyamaasaadya surendraloka
mashnanti divyaandivi devabhogaan 9.20

The knowers of the three Vedas and the drinkers of the juice of Soma (or devotion), whose sins are cleansed, worship Me by Yajna for gaining heaven. As a result of their good Karma they go to heaven and enjoy celestial sense pleasures. (9.20)

तीनों वेदों के ज्ञाता (वेदोक्त सकाम कर्म करने वाले) सोमपान करने वाले एवं पापों से पवित्र हुए पुरुष मुझे यज्ञों के द्वारा पूजकर स्वर्ग प्राप्ति चाहते हैं वे पुरुष अपने पुण्यों के फलरूप इन्द्रलोक को प्राप्त कर स्वर्ग में दिव्य देवताओं के भोग भोगते हैं।।9.20।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.21]
🍃ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।
एव त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते
।।9.21।।

♦️te taM bhuktvaa svargalokaM vishaalaM
kShiiNe puNye martyalokaM vishanti|
eva trayiidharmamanuprapannaa
gataagataM kaamakaamaa labhante9.21

Having enjoyed the wide world of heavenly sense pleasures they return to the mortal world upon exhaustion of their good Karma (or Punya). Thus following the injunctions of three Vedas, the fruitive workers take repeated birth and death. (See also 8.25) (9.21)

वे उस विशाल स्वर्गलोक को भोगकर पुण्यक्षीण होने पर मृत्युलोक को प्राप्त होते हैं। इस प्रकार तीनों वेदों में कहे गये कर्म के शरण हुए और भोगों की कामना वाले पुरुष आवागमन (गतागत) को प्राप्त होते हैं।।9.21।।

#geeta
https://youtu.be/LgTCZjQCJqw
#VedicChanting
प्रातः स्मरामि भवभीतिहरं सुरेशं
गङ्गाधरं वृषभवाहनमम्बिकेशम् ।
खट्वाङ्गशूलवरदाभयहस्तमीशं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥१॥
1.1 In the Early Morning, I Remember Sri Shiva, Who Destroys the Fear of Worldly Existence and Who is the Lord of the Devas,
1.2 Who Holds River Ganga on His Head, Who has a Bull as His Vehicle and Who is the Lord of Devi Ambika,
1.3 Who has a Club and Trident in His two Hands, And confers Boon and Fearlessness with His other two Hands and Who is the Lord of the Universe,
1.4 Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence and Who is the One without a second.

प्रातर्नमामि गिरिशं गिरिजार्धदेहं
सर्गस्थितिप्रलयकारणमादिदेवम् ।
विश्वेश्वरं विजितविश्वमनोभिरामं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥२॥
2.1 In the Early Morning, I Salute Sri Girisha (Shiva), Who has Devi Girija (Parvati) as Half of His Body,
2.2 Who is the Primordial Cause behind the Creation, Maintenance and Dissolution of the Universe,
2.3 Who is the Lord of the Universe and Who Conquers the World by His Charm,
2.4 Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence and Who is the One without a second.

प्रातर्भजामि शिवमेकमनन्तमाद्यं
वेदान्तवेद्यमनघं पुरुषं महान्तम् ।
नामादिभेदरहितं षड्भावशून्यं
संसाररोगहरमौषधमद्वितीयम् ॥३॥

3.1 In the Early Morning, I Worship Sri Shiva Who is the One without a second, Who is Boundless and Infinite and Who is Primordial,
3.2 Who is Known only by Understanding the Vedanta, Who is Sinless and Faultless, Who is the Primeval Original Source of the Universe and Who is the Great One,
3.3 Who is Free from the Differences of Names etc and Who is Without the Six Modifications (of Birth, Existence, Growth, Maturity and Death),
3.4 Who is the Medicine to Destroy the Disease (of Delusion) of Worldly Existence and Who is the One without a second.
🚩 जय सत्य सनातन 🚩

🚩 आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - अमावस्या रात्रि 11:04 तक तत्पश्चात प्रतिपदा

दिनांक - 02 मार्च 2022
दिन - बुधवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - शतभिषा 03 मार्च रात्रि 02:37 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद
योग - शिव सुबह 08:21 तक तत्पश्चात सिद्ध
राहुकाल - दोपहर 12:51 से दोपहर 02:19 तक
सूर्योदय - 06:59
सूर्यास्त - 18:42
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वाक्याभ्यासः

दिनाङ्कः : 02nd March 2022,
बुधवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (चित्रं दृष्ट्वा वाक्यानि वदन्तु।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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Live stream scheduled for
"अर्थानामर्जने दुःखम्, अर्जितानां च रक्षणे।
नाशे दुःखं व्यये दुःखं, धिगर्थदुःखभाजनम्।।"

अर्थात- "धन को अर्जित करने में दुख होता है। अर्जित धन की रक्षा करने में भी कष्ट होता है। धन के नष्ट होने या खर्च होने पर भी कष्ट होता है। दुख के पात्र इस धन को धिक्कार है।"

संस्कृतभावार्थः -
धनस्य अर्जनं करणे दुःखं भवति, अर्जितस्य धनस्य रक्षाकरणे दुःखं भवति, धनस्य व्ययकरणे अथवा तस्य नाशे अपि दुःखं भवति।
तस्मात् दुःखमूलं धनं धिक् ।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(नियमपूर्वक अध्ययन करने में जिससे पढ़ा जाए उसकी अपादान संज्ञा होती है और उसमें पंचमी विभक्ति होती है।) अन्तेवासी अध्यापकात् विद्यां पठति = विद्यार्थी अध्यापक से विद्या पढ़ता है। नर्तकी नृत्यनिष्णातात् नृत्यं शिक्षति = नर्तकी नाच में दक्ष से नाचना…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (१९) पञ्चमी विभक्ति (३)

(जिससे कोई वस्तु बनती है / उत्पन्न होती है उसकी अपादान संज्ञा होने से उसमें पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

बीजेभ्यः अङ्कुराः जायन्ते
= बीजों से अंकुर उत्पन्न होते हैं।

मृगशृङ्गात् शरो जायते
= हिरण के सींग से बाण बनता है।

रामात् लवकुशावजायताम्
= राम से लवकुश पैदा हुए।

भूमेः वनस्पतयः प्ररोहन्ति
= भूमि से वनस्पतियां उगती हैं।

तण्डुलात् भक्तं निर्मापयति निर्माति वा
= चावल से भात बनाती है (पकाती है)।

शीनकेन दुग्धाद् दधि न्यर्मापयत् न्यर्माद् वा
= जमावन डालकर (जमावन के द्वारा) दूध से दही बनाया।

अवकराद् दुर्गन्धः उद्गच्छति
= कूड़े से दुर्गन्ध उठ रही है (उठती है)।

पूतिकात् शाकादपि दुर्गन्धः उद्भवति
= सड़े-गले शाक से भी दुर्गन्ध उठ रही है।

नगरनाल्याः पूतिगन्धः प्रभवति
= गटर से दुर्गन्ध उठ रही है।

फाणितात् गुडम् उत्पद्यते
= राब से गुड़ बनता है।

हिमालयात् गङ्गा प्रभवति
= हिमालय से गंगा निकलती है।

स्वर्णकारः स्वर्णाद् आभूषणानि रचयति
= सुनार सोने से आभूषण बनाता है।

कुम्भकारः मृत्तिकायाः मृण्मयानि वस्तूनि विदधाति
= कुम्हार मिट्टी से मिट्टि की चीजें बनाता है।

तन्तुवायः तन्तुभ्यः वस्त्रं स्त्रं वयति
= जुलाहा धागों से कपड़ा बुनता है।

अन्नाद् भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद् भवति पर्जन्यो यज्ञकर्मसमुद्भवः।
= अन्न से भूत = प्राणी उत्पन्न होते हैं, वर्षा से अन्न, यज्ञ से वर्षा और मानवों के कर्मों से यज्ञ उत्पन्न होता है।

प्रकृतेः सृष्टिः प्रादुर्भवति
= सत्त्व-रजस्-तमस् रूप प्रकृति से सृष्टि बनती है।

अभावद् भावो न जायते
= शून्य से सृजन नहीं होता।

न शशशृङ्गात् वस्तूनि निर्मीयन्ते
= खरगोश के सींग से वस्तुएं नहीं बनतीं।

कटिजाद् धानाः व्रीहिभ्यः भिस्सटाः यवेभ्यश्च लाजाः जायन्ते
= मक्के से मक्के का फूला (पापकार्न), चावल (छिलके सहित) से ममरा और जौ से लाजा (खील) बनते हैं।

#vakyabhyas
Admission Ad AY 2022-23.pdf
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Admission Ad AY 2022-23.pdf
. ॐ
पिता - अद्यतन-धावनस्पर्धायां भवता विजयः प्राप्तः किम् ?

पुत्रः - न पितृवर्य !

पिता - कियत् शोच्यं रे ! ( how pitiable !) अरे भोः! शिवाजि-महाराजः भवत्समवयस्कः ( of your age ) आसीत् तदा तेन दुर्गद्वयं प्राप्तम् आसीत् !

पुत्रः - सत्यम् एव पितृवर्य ! किन्तु यदा महाराजः भवत्समवयस्कः आसीत् तदा सः छत्रपति-नृपः अभवत् खलु !
-------- संस्कृतानन्दः ।

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

निषिध्य निखिलोपाधीन्नेति नेतीति वाक्यतः।
विद्यादैक्यं महावाक्यैर्जीवात्मपरमात्मनोः।।30।।

30. By a process of negation of the conditionings (Upadhis) through the help of the scriptural statement’It is not this, It is not this’, the oneness of the individual soul and the Supreme Soul, as indicated by the great Mahavakyas, has to be realised.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 30:

आत्म-बोध के 30th श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की आत्मा को स्वप्रकाश जानने के बाद एवं उसको अन्य किसी प्रकाशक से प्रकाशित करने की अनावश्यकता देखने के बाद - हमें अपनी उपाधियों के साथ तादात्म्य को शनैः-शनैः बाधित करना चाहिए। इसको ही उपनिषदों में नेति-नेति की प्रक्रिया कहते हैं। रस्सी को रस्सी जानने के लिए पहले सर्प-बुद्धि समाप्त होनी चाहिए, उसी तरह से आत्मा को आत्मा जानने के लिए अनात्म के साथ अभिमान समाप्त होना परम आवश्यक होता है। उसके बाद अपने परमात्मा के साथ ऐक्य देखना चाहिए।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : भारतीयसेना
(Bhartiya military)
दिनाङ्कः : 03rd March 2022,
गुरुवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन(भारतीयसैन्यस्य पराक्रमं सैन्याभियानं युद्धविवरणं वा वदन्तु।) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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