संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
4.95K subscribers
3.12K photos
294 videos
308 files
5.9K links
Largest Online Sanskrit Network

Network
https://t.me/samvadah/11287

Linked group @samskrta_group
News and magazines @ramdootah
Super group @Ask_sanskrit
Sanskrit Books @GranthaKutee
Download Telegram
Forwarded from संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah (मोहित डोकानिया)
क्या आप किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जो संस्कृत जानते है, सीख रहे हैं या सीखना चाहते हैं तो कृपया उनको इस चैनल में जोड़ने का कष्ट करें।
Do you know any such people who know Samskrta, learning it or wants to learn it. Please add them in this channel
Final Results
43%
Yes, I know
5%
No, Don't know
48%
I am adding such people
10%
I won't add anyone
29%
If I remember I will add
Channel name was changed to «संस्कृत संवादः»
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।

🍃नियुक्तास्तत्र पशवंस्तत्तदुद्दिश्य दैवतम् ।
उरगाः पक्षिणश्चैव यथाशास्त्रं प्रचादिताः।।२८॥

⚜️जैसो शास्त्रों में विधि बतलायी गयो है, तदनुसार जिस देव के लिये जो पषुओ चाहिये वह लाया गया। यथाविधि सर्प और पक्षी भी यज्ञशाला में लाये गये॥ २८॥

🍃शामित्रं तु हयस्तत्र तथा जलचराथ ये।
ऋत्विग्भिः सर्वमेवैतन्नियुक्तं शास्त्रतस्तदा॥२९॥

⚜️ऋतिग्यो ने घोड़े और जलचर जन्तु कच्छप आदि शास्त्रिति से यथास्थान बांधे॥२९॥
📚 वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें

📙 ऋग्वेद

सूक्त-२३, प्रथम मंडल ,
मंत्र-१७ देवता-वायु आदि

🍃अमूर्या उप सूर्ये याभिर्वा सूर्यः सह. ता नो हिन्वन्त्वध्वरम्.. (१७)

⚜️जो संपूर्ण जल सूर्य के समीप वर्तमान हैं अथवा सूर्य जिन जलों के समीप रहते हैं, वे सब जल हमारे यज्ञ का हित करें, (१७)
🚩जय सत्य सनातन 🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२२
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७७
🚩तिथि - अमावस्या सुबह 08:01 तक तत्पश्चात प्रतिपदा


दिनांक - 12 अप्रैल 2021
दिन - सोमवार
विक्रम संवत - 2077
शक संवत - 1942
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - रेवती सुबह 11:30 तक तत्पश्चात अश्विनी
योग - वैधृति दोपहर 02:28 तक तत्पश्चात विष्कम्भ
राहुकाल - सुबह 07:57 से सुबह 09:31 तक
सूर्योदय - 06:23
सूर्यास्त - 18:55
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
व्रत पर्व विवरण - सोमवती अमावस्या (सूर्योदय से सुबह 08:01 तक), हरिद्वार कुंभ दूसरा दिव्य स्नान
नाहो न रात्रिर्न नभो न भूमि
र्नासीत्तमोज्योतिरभूच्च नान्यत् । श्रोत्रादिबुध्यानुपलभ्यमेकं
प्राधानिकं ब्रह्म पुमांस्तदासीत् ॥
२३॥

अन्वयः (संस्कृतवाक्यरचनापद्धतिः)

तदा न अहः न रात्रिः न नभः न भूमिः न तमः न ज्योतिः आसीत् । अन्यत् न अभूत् । एकं श्रोत्रादिबुध्यानुपलभ्यं प्राधानिकं ब्रह्म च पुमान् आसीत् ।

अन्वयार्थः (प्रतिपदार्थः)

- तदा - तब
- न अहः - न दिन
- न रात्रिः - न रात
- न नभः - न आकाश
- न भूमिः - न भूमि
- न तमः - न अंधकार
- न ज्योतिः - न प्रकाश
- आसीत् - था
- अन्यत् - और कोई वस्तु भी
- न अभूत् - नहीं था
- एकम् - एक
- श्रोत्रादि - कान आदि इन्द्रियों तथा
- बुध्दि - बुद्धि आदि अगोचर इन्द्रियों को
- आनुपलभ्यम् - न मिलनेवाला
- प्राधानिकम् - प्रधान या मूल रूप का
- ब्रह्म - ज्ञान
- - तथा
- पुमान् - पुरुष नाम का भगवान
- आसीत् - था

विवरण:

द्वापर युग के मध्य में (लगभग 437121 वर्ष पूर्व) श्रीमन्महाविष्णु जी के अवतार श्रीमद्वेदव्यास जी द्वारा रचित "श्रीमद्विष्णुपुराण" के प्रथमांश के दूसरे अध्याय का 23वां श्लोक है। ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर प्राचीन काल से ही वैज्ञानिकों के बीच चर्चा होती आ रही है। यह श्लोक उन वैज्ञानिकों की शंकाओं को दूर करने में सहायक हो सकता है।

इस दूसरे अध्याय में ब्रह्मांड की उत्पत्ति, देवताओं और मनुष्यों की काल गणना पद्धतियों का विवरण दिया गया है।

"तदा" शब्द का अर्थ यहाँ ब्रह्मांड के आरंभ के समय को लेना चाहिए। जब ब्रह्मांड की उत्पत्ति के समय न दिन था, न रात, न आकाश, न भूमि, न प्रकाश, न अंधकार—केवल ब्रह्म या ज्ञान और उस ज्ञान रूपी भगवान ही थे। श्रीबादरायण वेदव्यास जी ने लिखा है कि "श्रोत्रानुबुद्ध्यानुपलभ्यम्" का तात्पर्य है कि उस समय ज्ञान केवल परमात्मा पुरुष में ही संपूर्ण रूप से समाहित था और किसी भी कानों से सुनने योग्य या किसी बुद्धि से ग्रहण करने योग्य नहीं था। ज्ञान केवल ज्ञान रूपी परमात्मा पुरुष में ही विद्यमान था। इसके बाद भगवान ने अपने मन में ब्रह्मांड का निर्माण करने का निर्णय लिया, और आकाश, ग्रह आदि वस्तुओं का निर्माण कर ज्ञान को संपूर्ण आकाश में विस्तारित कर दिया। भगवान स्वयं पूर्ण ज्ञानमय शरीर से सदा विराजमान रहते हैं।

वैज्ञानिकों के अनुसार, इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति लगभग 1380 करोड़ साल पूर्व हुई थी। पश्चिमी खगोलशास्त्रियों के बिग बैंग सिद्धांत का मूल यही है कि भगवान ने पुरुष और ज्ञान रूप में स्वयं को विस्तारित कर बिग बैंग सिद्धांत का आधार बनाया।

ॐ नमो भगवते तुरगमुखाय

© Sanjeev GN #Subhashitam
चाणक्य नीति ⚔️
✒️द्वादशः अध्याय

♦️श्लोक:-६

पत्रं नैव यदा करीरविटपे दोषो किं नोलूकोअ्प्यवलोकयते यदि दिवा सूर्यस्य किं दूषणम्?
वर्षा नैव पतित चातकमुखे मेघस्य किं दूषणम् यत्पूर्वं विधिना ललाट लिखितं तन्माआर्जितुं कः क्षमः।।६।।

♦️भावार्थ --यदि बसंत ऋतु में करीला के वृक्ष पर पत्ते नहीं उगते, तो इसमें बसंत का क्या दोष? यदि उल्लू दिन में भी नहीं देखता, तो इसमें सूर्य का क्या दोष? यदि चातक के मुख में वर्षा की बूँदे नहीं गिरती, तो इसमें बादलों का क्या दोष? ब्रह्मा ने पहले से ही जो कुछ मनुष्य के भाग्य में लिख दिया है, उसे मिटाने में कौन समर्थ है।।

#Chanakya
🙏 *12.4.21 वेदवाणी* 🙏
अनुवाद महात्मा ज्ञानेन्द्र अवाना जी द्वारा, प्रचारित आर्य जितेंद्र भाटिया द्वारा, ऑडियो रिकॉर्डिंग सुकांत आर्य द्वारा🙏🌺

अहन्निन्द्रो अदहदग्निरिन्दो पुरा दस्यून्मध्यंदिनादभीके।
दुर्गे दुरोणे क्रत्वा न यातां पुरू सहस्रा शर्वा नि बर्हीत्॥ ऋग्वेद ४-२८-३॥🙏🌺

राजा को सूर्य के सदृश्य होना चाहिए। जैसे सूर्य दोपहर को तपाता है। उसी प्रकार राजा को दुष्टों को कष्ट देकर तपाना चाहिए। राजा को हजारों हिंसक कार्यों द्वारा अपराधियों का नाश करना चाहिए।🙏🌺

The king should be like the sun. As the sun burn off in the noon. In the same way, the king should burns off the wicked by suffering. The king must destroy criminals by thousands of violent acts. (Rig Veda 4–28–3)🙏🌺#vedgsawan🙏🌺
🌷।।ओ३म्।।🌷

वैदिक नववर्ष/नवसंवत्सर, चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, विक्रमी संवत् २०७८ (अप्रैल १३) और सृष्टि संवत्सर १,९६,०८,५३,१२२ के लिए आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।

चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ऐतिहासिक महत्व :

१. इसी दिन तथा सृष्टि संवत् १,९६,०८,५३,१२१ वर्ष पूर्व, सूर्योदय के साथ ईश्वर ने सृष्टि को रचकर प्रारंभ किया।

२. सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन राज्य स्थापित किया। इन्हीं के नाम पर विक्रमी संवत् का पहला दिन प्रारम्भ होता है।

३. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के राज्याभिषेक का दिन यही है।   

४. विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित करने हेतु यही दिन चुना।

५. युधिष्ठिर का राज्यभिषेक भी इसी दिन हुआ।

वैदिक नववर्ष का प्राकृतिक महत्व :

१. यह वसंत ऋतु का समय होता है, जो उल्लास, उमंग, प्रसन्नता तथा चारों तरफ पुष्पों की सुगंधि से भरा होता है।

२. फसल पकने का प्रारम्भ अर्थात् किसान के परिश्रम का फल मिलने का भी यही समय होता है।

वैदिक नववर्ष कैसे मनाएँ :

१. हम परस्पर एक दूसरे को नववर्ष की शुभकामनाएँ दें।

२. इस मांगलिक अवसर पर अपने-अपने घरों में वेद आदि सत्यशास्त्रों  के स्वाध्याय का संकल्प लें।

३. घरों एवं धार्मिक स्थलों पर हवन यज्ञ के कार्यक्रमों का आयोजन अवश्य करें।

         धन्यवाद!

       🚩नववर्ष हेतु शुभकामनाएं🚩
🌷ओ३म्🌷

🌺 संस्कृत स्वयं शिक्षक 🌺 - श्रीपाद दामोदर सातवलेकर

पाठ १

नीचे कुछ संस्कृत शब्द और उनके अर्थ दिए हुए हैं, फिर उनके वाक्य बनाये हैं।

शब्द
सः=वह। त्वम्=तू। अहम्=मैं। गच्छति-वह जाता है। गच्छसि-तू जाता है। गच्छामि-मैं जाता हूं।

वाक्य
अहं गच्छामि। 
• मैं जाता हूं ।

त्वं गच्छसि। 
• तू जाता है।

सः गच्छति। 
• वह जाता है।

(पाठक यहां ध्यान रखें कि संस्कृत वाक्यों का भाषा में अर्थ शब्द के क्रम से ही दिया गया है।)

शब्द
कुत्र-कहां। यत्र-जहां। अत्र-यहां।
तत्र-वहां। सर्वत्र=सब स्थान पर। किम्-क्या।

वाक्य
१. त्वं कुत्र गच्छसि ।
   • तू कहां जाता है ?

२. यत्र सः गच्छति ।
   • जहां वह जाता है।

३. अहं तत्र गच्छामि ।
   • मैं वहां जाता हूं।

४. सः कुत्र गच्छति ।
   • वह कहां जाता है ?

५. यत्र अहं गच्छामि ।
   • जहां मैं जाता हूं।

६. त्वं सर्वत्र गच्छसि ।
   • तू सब स्थान पर जाता है।

७. किं सः गच्छति ।
   • क्या वह जाता है ?

८. सः गच्छति किम् ।
   • वह जाता है क्या ?

९. सः कुत्र गच्छति ।
   • वह कहां जाता है ?

१०. यत्र त्वं गच्छसि ।
    • जहां तू जाता है।

११. त्वं गच्छसि किम् ।
    • तू जाता है क्या ?

१२. अहं सर्वत्र गच्छामि ।
    • मैं सब स्थान पर जाता हूँ।

शब्द
न-नहीं। अस्ति-है। कः-कौन। नास्ति-नहीं है।

वाक्य
१. अहं न गच्छामि।
   • मैं नहीं जाता हूं।

२. त्वं न गच्छसि।
   • तू नहीं जाता है।

३. सः न गच्छति।
   • वह नहीं जाता है।

४. अहं तत्र न गच्छामि।
   • मैं वहां नहीं जाता हूं।

५. त्वं सर्वत्र न गच्छसि।
   • तू सब स्थान पर नहीं जाता है।

६. किं सः न गच्छति।
   • क्या वह नहीं जाता है।

७. यत्र त्वं न गच्छसि।
   • जहां तू नहीं जाता है।

८. त्वं न गच्छसि किम्।
   • तू नहीं जाता है क्या ?

९. अहं सर्वत्र न गच्छामि।
   • मैं सब स्थान पर नहीं जाता हूं।

सूचना-पाठक यह देख सकते हैं कि केवल एक 'न' (नकार) के उपयोग से कितने नये उपयोगी वाक्य बन गए हैं, अब 'कः' शब्द का उपयोग देखिए

१. कः तत्र गच्छति -
   • कौन वहां जाता है ?

२. कः सर्वत्र गच्छति -
   • कौन सब स्थान पर जाता है ?

३. तत्र कः न गच्छति -
   • वहां कौन नहीं जाता ?

४. कः सर्वत्र न गच्छति -
   • कौन सब स्थान पर नहीं जाता ?

५. कः तत्र अस्ति -
   • कौन वहां है?

६. तत्र कः अस्ति -
   • वहां कौन है ?

७. अस्ति कः तत्र -
   • है कौन वहां ?

© आर्य विजय चौहान #vakyabhyas
🌷ओ३म्🌷

🌺 संस्कृत स्वयं शिक्षक 🌺 - श्रीपाद दामोदर सातवलेकर

पाठ २

निम्नलिखित शब्द याद कीजिए -

शब्द
गृहम्/गृहं-घर को। नगरम्/नगरं-नगर को। ग्रामम्/ग्रामं-गांव को। आपणम्/आपणं-बाज़ार को। पाठशालाम्/पाठशालां-पाठशाला को। उद्यानम्/उद्यानं-बाग को।

वाक्य
१. त्वं कुत्र गच्छसि।
• तू कहां जाता है ?

२. अहं गृहं गच्छामि।
• मैं घर को जाता हूँ।

३. सः कुत्र गच्छति।
• वह कहां जाता है ?

४. सः ग्रामं गच्छति।
• वह गांव को जाता है।

५. त्वं पाठशालां गच्छसि किम्।
• तू पाठशाला को जाता है, क्या ?

६. सः उद्यानं गच्छति किम्।
• वह बाग को जाता है, क्या ?

७. किं सः ग्रामं गच्छति।
• क्या वह गांव को जाता है ?

८. किं त्वम् आपणं गच्छसि।
• क्या तू बाज़ार को जाता है ?

९. यत्र त्वं गच्छसि।
• जहां तू जाता है।

१०. तत्र अहं गच्छामि।
• वहां मैं जाता हूँ।

११. यत्र सः गच्छति।
• जहां वह जाता है।

१२. तत्र त्वं गच्छसि किम्।
• वहां तू जाता है, क्या ?

शब्द
यदा-जब । कदा-कब। सदा-सदा, हमेशा। सर्वदा-सदा, हमेशा। सदैव-हमेशा। तदा-तब।

अब नीचे लिखे हुए याक्यों को याद कीजिए। यदि आपने पूर्वोक्त वाक्य याद किए हों, तो ये वाक्य आप स्वयं बना सकते हैं

वाक्य
१. कदा सः नगरं गच्छति।
• कब वह नगर को जाता है ?

२. यदा सः ग्रामं गच्छति।
• जब वह गांव को जाता है।

३. अहं सदैव पाठशाला गच्छामि।
• मैं हमेशा पाठशाला जाता हूँ।

४. सः सर्वदा उद्यानं गच्छति।
• वह सदा बाग को जाता है।

५. किं त्वं सदैव आपणं गच्छसि।
• क्या तू हमेशा बाज़ार जाता है ?

६. अहं सदैव नगरं गच्छामि।
• मैं हमेशा नगर को जाता हूँ।

७. यदा त्वं ग्रामं गच्छसि।
• जब तू गांव को जाता है।

८. तदा अहं उद्यानं गच्छामि।
• तब मैं बाग को जाता हूँ।

९. सः नगरं गच्छति किम्।
• वह नगर को जाता है, क्या ?

१०. सः सर्वदा ग्रामं गच्छति।
• वह सदा गांव को जाता है।

११. किं त्वम् उद्यानं गच्छसि।
• क्या तू बाग को जाता है ?

१२. अहं सदैव उद्यानं गच्छामि।
• मैं सदा ही बाग को जाता हूँ।

१३. त्वं कुत्र गच्छसि।
• तू कहां जाता है ?

१४. त्वं कदा गच्छसि।
• तू कब जाता है ?

१५. सः सदैव गच्छति।
• वह हमेशा ही जाता है।

पूर्वोक्त प्रकार से इन वाक्यों का भी जोर से बोलकर दस-दस बार उच्चारण करना चाहिए। तत्पश्चात् संस्कृत वाक्य की ओर देखकर (हिन्दी के वाक्य को देखते हुए) उसको हिन्दी का वाक्य बनाना चाहिए। तदनन्तर हिन्दी का वाक्य देखकर उसको संस्कृत वाक्य बनाना चाहिए। इस प्रकार करने से पाठक स्वयं कई नये वाक्य बना सकते हैं। अब कुछ निषेध के वाक्य बताते हैं -

१. अहं गृहं न गच्छामि।
• मैं घर नहीं जाता हूँ।

२. सः ग्रामं न गच्छति।
• वह गाँव को नहीं जाता है।

३. त्वं पाठशालां न गच्छति किम्।
• तू पाठशाला को नहीं जाता है क्या ?

४. किं सः उद्यानं न गच्छति।
• क्या वह बाग को नहीं जाता ?

५. किं सः ग्रामं न गच्छति।
• क्या वह गाँव को नहीं जाता ?

६. किं त्वम् आपणं न गच्छसि।
• क्या तू बाज़ार नहीं जाता ?

७. तत्र त्वं किं न गच्छसि।
• वहाँ तू क्यों नहीं जाता ?

८. यदा सः ग्रामं न गच्छति।
• जब वह गाँव को नहीं जाता।

९. कः सदा उद्यानं न गच्छति।
• कौन हमेशा बाग को नहीं जाता ?

१०. सः उद्यानं सर्वदा न गच्छति।
• वह बाग को हमेशा नहीं जाता।

११. त्वं तत्र किं न गच्छसि।
• तू वहाँ क्यों नहीं जाता ?

१२. सः तत्र सदैव न गच्छति।
• वह वहाँ हमेशा ही नहीं जाता।

इसी प्रकार पाठक स्वयं वाक्य बना सकते हैं।

©आर्य विजय चौहान #vakyabhyas
Please open Telegram to view this post
VIEW IN TELEGRAM
📚 श्रीमद बाल्मीकि रामायणम 📚

🔥 बालकाण्ड: 🔥
।।चतुर्दशः सर्गः।।


🍃पशूनां त्रिशतं तत्र यूपेषु नियतं तथा।
अश्वरवात्तमं तस्य राज्ञो दशरथस्य च ॥ ३०॥

⚜️उन खंभों में तीन सौ पशु और प्रत्येक दिशा में घूम कर आया हुआ महाराज का अति उत्तम घोड़ा बांधा गया॥३०॥

🍃कासल्या तं इयं तत्र परिचर्य समन्ततः।
कृषाणैर्विशशासैनं त्रिभिः परमया मुदा ॥३१॥

⚜️कौशल्या जी ने उस घोड़े की अच्छी तरह पूजा की और प्रसन्न हो, तीन तलवारों से उस घोड़े के पीठ को तीन बार स्पर्श किये॥३१॥

#ramayan
📙 ऋग्वेद

सूक्त-२३, प्रथम मंडल ,
मंत्र-१७ देवता-वायु आदि

🍃अपों देवीरुप ह्वये यत्र गावः पिबन्ति नः सिन्धुभ्यः तत्त्वं हवि... ( १८ )

⚜️हमारी गाएं जिस जल को पीती हैं, उसी का हम आह्वान कर रहे हैं. जो जल नदी के रूप में बह रहा है, उसे हवि देना हमारा कर्त्तव्य है.(१८)

#Rgveda
🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द - ५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत - २०७८
🚩तिथि - प्रतिपदा सुबह 10:16 तक तत्पश्चात द्वितीया


दिनांक - 13 अप्रैल 2021
दिन - मंगलवार
विक्रम संवत - 2078
शक संवत - 1943
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत
मास - चैत्र
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - अश्विनी दोपहर 02:20 तक तत्पश्चात भरणी
योग - विष्कम्भ शाम 03:17 तक तत्पश्चात प्रीति
राहुकाल - शाम 03:48 से शाम 05:23 तक
सूर्योदय - 06:22
सूर्यास्त - 18:55
दिशाशूल - उत्तर दिशा में
१३_०४ आकाशवाणी संस्कृत.mp3
1.1 MB
१३_०४ आकाशवाणी संस्कृत.mp3