🚩जय सत्य सनातन🚩
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - चतुर्दशी रात्रि ०९:४२ तक
⛅ दिनांक - १५ फरवरी २०२२
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत -१९४३
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसन्त
⛅ मास - माघ
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुष्य दोपहर ०१:४९ तक तत्पश्चात अश्लेशा
⛅ योग - सौभाग्य रात्रि ०९:१८ तक तत्पश्चात शोभन
⛅ राहुकाल - शाम ०३:४५ से शाम ०५:११ तक
⛅ सूर्योदय - ०७:१०
⛅ सूर्यास्त - १८:३५
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
🚩आज की हिंदी तिथि
🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
⛅ 🚩तिथि - चतुर्दशी रात्रि ०९:४२ तक
⛅ दिनांक - १५ फरवरी २०२२
⛅ दिन - मंगलवार
⛅ शक संवत -१९४३
⛅ अयन - उत्तरायण
⛅ ऋतु - वसन्त
⛅ मास - माघ
⛅ पक्ष - शुक्ल
⛅ नक्षत्र - पुष्य दोपहर ०१:४९ तक तत्पश्चात अश्लेशा
⛅ योग - सौभाग्य रात्रि ०९:१८ तक तत्पश्चात शोभन
⛅ राहुकाल - शाम ०३:४५ से शाम ०५:११ तक
⛅ सूर्योदय - ०७:१०
⛅ सूर्यास्त - १८:३५
⛅ दिशाशूल - उत्तर दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 30 minutes
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : कर्नाटकराज्ये (हिजब्) अवगुण्ठनविवादः
(Hijab controversy in Karnataka)
दिनाङ्कः : 15th February, 2022,
Tuesday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss ( "हिजब्" अनुमतिः देया वा न, विद्यालयेषु कः नियमः भवेत्।)in Sanskrit , If possible.
We are waiting for you.😇
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https://t.me/samskrt_samvadah?voicechat
कालावधिः : 30 minutes
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : कर्नाटकराज्ये (हिजब्) अवगुण्ठनविवादः
(Hijab controversy in Karnataka)
दिनाङ्कः : 15th February, 2022,
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Forwarded from रामदूतः — The Sanskrit News Platform
https://youtu.be/Y9KmQbq_uiw
Switch to DD News daily at 7:15 AM (Morning) for 15 minutes Sanskrit news.
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YouTube
वार्ता: संस्कृत में समाचार | 15/2/2022
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah pinned «वैय्याकरणः इस नाम से ज्ञात होता है कि जो व्याकरण को जानता है वह वैय्याकरण है। •Telegram में एक ऐसा तंत्रांश(BOT) है जो व्याकरण के विषय में आपके लिए वरदान हो सकता है। • वैय्याकरणः @vyakarana_bot नामक इस तंत्रांश (BOT) में आप व्याकरण के बहुत से विषयों की…»
"लोकयात्रा भयं लज्जा दाक्षिण्यं त्यागशीलता।
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम्॥"
अर्थात - "जिन स्थानों पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसे पांच स्थानों को मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए ।"
#Subhashitam
पञ्च यत्र न विद्यन्ते न कुर्यात्तत्र संगतिम्॥"
अर्थात - "जिन स्थानों पर आजीविका न मिले, लोगों में भय, लज्जा, उदारता तथा दान देने की प्रवृत्ति न हो, ऐसे पांच स्थानों को मनुष्य को अपने निवास के लिए नहीं चुनना चाहिए ।"
#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
यद् भद्रं तन्न आसुव = जो कुछ भी कल्याणकारी है वह हमें प्राप्त कराइए। शंयोरभिस्रवन्तु नः = हमारे लिए लौकिक एवं मोक्ष दोनों प्रकार के सुखों की सभी ओर से वर्षा कीजिए। यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु = जिस जिस कामनावाले होकर हम तुझे समर्पण करें, वह वह हमारी…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (१५) चतुर्थी विभक्ति (२) + पूर्वरूप सन्धिः
(अच्छा लगना अर्थ की धातुओं के साथ जिसको अच्छा लगता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।)
शिशवे क्रीडनकं रोचते
= बच्चे को खिलौना अच्छा लगता है।
घस्मराय मोदकाः रोचन्ते
= खाऊ को लड्डू अच्छे लगते हैं।
कृष्णाय दुर्योधनस्य पक्वान्नं नारोचिष्ट किन्तु विदुरस्य श्राणा अरोचिष्ट
= कृष्ण को दुर्योधन के पक्वान्नअच्छे नहीं लगे किन्तु विदुर की भाजी अच्छी लगी।
मूढभारतीयेभ्यः क्षुद्रा आंग्लसंस्कृतिः रोचते किन्तु विश्ववारा वैदिेक संस्कृतिः न
= मूर्ख भारतीयों को क्षुद्र पाश्चात्य संस्कृति अच्छी लगती है किन्तु सबके द्वारा वरणीय वैदिक संस्कृति अच्छी नहीं लगती।
यैः भारतमाता दासतां याता तानि सर्वाणि दूषणानि अद्यापि मूढेभ्यः रोचन्ते
= जिन कारणों से भारत गुलाम हुआ वे सब बुराइयां आज भी मूढ़ लोगों को अच्छी लगती हैं।
इदं कटुसत्यं सर्वेभ्यः न रोचिष्यते इति जानाम्यहं
= यह कड़वा सच सभी को अच्छा नहीं लगेगा यह मैं जानती / जानता हूं।
कंसाय अत्याचारः रोचते स्म
= कंस को अत्याचार करना अच्छा लगता था।
देशप्रेमिभ्यः स्वराष्ट्रं रोचताम्
= देशप्रेमियों को स्वदेश अच्छा लगना चाहिए।
स्वतन्त्र-स्वस्थ-संघटित-भारतवर्षाय आवश्यकमस्ति यद् सर्वेभ्यः स्वभाषा, स्वभूषा, स्वभोजनं, भारती च रोचन्ताम्
= स्वतन्त्र, स्वस्थ, संगठित भारत बनाने के लिए आवश्यक है कि सब को अपनी भाषा, अपना वेश, अपना खानपान तथा संस्कृत भाषा अच्छी लगे।
भरतमुनये मृगशावकं रुरुचे यत्तस्य बन्धाय अभूत
= भरतमुनि को हिरण का बच्चा अच्छा लगा था जो उनके बन्धन (= पतन) का कारण बना।
रामाय पितुराज्ञापालनाय वनगमनम् अरोचत
= राम को पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वन जाना अच्छा लगा था।
भरताय राज्यं नारोचत
= भरत को राज्य करना अच्छा नहीं लगा।
भृष्ट-भण्टाकी मह्यम् अतीव स्वदते
= बैंगन का भरता मुझे बहुत अच्छा लगता है।
सुसिम्बयुक्तं पुलाकं आवुत्ताय स्वदिष्यते
= फ्रेंचबीनवाला पुलाव जीजा को अच्छा लगेगा।
स्वास्थाय ज्येष्ठाम्बायै कर्कटी ज्येष्ठ ताताय च चर्भटी स्वदेत
= स्वास्थ्य के लिए ताई को ककड़ी तथा ताऊ को खीरा अच्छा लगना चाहिए।
आलूक्याः पक्ववटी भागिनेयाय अस्वदत
= अरबी की पकौड़ी भानजे को अच्छी लगती थी।
स्वस्रीयाय रामकोशातकी कोशातकी चापि अस्वदिष्ट
= भानजे को भिण्डी तथा तोरई भी अच्छी लगती थी।
स्वस्रीयायै अपि जालिनी स्वदते स्म
= भानजी को भी तोरई अच्छी लगती थी।
अम्लिकया सह कुष्माण्डं बहुभ्यः जनेभ्यः रोचते
= इमली डालकर पकाया हुआ काशीफल बहुतों को स्वादिष्ट लगता है।
#vakyabhyas
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।
पाठ : (१५) चतुर्थी विभक्ति (२) + पूर्वरूप सन्धिः
(अच्छा लगना अर्थ की धातुओं के साथ जिसको अच्छा लगता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान कारक में चतुर्थी विभक्ति होती है।)
शिशवे क्रीडनकं रोचते
= बच्चे को खिलौना अच्छा लगता है।
घस्मराय मोदकाः रोचन्ते
= खाऊ को लड्डू अच्छे लगते हैं।
कृष्णाय दुर्योधनस्य पक्वान्नं नारोचिष्ट किन्तु विदुरस्य श्राणा अरोचिष्ट
= कृष्ण को दुर्योधन के पक्वान्नअच्छे नहीं लगे किन्तु विदुर की भाजी अच्छी लगी।
मूढभारतीयेभ्यः क्षुद्रा आंग्लसंस्कृतिः रोचते किन्तु विश्ववारा वैदिेक संस्कृतिः न
= मूर्ख भारतीयों को क्षुद्र पाश्चात्य संस्कृति अच्छी लगती है किन्तु सबके द्वारा वरणीय वैदिक संस्कृति अच्छी नहीं लगती।
यैः भारतमाता दासतां याता तानि सर्वाणि दूषणानि अद्यापि मूढेभ्यः रोचन्ते
= जिन कारणों से भारत गुलाम हुआ वे सब बुराइयां आज भी मूढ़ लोगों को अच्छी लगती हैं।
इदं कटुसत्यं सर्वेभ्यः न रोचिष्यते इति जानाम्यहं
= यह कड़वा सच सभी को अच्छा नहीं लगेगा यह मैं जानती / जानता हूं।
कंसाय अत्याचारः रोचते स्म
= कंस को अत्याचार करना अच्छा लगता था।
देशप्रेमिभ्यः स्वराष्ट्रं रोचताम्
= देशप्रेमियों को स्वदेश अच्छा लगना चाहिए।
स्वतन्त्र-स्वस्थ-संघटित-भारतवर्षाय आवश्यकमस्ति यद् सर्वेभ्यः स्वभाषा, स्वभूषा, स्वभोजनं, भारती च रोचन्ताम्
= स्वतन्त्र, स्वस्थ, संगठित भारत बनाने के लिए आवश्यक है कि सब को अपनी भाषा, अपना वेश, अपना खानपान तथा संस्कृत भाषा अच्छी लगे।
भरतमुनये मृगशावकं रुरुचे यत्तस्य बन्धाय अभूत
= भरतमुनि को हिरण का बच्चा अच्छा लगा था जो उनके बन्धन (= पतन) का कारण बना।
रामाय पितुराज्ञापालनाय वनगमनम् अरोचत
= राम को पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए वन जाना अच्छा लगा था।
भरताय राज्यं नारोचत
= भरत को राज्य करना अच्छा नहीं लगा।
भृष्ट-भण्टाकी मह्यम् अतीव स्वदते
= बैंगन का भरता मुझे बहुत अच्छा लगता है।
सुसिम्बयुक्तं पुलाकं आवुत्ताय स्वदिष्यते
= फ्रेंचबीनवाला पुलाव जीजा को अच्छा लगेगा।
स्वास्थाय ज्येष्ठाम्बायै कर्कटी ज्येष्ठ ताताय च चर्भटी स्वदेत
= स्वास्थ्य के लिए ताई को ककड़ी तथा ताऊ को खीरा अच्छा लगना चाहिए।
आलूक्याः पक्ववटी भागिनेयाय अस्वदत
= अरबी की पकौड़ी भानजे को अच्छी लगती थी।
स्वस्रीयाय रामकोशातकी कोशातकी चापि अस्वदिष्ट
= भानजे को भिण्डी तथा तोरई भी अच्छी लगती थी।
स्वस्रीयायै अपि जालिनी स्वदते स्म
= भानजी को भी तोरई अच्छी लगती थी।
अम्लिकया सह कुष्माण्डं बहुभ्यः जनेभ्यः रोचते
= इमली डालकर पकाया हुआ काशीफल बहुतों को स्वादिष्ट लगता है।
#vakyabhyas
कार्तिक: – कति लकाराः सन्ति ?
रमण: – दश इति मन्ये
कार्तिकः – ते के ?
रमण: – ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल्
कार्तिकः – किं भणति रे ?
रमण: – भवान् एव उक्तवान् यत्
अनुबन्धलोपे सर्वेषां लकाराणं "ल्" इत्येव अवशिष्यते | इति
कार्तिकः – सर्वेषां शिष्याणां स्नातकानन्तरम् त्वमेवात्र अवशिष्यसे 😡
रमण: – ☹️
#hasya
रमण: – दश इति मन्ये
कार्तिकः – ते के ?
रमण: – ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल् ल्
कार्तिकः – किं भणति रे ?
रमण: – भवान् एव उक्तवान् यत्
अनुबन्धलोपे सर्वेषां लकाराणं "ल्" इत्येव अवशिष्यते | इति
कार्तिकः – सर्वेषां शिष्याणां स्नातकानन्तरम् त्वमेवात्र अवशिष्यसे 😡
रमण: – ☹️
#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
पञ्चकोशादियोगेन तत्तन्मय इव स्थितः।
शुद्धात्मा नीलवस्त्रादियोगेन स्फटिको यथा।।15।।
15. In its identification with the five-sheaths the Immaculate Atman appears to have borrowed their qualities upon Itself; as in the case of a crystal which appears to gather unto itself colour of its vicinity (blue cloth, etc.,).
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 15 :
आत्म-बोध के 15th पाठ एवं श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में भी आचार्य हमें अपनी उपाधियों कोष के दृष्टी से वर्गीकरण का परिचय देते हैं। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय,विज्ञानमय एवं आनन्दमय कोष शनैः शनैः हमारी उपाधियाँ के स्थूल से सूक्ष्म धरातल का परिचय देते हैं। इनसे तादात्म्य करने से ही उपाधियों के धर्म हमारे धर्म लगाने लगते हैं। इस सिद्धांत को आचार्य एक स्फटिक और रंगीन कपडे के दृष्टांत से समझते हैं। स्फटिक कैसा भी रंग की आभा से युक्त दिखाई दे तो तब भी जैसे नीरंग रहता है वैसे ही आत्मा असंग, निर्लिप्त और निर्गुण रहती है।
#Atmabodha
।।आत्मबोधः।।
Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.
पञ्चकोशादियोगेन तत्तन्मय इव स्थितः।
शुद्धात्मा नीलवस्त्रादियोगेन स्फटिको यथा।।15।।
15. In its identification with the five-sheaths the Immaculate Atman appears to have borrowed their qualities upon Itself; as in the case of a crystal which appears to gather unto itself colour of its vicinity (blue cloth, etc.,).
आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 15 :
आत्म-बोध के 15th पाठ एवं श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में भी आचार्य हमें अपनी उपाधियों कोष के दृष्टी से वर्गीकरण का परिचय देते हैं। अन्नमय, प्राणमय, मनोमय,विज्ञानमय एवं आनन्दमय कोष शनैः शनैः हमारी उपाधियाँ के स्थूल से सूक्ष्म धरातल का परिचय देते हैं। इनसे तादात्म्य करने से ही उपाधियों के धर्म हमारे धर्म लगाने लगते हैं। इस सिद्धांत को आचार्य एक स्फटिक और रंगीन कपडे के दृष्टांत से समझते हैं। स्फटिक कैसा भी रंग की आभा से युक्त दिखाई दे तो तब भी जैसे नीरंग रहता है वैसे ही आत्मा असंग, निर्लिप्त और निर्गुण रहती है।
#Atmabodha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.
कालावधिः : 45 minutes
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : क्षमा
(Patience/ Forgiveness)
दिनाङ्कः : 16th February 2022,
Wednesday.
Please Join the voicechat on time.
😇 Please come prepared to discuss ( कदा पर्यन्तं क्षमादानं सम्यक्,क्षमाविषयस्य कथां स्वानुभवं वा वदन्तु, अस्माकं शास्त्रेषु क्षमाविषये किम् उक्तम्.....।)in Sanskrit , If possible.
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कालावधिः : 45 minutes
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विषयः : क्षमा
(Patience/ Forgiveness)
दिनाङ्कः : 16th February 2022,
Wednesday.
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🍃
♦️parastasmaattu bhaavo'nyo'vyakto'vyaktaatsanaatanaH|
yaH sa sarveShu bhuuteShu nashyatsu na vinashyati8.20
⚜There is another eternal unmanifest state higher than (both Purusha and) Prakriti that does not perish when all beings perish. (8.20)
⚜परन्तु उस अव्यक्त से परे अन्य जो सनातन अव्यक्त भाव है वह समस्त भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।। 8.20 ।।
#geeta
परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातनः।
यः स सर्वेषु भूतेषु नश्यत्सु न विनश्यति
।। 8.20 ।।♦️parastasmaattu bhaavo'nyo'vyakto'vyaktaatsanaatanaH|
yaH sa sarveShu bhuuteShu nashyatsu na vinashyati
⚜There is another eternal unmanifest state higher than (both Purusha and) Prakriti that does not perish when all beings perish. (8.20)
⚜परन्तु उस अव्यक्त से परे अन्य जो सनातन अव्यक्त भाव है वह समस्त भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता।। 8.20 ।।
#geeta
🍃
♦️avyakto'kShara ityuktastamaahuH paramaaM gatim|
yaM praapya na nivartante taddhaama paramaM mama8.21
⚜This unmanifest state is called the imperishable or Brahman. This is said to be the ultimate goal. Those who reach My Supreme abode do not return (or take rebirth). (8.21)
⚜जो अव्यक्त अक्षर कहा गया है वही परम गति (लक्ष्य) है। जिसे प्राप्त होकर (साधकगण) पुनः (संसार को) नहीं लौटते वह मेरा परम धाम है।। 8.21 ।।
#geeta
अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम्।
यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम
।। 8.21 ।।♦️avyakto'kShara ityuktastamaahuH paramaaM gatim|
yaM praapya na nivartante taddhaama paramaM mama
⚜This unmanifest state is called the imperishable or Brahman. This is said to be the ultimate goal. Those who reach My Supreme abode do not return (or take rebirth). (8.21)
⚜जो अव्यक्त अक्षर कहा गया है वही परम गति (लक्ष्य) है। जिसे प्राप्त होकर (साधकगण) पुनः (संसार को) नहीं लौटते वह मेरा परम धाम है।। 8.21 ।।
#geeta