संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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कालावधिः : 30 minutes
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : वार्ता
(News.)
दिनाङ्कः : 07 February, 2022,
Monday.
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🍃अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन।
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः
।। 8.2 ।।

♦️adhiyaj~naH kathaM ko'tra dehe'sminmadhusuudana|
prayaaNakaale cha kathaM j~neyo'si niyataatmabhiH8.2

O Krishna, who is Adhiyajna, and how does He dwell in the body? How can You be remembered at the time of death by the steadfast? (8.02)

और हे मधुसूदन यहाँ अधियज्ञ कौन है और वह इस शरीर में कैसे है और संयत चित्त वाले पुरुषों द्वारा अन्त समय में आप किस प्रकार जाने जाते हैं, ।। 8.2 ।।
 
#geeta
🍃श्री भगवानुवाच
अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते।
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः
।। 8.3 ।।

♦️shrii bhagavaanuvaacha
akSharaM brahma paramaM svabhaavo'dhyaatmamuchyate|
bhuutabhaavodbhavakaro visargaH karmasaMj~nitaH8.3

The Supreme Lord said --
Brahman is the Supreme imperishable. The individual self (or Jeevaatma) is called Adhyaatma. The creative power that causes manifestation of beings is called Karma. (8.03)

श्रीभगवान् ने कहा -- 
परम अक्षर (अविनाशी) तत्त्व ब्रह्म है स्वभाव (अपना स्वरूप) अध्यात्म कहा जाता है भूतों के भावों को उत्पन्न करने वाला विसर्ग (यज्ञ प्रेरक बल) कर्म नाम से जाना जाता है।। 8.3 ।।

#geeta
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - सप्तमी ०८ फरवरी सुबह ०६:१५ तक तत्पश्चात अष्टमी

दिनांक - ०७ फरवरी २०२२
दिन - सोमवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - अश्विनी शाम ०६:५९ तक तत्पश्चात भरणी
योग - शुभ शाम ०४:४४ तक तत्पश्चात शुक्ल
राहुकाल - सुबह ०८:३८ से सुबह १०:०३ तक
सूर्योदय - ०७:१४
सूर्यास्त - १८:३१
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
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मूर्खस्तु प्रहर्तव्यः प्रत्यक्षो द्विपदः पशुः ।
भिद्यते वाक्य-शल्येन अदृशं कण्टकं यथा ॥

एक  मूर्ख व्यक्ति साक्षात् एक दो  पावों वाले एक पशु के समान होता है और वह  बलप्रयोग के द्वारा  ही  वश में किया जा सकता है और उसकी तीर के समान अनर्गल बातों उसी  प्रकार चुभती हैं जिस प्रकार  पांव में चुभा हुआ पर न दिखाई देना वाला एक कांटा |

#Subhashitam
संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
(अलम् तथा कृतम् इन दो शब्दों के साथ भी तृतीया विभक्ति होती है यदि बस या मत अर्थ हो तो।) अलम् अतिविस्तरेण, समासेन ब्रूहि..! = ज्यादा विस्तार मत करो, संक्षेप में कहो..! अलं मोहेन, वानप्रस्थी भव..! = मोह मत कर, वानप्रस्थ धारण कर..! अलं वार्तालापेन, मौनं धारय..!…
(सं + वद् तथा अनु + हृ के साथ तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।)

अस्याः मुखं मातुः मुखेन संवदति = चेहरे से अपनी मांपर गया है।
मुखेन मातरम् अनुहरति = मां के जैसा ही इसका भी चेहरा है।
प्रद्युम्नः दर्शनेन कृष्णम् अनुहरति स्म = प्रद्युम्न दिखने में हूबहू कृष्ण जैसा था।
प्रायः बालिका पितरम् अनुहरति मुखेन = प्रायः कन्याओं का चेहरा अपने पिता से मेल खाता है।
शरीरेण भीमं संवदति = शरीर से भीम जैसा है।

(अशिष्ट व्यवहार = शास्त्र निषिद्ध कर्म में जिसको कुछ दिया जाए उसमें तृतीया विभक्ति होती है।)

सः समस्तं धनं वाराङ्नाभिः अदात् = उसने सारा धन वेश्याओं को दे दिया।
गणिका ऋषिवधाय सूपकारेण द्रविणम् अददात् = ऋषि को जान से मारने के लिए वेश्या ने रसोइए को धन दिया।
शत्रुदेशः आतङ्कवादिभिः धनं ददाति = शत्रुदेश आतङ्कवादियों को धन देता है।
स्वैरि स्वैरिण्या धनं दास्यति = व्यभिचारी व्यभिचारिणी को धन देगा।
अनार्यैः धनं मा दद्यात् = अनार्यों को धन मत दो।
सर्वकारः गोवधकैः अनुदानं मा दद्यात् = सरकार को गोवध करनेवालों को अनुदान नहीं देना चाहिए।

वृद्धि सन्धिः

(वृद्धिरेचि। आ, ऐ, औ इन तीन वर्णों की वृद्धि संज्ञा है। अ/आ के बाद ए/ऐ हो तो दोनों के स्थान पर ‘ऐ’ तथा अ/आ के बाद ओ/औ हो तो दोनों के स्थान पर ‘औ’ हो जाता है।)

अ/आ + ए/ऐ = ऐ; तद् आ + ए कः = तद् ऐ कः = तदैकः
अ/आ + ओ/औ = औ; मह् आ + औ षधिः = मह् औ षधिः = महौषधिः

तस्य + ऐश्वर्यम् = तस्यैश्वर्यम्।
तस्यैश्वर्यं दृष्ट्वा दुर्योधनः ईर्ष्यति = उसका ऐश्वर्य देखकर दुर्योधन को ईर्ष्या हो रही है।

वित्त + एषणा = वित्तैषणा, पुत्र + एषणा = पुत्रैषणा, लोक + एषणा = लोकैषणा।
सामान्यतः मनुष्येषु एषणात्रयं वर्तते, वित्तैषणा पुत्रैषणा लोकैषणा च = सामान्यरूप से मानवों में तीन एषणाएं होती हैं, वित्तैषणा, पुत्रैषणा तथा लोकैषणा।

विद्या + ऐषणा = विद्यैषणा
विद्वत्सु विद्यैषणा दरीदृष्यते = विद्वानों में प्रायः विद्या प्राप्ति की इच्छा देखी जाती है।

महा + औषधम् = महौषधम्।
मौनमेव महौषधं मूर्खाणाम् = मूर्खों का अन्तिम इलाज (स्वयं) मौन हो जाना है।

तथा + एव = तथैव।
यथा वदन्ति तथैव कुर्वन्ति सज्जनाः = सज्जन लोग जैसा कहते हैं वैसा ही करते हैं।

दिव्य + ओषधैः = दिव्यौषधैः।
यदि सुहृद् दिव्यौषधैः किं फलम् ? = यदि मनुष्य के पास सच्चा मित्र है, तो उसे दिव्य औषधियों से क्या प्रयोजन ?

सर्वस्य + औषधम् = सर्वस्यौषधम्।
सर्वस्यौषधमस्ति शास्त्रस्त्रविहितं मूर्खस्यनास्त्यौषधम् = शास्त्रोंस्त्रों में सभी रोगों की दवा है किन्तु मूर्खों की कोई दवा नहीं है।

तृष्णा + ओघः तृष्णौघः।
विट्षु विष्टः तृष्णौघः तापयति नाग्निः = अग्नि नहीं तपाता किन्तु मनुष्यों में विद्यमान तृष्णाओं का महान् समूह तपाता है।

#vakyabhyas
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

तावत्सत्यं जगद्भाति शुक्तिकारजतं यथा।
यावन्न ज्ञायते ब्रह्म सर्वाधिष्ठानमद्वयम्।।7।।

7. The Jagat appears to be true (Satyam) so long as Brahman, the substratum, the basis of all this creation, is not realised. It is like the illusion of silver in the mother-of pearl.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 7 :

आत्म-बोध के 7th श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में आचार्य बता रहे हैं की जब तक हम अधिष्ठान को नहीं जानते हैं तब तक अध्यारोप बना रहता है। जैसे अज्ञानवशात एक सीपी का चांदी समझ लिया - जब तक हमको उसके यथार्थ का ज्ञान नहीं होता तब तक कल्पना बानी रहती है।

#Ātmabōdha #Atmabodha