संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यदा संहरते चायं कूर्मोङ्गानीव सर्वशः। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। = जैसे कछुआ अपने अंगों को सब ओर से सिकोड़कर अपने खोल के अन्दर खींच लेता है, उसी प्रकार जब कोई पुरुष इन्द्रियों के विषयों में से अपनी इन्द्रियों को खींच लेता है, तब…
(भय और रक्षा अथवाली धातुओं के साथ जिससे भय लगता है और जिससे रक्षा की जाती है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान कारक में पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

विपत्तेः सर्वे बिभ्यति
= विपत्तियों से सब डरते हैं।

अधर्माद् बिभेति सज्जनः
= सज्जन व्यक्ति अधर्म से डरता है।

मृत्योर्मा भेम शवसस्पते
= हे बलों के अधिपति तू मृत्यु से मत डर। (अर्थात् तू बलवान् है तुझे मृत्यु से डरने की जरूरत नहीं है।)

कस्माद् बिभेषि तवाहं सखा अस्मि
= किससे डरता है ? मैं तेरा सखा हूं।

धर्माचरणाद् मा बिभीयात्
= धर्माचरण से मत डर।

बिभेत्यल्पश्रुताद् वेदो मामयं प्रहरिष्यति
= मुझपर यह प्रहार करेगा (मुझे यह नष्ट करेगा) ऐसा सोचकर वेद अज्ञानियों से डरता है।

पिञ्जरे पतितः किशोरः व्याघ्रात् भृशम् अबिभेत्
= पिंजरे में गिरा हुआ किशोर बाघ से खूब डरा।

अकामो धीरो अमृतः स्वयम्भू रसेन तृप्तो न कुतश्चनोनः। तमेव विद्वान्न बिभाय मृत्योरात्मानं धीरमजरं युवानम्।।
= ईश्वर पूर्णकाम, धीर, अमृत, स्वयं आधार, आनन्द रस से तृप्त अर्थात् परिपूर्ण है। ऐसे धीर अजर सदा युवा (सामर्थ्यशाली) परमात्मा को जाननेवाला व प्राप्त करनेवाला व्यक्ति मृत्यु से नहीं डरता।

अभयं मित्रादभयममित्रादभयं ज्ञातादभयं परोक्षात्। अभयं नक्तमभयं दिवा नः सर्वा आशा मम मित्रं भवन्तु।।
= हमें मित्र से अभय हो, अमित्र (शत्रु) से अभय हो, जिसको जानते हैं उससे अभय हो, जिसको नहीं जानते उससे भी अभय हो, रात्रि में भी अभय हो दिन में भी अभय हो, सब दिशाएं हमारी मित्र हों अर्थात् हमें सब काल में सभी ओर से निर्भयता प्राप्त हो।

क्षत्रियः दुष्टेभ्यः प्रजां त्रायते
= क्षत्रिय दुष्टों से प्रजा की रक्षा करता है।

रक्षसेभ्यो रक्ष
= राक्षसों से रक्षा करो।

पाहि पृथ्वीं पापिभ्यः पार्थ
= हे पार्थ पृथ्वी की पापियों से रक्षा करो।

तापात् त्रायस्व तात
= हे पिता ताप से मुझे बचाओ।

त्रायध्वं नो दुरेवाया अभिह्रुतः
= हमें दुर्दशा से और सभी प्रकार की कुटिलता से बचाओ।

पुन्नरकं ततस्त्रायते इति पुत्रः
= पुं याने नरक याने दुःख से माता-पिता को तारनेवाला पुत्र कहाता है।

नैनं छन्दांसि वृजनात् तारयन्ति मायाविनं मायया वर्तमानम्। नीडं शकुन्ता इव जातपक्षाश्छन्दांस्येनं प्रजहत्यन्तकाले।।
= छल प्रपंच से व्यवहार करनेवाले इस मायावी पुरुष को वेद भी पापकर्म के फलभोग से नहीं बचा सकते। अपितु जैसे पंख निकल आने पर पक्षी अपने घोंसले को छोड़ देते हैं, वैसे वेद भी इस मायावी पुरुष को अन्तकाल में छोड़ देते हैं।

आवृत्तिर्भयमन्त्यानां मध्यानां मरणाद् भयं। उत्तमानां तु मर्त्यानामवमाननात् परं भयं।।
= साधारण लोगों को निवाह के साधनों के अभाव का भय होता है, मध्यम जनों को मृत्यु से भय होता है, उत्तम जनों को तो अपमान से महान् भय होता है।

सम्मानाद् ब्राह्मणो नित्यमुद्विजेत विषादिव। अमृतस्येव चाकांक्षेदवमानस्य सर्वदा।।
= ब्राह्मण सम्मान से विष के समान भयभीत हो और अपमान की अमृत के समान आकांक्षा करे।

न शत्रुर्वशमापन्नो मोक्तव्यो वध्यतां गतः।
अहताद्धि भयं तस्माज्जायते नचिरादिव।।
= वश में आए हुए मारनेयोग्य शत्रु को कभी न छोड़े। वध के योग्य शत्रु को यदि न मारा जाए तो शीघ्र ही उससे अपने को भय प्राप्त होगा।

न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेद्।
विश्वासाद् भयमुत्पन्नं मूलान्यपि निकृन्तति।।
= अविश्वासी पर कभी विश्वास न करे और विश्वासी पर भी अतिविश्वास न करे, विश्वास करने से उत्पन्न हुआ भय जड़ों को भी काट डालता है।

नेहाभिक्रमनाशो ऽस्ति प्रत्यवायो न विद्यते। स्वल्पमप्यस्य धर्मस्य त्रायते महतो भयात्।।
= अल्पमात्रा में भी किए हुए योगधर्म का कभी नाश नहीं होता, और न हि उसका उलटा फल मिलता है। किन्तु स्वल्प किया हुआ भी धर्म बड़े बड़े भय से बचाने में समर्थ ही होता है। (अर्थात् योगांगानुष्ठान जितना भी किया जाए लाभकारी ही होता है।)

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

आत्मनः सच्चिदंशश्च बुद्धेर्वृत्तिरिति द्वयम्।
संयोज्य चाविवेकेन जानामीति प्रवर्तते।।25।।

25. By the indiscriminate blending of the two – the Existence-Knowledge-aspect of the Self and the thought-wave of the intellect – there arises the notion of “I know”.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 25 :

आत्म-बोध के 25th श्लोक में आचार्यश्री हमें एक उपहित और अनुपहित चेतना का विवेक दे रहे हैं। जब आत्मा की चेतन स्वरूपता का प्रतिपादन होता है तो अक्सर जीव के अंदर निहित चेतना को ही ब्रह्म-स्वरुप आत्मा मान बैठने का भ्रम उत्पन्न कर लेते हैं। इस संभावित दोष के निराकरण के लिए हमें इन दोनों चेतनाओं का विवेक करना चाहिए। इस विवेक के लिए हमें मात्र यह देखना चाहिए की यह ज्ञाता चेतना कैसे उत्पन्न होती है। इस सन्दर्भ में आचार्य कहते हैं की जब कोई व्यक्ति आत्मा की सत-चित स्वरूपता और किसी मन में उत्पन्न वृत्ति का भेद नहीं देख पता है तब इस वृत्ति और आत्माकी सत-चित स्वरूपता का अज्ञानवशात संयोग हो जाता है, और तब ही ज्ञाता का जन्म हो जाता है, जिसके अंदर 'हम जानने वाले हैं यह भाव उदित हो जाता है। जिसके अंदर इन दोनों का स्पष्ट विवेक होता है उसमे ऐसी कोई भी धरना नहीं आती है।

#Atmabodha
https://youtu.be/_1ecG6qPJIg
#SanskritCarnaticMusic
पार्वती कुमारं भावये - रागं नाट कुरञ्जि - ताळं रूपकम्

पल्लवि
पार्वती कुमारं भावये सततं
शरवण भव गुरु गुहं श्री

समष्टि चरणम्
मार्ग सहाय प्रिय सुतं
माधवाद्यमरादि नुतं
(मध्यम काल साहित्यम्)
माणिक्य मकुट शोभित -
मानित गुण वैभवम्

Meaning
pallavi
bhAvayE - I meditate
satataM - always,
SrI pArvatI kumAraM - (upon) the son of Parvati,
SaravaNa bhava guru guhaM - Guruguha who incarnated in the forest of reeds,

samashTi caraNam
mArga sahAya priya sutaM - the dear son of Shiva(Marga-sahayeshwara),
mAdhava-Adi-amara-Adi nutaM - the one praised by Devas led by Vishnu, and other celestial beings,
mANikya makuTa SObhita - the one dazzling with a ruby(-studded) crown,
mAnita guNa Vaibhavam - the one who is venerated for the glory of his qualities

Comments:
This kriti is in the second Vibhakti
In the temple in Virinchipuram, Shiva is known by the name Margasahayeswaya (Vazhitthunai Nathar)
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.12]
🍃मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतसः।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिताः
।।9.12।।

♦️moghaashaa moghakarmaaNo moghaj~naanaa vichetasaH|
raakShasiimaasuriiM chaiva prakRRitiM mohiniiM shritaaH9.12

The ignorant persons having false hopes, false actions, and false knowledge, possess the delusive (or Taamasika) qualities (See 16.04-18) of fiends and demons. (9.12)

वृथा आशा वृथा कर्म और वृथा ज्ञान वाले अविचारीजन राक्षसों के और असुरों के मोहित करने वाले स्वभाव को धारण किये रहते हैं।।9.12।।

#geeta
https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat

Organiser contact : samskritwikigujarat@gmail.com
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.13]
🍃महात्मानस्तु मां पार्थ दैवीं प्रकृतिमाश्रिताः।
भजन्त्यनन्यमनसो ज्ञात्वा भूतादिमव्ययम्
।।9.13।।

♦️mahaatmaanastu maaM paartha daiviiM prakRRitimaashritaaH|
bhajantyananyamanaso j~naatvaa bhuutaadimavyayam9.13

But great souls, O Arjuna, who possess divine qualities (See 16.01-03) know Me as the (material and efficient) cause of creation and imperishable, and worship Me single-mindedly. (9.13)

हे पार्थ परन्तु दैवी प्रकृति के आश्रित महात्मा पुरुष मुझे समस्त भूतों का आदिकारण और अव्ययस्वरूप जानकर अनन्यमन से युक्त होकर मुझे भजते हैं।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - दशमी सुबह 10:39 तक तत्पश्चात एकादशी

दिनांक - 26 फरवरी 2022
दिन - शनिवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - मूल सुबह 10:32 तक तत्पश्चात पूर्वाषाढा
योग - सिद्धि रात्रि 08:52 तक तत्पश्चात वयतीपात
राहुकाल - सुबह 09:57 से सुबह 11:24 तक
सूर्योदय - 07:02
सूर्यास्त - 18:40
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
ANCIENT HEALTH TIPS
Quotes in Sanskrit
🌸🙏🌸

1. Ajeerne Bhojanam Visham
अजीर्णे भोजनं विषम् ।
If previously taken Lunch is not digested..taking Dinner will be equivalent to taking Poison. Hunger is one signal that the previous food is digested

2. Ardharogahari Nidhraa
अर्धरोगहारी निद्रा।
Proper sleep cures half of the diseases..

3. Mudhgadhaali Gadhavyaali
मूढ़गढ़ाल्ली गढ़व्याली।
Of all the Pulses, Green grams are the best. It boosts Immunity. Other Pulses all have one or the other side effects.

4. Bagnaasthi Sandhaanakaro Rasonaha
बागनास्थी संधानकारो रसोनहा।
Garlic even joins broken Bones..

5. Athi Sarvathra Varjayeth
अति सर्वत्र वर्जयेत।
Anything consumed in Excess, just because it tastes good, is not good for Health. Be moderate.

6. Naasthimoolam Anoushadham
नास्थिमूलम अनौषधाम।
There is No Vegetable that has no medicinal benefit to the body..

7. Na Vaidhyaha Prabhuraayushaha
नां वैध्यः प्रभुरायुशाह ।
No Doctor is Lord of our Longevity. Doctors have limitations.

8. Chinthaa Vyaadhi Prakaashaya
चिंता व्याधि प्रकाश्य।
Worry aggravates ill health..

9. Vyayaamascha Sanaihi Sanaihi
व्यायामच्छ सनैही सनैही।
Do any Exercise slowly. Speedy exercise is not good.

10. Ajavath charvanam Kuryaath
अजावथ चर्वनाम कुर्यात।
Chew your Food like a Goat..Never Swallow food in a hurry..
Saliva aids first in digestion.

11. Snaanam Naama
Manahprasaadhanakaram Dhuswapna Vidhwasanam
स्नानम नामा मानहप्रसाधनकरम धुस्वप्न विध्वसनम।
Bath removes Depression. It drives away Bad Dreams..

12. Na Snaanam Aachareth Bhukthvaa
ना स्नानम आचारेठ भुक्थवा।
Never take Bath immediately after taking Food Digestion is affected

13. Naasthi Meghasamam Thoyam
नास्थि मेघासमाम थोयम।
No water matches Rainwater in purity..

14. Ajeerne Bheshajam Vaari
अजीर्णे भेषजम वारी।
Indigestion can be addressed by taking plain water.

15. Sarvathra Noothanam Sastham Sevakaanne Puraathanam
सर्वत्र नूथनाम सस्थाम सेवकाने पुर्रथनम।
Always prefer things that are Fresh..
Old Rice and Old Servant need to be replaced with new. (Here what it actually means in respect of Servant is: Change his Duties and not terminate.)

16. Nithyam Sarvaa Rasaabhyaasaha
नित्यम् सर्वा रास्सभ्याश।
Take complete Food that has all tastes viz: Salt, Sweet, Bitter, Sour, Astringent and Pungent).

17. Jataram Poorayedhardham Annahi
जटाराम पूरायेधरधाम अन्नाहि।
Fill your Stomach half with Solids, a quarter with Water and rest leave it empty.

18. Bhukthvopa Visathasthandraa
भुक्थवोपा विसथास्थंद्र।
Never sit idle after taking Food. Walk for at least half an hour.

19. Kshuth Saadhuthaam Janayathi
क्षुथ साधुथाम जनयथि।
Hunger increases the taste of food..
In other words, eat only when hungry..

20. Chinthaa Jaraanaam Manushyaanaam
चिंता जर्रानाम मनुष्याणम।
Worrying speeds up ageing..

21. Satham Vihaaya Bhokthavyam
साथम विहाया भोक्ताव्यम।
When it is time for food, keep even 100 jobs aside.

22. Sarvaa Dharmeshu Madhyamaam
सर्व धर्मेशु मध्यमाम।
Choose always the middle path. Avoid going for extremes in anything.
अप्युन्मत्तात् प्रलपतो बालाच्च परिजल्पतः।
सर्वतः सारमादद्याद् अश्मभ्य इव काञ्चनम्।।

भावार्थः -
यथा पाषाणखण्डेभ्यः स्वर्णं प्राप्यते तथैव मूर्खात् ,किमपि वदतः बालात् अपि ज्ञानं गृहीतव्यम्।
जीवने सर्वतः सारं गृह्णन्तु।

#Subhashitam
पुरुषस्य _______ दीर्घम् अस्ति
Anonymous Quiz
13%
श्मश्रु
44%
श्मश्रुः
14%
श्मश्रू
30%
श्मश्रूः
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(भय और रक्षा अथवाली धातुओं के साथ जिससे भय लगता है और जिससे रक्षा की जाती है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान कारक में पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) विपत्तेः सर्वे बिभ्यति = विपत्तियों से सब डरते हैं। अधर्माद् बिभेति सज्जनः = सज्जन व्यक्ति…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (१८) पञ्चमी विभक्तिः (२) + सवर्णदीर्घसन्धिः

{जुगुप्सा (घृणा), विराम (रुकना, हटना) तथा प्रमाद (लापरवाही) इन अर्थवाली धातुओं के साथ जिससे घृणा की जाए, जिससे रुका जाए और जिसमें प्रमाद किया जाए उसकी अपादान संज्ञा होती है तथा अपादान कारक में पंचमी विभक्ति होती है।}

पापात् जुगुप्सते
= पाप से घृणा करता है।

ऋषयः रक्षोभ्यः जुगुप्सन्ते स्म
= ऋषि राक्षसों से घृणा करते थे।

रक्षांसि यज्ञात् जुगुप्सन्ते
= राक्षस यज्ञ से घृणा करते हैं।

प्रजा अन्यायात् जुगुप्सेत
= प्रजा को अन्याय से घृणा करनी चाहिए।

शौचात् स्वाङ्गात् जुगुप्सा जायते
= शौच (शरीर की आन्तरिक व बाह्य शुद्धि करने) से अपने ही शरीर के अंगों से घृणा उत्पन्न होती है।

सदैवाऽसुराः देवेभ्यः अजुगुप्सन्त, जुगुप्सन्ते, जुगुप्सिष्यन्ते च
= सदा ही असुर प्रकृति के लोग देव प्रकृति के लोगों से घृणा करते थे, हैं और करते रहेंगे।

अधार्मिकाः धर्मात् कामं जुगुप्सताम् किन्तु धार्मिकाः क्षणमपि धर्मात् न विरमन्ति
= अधार्मिक भले ही धर्म से घृणा करें, किन्तु धार्मिक जन क्षणभर के लिए भी धर्म करने से नहीं चूकते।

विरराम रामः घोरसमरात् वनं गतः
= राम घोर संग्राम से उपरत (हट गए) हो गए और वन चले गए।

विरमन्तु कदाचारात्
= कदाचार को विराम दो।

व्यरमत् रोगी व्यसनेभ्यः
= रोगी व्यसनों से दूर हो गया।

मधुपा मृत्यम् आवृणोत् किन्तु मधुपानात् न व्यरंसीत्
= शराबी ने मृत्यु का वरण किया किन्तु शराब नहीं छोड़ी।

विरामात् विरम, चरैवेति
= रुकने से रुको, चलते ही रहो।

विरामात् विरम, विरामोऽवसानम्
= रुकने से रुको, रुकना मृत्यु है।

अप्रियात् सत्यात् विरमेम
= हमें सत्य को अप्रिय ढंग से नहीं बोलना चाहिए।

ऋष्युपदेशात् राजा व्यभिचारात् व्यरमत्
= ऋषि के उपदेश से राजा व्यभिचार करने से हट गया।

धर्मात् प्रमाद्यति खलः
= दुष्ट धर्म में प्रमाद करता है।

प्राणाघातात् निवृत्तिः परमः पन्थाः
= जीवहिंसा से हट जाना श्रेष्ठ मार्ग है।

न निश्चयार्थान् विरमन्ति धीराः
= धीर लोग अपने निश्चय से नहीं हटते।

न नवः प्रभुराफलोदयात् स्थिरकर्मा विरराम कर्मणः
= नया राजा तब तक कर्म करने से नहीं रुक, जब तक उसे फल प्राप्ति न हो गई।

भयाद् रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथाः
= (हे अर्जुन !..) महारथी लोग यह समझेंगे कि तू भय के कारण युद्ध से उपरत हो गया है।

#vakyabhyas
भक्तः : हे भगवन् ! भवान् कुत्र अस्ति ?
भगवान् : हे भक्त ! त्वं किम् इच्छसि तत् मां पृच्छ । अहं यच्छामि ।
भक्तः : अहं समुद्रस्य तरणं कर्तुम् इच्छामि । अतः सागरस्य उपरि वज्रचूर्ण-मार्ग-निर्माणं कृपया भवता कर्तव्यम्।
भगवान् : भोः ! समुद्र-मध्ये वज्रचूर्ण-मार्ग-निर्माणं तु बहु कठिनं कार्यं भवति । अन्यं वरं पृच्छतु ।
भक्तः : तर्हि मम भार्यया तस्याः वचनानि न्यूनानि करणीयानि । तया मम वचनानि एव श्रोतव्यानि प्रतिवादः न
करणीयः च इति वराः भवता दीयन्ताम् ।
भगवान् : अहो ! चिन्ता मास्तु । एकं क्षणं ददातु । वज्रचूर्ण-मार्गः सिद्धः भविष्यति ।
भक्तः : ????????


Devotee : Oh God! Where are you ?
God : Dear Bhakta! What do you want ? Ask me, I will give you.
Devotee : I want to cross the ocean. So, a cement road should be built on the ocean by you.
God : Building a cement road is a very hard task. Ask me another boon.
Devotee : Then my wife should try to reduce her lectures and listen to me without arguments.
God : Ok Bhakta! Your cement road will be ready in a second.
Devotee : ?????

#hasya