संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (१८) पञ्चमी विभक्तिः (२) + सवर्णदीर्घसन्धिः {जुगुप्सा (घृणा), विराम (रुकना, हटना) तथा प्रमाद (लापरवाही) इन अर्थवाली धातुओं के साथ जिससे घृणा की जाए, जिससे रुका जाए और जिसमें प्रमाद किया जाए उसकी अपादान…
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।
= हे महाबाहो अर्जुन ! जिसकी इन्द्रियां अपने विषयों से रोग दी गई हैं, उसकी बुद्धि स्थिर समझनी चाहिए।

तत् ज्ञानं येन पापेभ्यो विरमति
= वह ज्ञान है जिससे व्यक्ति पापाचरण से हटता है।

विरम विरमायासादस्माद् दुरध्यवसायतो, विपदि महतां धैर्यध्वंसं यदीक्षितुमीहसे।
अयि जडविधे कल्पापये व्यपेतनिजक्रमाः कुलशिखरिणः क्षुद्रा चैते न वा जलराशयः।।
= हे दुर्भाग्य ! जो तू विपत्ति में महापुरुषों के धैर्य को टूटा हुआ देखना चाहता है तो अपनी इस बुरी नियती के प्रयास से बाज आ जा। ये महापुरुष प्रलयकाल में अपने नियत क्रम को छोड़ देनेवाले तुच्छ कुलपर्वत अथवा समुद्र के समान नहीं हैं। (अर्थात् दुर्भाग्य महापुरुषों को डिगा नहीं सकता।)

अद्यत्वे बालकाः प्रातः जागरणात् प्रमदन्ति
= आजकल बच्चे जल्दी उठने में प्रमाद करते हैं।

धर्मात् प्रमाद्यति खलः
= दुष्ट धर्म में प्रमाद करता है।

गृहस्थी अतिथि सत्कारात् मा प्रमदेत्
= गृहस्थी अतिथिसत्कार में प्रमाद न करे।

स्वाध्यायात् मा प्रमदः
= स्वाध्याय में प्रमाद मत कर।

देवपितृकार्याभ्यां न प्रमदितव्यम्
= देवकार्य (संध्या-यज्ञ) तथा पितृकार्य (माता-पिता, गुरु, अतिथि आदि की सेवा) में कभी प्रमाद नहीं करना चाहिए।

प्रमदायाः प्रमाद्येत्
= सि्त्रयों में प्रमाद करे (अर्थात् व्यभिचार न करे)।

(परा + जि धातु के प्रयोग में जो असह्य होता है उसकी अपादान संज्ञा होती है तथा अपादान कारक में पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

अध्ययनात् पराजयते
= अध्ययन से भागता है।

वृद्धः शैत्यात् पराजयते
= बूढे से सर्दी सहन नहीं होती।

गृहिणी गृहकार्यात् पराजयत
= गृहिणी गृहकार्य से ऊब गई।

रुग्णस्य पत्युः सेवायाः पत्नी अपि पराजिता
= रोगी पति की सेवा करके पत्नी भी हार गई।

स्वच्छन्दी अनुशासनात् पराजयते
= स्वच्छन्दी अनुशासन से भागते हैं।

क्षुधायाः पराजितः क्षुधितः प्राणान् अत्याक्षीत्
= भूख से पीड़ित भूखे ने प्राण छोड़ दिए।

एकस्मिन् दिने धनपतयोऽपि धनात् पराजेष्यन्ते एव
= एक दिन धनपति भी धन से ऊब जाएंगे ही।

(परा + जि धातु जब पराजय करना अर्थ में होती है तब जिसे पराजित किया जाता है उसकी कर्म संज्ञा होने से उसमें द्वितीया विभक्ति का ही प्रयोग होता है।)

शत्रुं पराजयते
= दुश्मन को हराता है।

रामः रावणं पराजिग्ये
= राम ने रावण को हराया।

धार्मिको विद्वान् एवासत्यं पराजेतुमर्हति
= धार्मिक विद्वान् ही असत्य को हरा सकता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

रज्जुसर्पवदात्मानं जीवं ज्ञात्वा भयं वहेत्।
नाहं जीवः परात्मेति ज्ञातश्चेन्निर्भयो भवेत्।।27।।

27. Just as the person who regards a rope as a snake is overcome by fear, so also one considering oneself as the ego (Jiva) is overcome by fear. The ego-centric individuality in us regains fearlessness by realising that It is not a Jiva but is Itself the Supreme Soul.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 27 :

आत्म-बोध के 27th श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की दुनियाभर में मनुष्य की एक बहुत बड़ी समस्या है, और वो है - भय की। सभी लोग किसी न किसी भय से संत्रस्त हैं, इसीलिए अनेकानेक व्यवस्था करने की मजबूरी होती है। भय का मूल कारण है अपने आप को अन्यथा समझ लेना। मूल रूप से हम सब एक अखंड और अविनाशी चेतना हैं, लेकिन जब अज्ञानवशात हम अपने को जीव मन बैठते हैं तभी से बेचैनी और असुरक्षा की भावना पैदा हो जाती है। अपने को जीव मान लेना एक रस्सी को सांप समझ लेना जैसा ही होता है। जहाँ हम यथार्थ को जान लेते हैं - सब अभाव आदि समाप्त हो जाते हैं।

#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वार्ताः
(News)
दिनाङ्कः : 28th February 2022,
सोमवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन ( प्रदेशीयां , राष्ट्रीयां, अन्ताराष्ट्रीयां वा वार्तां वदन्तु ) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.16]
🍃अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाऽहमहमौषधम्।
मंत्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्
।।9.16।।

♦️ahaM kraturahaM yaj~naH svadhaa'hamahamauShadham|
maMtro'hamahamevaajyamahamagnirahaM hutam9.16

I am the ritual, I am the Yajna, I am the offering, I am the herb, I am the mantra, I am the Ghee, I am the fire, and I am the oblation.(See also 4.24) (9.16)

मैं ऋक्रतु हूँ मैं यज्ञ हूँ स्वधा और औषध मैं हूँ मैं मन्त्र हूँ घी हूँ मैं अग्नि हूँ और हुतं अर्थात् हवन कर्म मैं हूँ।।9.16।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.17]
🍃पिताऽहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक् साम यजुरेव च
।।9.17।।

♦️pitaa'hamasya jagato maataa dhaataa pitaamahaH|
vedyaM pavitramoMkaara RRik saama yajureva cha9.17

I am the supporter of the universe, the father, the mother, and the grandfather. I am the object of knowledge, the purifier, the sacred syllable OM, and also the Rig, the Yajur, and the Sama Vedas. (9.17)

मैं ही इस जगत् का पिता माता धाता (धारण करने वाला) और पितामह हूँमैं वेद्य (जानने योग्य) वस्तु हूँ पवित्र ओंकार ऋग्वेद सामवेद और यजुर्वेद भी मैं ही हूँ।।9.17।।

#geeta
🚩 जय सत्य सनातन 🚩

🚩 आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩 युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩 विक्रम संवत-२०७८
🚩 तिथि - त्रयोदशी 01 मार्च रात्रि 03:16 तक तत्पश्चात चतुर्दशी

दिनांक - 28 फरवरी 2022
दिन - सोमवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - उत्तराषाढा सुबह 07:02 तक तत्पश्चात श्रवण
योग - वरीयान दोपहर 02:26 तक तत्पश्चात परिघ
राहुकाल - सुबह 08:28 से सुबह 09:56 तक
सूर्योदय - 07:01
सूर्यास्त - 18:41
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
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कालावधिः : 45 निमेषाः
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दिनाङ्कः : 28th February 2022,
सोमवासरः

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