संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
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🍃जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्
।।7.29।।

♦️jaraamaraNamokShaaya maamaashritya yatanti ye|
te brahma tadviduH kRRitsnamadhyaatmaM karma chaakhilam7.29

Those who strive for freedom from (the cycles of birth) old age and death by taking refuge in Me know Brahman, the individual self, and Karma in its entirety. (7.29)

जो मेरे शरणागत होकर जरा और मरण से मुक्ति पाने के लिए यत्न करते हैं वे पुरुष उस ब्रह्म को सम्पूर्ण अध्यात्म को और सम्पूर्ण कर्म को जानते हैं।। 7.29 ।।

#geeta
पावका नः सरस्वती वाजेभिर्वाजिनीवती।
यज्ञं वष्टु धियावसुः॥

English translation:
Goddess Sarasvatī, who sanctifies, nourishes, intelligently bestows opulence, may make our
sacrifice successful with knowledge and action.

Hindi translation:
पवित्र बनाने वाली, पोषण देने वाली, बुद्धिमतापूर्वक ऐश्वर्य प्रदान करने वाली
देवी सरस्वती ज्ञान और कर्म से हमारे यज्ञ को सफल बनाए।
🚩जय सत्य सनातन🚩

🚩आज की हिंदी तिथि

🌥️ 🚩युगाब्द-५१२३
🌥️ 🚩विक्रम संवत-२०७८
🚩तिथि - पंचमी ०६ फरवरी प्रातः ०३:४६ तक तत्पश्चात षष्ठी

दिनांक - ०५ फरवरी २०२२
दिन - शनिवार
शक संवत -१९४३
अयन - उत्तरायण
ऋतु - शिशिर
मास - माघ
पक्ष - शुक्ल
नक्षत्र - उत्तर भाद्रपद शाम ०४:०९ तक तत्पश्चात रेवती
योग - सिद्ध शाम ०५:४२ तक तत्पश्चात साध्य
राहुकाल - सुबह १०:०४ से सुबह ११:२८ तक
सूर्योदय - ०७:१५
सूर्यास्त - १८:३०
दिशाशूल - पूर्व दिशा में
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 30 minutes only
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : Gossip.
जल्पनम्
दिनाङ्कः : 05th February 2022,
Saturday.
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संस्कृत संवादः । Sanskrit Samvadah
मृषा भोजयति कुपुत्रम् = कपूत को खिलाना व्यर्थ है। मृषा वदति वादी = वादी झूठ बोल रहा है। मुधा मा वद, पतिष्यति..! = झूठ मत बोल, पतन होगा..! ज्योक् जीव..! = दीर्घजीवी हो..! ज्योक् पश्येम सूर्यमुच्चरन्तम् = हम सदा देखें हृदय में विद्यमान (उपस्थित) प्रेरक को। मिथ्या…
संस्कृतं वद आधुनिको भव।
वेदान् पठ वैज्ञानिको भव।।

पाठ : (१३) तृतीया विभक्ति (५)
(जिस अंग के विकार से शरीर को विकृत माना जाए, उस अंग में तृतीया विभक्ति होती है।)

नेत्रेण अन्धोऽपि पथि सम्यक् व्यवहरति = आंख से अन्धा होने के बावजूद भी रस्ते पर ठीक चलता है।
अन्धापेक्षया नेत्रेण काणोऽपि ज्यायान् = अन्धे की अपेक्षा आंख से काणा व्यक्ति अच्छा है।
हस्तेन लुञ्जोऽपि परिश्रमेण जीवति = एक हाथ से विकलांग होने पर भी महनत कर के जीता है।
कराभ्यां विकलोऽपि प्रसन्नवदनः तिष्ठति = दोनों हाथों से विकलांग होने पर भी प्रसन्नवदन रहता है।
पादेन खञ्जोऽपि भृशं धावति = पैर से लंगड़ा होते हुए भी खूब दोड़ता है।
यत्र प्रजा मुखेन मूका भवति, राजा कर्णेन बधिरो भवति, तत्र नूनं विनाशो भवति = जहां प्रजा गूंगी होती है और राजा बहरा होता है वहां निश्चय ही विनाश होता है।
शिरसा खल्वाटोऽयं केशविन्यासान् पश्यति = टकलु हेअरस्टाईल देख रहा है।
मन्थरा पृष्ठेन कुब्जा आसीत् = मन्थरा पीठ से कुबड़ी थी।
शरीरेण वामनोऽपि शिवराजः दीर्घकायान् शत्रून् अवपातयति स्म = शरीर से बौना होने पर भी शिवाजी महाकाय शत्रुओं को पछाड़ देता था।
दन्तैः रिक्तोऽपि गोलगप्पां वाञ्छति = मुख में दांत नहीं फिर भी गोलगप्पे खाना चाहता है।
अहो आश्चर्यम् अङ्गुलिभिः विकलोऽपि कुष्ठी वस्त्रं स्त्रं वयति = अहो आश्चर्य है, बिना ऊंगलियों के भी कोढ़ी कपड़ा बुन रहा है।
ग्रीवया वक्रोऽपि लक्ष्यं अमोघं विध्यति = टेढ़ी गर्दनवाला भी निशाना अचूक लगाता है।
अक्ष्णा केकरः न ज्ञायते कुत्र पश्यति = भेंगा (ेुनपदज) व्यक्ति कहां देखता है पता नहीं चलता।

(किम्, किं कार्यम्, कोऽर्थः, किं प्रयोजनम् इन शब्दों के साथ तृतीया विभक्ति का प्रयोग होता है।)
सन्दीप्ते भवने कूपखनेन किं, किं कार्यम्, किं प्रयोजनम् कोऽर्थः वा ? = घर जल जाने के बाद कुंआ खोदने से क्या लाभ ?
काले दत्तं वरं ह्यल्पम् अकाले बहुनाऽपि किम् ? = समय पर थोड़ा दिया जाना भी बहुत कहाता है जबकि समय निकल जाने पर बहुत सारा दिया जाना भी व्यर्थ है।
धर्महीनेन मनुष्येण कोऽर्थः = धर्मरहित व्यक्ति से क्या लाभ ?
लवणं विना स्वादु भोजनेन किं = नमक के बिना स्वादिष्ट भोजन कैसा ?
ज्ञानेन विना बलेन किं कार्यम् = ज्ञान के बिना बल किस काम का ?
दृष्टिं विना अक्ष्णा किं प्रयोजनम् = दृष्टि के बिना आंख से क्या लाभ ?
किं तेन जातेन येन वंशो न गच्छति समुन्नतिम् = उसके जन्म लेने से क्या लाभ जिसके कारण वंश उन्नत न हो ?
किं तेन पठनेन येन सदाचारो न शिक्षितः ? = उस पढ़ाई से क्या लाभ जो सदाचार नहीं सिखाता ?
किं तेन धनेन येन दानेन हस्तो न भूषितः ? = उस धन से क्या लाभ जिसने दान से हाथ की शोभा नहीं बढ़ाई ?
किं तेन बुधेन यो सत्यं न भाषते = वह कैसा विद्वान् है जो सत्य नहीं बोलता ?

#vakyabhyas
राज्यस्य मुख्यमन्त्री जनान् समस्याः पृच्छति स्म, तदा कश्चन जनः एवं वदति~

मुख्यमंत्री - तव कति अपत्यानि सन्ति?

जनः - चत्वारः बालकाः सन्ति।

मुख्यमंत्री - ते किं कुर्वन्ति?

जनः - प्रथमः B. Tech कृतवान्, द्वितीयः MCA कृतवान्, तृतीयः M. A कृतवान् तथा चतुर्थः चोरः अस्ति।

मुख्यमंत्री - चेत् किमर्थं न तं चोरं गृहात् निष्कासयति.....?

जनः (खिन्नो भूत्वा) - सः एव धनं अर्जति अन्ये तु निरुद्योगिनः सन्ति। 😁😅😂

#hasya
।।श्रीः।।
।।आत्मबोधः।।

Atmabodha, meaning Self-knowledge or Self-awareness, is an exceptionally lucid and readable work of Shankaracharya. Consisting of sixty-eight verses or shlokas, it is in a sense a simple summary of his entire Vedantic structure of thought, intended, it would seem, as a basic primer for his students and followers. The text follows a clearly elaborated doctrine, starting with knowledge as a key to liberation, the nautre of the Atman within us, the assertion of the pervasive and attribute-less nature of Brahman, and the path towards the realisation of the complete identity between the Atman and Brahman.

अज्ञानकलुषं जीवं ज्ञानाभ्यासाद्विनिर्मलम्।
कृत्वा ज्ञानं स्वयं नश्येज्जलं कतकरेणुवत्।।5।।

5. Constant practice of knowledge purifies the Self (‘Jivatman’), stained by ignorance and then disappears itself – as the powder of the’Kataka-nut’ settles down after it has cleansed the muddy water.

आत्म-बोध ऑनलाइन क्लास - 5 :

आत्म-बोध के पांचवें श्लोक में पू गुरूजी श्री स्वामी आत्मानन्द सरस्वतीजी ने बताया की इस श्लोक में आचार्य बता रहे हैं की जीव मात्र अज्ञान से कलुषित होता है अतः प्रामाणिक ज्ञान के अभ्यास से वो निर्मल हो जाता है। जब ज्ञान के अभ्यास की बात करी गयी तो एक प्रश्न उत्पन्न हुआ की आत्मा-अभिमुख होने के लिए हमारी बुद्धि से अगर अन्य सभी वृत्तियों को बाधित होना चाहिए फिर तो ज्ञान की वृत्ति भी हमें मन-बुद्धि की धरातल पर बनाए रखेगी। इसका उत्तर में आचार्य ज्ञान वृत्ति की एक अध्भुत विशिष्टता बताते हैं।

#Ātmabōdha
@samskrt_samvadah संलापशाला - A Samskrit Voicechat room.

कालावधिः : 30 minutes only
समयः : IST 11:00 AM 🕚
विषयः : रामायणम्।
(Ramayana.)
दिनाङ्कः : 6th February 2022,
Sunday.
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CD Track
श्रीमद्भगवद्गीता [07.30]
🍃साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः
।।7.30।।

♦️saadhibhuutaadhidaivaM maaM saadhiyaj~naM cha ye viduH|
prayaaNakaale'pi cha maaM te viduryuktachetasaH7.30


The steadfast persons, who know that Brahman is everything, the Adhibhoota, the Adhidaiva, and the Adhiyajna, remember Me even at the time of death (and attain Me). (See also 8.04) (7.30)

जो पुरुष अधिभूत और अधिदैव तथा अधियज्ञ के सहित मुझे जानते हैं वे युक्तचित्त वाले पुरुष अन्तकाल में भी मुझे जानते हैं।। 7.30 ।।

#geeta
🍃अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते
।। 8.1 ।।

♦️arjuna uvaacha
kiM tadbrahma kimadhyaatmaM kiM karma puruShottama|
adhibhuutaM cha kiM proktamadhidaivaM kimuchyate8.1

Arjuna said --
O Krishna, what is Brahman? What is Adhyaatma? What is Karma? What is called Adhibhoota? And what is known as Adhidaiva? (8.01)

अर्जुन ने कहा  --
हे पुरुषोत्तम वह ब्रह्म क्या है अध्यात्म क्या है तथा कर्म क्या है और अधिभूत नाम से क्या कहा गया है तथा अधिदैव नाम से क्या कहा जाता है, ।। 8.1 ।।

#geeta