संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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पतिः - कीदृशं सूपं निर्मितवती भवती? लवणता नास्ति कटुता नास्ति निस्स्वादुः अस्ति।
सम्पूर्णे दिवसे भवती दूर्वाण्याम् एव व्यस्ता भवती किमपि न जानाति कथं निर्मातव्यं कथं न इति।😤

(वेल्लनीं दर्शयन्ती पत्नी उक्तवती) 😡

पत्नी - प्रथमं भवान् दूरवाणीम् अपसार्य खादतु बहुकालात् पश्यामि यत् तत्र जलेन रोटिकां खादन् अस्ति।
😅😂

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

आत्मावभासयत्येको बुद्ध्यादीनीन्द्रियाणि हि।
दीपो घटादिवत्स्वात्मा जडैस्तैर्नावभास्यते।।28।।

28. Just as a lamp illumines a jar or a pot, so also the Atman illumines the mind and the sense organs, etc. These material-objects by themselves cannot illumine themselves because they are inert.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 28 :

आत्म-बोध के 28th श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की दुनियाभर में मनुष्य की एक बहुत बड़ी समस्या है, और वो है - भय। यह भय आता है छोटे और असुरक्षित होने से। जब व्यक्ति अज्ञानवशात अपने को यह शरीर आदि समझ लेता है तो छोटापना आ जाता है। इस काल्पनिक छोटेपने की निवृत्ति के लिए हम लोग जीवन भर निरर्थक चेश्टा करते रहते हैं। इस श्लोक में आचार्य हमें इस भय की निवृत्ति के लिए आत्म-ज्ञान का तरीका भी बताते हैं। आत्मा सबके लिए ज्ञात है, वो ही मैं-मैं की तरह से अभिव्यक्त होती रहती है। हमें सर्व-प्रथम इसकी तरफ ध्यान मोड़ना चाहिए, फिर हमें अनेकानेक चीज़ें समझनी चाहिए।

#Atmabodha
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.18]
🍃गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्
।।9.18।।

♦️gatirbhartaa prabhuH saakShii nivaasaH sharaNaM suhRRit|
prabhavaH pralayaH sthaanaM nidhaanaM biijamavyayam9.18

I am the goal, the supporter, the Lord, the witness, the abode, the refuge, the friend, the origin, the dissolution, the foundation, the substratum, and the imperishable seed. (See also 7.10 and 10.39) (9.18)

गति (लक्ष्य) भरणपोषण करने वाला प्रभु (स्वामी) साक्षी निवास शरणस्थान तथा मित्र और उत्पत्ति प्रलयरूप तथा स्थान (आधार) निधान और अव्यय कारण भी मैं हूँ।।9.18।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.19]
🍃तपाम्यहमहं वर्षं निगृह्णाम्युत्सृजामि च।
अमृतं चैव मृत्युश्च सदसच्चाहमर्जुन
।।9.19।।

♦️tapaamyahamahaM varShaM nigRRihNaamyutsRRijaami cha|
amRRitaM chaiva mRRityushcha sadasachchaahamarjuna9.19

I give heat, I send as well as withhold the rain, I am immortality as well as death, I am also both the Sat and the Asat, O Arjuna. (Brahman is everything, See also 13.12) (9.19)

हे अर्जुन मैं ही (सूर्य रूप में) तपता हूँ मैं वर्षा का निग्रह और उत्सर्जन करता हूँ। मैं ही अमृत और मृत्यु एवं सत् और असत् हूँ।।9.19।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - चतुर्दशी 02 मार्च रात्रि 01:00 तक तत्पश्चात अमावस्या

दिनांक - 01 मार्च 2022
दिन - मंगलवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - श्रवण 02 मार्च रात्रि 03:48 तक तत्पश्चात शतभिषा
योग - परिघ सुबह 11:18 तक तत्पश्चात शिव
राहुकाल - शाम 03:47 से शाम 05:15 तक
सूर्योदय - 07:00
सूर्यास्त - 18:41
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
महाशिवरात्रेः शुभकामनाः
महाशिवरात्रेः शुभकामनाः
"न मुक्ताभि र्न माणिक्यैः न वस्त्रै र्न परिच्छदैः ।
अलङ्कियेत शीलेन केवलेन हि मानवः ॥"

अर्थात - "मोती, माणेक, वस्त्र या पहनावे से नहीं, परंतु केवल शील से ही व्यक्ति विभूषित होता है ।"

संस्कृतभावार्थः - न मणिना न आभूषणेन न वस्त्रेण न च परिधानेन अपितु केवलं "शीलेन" एव मनुष्यः विभूषितः भवति।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(वारण याने हटाना अर्थवाली धातुओं के साथ जिससे हटाया जाता है उसकी अपादान संज्ञा होती है और उसमें पंचमी विभक्ति होती है।) यवेभ्यः गां वारयति = जौ से गाय को हटाता है। दुग्धात् मार्जारीं वारय = दूध से बिल्ली को हटा। पुरोहितः यजमानम् अधर्माद् वारयेत्…
(नियमपूर्वक अध्ययन करने में जिससे पढ़ा जाए उसकी अपादान संज्ञा होती है और उसमें पंचमी विभक्ति होती है।)


अन्तेवासी अध्यापकात् विद्यां पठति
= विद्यार्थी अध्यापक से विद्या पढ़ता है।

नर्तकी नृत्यनिष्णातात् नृत्यं शिक्षति
= नर्तकी नाच में दक्ष से नाचना सीखती है।

अहम् आचार्या निरजामहाभागाभ्यो व्याकरणम् अपठम्
= मैंने आचार्या नीरजा जी से व्याकरण पढ़ा।

गुरुमुखात् शास्त्राण्यधीताम्
= गुरु से शास्त्रों को पढ़ना चाहिए।

रामलक्ष्मणौ विश्वामित्रात् अस्त्रविद्यां शिशिक्षाते
= राम और लक्ष्मण ने विश्वामित्र से अस्त्र विद्या सीखी।

लक्ष्मीबाई तात्यागुरोः युद्धविद्याम् अध्यैत
= लक्ष्मीबाई ने तात्या-गुरु से युद्धविद्या सीखी।

स्वामी दयानन्दः गुरु-विरजानन्दमहोदयेभ्यो व्याकरणम् अध्यगीष्ट
= स्वामी दयानन्द जी ने गुरु विरजानन्द जी से व्याकरण पढ़ा।

शिशुः आदौ मातुरधीते
= बच्चा सर्वप्रथम मां से सीखता है।

सृष्ट्यादावृषयो वेदेभ्यः सर्वाः विद्याः अधिजगिरे
= सृष्टि के आदि में ऋषियों ने वेद से ही सारी विद्याएं सीखीं।

सवर्ण-दीर्घ-सन्धिः

अकः सवर्णे दीर्घः। अ/आ के बाद अ/आ हो, इ/ई के बाद इ/ई हो, उ/ऊ के बाद उ/ऊ हो, ऋ/ॠ के बाद ऋ/ॠ हो तो दोनों वर्णों के स्थान यथाक्रम आ, र्ई, ऊ, ॠ ये दीर्घ वर्ण हो जाते हैं।

अ/आ + अ/आ
= आ।

राम + आलयः
= रामालयः।

इह + अत्र
= इहात्र।

विद्या + आलयः
= विद्यालयः।

विद्या + अत्र
= विद्यात्र।

इ/ई + इ/ई
= ई।

करोति + इदम्
= करोतीदम्।

पठति + ईशा
= पठतीशा।

नदी + इति
= नदीति।

श्री + ईशः
= श्रीशः।

उ/ऊ + उ/ऊ
= ऊ।

गुरु + उपदेशः
= गुरूपदेशः।

भानु + ऊहा
= भानूहा।

वधू + उत्तमा
= वधूत्तमा।

ऋ/ॠ + ऋ/ॠ
= ॠ।

होतृ + ऋकारः
= होतॄकारः।

होतृ + ॠकारः
= होतॄकारः।

ज्योत्स्ना + अभिन्ना
= ज्योत्स्नाभिन्ना।

ज्योत्स्नाभिन्ना + अच्छधारम्
= ज्योत्स्नाभिन्नाच्छधारम्।

ज्योत्स्नाभिन्नाच्छधारं न पिबति सलिलं शरदं मन्दभाग्यः।
= चन्द्रमा की चांदनी के कारण निर्मल हुए शरद् ऋतु के जल को अभागा नहीं पी पाता।


चातक + आधारो
= चातकाधारो।

असि + इति
= असीति।

अम्भोदवर + अस्माकम्
= अम्भोदवरास्माकम्।
प्रति + ईक्ष्यसे
= प्रतीक्ष्यसे।

त्वमेव चातकाधारोऽसीति केषां न गोचरः। किमम्भोदवरास्माकं कार्पण्योक्तीः प्रतीक्ष्यसे।।
= हे मेघश्रेष्ठ ! यह कौन नहीं जानता कि चातकों के एकमात्र प्राणाधार तुम्हीं हो, फिर हम चातकों के दीन वचनों की प्रतीक्षा क्यों कर रहे हो ? (अर्थात् धनिकों को आश्रित की इच्छापूर्ति बिना मांगे ही कर देनी चाहिए।)

दानेषु + उत्तमम्
= दानेषूत्तमम्।

सर्वेषु दानेषूत्तमं विद्यादानम्
= समस्त दानों में विद्यादान श्रेष्ठ है।

पितृ + ऋणम्
= पितॄणम्।

पितॄणम् धनेन कथं पूर्यते ?
= माता-पिता का ऋण धन से कैसे चुकाया जा सकता है ?

एव + आत्मना
= एवात्मना।
आत्मना + आत्मानम्
= आत्मनात्मानम्।

स्वयमेवात्मनात्मानं जानीहि
= स्वयं ही अपने आप से अपने आप को जान।

तेषू + उपजायते
= तेषूपजायते।

ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्स्तेषूपजायते
= विषयों का चिंतन करनेवाले पुरुष की उन विषयों में आसक्ति हो जाती है।

अपि + इह
= अपीह।

अल्पं वा बहु वा यस्य श्रुतस्योपकरोति यः। तमपीह गुरुं विद्याच्छ्रुतोपक्रियया तया।।
= जो किसी का थोडे या अधिकरूप से विद्यादान से उपकार करता है उसे भी विद्यारूपी उपकार के कारण गुरु जानना चाहिए।

श्रुतिभानु + उदयो
= श्रुतिभानूदयो।
आनन्दयति + इह
= आनन्दयतीह।

श्रुतिभानूदयोयं जगदानन्दयतीह नितान्तम्
= वेदरूपी सूर्य का उदय इस जगत् को अत्यन्त आनन्दित कर रहा है।

तानि + इन्द्रियाणि
= तानीन्द्रियाणी।
भवति + इति
= भवतीति।

तानीन्द्रियाण्यविकलाणि तदेव नाम, सा बुद्धिरप्रतिहता वचनं तदेव। अर्थोष्मणा विरहितः पुरुषः स एव, त्वन्यः क्षणेन भवतीति विचित्रमेतत्।।
= वही सामर्थ्ययुक्त इन्द्रियां हैं और वही नाम है, वही अबाध चिन्तनवाली बुद्धि है, वही वचन है और धनरूपी ऊष्णता से रहित पुरुष भी वही है, किन्तु धन चले जाने के कारण क्षण भर में सब कुछ बदला हुआ लगता है, यह कितने आश्चर्य की बात है !

#vakyabhyas