संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (१६) चतुर्थी विभक्ति (३) (स्पृह् धातु के साथ इष्ट वस्तु की सम्प्रदान संज्ञा होती है, अतः उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।) सुधा सुधायै स्पृहयति = सुधा अमृत को चाहती है। यशस्वी यशसे स्पृहयति…
(परिक्रयण = किसी को निश्चित समय के लिए वेतन पर रख लेना अर्थ में करण कारक की विकल्प से सम्प्रदान संज्ञा होने से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।)

भूपतिः निर्र्धनम् आजीवनं धनेन धनाय वा परिक्रीणाति =
जमीनदार निर्धन को जीवनभर के लिए खरीदता है।

सर्वकारः त्रीन् अभियन्तॄन् मार्गनिर्माणाय वर्षद्वयं धनेन / धनाय वा पर्र्यक्रीणात् =
सरकार ने रास्ता बनाने के लिए तीन अभियन्ताओं को दो वर्ष के लिए वेतन पर रखा।

शतेन शताय वा परिक्रीतोऽस्ति दुष्ट मां प्रति वदति?=
नालायक, सौ रुपए से खरीदा हुआ है तू और मुझे उलटा बोलता है ?

धनाढ्यः बहुभूमिकं भवनं निर्मातुं निर्मातॄन् धनेन धनाय वा पञ्चवर्षाणि परिक्रेष्यति =
धनपति बहुमंजिला भवन बनाने के लिए निर्माताओं को पांच वर्ष तक वेतन पर रखेगा।

यावद् ऋणं प्रत्यावर्त्तयेत् तावत्सः तं धनेन धनाय वा परिक्रीणीयात् =
जब तक ऋण लौटाएगा तब तक वह उसको वेतन देकर काम पर रख लेवे।

(श्लाघ्, ह्नुङ्, स्था तथा शप् इन धातुओं के प्रयोग में जिसे ये क्रियाएं जताना अभिप्रेत है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है तथा उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

मित्राय श्लाघते =
मित्र की प्रशंसा करता है। (अर्थात् मित्र की दिखावटी प्रशंसा करता है)

चाटुपटुः यशसेऽधिकारिणेऽश्लाघत =
चापलूस व्यक्ति ने यश के लिए अधिकारी की प्रशंसा की है।

दोषी विद्यार्र्थी दण्डात् मुक्तये गुरवे श्लाघिष्यते =
दोषी विद्यार्थी दण्ड से बचने के लिए गुरु की प्रशंसा करेगा।

आत्मश्लाघिने तुष्टये सदा श्लाघेत =
आत्मश्लाघी (खुद ही खुद का प्रशंसक) की तुष्टि के लिए सदा उसकी प्रशंसा करे।

शिशवे क्रीडनकं ह्नुते =
बच्चे से खिलौना छिपाता है। (खिलौना लेने बच्चा उसके पास आए इस लिए जानबूझ कर छिपाने का दिखावा करता है)

अपलापिने तस्य वास्तुकं अपह्नुते =
झूठे से उसकी किसी वस्तु को झुठलाता है। (जिससे उस झूठे व्यक्ति को पता चले कि वह भी अन्यों की वस्तुएं झुठलाता है)

रुष्टा पत्नी पत्ये तिष्ठते =
रूठी हुई पत्नी पति के लिए रुकती / ठहरती है। (इस प्रकार रुकती है कि उस का रुकना पति को पता चले)

हस्तशाकटिकः क्रेतृभ्यः अतिष्ठत =
ठेलेवाला खरीददारों के लिए रुका।

श्वश्रू वध्वे शपते =
सास बहू की निन्दा कर रही है। (बहु को पता चले इस तरह से करती है)

क्रेता विक्रेत्रे अशपत =
ग्राहक ने बेचनेवाले की निन्दा की। (यद्यपि निन्दा अन्यों के सामने की पर इस तरह से की कि बेचनेवाले को पता चले)

(राध् और ईक्ष धातुओं के प्रयोग में जिसका क्षेमकुशल जानने के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है अतः उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

पिता वैद्यं पुत्राय राध्यति =
पिता वैद्य को पुत्र के विषय में पूछता है।

पितरावपतेभ्यः शिक्षकान् राध्येताम् =
माता-पिता को बच्चों के विषय में अध्यापकों से पूछना चाहिए।

माता दूरवाण्यां विदेशस्थाय पुत्राय ईक्षते=
दूरभाष पर माता विदेश में रहनेवाले बेटे को विविध प्रश्न पूछती है।

रामः हनुमन्तं सीतायै ऐक्षत =
राम ने हनुमान से सीता के विषय में पूछा।

#vakyabhyas
एका महिला आपणं गच्छति शाटिकां क्रेतुम्।
आपणिकः - कीदृशीं शाटिकाम् दर्शयानि?

महिला - तादृशीं दर्शयतु यां दृष्ट्वा प्रतिवेशिनी ईर्ष्यया एव म्रियेत।😃😅

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

व्यापृतेष्विन्द्रियेष्वात्मा व्यापारीवाविवेकिनाम्।
दृश्यतेऽभ्रेषु धावत्सु धावन्निव यथा शशी।।19।।

19. The moon appears to be running when the clouds move in the sky. Likewise to the non-discriminating person the Atman appears to be active when It is observed through the functions of the sense-organs.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 19 :

आत्म-बोध के 19th श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की जब शरीर, इन्द्रिय, एवं मन आदि कार्य करते हैं तो अविवेकी लोग ऐसा समझते हैं की आत्मा अर्थात वे खुद कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोग न तो यह जानते हैं की वे क्या हैं और न ही यह जानते हैं की कोई भी कार्य कैसे होता है। आत्मा सदैव मात्र एक राजा तुल्य साक्षी की तरह से स्थित रहती है और सबको अपने-अपने कार्य करने के लिए जीवंतता प्रदान करती रहती है - न की खुद करती है। जो इस रहस्य को जान जाता है वो किसी भी काम में कभी भी तनाव आदि से युक्त नहीं होता है। वो तो मुक्त रहता है।

#Atmabodha
।।श्री शिवराजस्तुतिपञ्चकम्।।
(अनुष्टुप् छंदसि , पथ्यावक्त्र वृत्तम् )

**चरितंशिवराजस्य महद्दिव्यम् अलौकिकम् ।
महासत्तवमहाधैर्यमहास्फूर्तिप्रदायकम्।।१।।
येन वै षोडशे वर्षे चक्रे दिव्य पराक्रम:।
जिगाय तोरणा दुर्गं दुर्गंपरमदुर्जय:।।२।‌।
नारसिंहवपुर्धृत्वा य: शत्रो: शिबिरं गत:।
चक्रे वधम् अफझलस्य व्याघ्रस्यनखरै: पुरा ।।३।।
शिवछत्रपती राजा सुमेरोरपि सुस्थिर:।
सदालोकहितेमग्न: शंकरो धूर्जटिर्यथा।।४।।
कुळवाडिवतंसः स पौरपालनतत्परः।
स नित्यं समुदायच्छेन्नो नीतिं सुखदायिनीम् ।।५।।
वर्णयेयं कथमहं प्रभो तव यशोऽर्णवम् ।
शतदा जन्म लब्ध्वापि वर्णनं नैव शक्यते ।।६।।**

युवराज दिपककुमार भोगावकर
बी.ए.द्वितीय वर्ष , देवगिरी महाविद्यालय, औरंगाबाद
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 17:00 PM 🕔
विषयः : दूरवाणी अपायः अथवा उपायः
(Mobile boon or curse)

दिनाङ्कः : 20th February 2022,
रविवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (शिवाजीमहाराजस्य जीवनपरिचयं , जीवनघटनां , युद्धविवरणं वा वदन्तु) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [08.28]
🍃वेदेषु यज्ञेषु तपःसु चैव दानेषु यत्पुण्यफलं प्रदिष्टम्।
अत्येति तत्सर्वमिदं विदित्वा योगी परं स्थानमुपैति चाद्यम्
।। 8.28 ।।

♦️vedeShu yaj~neShu tapaHsu chaiva
daaneShu yatpuNyaphalaM pradiShTam|
atyeti tatsarvamidaM viditvaa
yogii paraM sthaanamupaiti chaadyam8.28

Whatever fruit of merit is declared (in the scriptures) to accrue from (the study of) the Vedas, (the performance of) sacrifices, (the practice of) austerities, and gifts beyond all this goes the Yogi, having known this; and he attains to the Supreme Primeval (first or ancient) Abode. 8.28

योगी इसको (शुक्ल और कृष्णमार्गके रहस्यको) जानकर वेदोंमें यज्ञोंमें तपोंमें तथा दानमें जोजो पुण्यफल कहे गये हैं उन सभी पुण्यफलोंका अतिक्रमण कर जाता है और आदिस्थान परमात्माको प्राप्त हो जाता है।। 8.28 ।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [09.01]
🍃श्री भगवानुवाच
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्
।। 9.1 ।।

♦️shrii bhagavaanuvaacha
idaM tu te guhyatamaM pravakShyaamyanasuuyave|
j~naanaM vij~naanasahitaM yajj~naatvaa mokShyase'shubhaat9.1

The Supreme Lord said: 
I shall reveal to you, who do not disbelieve, the most profound secret of Self-knowledge and Self-realization. Having known this you will be freed from the miseries of worldly existence. (9.01)

श्रीभगवान् ने कहा -- 
तुम अनसूयु (दोष दृष्टि रहित) के लिए मैं इस गुह्यतम ज्ञान को विज्ञान के सहित कहूँगा? जिसको जानकर तुम अशुभ (संसार बंधन) से मुक्त हो जाओगे।। 9.1 ।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - चतुर्थी रात्रि ०९:०५ तक तत्पश्चात पंचमी

दिनांक - २० फरवरी २०२२
दिन - रविवार
विक्रम संवत - २०७८
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - हस्त शाम ०४:४२ तक तत्पश्चात चित्रा
योग - शूल दोपहर ०३:०८ तक तत्पश्चात गण्ड
राहुकाल - शाम ०५:१२ से शाम ०६:३९ तक
सूर्योदय - ०७:०७
सूर्यास्त - १८:३७
दिशाशूल - पश्चिम दिशा में
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कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 17:00 PM 🕔
विषयः : दूरवाणी अपायः अथवा उपायः
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दिनाङ्कः : 20th February 2022,
रविवासरः

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उक्तस्य शतशोऽप्युच्चैर्नीचैरुक्तस्य चैकधा । असत्यस्य न सत्यत्वं न सत्यस्याप्यसत्यता ॥

Falsehood uttered loudly a hundred times doesn't become true and truth whispered but once doesn't become false.

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