संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(नमः + कृ तथा नमन अर्थवाली धातुओं के साथ द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है किन्तु ‘‘प्र + नि + पत्’’ तथा ‘प्र + नम्’ इन धातुओकं के साथ द्वितीया व चतुर्थी विकल्प से प्रयोग होता है।) देवं नमस्करोति = देव को नमन करता है। पितरम् अनमत् = पिता को नमस्कार किया।…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (१७) पञ्चमी विभक्ति

जिससे कोई व्यक्ति या वस्तु पृथक् / अलग होती है, उसे अपादान कहते हैं। अपादान कारक में पञ्चमी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

बालकः कुड्यात् पतति
= बालक दीवार से गिरता है।

वृक्षात् पीतानि पत्राणि पतिष्यन्ति
= पेड़ से पीले पत्ते गिरेंगे।

जन्तुशालायां भित्तेः प्रच्युतः किशोरः व्याघ्रस्य पिञ्जरेऽपतत्
= प्राणिसंग्रहालय में दीवार से फिसला हुआ किशोर बाघ के पिंजरे में जा गिरा।

शिशुः प्रेङ्खात् अलुठत्
= बच्चा पालने में से लुढ़क गया।

वानरः कदापि वृक्षात् न प्रच्यवते
= बंदर कभी भी पेड़ से नहीं गिरता।

मरुभूमिम् अटित्वा पर्यटकः उष्ट्रात् अवरोहति
= मरुभूमि में घूमकर पर्यटक उंट से नीचे उतर रहा है।

गिरेः अजाडवीः अवारोहन्
= पहाड़ से भेड़-बकरियां नीचे उतरीं।

प्राकारात् पतितात् अश्वात् लुठत्यश्वारोहकः
= परकोटे से गिरते हुए घोड़े पर से घुड़सवार गिर रहा है।

उखायाः संस्रते दुग्धम्
= बटलोर्ई से दूध गिर रहा है।

भिदायाः अवसंस्रते जलम्
= दरार से पानी रिस रहा है।

कूपात् जलमुद्धरति कन्या
= कन्या कुंए से पानी निकाल रही है।

सम्पुटकात् याज्ञिकः यज्ञाय घृतं निस्सारयति
= डिब्बे में से याज्ञिक यज्ञ के लिए घी निकाल रहा है।

क्षुधितस्य निर्धनस्य बालस्य नेत्रात् निस्सरितान्यश्रूणि कपोलौ क्लेदयन्ति
= भूखे बरीब बच्चे की आंख से निकले हुए आंसु दोनों गालों को गीला कर रहे हैं।

वदनात् च्युतं वाग्बाणं हृदयं विदारयति
= मुख से निकला वाग्बाण दिल को चीर देता है।

अश्वत्थामानं हतं ज्ञात्वा द्रोणस्य हस्तात् धनुः अवास्रंसत
= अश्वत्थामा को मरा जानकर द्रोण के हाथ से धनुष नीचे गिर गया।

असतो मा सद्गयय
= मुझे असत्य से छुड़ाकर सत्य की ओर ले चल।

तमसो मा ज्योतिर्गमय
= मुझे अन्धकार से छुड़ाकर प्रकाश की ओर ले चल।

मृत्योर्माऽमृतं गमय
= मुझे मृत्यु से छुड़ाकर अमृत / मोक्ष की ओर ले चल।

रक्षकभटानां प्रमादात् सः दुष्टः कारागारात् अपलायत्
= पुलिस के प्रमाद के कारण वह दुष्ट जेल से भाग गया।

स्नानार्थं स्वामी दयानन्दः स्वकीयाय गुरवे विरजानन्दाय गङ्गायाः जलम् आनयति स्म
= स्नान के लिए स्वामी दयानन्द अपने गुरु विरजानन्द के लिए गङ्गा से पानी लाते थे।

#vakyabhyas
चतुरः शिक्षकः ~

सर्वकारीये विद्यालये एकः शिक्षकः गहननिद्रायां निद्राति स्म।

तदा एव जनपदशिक्षाधिकारी विद्यालयम् आगतवान् , सः शयानः आसीत् इति अधिकारी ज्ञातवान् ,

बहुकालपर्यन्तम् उत्थापनात् अनन्तरं यदा शिक्षकः उत्तिष्ठति तदा सः परिस्थितिम् अभिज्ञाय झटिति वदति...

शिक्षकः - अस्तु बालकाः! भवन्तः अधुना सम्यक् ज्ञातवन्तः खलु कुम्भकर्णः कथं शेते इति।😜😆😁

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

अज्ञानान्मानसोपाधेः कर्तृत्वादीनि चात्मनि।
कल्प्यन्तेऽम्बुगते चन्द्रे चलनादि यथाम्भसः।।22।।

22. The tremblings that belong to the waters are attributed through ignorance to the reflected moon dancing on it: likewise agency of action, of enjoyment and of other limitations (which really belong to the mind) are delusively understood as the nature of the Self (Atman).

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 22 :

आत्म-बोध के 22nd श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की जैसे अविवेकी लोग देह और इन्द्रिय के गुण और कर्म - निर्मल और निर्गुण आत्मा पर आरोपित कर उसे ही मलिन आदि समझने लगते हैं, उसी प्रकार से मन के अंदर विद्यमान कर्तापन आदि भी इसी अविवेक के कारण अपना ही कर्तापन आदि मानकर बोझे से युक्त होकर अंतहीन प्रयास करते रहते हैं। यहाँ पू गुरुजी बताते हैं की अज्ञान से तो हम एक विनम्र जिज्ञासु भी बन सकते हैं लेकिन सामान्यतः सब लोग कल्पना का आश्रय ले लेते हैं और ब्रह्म से जिव बन जाते हैं।


#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : विद्या
(Education)
दिनाङ्कः : 23th February 2022,
बुधवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (विद्यार्जनेन व्यवहारे कीदृशं परिवर्तनं भवितव्यं, विद्यायाः महत्वं किं, विद्यार्जनस्य लक्ष्यं किं....इत्यादयः) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.06]
🍃यथाऽऽकाशस्थितो नित्यं वायुः सर्वत्रगो महान्।
तथा सर्वाणि भूतानि मत्स्थानीत्युपधारय
।।9.6।।

♦️yathaa''kaashasthito nityaM vaayuH sarvatrago mahaan|
tathaa sarvaaNi bhuutaani matsthaaniityupadhaaraya9.6

Consider that all beings remain in Me (without any contact or without producing any effect) as the mighty wind, moving everywhere, eternally remains in space. (9.06)

जैसे सर्वत्र विचरण करने वाली महान् वायु सदा आकाश में स्थित रहती हैं वैसे ही सम्पूर्ण भूत मुझमें स्थित हैं ऐसा तुम जानो।।9.6।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.07]
🍃सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्
।।9.7।।

♦️sarvabhuutaani kaunteya prakRRitiM yaanti maamikaam|
kalpakShaye punastaani kalpaadau visRRijaamyaham9.7

All beings merge into My Prakriti at the end of a Kalpa (or a cycle of 4.32 billion years), O Arjuna, and I create (or manifest) them again at the beginning of the next Kalpa. (9.07)

हे कौन्तेय (एक) कल्प के अन्त में समस्त भूत मेरी प्रकृति को प्राप्त होते हैं और (दूसरे) कल्प के प्रारम्भ में उनको मैं फिर रचता हूँ।।9.7।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि*

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - सप्तमी शाम 04:56 तक तत्पश्चात अष्टमी

दिनांक - 23 फरवरी 2022
दिन - बुधवार
शक संवत -1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - विशाखा दोपहर 02:41 तक तत्पश्चात अनुराधा
योग - ध्रुव सुबह 08:26 तक तत्पश्चात व्याघात
राहुकाल - दोपहर 12:52 से दोपहर 02:19 तक
सूर्योदय - 07:05
सूर्यास्त - 18:39
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
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समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : विद्या
(Education)
दिनाङ्कः : 23th February 2022,
बुधवासरः

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😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (विद्यार्जनेन व्यवहारे कीदृशं परिवर्तनं भवितव्यं, विद्यायाः महत्वं किं, विद्यार्जनस्य लक्ष्यं किं....इत्यादयः) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

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सुन्दरोऽपि सुशीलोऽपि कुलीनोऽपि महाधनः |
शोभते न विना विद्या विद्या सर्वस्य भूषणम् ||

A person may be beautiful, well mannered, belonging to an
illustrious family and also very rich, but if he is uneducated he is
not adorned in the society. That is why proper education is considered as an embellishment for everybody.

सुन्दरोऽपि = sundaro +api Sundaro = beautiful Api = even
सुशीलोऽपि = sushilo + api Susheelo = affable, well mannered
कुलीनोऽपि = kuleeno + api Kuleeno = born in an illustrious family
महाधनः = very rich
शोभते = adorned
विना = without
विद्या = learning, education
सर्वस्य = everybody's
भूषणम् = embellishment

#Subhashitam