संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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हिरण्मयीं लक्ष्मीम् - रागं ललिता - ताळं रूपकम्

पल्लवि
हिरण्मयीं लक्ष्मीं सदा भजामि
हीन मानवाश्रयं त्यजामि

अनुपल्लवि
चिर-तर सम्पत्प्रदां
क्षीराम्बुधि तनयां
(मध्यम काल साहित्यम्)
हरि वक्षःस्थलालयां
हरिणीं चरण किसलयां
कर कमल धृत कुवलयां
मरकत मणि-मय वलयाम्

चरणम्
श्वेत द्वीप वासिनीं
श्री कमलाम्बिकां परां
भूत भव्य विलासिनीं
भू-सुर पूजितां वराम्
मातरं अब्ज मालिनीं
माणिक्याभरण धरां
गीत वाद्य विनोदिनीं
गिरिजां तां इन्दिराम्
(मध्यम काल साहित्यम्)
शीत किरण निभ वदनां
श्रित चिन्तामणि सदनां
पीत वसनां गुरु गुह -
मातुल कान्तां ललिताम्
Meaning
Pallavi
sadA bhajAmi – I always worship
hiraNmayIM lakshmIM – the golden hued Lakshmi!
tyajAmi – I give up
hIna mAnava-ASrayaM – dependence on mortals which is inferior.

anupallavi
cira-tara sampat-pradAM– the giver of long-lasting prosperity
kshIra-ambudhi tanayAM – the daughter of the milky ocean,
hari vakshaH-sthala-AlayAM– the dweller of the chest of Vishnu,
hariNIM - the golden one,
caraNa kisalayAM – the one with (soft) sprout-like feet,
kara kamala dhRta kuvalayAM – the one holding a lily with lotus-like hands,
marakata maNi-maya valayAm – the one wearing emerald-set bracelets.

caraNam
SvEta dvIpa vAsinIM – the resident of Shvetha-dvipa ,
SrI kamalA-ambikAM parAM – the supreme Kamalambika,
bhUta bhavya vilAsinIM– the one who manifests as the past and future,
bhU-sura pUjitAM – the one worshipped by Vedic scholars,
varAm – the eminent one,
mAtaraM – the mother,
abja mAlinIM – the one wearing a lotus garland,
mANikya-AbharaNa dharAM – the one wearing ruby-studded ornaments,
gIta vAdya vinOdinIM – the one who delights in song and musical instruments,
girijAM tAM – the one dear to Parvati,
indirAm – the embodiment of beauty,
SIta kiraNa nibha vadanAM – the one with a moon-like face,
Srita cintAmaNi sadanAM – the very abode of wish-fulfilling gems to her devotees,
pIta vasanAM – the one wearing yellow garments,
guru guha - mAtula kAntAM - the wife of Guruguha’s maternal uncle,
lalitAm – the charming one.

Comments:
This Kriti is in the second Vibhakti
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 45 निमेषाः
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : छत्रपतिः शिवाजी महाराजः

दिनाङ्कः : 19th February 2022,
शनिवासरः

Please Join the voicechat on time.

😇 यदि शक्येत चेत् संस्कृतेन (शिवाजीमहाराजस्य जीवनपरिचयं , जीवनघटनां , युद्धविवरणं वा वदन्तु) चर्चार्थं कृपया पूर्वसिद्धतां कृत्वा आगच्छन्तु।

वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

स्मारणतंत्रिकां स्थापयतु


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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [08.26]
🍃शुक्लकृष्णे गती ह्येते जगतः शाश्वते मते।
एकया यात्यनावृत्तिमन्ययाऽऽवर्तते पुनः
।। ८.२६ ।।

♦️shuklakRRiShNe gatii hyete jagataH shaashvate mate|
ekayaa yaatyanaavRRittimanyayaa''vartate punaH8.26

The bright and the dark paths of the world are verily thought to be eternal; by the one (the bright path) a man goes not to return and by the other (the dark path) he returns. 8.26

जगत् के ये दो प्रकार के शुक्ल और कृष्ण मार्ग सनातन माने गये हैं । इनमें एक (शुक्ल) के द्वारा (साधक) अपुनरावृत्ति को तथा अन्य (कृष्ण) के द्वारा पुनरावृत्ति को प्राप्त होता है।। ८.२६ ।।

#geeta
CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [08.27]
🍃नैते सृती पार्थ जानन्योगी मुह्यति कश्चन।
तस्मात्सर्वेषु कालेषु योगयुक्तो भवार्जुन
।। ८.२७ ।।

♦️naite sRRitii paartha jaananyogii muhyati kashchana|
tasmaatsarveShu kaaleShu yogayukto bhavaarjuna8.27

Knowing these paths, O Arjuna, no Yogi is deluded; therefore at all times be steadfast in Yoga. 8.27

हे पार्थ इन दो मार्गों को (तत्त्व से) जानने वाला कोई भी योगी मोहित नहीं होता। इसलिए हे अर्जुन तुम सब काल में योगयुक्त बनो।। ८.२७ ।। 

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - तृतीया रात्रि ०९:५६ तक तत्पश्चात चतुर्थी

दिनांक - १९ फरवरी २०२२
दिन - शनिवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - वसंत ऋतु
मास - फाल्गुन
पक्ष - कृष्ण
नक्षत्र - उत्तराफाल्गुनी शाम ०४:५१ तक तत्पश्चात हस्त
योग - धृति शाम ०४:५७ तक तत्पश्चात शूल
राहुकाल - सुबह १०:०० से सुबह ११:२६ तक
सूर्योदय - ०७:०७
सूर्यास्त - १८:३७
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
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कालावधिः : 45 निमेषाः
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विषयः : छत्रपतिः शिवाजी महाराजः

दिनाङ्कः : 19th February 2022,
शनिवासरः

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वयं युष्माकं प्रतीक्षां कुर्मः। 😇

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Live stream scheduled for
सुखार्थिनः कुतो विद्या, नास्ति विद्यार्थिनः सुखम्।
सुखार्थी वा त्यजेद्विद्यां, विद्यार्थी वा त्यजेत् सुखम्।।

भावार्थः - यः सुखम् इच्छति सः विद्यां प्राप्तुं न शक्नोति तथा यः विद्याम् इच्छति सः सुखं प्राप्तुं न शक्नोति।
तस्मात् यदि सुखम् इच्छति चेत् विद्यायाः त्यागं करोतु तथा यदि विद्याम् इच्छति चेत् सुखस्य त्यागं करोतु।

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
संस्कृतं वद आधुनिको भव। वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।। पाठ : (१६) चतुर्थी विभक्ति (३) (स्पृह् धातु के साथ इष्ट वस्तु की सम्प्रदान संज्ञा होती है, अतः उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।) सुधा सुधायै स्पृहयति = सुधा अमृत को चाहती है। यशस्वी यशसे स्पृहयति…
(परिक्रयण = किसी को निश्चित समय के लिए वेतन पर रख लेना अर्थ में करण कारक की विकल्प से सम्प्रदान संज्ञा होने से उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है।)

भूपतिः निर्र्धनम् आजीवनं धनेन धनाय वा परिक्रीणाति =
जमीनदार निर्धन को जीवनभर के लिए खरीदता है।

सर्वकारः त्रीन् अभियन्तॄन् मार्गनिर्माणाय वर्षद्वयं धनेन / धनाय वा पर्र्यक्रीणात् =
सरकार ने रास्ता बनाने के लिए तीन अभियन्ताओं को दो वर्ष के लिए वेतन पर रखा।

शतेन शताय वा परिक्रीतोऽस्ति दुष्ट मां प्रति वदति?=
नालायक, सौ रुपए से खरीदा हुआ है तू और मुझे उलटा बोलता है ?

धनाढ्यः बहुभूमिकं भवनं निर्मातुं निर्मातॄन् धनेन धनाय वा पञ्चवर्षाणि परिक्रेष्यति =
धनपति बहुमंजिला भवन बनाने के लिए निर्माताओं को पांच वर्ष तक वेतन पर रखेगा।

यावद् ऋणं प्रत्यावर्त्तयेत् तावत्सः तं धनेन धनाय वा परिक्रीणीयात् =
जब तक ऋण लौटाएगा तब तक वह उसको वेतन देकर काम पर रख लेवे।

(श्लाघ्, ह्नुङ्, स्था तथा शप् इन धातुओं के प्रयोग में जिसे ये क्रियाएं जताना अभिप्रेत है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है तथा उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

मित्राय श्लाघते =
मित्र की प्रशंसा करता है। (अर्थात् मित्र की दिखावटी प्रशंसा करता है)

चाटुपटुः यशसेऽधिकारिणेऽश्लाघत =
चापलूस व्यक्ति ने यश के लिए अधिकारी की प्रशंसा की है।

दोषी विद्यार्र्थी दण्डात् मुक्तये गुरवे श्लाघिष्यते =
दोषी विद्यार्थी दण्ड से बचने के लिए गुरु की प्रशंसा करेगा।

आत्मश्लाघिने तुष्टये सदा श्लाघेत =
आत्मश्लाघी (खुद ही खुद का प्रशंसक) की तुष्टि के लिए सदा उसकी प्रशंसा करे।

शिशवे क्रीडनकं ह्नुते =
बच्चे से खिलौना छिपाता है। (खिलौना लेने बच्चा उसके पास आए इस लिए जानबूझ कर छिपाने का दिखावा करता है)

अपलापिने तस्य वास्तुकं अपह्नुते =
झूठे से उसकी किसी वस्तु को झुठलाता है। (जिससे उस झूठे व्यक्ति को पता चले कि वह भी अन्यों की वस्तुएं झुठलाता है)

रुष्टा पत्नी पत्ये तिष्ठते =
रूठी हुई पत्नी पति के लिए रुकती / ठहरती है। (इस प्रकार रुकती है कि उस का रुकना पति को पता चले)

हस्तशाकटिकः क्रेतृभ्यः अतिष्ठत =
ठेलेवाला खरीददारों के लिए रुका।

श्वश्रू वध्वे शपते =
सास बहू की निन्दा कर रही है। (बहु को पता चले इस तरह से करती है)

क्रेता विक्रेत्रे अशपत =
ग्राहक ने बेचनेवाले की निन्दा की। (यद्यपि निन्दा अन्यों के सामने की पर इस तरह से की कि बेचनेवाले को पता चले)

(राध् और ईक्ष धातुओं के प्रयोग में जिसका क्षेमकुशल जानने के लिए प्रश्न पूछे जाते हैं उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है अतः उसमें चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।)

पिता वैद्यं पुत्राय राध्यति =
पिता वैद्य को पुत्र के विषय में पूछता है।

पितरावपतेभ्यः शिक्षकान् राध्येताम् =
माता-पिता को बच्चों के विषय में अध्यापकों से पूछना चाहिए।

माता दूरवाण्यां विदेशस्थाय पुत्राय ईक्षते=
दूरभाष पर माता विदेश में रहनेवाले बेटे को विविध प्रश्न पूछती है।

रामः हनुमन्तं सीतायै ऐक्षत =
राम ने हनुमान से सीता के विषय में पूछा।

#vakyabhyas
एका महिला आपणं गच्छति शाटिकां क्रेतुम्।
आपणिकः - कीदृशीं शाटिकाम् दर्शयानि?

महिला - तादृशीं दर्शयतु यां दृष्ट्वा प्रतिवेशिनी ईर्ष्यया एव म्रियेत।😃😅

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

व्यापृतेष्विन्द्रियेष्वात्मा व्यापारीवाविवेकिनाम्।
दृश्यतेऽभ्रेषु धावत्सु धावन्निव यथा शशी।।19।।

19. The moon appears to be running when the clouds move in the sky. Likewise to the non-discriminating person the Atman appears to be active when It is observed through the functions of the sense-organs.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 19 :

आत्म-बोध के 19th श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में आचार्यश्री हमें बता रहे हैं की जब शरीर, इन्द्रिय, एवं मन आदि कार्य करते हैं तो अविवेकी लोग ऐसा समझते हैं की आत्मा अर्थात वे खुद कार्य कर रहे हैं। ऐसे लोग न तो यह जानते हैं की वे क्या हैं और न ही यह जानते हैं की कोई भी कार्य कैसे होता है। आत्मा सदैव मात्र एक राजा तुल्य साक्षी की तरह से स्थित रहती है और सबको अपने-अपने कार्य करने के लिए जीवंतता प्रदान करती रहती है - न की खुद करती है। जो इस रहस्य को जान जाता है वो किसी भी काम में कभी भी तनाव आदि से युक्त नहीं होता है। वो तो मुक्त रहता है।

#Atmabodha